ORDER | द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्यक्ष - इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने यह उपशम मांगा है कि विपक्षीगण को आदेशित किया जाऐ कि वे पत्र सं 01197/स0प्र0मुरा0 दिनांकित 03/09/1997 निरस्त कर प्रश्नगत भवन का विक्रय पत्र परिवादी के पक्ष में निष्पादित करें। मानसिक कष्ट एवं आर्थिक क्षति की मद में 10,000/- (दस हजार रूपया) और परिवाद व्यय अतिरिक्त दिलाऐ जाने की भी मांग परिवादी ने की।
- संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी के आवेदन पर वर्ष 1986 में विपक्षीगण ने परिवादी के पक्ष में एक भवन सं0- ए-424, स्थित जिगर विहार, मुरादाबाद आवंटित किया था। तत्सम्बन्धी विपक्षी सं0-2 का पत्र सं0- 272/स0प्र0मु0 दिनांकित 08/04/1986 परिवादी को दिनांक 05-5-1986 को प्राप्त हुआ। इस पत्र में आवंटन की सूचना देते हुऐ परिवादी से अपेक्षा की गयी कि भुगतान की प्रथम किश्त दिनांक 30/04/1986 तक अदा की जाऐ। चॅूंकि उक्त पत्र परिवादी को दिनांक 05/05/1986 को प्राप्त हुआ था अत: अप्रैल, 1986 की किशत परिवादी ने माह मई, 1986 में जमा कर दी। परिवादी का अग्रेत्तर कथन है कि उसने आवंटित भवन के सापेक्ष सारी किश्ते विधिवत् लगातार जमा कर दी है। परिवादी को विपक्षी सं0-2 द्वारा प्रेषित पत्र सं0 1197/स0प्र0-मुरा0 दिनांकित 03/09/2007 प्राप्त हुआ जिसमें परिवादी से भवन की किश्तों के रूप में 24,960/- रूपया 85 पैसे तथा दण्ड ब्याज के रूप में 23,962/- रूपया 45 पैसे की मांग की गई और परिवादी से अपेक्षा की गयी कि यह धनराशि वह दिनांक 31/08/2007 तक जमा करा दे अन्यथा उसके विरूद्ध बेदखली की कार्यवाही की जाऐगी। परिवादी ने कथन किया कि वह चॅूंकि सारी किश्तें नियमानुसार समय से अदा कर चुका था अत: विपक्षी सं0-2 द्वारा प्रेषित पत्र सं0- 1197 दिनांकित 03/09/2007 विधि विरूद्ध है। परिवादी के अनुरोध पर विपक्षीगण उसे निरस्त करने के लिए तैयार नहीं हैं ऐसी दशा में परिवादी को यह परिवाद योजित करने की आवश्यकता पड़ी और परिवादी ने परिवद में अनुरोधित अनुतोष स्वीकार किऐ जाने की प्रार्थना की।
- विपक्षीगण की ओर से लिखित उत्तर कागज सं0-8/1 लगायत 8/2 दाखिल हुआ। लिखित उत्तर में विपक्षीगण ने यह तो स्वीकार किया कि परिवादी को उसके आवेदन पर परिवाद में उल्लिखित भवन आवंटित किया गया था, किन्तु परिवादी के इस कथन से स्पष्ट इन्कार किया गया गया कि आवंटन पत्र सं0- 272 दिनांकित 08/4/1986 परिवादी को दिनांक 05/05/1986 को मिला। विपक्षीगण के अनुसार परिवादी को यह पत्र अप्रैल, 1986 में ही प्राप्त हो गया था उसे किश्त अप्रैल, 1986 में जमा करनी थी जिसे उसने मई, 1986 में जमा किया। अनुबन्ध के अनुसार अवशेष धनराशि पर ब्याज वसूल करने के उपरान्त ही शेष जमा धनराशि किश्तों के विरूद्ध समायोजित की जानी थी। विपक्षीगण द्वारा प्रेषित पत्र दिनांकित 03/09/2007 सही है और परिवादी इस पत्र में उल्लिखित धनराशि जमा करने का उत्तरदायी है। विशेष कथनों में कहा गया कि फोरम को भवन का मूल्य तय करने का क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवादी से पत्र दिनांकित 03/09/2007 में जो धनराशि मांगी जा रही है वह नियमानुसार है। परिवादी ने दण्ड ब्याज से बचने के लिए यह परिवाद दबाव बनाने के उद्देश्य से योजित किया है। विपक्षीगण ने यह कथन करते हऐ कि परिवादी मांगे गऐ अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है, परिवाद व्यय सहित खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की।
- परिवाद के साथ परिवादी ने सूची कागज सं0- 3/4 के माध्यम से आवंटन पत्रसं0-272 /स0प्र0 दिनांकित 08/04/1986 एवं विपक्षी सं0-2 की ओर से प्रेषित पत्र कागज सं0- 1197/स0प्र0 दिनांकित 03/09/2007 की फोटो प्रतियों को दाखिल किया, यह प्रपत्र कागज सं0- 3/5 एवं 3/6 हैं। परिवादी ने सूची कागज सं0 4/1 के माध्यम से दिनांक 19/05/1986 को विपक्षी के खाते में जमा किऐ गऐ 3,474/-रूपया 05 पैसे की रसीद की फोटो प्रति कागज सं0 4/2 को भी दाखिल किया।
- विपक्षीगण की ओर से प्रश्नगत भवन के सम्बन्ध में परिवादी एवं विपक्षीगण के मध्य निष्पादित अनुबन्ध पत्र दिनांकित 25/09/1986 को दाखिल किया गया जो पत्रावली का कागज सं0-13/2 लगायत 13/3 है।
- साक्ष्य में परिवादी द्वारा अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-10/1 लगायत 10/3 तथा विक्षीगण की ओर से उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद, मुरादाबाद के सम्पत्ति प्रबन्ध अधिकारी श्री ए0 के0 माथुर का साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-12/1 लगायत 12/2 दाखिल हुआ।
- विपक्षीगण की ओर से लिखित बहस कागज सं0-14/1 लगायत 14/2 दाखिल हुई। परिवादी की ओर से अवसर दिऐ जाने के बावजूद लिखित बहस दाखिल नहीं की गयी।
- हमने पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
- परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार आवंटन पत्र दिनांकित 8/4/1986 (पत्रावली का कागज सं0-3/5) के अनुसार उसने समस्त धनराशि नियमित किश्तों के माध्यम से विपक्षीगण के खाते में जमा कर दी है इस सन्दर्भ में परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने परिवाद के पैरा सं0-3 की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने विपक्षीगण के प्रतिवाद पत्र के पैरा सं0-2 की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुऐ कथन किया कि विपक्षीगण ने अपने प्रतिवाद पत्र में परिवादी के इस कथन से इन्कार नहीं किया है कि परिवादी समस्त किश्तें अदा कर चुका है। विपक्षीगण ने परिवाद के पैरा सं0-2 में मात्र यह कथन किया है कि दण्ड ब्याज परिवादी से वसूल करने के उपरान्त ही परिवादी द्वारा जमा धनराशि किश्तों के विरूद्ध समायोजित की जायेगी। उपरोक्त के आधार पर यह माने जाने का कारण है कि परिवादी आवंटित भवन के सापेक्ष किश्तों की समस्त धनराशि विपक्षीगण को अदा कर चुका है। विपक्षीगण की ओर से जारी पत्र दिनांकित 3/09/2007 (पत्रावली का कागज सं0-3/6) में यधपि यह उल्लेख किया है कि परिवादी की ओर अभी भी किश्तों का 24,960/- रूपया 85 पैसा तथा ब्याज/दण्ड ब्याज का 23,962/- रूपया 45 पैसा बकाया है, किन्तु उक्त मांग का क्या विवरण है, क्या आधार है यह विपक्षीगण ने कहीं स्पष्ट नहीं किया है। यहॉं तक कि विपक्षीगण के साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-12/1 लगायत 12/2 में भी इस मांग के आधार अथवा किसी विवरण का उल्लेख नहीं है। यह सही है कि परिवादी एवं विपक्षीगण के मध्य प्रश्नगत भवन के सन्दर्भ में हुऐ अनुबन्ध कागज सं0-13/2 लगायत 13/3 के अनुसार विपक्षीगण अवशेष राशि पर दण्ड ब्याज वसूल कर सकते हैं किन्तु दण्ड ब्याज की मांग से पूर्व विपक्षीगण को यह दर्शाना होगा कि परिवादी की ओर किश्तों की जो धनराशि बकाया बतायी जा रही है वह किस प्रकार परिवादी की ओर बकाया निकल रही है। विपक्षीगण की ओर से पत्र दिनांकित 03/9/2007 में उल्लिखित किश्तों की अवशेष राशि तथा ब्याज/ दण्ड ब्याज का आधार/ विवरण चॅूंकि उपलब्ध नहीं कराया गया है तब उस दशा में जबकि परिवादी ने अपने परिवाद पत्र के पैरा सं0-3 में देय सम्पूर्ण धनराशि विधिवत् जमा कर दिऐ जाने का कथन किया है और उसका विपक्षीगण प्रतिवाद पत्र में विशिष्ट रूप से खण्डन नहीं कर पाऐ हैं, यह माने जाने का कारण है कि पत्र दिनांकित 03/09/2007 में विपक्षीगण द्वारा मांगी जा रही धनराशि अनौचित्यपूर्ण एवं मनमानी है।
- विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने एग्रीमेन्ट दिनांकित 25/09/1986 की शर्त सं0-2 (क) की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया और कहा कि प्रथम किश्त की अदायगी 01/04/1986 को प्रारम्भ होनी थी जो 01 मई, 1986 की तिथि तक परिवादी द्वारा अदा की जानी थी किन्तु स्वयं परिवादी के अनुसार उसने अप्रैल, 1986 की प्रथम किश्त दिनांक 19/05/1986 को अदा की जैसा कि पत्रावली में अवस्थित रसीद कागज सं0-4/2 से प्रकट है। विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का कथन है कि परिवादी ने इस प्रकार किश्तों की आदायगी में व्यतिक्रम किया है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने प्रत्युत्तर में कहा कि आवंटन आदेश दिनांक 08/04/1986 परिवादी को दिनांक 05/05/1986 को प्राप्त हुआ था ऐसी दशा में अप्रैल, 1986 की प्रथम किश्त दिनांक 01/05/1986 तक अदा करने का उसे अवसर ही नहीं था उसने 19/05/1986 को अन्य के अतिरिक्त अप्रैल, 1986 की प्रथम किश्त भी विपक्षीगण के खाते में जमा कर दी थीं और इस प्रकार परिवादी द्वारा किश्तों की अदायगी में कोई व्यकितक्रम किया जाना प्रकट नहीं है। विपक्षीगण की ओर से बहस के दौरान परिवादी के इस कथन पर आपत्ति उठायी गयी है कि परिवादी को आवंटन आदेश दिनांक 05/05/1986 को प्राप्त हुआ था। जब परिवादी ने अपने साक्ष्य शपथ पत्र में सशपथ कथन किया है कि उसे आवंटन आदेश दिनांक 05/05/1986 को प्राप्त हुआ था तब विपक्षीगण का यह उत्तरदायित्व था कि वह यह प्रमाणित करते कि परिवादी को यह आवंटन आदेश दिनांक 05/05/1986 को नहीं मिला बल्कि अप्रैल, 1986 में ही परिवादी को यह मिल गया था किन्तु विपक्षीगण ऐसा करने में असफल रहे हैं। इन परिस्थितियों में हम परिवादी के इन कथनों से सन्तुष्ट हैं कि आवंटन आदेश उसे दिनांक 05/06/1986 को मिला था और उसने किश्तों की अदायगी में कोई व्यतिक्रम नहीं किया। उल्लेखनीय है कि अनुबन्ध दिनांक 25/09/1986 को निष्पादित हुआ था। परिवादी अन्य के अतिरिक्त भुगतान की प्रथम किश्त विपक्षीगण के खाते में दिनांक 19/05/1986 को जमा कर चुका था जैसा रसीद कागज सं0- 4/2 से प्रकट है। इस दृष्टि से भी विपक्षीगण का यह कथन स्वीकार किऐ जाने योग्य नहीं है कि परिवादी ने किश्तों की अदायगी में व्यतिक्रम किया था।
- विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने एक तर्क यह दिया कि परिवाद कालबाधित है। विपक्षीगण के तर्क का आधार यह है कि आवंटन वर्ष 1986 में हुआ था, परिवाद वर्ष 2009 में योजित हुआ इस प्रकार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-24 ए के अनुसार परिवाद कालबाधित है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने प्रतिवाद किया और कहा कि परिवादी को वाद का कारण तब उत्पन्न हुआ जब उसे विपक्षीगण का पत्र दिनांकित 03/09/2007 प्राप्त हुआ और इस प्रकार परिवाद कालबाधित नहीं है। परिवाद के अवलोकन से प्रकट है कि परिवादी को वाद कारण विपक्षीगण के पत्र दिनांकित 03/09/2007 से उत्पतन्न हुआ है। परिवाद दिनांक 27/08/2009 को इस फोरम के समक्ष प्रस्तुत हुआ था, प्रकट है कि वाद हेतुक उत्पन्न होने के 2 वर्ष की अवधि के भीतर यह परिवाद फोरम के समक्ष योजित हो गया अत: यह कालबाधित नहीं है।
- विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने 2001 (3) सीपीआर पृष्ठ-172, श्रीमती गीता वर्मा बनाम एस्टेट मैनेजमेन्ट आफिसर यू0पी0 आवास एवं विकास परिषद आदि मा0 राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ एवं 2012 (2) सीपीआर पृष्ठ-23, सुधीन्द्र कृष्णाचर हरिहर बनाम दातरे नाथू वानी आदि, मा0 राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, महाराष्ट्र द्वारा दी गयी निर्णय विधियों का अबलम्व लिया। हमने विपक्षीगण की ओर से उद्धृत उपरोक्त दोनों निर्णयज विधियों का अवलोकन किया। हमने पाया कि यह निर्णयज विधियां वर्तमान मामले के तथ्यों पर लागू नहीं होतीं। वर्तमान मामले में विवाद इस बात का है कि क्या परिवादी ने किश्तों के भुगतान में व्यतिक्रम किया है और उसके द्वारा किश्तों की धनराशि और ब्याज तथा दण्ड ब्याज की धनराशि देय है अथवा नहीं ? वर्तमान मामले में भूखण्ड/ भवन के मूल्यांकन का विवाद नहीं है ऐसी दशा में विपक्षीगण की ओर से उद्धृत निर्णयज विधियां विपक्षीगण के लिए सहायक नहीं हैं क्योंकि वे वर्तमान मामले के तथ्यों पर लागू नहीं होतीं।
- पत्रावली पर उपलब्ध तथ्यों, साक्ष्य एवं उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि विपक्षीगण यह सिद्ध करने में असफल रहे हैं कि परिवादी की ओर दिनांक 01/08/2007 तक किश्तों का 24,960/- रूपया 85 पैसा तथा ब्याज/ दण्ड ब्याज का 23,962/- रूपया 45 पैसा बकाया है। हमारे विनम्र अभिमत में विपक्षीगण का पत्र दिनांकित 03/09/2007 निरस्त होने योग्य है। परिवाद तदानुसार स्वीकार किऐ जाने योग्य है। परिवादी को आवंटित भवन सं0-ए-424 स्थित जिगर विहार, मुरादाबाद के सन्दर्भ में परिवादी को जारी पत्र सं0- 1197/स0प्र0/मुरा0 दिनांकित 03/09/2007 निरस्त किया जाता है। विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि परिवादी के पक्ष में परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित आवंटित भवन का बैयनामा 2 माह के भीतर निष्पादित करें। बैयनामा निष्पादन हेतु यदि स्टाम्प शुल्क की देयता परिवादी की बनती हो तो उसके भुगतान का उत्तरदायित्व परिवादी का होगा। उक्त के अतिरिक्त विपक्षीगण से परिवादी परिवाद व्यय की मद 2,500/- (दो हजार पाँच सौ रूपया) अतिरिक्त पाने का अधिकारी होगा।
(श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
20.06.2015 20.06.2015 20.06.2015 हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 20.06.2015 को खुले फोरम में हस्ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद 20.06.2015 20.06.2015 20.06.2015 | |