परिवाद प्रस्तुतिकरण की तिथि: 23-8-1996
निर्णय की तिथि: 03.01.2018
कुल पृष्ठ-7(1ता7)
न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद
उपस्थिति
श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष
श्री सत्यवीर सिंह, सदस्य
परिवाद संख्या-273/1996
सुरेश(एस.के. आजाद) पुत्र श्री चतरू सिंह निवासी-2/1045 बुद्धि विहार, मझोला मुरादाबाद।
परिवादी
बनाम
1-एस्टेट मैनेजमेंट आफिसर यू.पी. हाउसिंग एण्ड डेवलेपमेंट बोर्ड जिगर विहार मुरादाबाद।
2-डिप्टी कमीशनर यू.पी. हाउसिंग एण्ड डेवलेपमेंट बोर्ड मेरठ जोन शास्त्री नगर मेरठ।
विपक्षीगण
(श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित)
निर्णय
- इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने यह अनुतोष मांगा है कि विपक्षीगण से उसे गलत तरीके से वसूल किये गये अंकन-19,948/-रूपये ब्याज सहित वापस दिलाये जायें। उसने यह भी अनुतोष मांगा है कि विवादित भवन का कब्जा लिये जाने से पूर्व उसके द्वारा विपक्षीगण को अदा किये गये अंकन-92,276/-रूपये भवन की कैपिटल कोस्ट में समायोजित किये जाये तथा उससे अधिक वसूल कर ली गई अंकन-7090/-रूपये की धनराशि को उसे वापस कराया जाये। क्षतिपूर्ति की मद में अंकन-50,000/-रूपये तथा प्रश्नगत भवन की आवश्यक रिपेयर करने में खर्च हुए अंकन-50,000/-रूपये उसे विपक्षीगण से अतिरिक्त दिलाये जायें।
यह परिवाद वर्ष 1996 में इस फोरम के समक्ष योजित हुआ था। दिनांक 15-3-2001 को फोरम द्वारा गुणावगुण के आधार पर सुनवाई के उपरान्त यह परिवाद खारिज कर दिया गया। इस निर्णय के विरूद्ध परिवादी ने माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग के समक्ष अपील योजित की, जो माननीय राज्य आयोग ने दिनांक 13-7-2015 को खारिज कर दी। माननीय राज्य आयोग के निर्णय के विरूद्ध परिवादी ने माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग, नई दिल्ली के समक्ष निगरानी सं.-1029/2016 योजित की, जिसको निर्णयादेश दिनांकित 27-7-2016 द्वारा अंतिम रूप से निस्तारित करते हुए मामले को पुन: सुनवाई हेतु इस फोरम को प्रति प्रेषित कर दिया गया। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा निदेशित किया गया कि प्रश्नगत भवन के संदर्भ में परिवादी के इंजीनियर का साक्ष्य प्रस्तुत करने का और तदोपरान्त विपक्षी को अपने इंजीनियर की रिपोर्ट के संदर्भ में अपना साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान करने के उपरान्त परिवाद का नये सिरे से निस्तारण किया जाये। माननीय राष्ट्रीय आयोग का निर्णय जब तक इस फोरम को प्राप्त हुआ, तब तक परिवादी की मूल पत्रावली वीड-आउट हो चुकी थी। माननीय राज्य आयोग से अनुमति प्राप्त करके पत्रावली का पुनर्निर्माण किया गया है।
वर्ष 1996 में परिवादी ने जो परिवाद योजित किया था, उसमें समयान्तराल में उसने कुछ संशोधन कराया। संशोधित परिवाद पत्रावली का कागज सं.-18/8 लगायत 18/9 है। परिवाद कथनों के अनुसार परिवादी ने विपक्षीगण द्वारा प्रारम्भ की गई आवासीय योजना में एलआईजी भवन हेतु वर्ष 1980 में अपना पंजीकरण कराया था। उस समय भवन की अनुमानित कीमत 18 से 22 हजार रूपये रखी गई। वर्ष 1988 में पंजीकरण राशि अंकन-300/-रूपये से बढ़ाकर 2500/-रूपये कर दी गई। परिवादी ने पंजीकरण राशि का अंतर अंकन-2200/-रूपये दिनांक 08-12-1988 को जमा किये। दिनांक 02-02-1992 को परिवादी के पक्ष में बुद्धि विहार योजना में भवन सं.-2/1045 आवंटित हुआ। यह आवंटन आदेश दिनांक 30-9-1992 को संशोधित हुआ क्योंकि पूर्व में जारी आवंटन आदेश में धनराशि की गणना में कुछ विसंगतियां उत्पन्न हो गई थीं। आवंटन आदेश के अनुसार पंजीकरण राशि को समायोजित करते हुए आवंटी द्वारा अंकन-1,26,797/-रूपये जमा किये जाने थे। भवन का मूल्य किस्तों में अदा करने की दशा में आवंटी द्वारा बतौर कैपिटल कोस्ट तथा अंकन-8,846/-रूपये लीज रेंट की मद में अग्रिम जमा करने थे और शेष राशि की अदायगी 13.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित 1606/-रूपये की 144 किस्तों में जमा की जानी थी। परिवादी के अनुसार उसे आवंटित किया गया भवन अत्यन्त जीर्णक्षीर्ण अवस्था में था। विपक्षीगण के इंजीनियर से उसने भवन को ठीक करने के लिए कहा तो उसने इंकार कर दिया। परिवादी का अग्रेत्तर कथन है कि मई, 1994 से जुलाई, 1994 के मध्य उसने अंकन-69,623/-रूपये विपक्षीगण के कार्यालय में जमा किये किन्तु भवन का कब्जा उसे नहीं दिया गया। विपक्षीगण ने बतौर पैनेल्टी 18 प्रतिशत दण्ड ब्याज के रूप में अंकन-19,948/-रूपये जमा करने के लिए परिवादी को बताया, तब दिनांक 12-8-1994 को भवन का कब्जा परिवादी को दिया गया। परिवादी ने दण्ड ब्याज के रूप में अधिरोपित अंकन-19,948/-रूपये माफ करने के लिए विपक्षीगण से अनुरोध किया किन्तु उन्होंने इंकार कर दिया। परिवादी को भवन का आवंटन निरस्त किये जाने हेतु विपक्षीगण की ओर से कोई नोटिस भी नहीं दिया गया। परिवादी के अनुसार विपक्षीगण ने भवन की कीमत मनमाने तरीके से 8-10 गुना बढ़ा दी और भवन की निर्माण संबंधी गुणवत्ता में कोई सुधार भी नहीं किया। परिवादी अंकन-1,29,502/-रूपये का भुगतान जून, 1995 तक विपक्षीगण को कर चुका है और अभी भी उसकी ओर अंकन-1,46,146/-रूपये बकाया बताये जा रहे हैं। परिवादी से लैण्ड कोस्ट की मद में अंकन-71,835/-रूपये और लीज रेंट की मद में 7,183/- रूपये गलत तरीके से वसूले किये गये, जबकि इसका कोई जिक्र स्कीम के ब्रोसर में नहीं था। परिवादी का यह भी कथन है कि उससे प्रश्नगत भवन के संदर्भ में लीज एग्रीमेंट दिनांक 28-7-1994 को निष्पादित किया गया, जिसमें भवन का मूल्य किस्तों में अदा करने की शर्त लिखी गई। परिवादी प्रश्नगत भवन की कमियों को दूर करने में लगभग 3-4 लाख रूपये खर्च कर चुका है। इसकी छत टपकती है, दीवारों में क्रेक हैं, फर्श और दीवारों का प्लास्टर जगह-जगह से उखड़ा है, चिनाई सीमेंट के बजाय सुर्खी-चुने से की गई है और निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया है। परिवादी ने उक्त कथनों के आधार पर परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाये जाने की प्रार्थना की है।
2. विपक्षी-1 की ओर से प्रतिवाद पत्र दाखिल हुआ, जो पत्रावली का कागज सं.-19/2 लगायत 19/4 है। प्रतिवाद पत्र में यह तो स्वीकार किया गया है कि परिवादी के आवेदन पर परिवाद के पैरा-3 में उल्लिखित भवन उसे आवंटित किया गया था किन्तु शेष परिवाद कथनों से इंकार किया गया। अग्रेत्तर कथन किया गया कि परिवादी को आवंटित भवन बिल्कुल सही एवं मानक के अनुरूप निर्मित किया गया था। इसमें ऐसी कोई कमी नहीं थी, जैसा कि परिवादी द्वारा इंगित किया गया है। भवन का कब्जा परिवादी ने वर्ष 1994 में लिया था। कब्जा लेते समय उसने भवन में कोई कमी इंगित नहीं की। उससे कोई भी धनराशि गलत अथवा विधि विरूद्ध तरीके से वसूल नहीं की गई है। भवन के मूल्य की अदायगी परिवादी के अनुरोध पर किस्तों में की जानी थी और तद्नुरूप परिवादी व विपक्षी-1 के मध्य एग्रीमेंट निष्पादित हुआ था। किस्तों की निरन्तर अदायगी में परिवादी ने व्यतिक्रम किया, जिसके कारण एग्रीमेंट की शर्तों के अनुसार दण्ड ब्याज के रूप में परिवादी से अंकन-19,948/-रूपये जमा कराये गये, जो नियमानुसार माफ नहीं किये जा सकते। लीज रेंट और विविध शुल्क आवंटन आदेश की शर्तों के अनुसार परिवादी द्वारा जमा किया गया। परिवादी का यह कथन गलत है कि एग्रीमेंट पर उससे जबरदस्ती दस्तखत कराये गये थे। परिवादी ने दिनांक 12-8-1994 को भवन का कब्जा प्राप्त किया था और तब से लगातार भवन उसके कब्जे में है। परिवादी का परिवाद असत्य कथनों पर आधारित है। विपक्षी-1 की ओर से परिवाद को सव्यय खारिज किये जाने की प्रार्थना की गई।
3. पत्रावली के पुनर्निर्माण के उपरान्त विपक्षी-1 की ओर से अतिरिक्त प्रतिवाद पत्र कागज सं.-21/1 लगायत 21/2 भी दाखिल किया गया, जिसमें प्रतिवाद पत्र के पूर्व कथनों को दोहराते हुए अतिरिक्त कहा गया कि परिवादी ने स्वेच्छा से एकमुश्त समाधान योजना के अन्तर्गत दिनांक 01-3-2008 को अंकन-1,58,972/-रूपये विपक्षी-1 के खाते में जमा कराये हैं किन्तु वह विक्रय पत्र निष्पादित नहीं करा रहा है। परिवादी ने यद्यपि अपने इंजीनियर की रिपोर्ट की छायाप्रति पत्रावली में दाखिल की है किन्तु उक्त इंजीनियर ने कोई शपथपत्र उसके समर्थन में नहीं दिया है। परिवादी की ओर से प्रश्गनत भवन की गुणवत्ता के संदर्भ में जो पत्र विपक्षी उत्तरदाता को भेजा जाना अभिकथित किया गया है, ऐसा कोई पत्र विपक्षी उत्तरदाता को प्राप्त नहीं हुआ है। अग्रेत्तर यह कहते हुए कि उत्तरदाता विपक्षी ने सेवा में कोई कमी नहीं की, परिवाद को प्रत्येक दशा में निरस्त किये जाने का अनुरोध किया गया है।
विपक्षी के प्रतिवाद पत्र के प्रतिउत्तर में परिवादी ने रिज्वाइंडर कागज सं.-22/1 लगायत 22/4 दाखिल किया, जिसमें अपने पूर्व कथनों को दोहराते हुए अपने इंजीनियर के सर्टिफिकेट की छायाप्रति और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-14 की छायाप्रति बतौर संलग्नक दाखिल की। यह संलग्नक पत्रावली के कागज सं.-22/5 लगायत 22/6 हैं। परिवादी ने उन रसीदों की छायाप्रतियां भी पत्रावली में दाखिल की हैं, जिनके द्वारा परिवादी ने अभिकथित रूप से विपक्षी-1 के कार्यालय में धनराशि जमा की है। इन रसीदों की छायाप्रतियां पत्रावली के कागज सं.-24/4 लगायत 24/10 हैं।
4. दोनों पक्षों ने अपना-अपना साक्ष्य दाखिल किया।
5. हमने पक्षकारों के विद्वतापूर्ण तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
6. परिवादी ने अपनी बहस स्वयं की, जबकि विपक्षीगण की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री नवीन चन्द अग्रवाल ने तर्क रखे।
7. पक्षकारों के मध्य इन बिन्दुओं पर कोई विवाद नहीं है कि परिवादी ने दिनांक 03-01-1981 को अंकन-300/-रूपये पंजीकरण राशि जमा करके आवास-विकास परिषद, मुरादाबाद में अनुसूचित जाति कोटे के अन्तर्गत एक एलआईजी भवन का पंजीकरण कराया था, पंजीकरण राशि पुनरीक्षित होने पर अन्तर की धनराशि परिवादी ने दिनांक 08-12-1988 को जमा की। वर्ष 1992 में आवास-विकास परिषद, मुरादाबाद के आवंटन आदेश दिनांकित 02-02-1992 द्वारा परिवादी को प्रश्गनत भवन आवंटित हुआ। इस आवंटन के सापेक्ष परिवादी द्वारा भवन के मूल्य एवं अन्य मदों में जो धनराशि जमा की जानी थी, उनका उल्लेख आवंटन आदेश में है। पुनरीक्षित पंजीकरण की राशि जमा करने का चूंकि आवंटन आदेश दिनांकित 02-02-1992 में उल्लेख नहीं हो पाया था, अत: परिषद द्वारा दिनांक 30-9-1992 को आवंटन आदेश तद्नुरूप पुनरीक्षित किया गया। परिवादी को आवंटित भवन का कब्जा दिनांक 12-8-1994 को दिया गया। परिषद एवं परिवादी के मध्य इस भवन के संदर्भ में एग्रीमेंट दिनांक 28-7-1994 को निष्पादित हुआ। पक्षकारों के मध्य इस बिन्दु पर भी कोई विवाद नहीं है कि इस भवन में परिवादी अध्यासित है और उसके पक्ष में उक्त भवन का बैनामा अभी तक भी निष्पादित नहीं हुआ है। परिवादी के अनुसार भवन में अनेक कमियां हैं, जिन्हें बार-बार अनुरोध के बावजूद परिषद ने दूर नहीं किया है, इस कारण भवन का बैनामा उसने नहीं कराया। इसके विपरीत परिषद का पक्ष यह है कि परिवादी किसी न किसी आधार पर बैनामा निष्पादित नहीं करवा रहा है यद्यपि परिवादी द्वारा परिषद पर लगाये गये सभी आरोप निराधार हैं।
8. परिवादी का तर्क है कि उसे जिस भवन का कब्जा दिया गया था, उसमें खिड़कियां-दरवाजे नहीं थे, भवन की छत टपकती है, दीवारों में क्रेक थीं, चिनाई सीमेंट के बजाय सुरखी-चूने से की गई है और निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया है, उसका यह भी कहना है कि फर्श और दीवारों का प्लास्टर जगह-जगह से उखड़ा हुआ था। परिवादी का यह भी कथन है कि ब्रोसर में यह उल्लेख था कि भवन का प्रस्तावित मूल्य लगभग 18-20 हजार रूपये होगा किन्तु इस प्रस्तावित मूल्य से कहीं अधिक धनराशि उससे परिषद वसूल कर चुका है। इसके बावजूद भी भवन की कमियों को दूर नहीं किया गया। परिवादी ने यह भी आरोप लगाया है कि अंकन-19,948/-रूपये परिषद ने गलत तरीके से वसूल कर लिये हैं, जिसका परिषद को अधिकार नहीं था, यह धनराशि उसे परिषद से ब्याज सहित वापस दिलायी जानी चाहिए। परिवादी का यह भी तर्क है कि भवन खरीदने हेतु उसने भवन का मूल्य किस्तों में अदा करने हेतु सहमति नहीं दी थी, इसके बावजूद परिषद ने दबाव देकर धोखे से एग्रीमेंट कागज सं.-18/37 निष्पादित कराया। परिवादी ने अपने इंजीनियर मेहता कंसलटेंट की स्ट्रक्चरल रिपोर्ट कागज सं.-18/44 लगायत 18/45 को इंगित करते हुए अग्रेत्तर कथन किया कि इस रिपोर्ट में उल्लिखित कमियों को बार-बार अनुरोध के बावजूद परिषद ने दूर नहीं कराया, उसने परिवाद में अनुरोधित अनुतोष स्वीकार किये जाने की प्रार्थना की।
9 . विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने परिवादी द्वारा प्रस्तुत किये गये तर्कों का प्रबल प्रतिवाद किया और बल देकर कथन किया कि परिवादी द्वारा लगाये गये सारे आरोप मिथ्या एवं आधारहीन हैं। परिषद के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार परिवादी को आवंटित भवन परिषद की विशिष्टियों के अनुरूप निर्मित हुआ था, उसमें निर्माण संबंधी एवं अन्य किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी, परिवादी ने वर्ष 1994 में प्रश्नगत भवन का कब्जा लेते समय किसी प्रकार की कोई कमी इंगित नहीं की थी किन्तु बाद में परोक्ष उद्देश्य की पूर्ति हेतु उसने कब्जा लेने के लगभग 3 वर्ष बाद मेहता कंसलटेंट से रिपोर्ट कागज सं.-18/44 लगायत 18/45 तैयार करायी। परिषद के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि यदि भवन में निर्माण संबंधी अथवा अन्य प्रकार की कोई कमी रही होती तो ऐसा कोई कारण नहीं था कि परिवादी भवन का कब्जा लेते समय उन कमियों को इंगित नहीं करता। उन्होंने यह भी कथन किया कि परिवादी भवन निर्माण से संबंधित जिन पत्रों को परिषद को भेजा जाना अभिकथित करता है, ऐसा कोई पत्र परिषद को प्राप्त नहीं हुआ।
10. परिषद के विद्वान अधिवक्ता ने यह भी कहा कि परिवादी से प्रश्गनत भवन के संदर्भ में कोई धनराशि गलत तरीके से वसूल नहीं की गई है। लीज रेंट एवं अन्य विविध खर्चों की मद में धनराशि, जिसे परिवादी गलत तरीके से वसूल लेना बताता है, उनका उल्लेख पूर्व में ही आवंटन पत्र में कर दिया गया था। परिवादी ने भवन का मूल्य किस्तों में अदा करने हेतु स्वयं सहमति दी थी। एग्रीमेंट उसने स्वेच्छा से निष्पादित किया। परिवादी का यह आरोप मिथ्या है कि एग्रीमेंट पर उससे दबाव और धोखे से हस्ताक्षर कराये गये थे।
11. विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग, नई दिल्ली द्वारा निगरानी सं.-1029/2016 में पारित निर्णयादेश दिनांकित 27-7-2016, जिसकी प्रमाणित प्रति पत्रावली का कागज सं.-10/1 लगायत 10/2 है, की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुए यह भी तर्क दिया कि अवसर दिये जाने के बावजूद परिवादी ने अपने इंजीनियर, मेहता कंसलटेंट की रिपोर्ट को प्रमाणित नहीं कराया, ऐसी दशा में उक्त रिपोर्ट कागज सं.-18/44 लगायत 18/45 साक्ष्य के रूप में पढ़े जाने योग्य नहीं है। हम विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत तर्कों से सहमत हैं।
12. मूल आवंटन आदेश दिनांकित 02-02-1992 तथा पुनरीक्षित आवंटन आदेश दिनांकित 30-9-1992 के अंतिम पृष्ठ पर उल्लिखित ‘नोट’ के बिन्दु सं.-4, 5 एवं 6 को आवंटन आदेश जारी करते समय परिषद द्वारा काट दिया गया था, कहने का आशय यह है कि ये बिन्दु 4, 5 एवं 6 प्रश्गनत भवन के संदर्भ में परिषद ने लागू नहीं किये थे। आवास-विकास परिषद के अधिशासी अभियन्ता की रिपोर्ट जो पत्रावली का कागज सं.-19/7 है, के अनुसार प्रश्गनत भवन की छत के लेबिल में अन्तर इस कारण है कि छत ढालू होने के कारण वर्षा का पानी स्वत: बह जाये। परिषद की विशिष्टियों के अनुसार प्रश्गनत भवन में ब्रिक वर्क का काम लाईम-सुरखी मसाले में किया गया है और भवन का प्लास्टर सीमेंट-सैंड मसाले में हुआ है। मानक के अनुसार ऐसे भवनों के आगे बाउन्ड्री वाल तथा भवन के बाहर खुले भाग में पीसीसी फलोरिंग का प्रावधान नहीं है। यह कार्य आवंटी द्वारा स्वयं किया जाना होगा। भवन में वाटर सप्लाई की फिटिंग की गई थी और उसमें पीतल की तीन टोटियां, डब्ल्यूसी सीट, एक मेन होल की भी व्यवस्था है। भवन में आन्तरिक विद्युतीकरण आवंटी द्वारा स्वयं कराया जाना था। प्रश्गनत भवन में खिड़कियों के पल्लों का प्रावधान नहीं है। परिषद के इंजीनियर की इस रिपोर्ट में उलिलखित विशिष्टियों के दृष्टिगत परिवादी के इंजीनियर मेहता कंसलटेंट की रिपोर्ट जो भवन पर कब्जा लेने के लगभग 3 वर्ष बाद दी गई है, का कोई महत्व नहीं रह जाता है।
13. आवंटन आदेश में आवंटी द्वारा आवंटित भवन के लीज रेंट तथा अन्य मदों में आवंटी से जो धनराशि अदा करनी थी, उसका स्पष्ट उल्लेख है। पत्रावली पर ऐसा कोई साक्ष्य संकेत नहीं है, जिसके आधार पर यह माना जाये कि प्रश्गनत भवन का एग्रीमेंट परिषद ने परिवादी पर दबाव डालकर अथवा उसके साथ धोखा करके निष्पादित कराया था। आवंटन आदेश तथा एग्रीमेंट की शर्तों के अनुसार ही परिवादी से विपक्षीगण ने धनराशि वसूल की है। परिवादी ने किस्तों की नियमित अदायगी में चूंकि व्यतिक्रम किया था, अतएव शर्तों के अनुसार उससे दण्ड ब्याज की वसूली की गई और ऐसा करके विपक्षीगण ने कोई त्रुटि नहीं की। विपक्षीगण ने आवंटन आदेश के अनुरूप धनराशि परिवादी से वसूल की है। परिषद ने प्रश्गनत भवन का कब्जा परिवादी को देने में कोई विलम्ब नहीं किया है। परिवादी यह दर्शाने में नितान्त असफल रहा है कि उससे विपक्षीगण ने नियम एवं शर्तों के विपरीत अधिक धनराशि वसूल की है और उसे निर्धारित गुणवत्ता से इतर कम गुणवत्ता का भवन आवंटित किया है। परिवाद कथनों में हम कोई बल नहीं पाते हैं और यह परिवाद खारिज होने योग्य है।
परिवादी का परिवाद विरूद्ध विपक्षीगण खारिज किया जाता है। मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों में उभयपक्ष अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(सत्यवीर सिंह) (पवन कुमार जैन)
सदस्य अध्यक्ष
आज यह निर्णय एवं आदेश हमारे द्वारा हस्ताक्षरित तथा दिनांकित होकर खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।
(सत्यवीर सिंह) (पवन कुमार जैन)
सदस्य अध्यक्ष
दिनांक: 03-01-2018