(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-466/2012
यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
बनाम
अतुल सिंह, एडवोकेट पुत्र श्री लखनपाल सिंह तथा दो अन्य
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री वी.पी. शर्मा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से उपस्थित : श्री आर.के. मिश्रा एवं
श्री राहुल श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-2 एवं 3 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक : 20.12.2023
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-20/2009, अतुल सिंह एडवोकेट बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कं0लि0 तथा दो अन्य में विद्वान जिला आयोग, द्वितीय बरेली द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 6.1.2012 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी.पी. शर्मा तथा प्रत्यर्थी सं0-1 के विद्वान अधिवक्ता श्री आर. के. मिश्रा एवं श्री राहुल श्रीवास्तव को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी सं0-2 एवं 3 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
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2. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी ने अपने वाहन सं0-एच.आर. 66-2675 का बीमा विपक्षी सं0-1, बीमा कंपनी से दिनांक 25.1.2008 से दिनांक 24.1.2009 तक की अवधि के लिए कराया था। दिनांक 4.4.2008 को देहरादून के राजपुर पुलिस स्टेशन के अंतर्गत यह वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसकी सूचना बीमा कंपनी के देहरादून शाखा को दी गई तब विपक्षी सं0-3, श्री संजीव शर्मा ने मौके पर जाकर सर्वे किया। दुर्घटना के बाद वाहन की मरम्मत देहरादून प्रीमियर मोटर्स प्रा0लि0 हरिद्वार में अंकन 2,66,850/-रू0 खर्च करके करायी गयी तथा अंकन 20,800/-रू0 के पार्ट्स महालक्ष्मी मोटर्स प्रा0लि0 रामपुर रोड बरेली से खरीदे गए इस प्रकार कुल 2,87,650/-रू0 खर्च हुए, परन्तु बीमा कंपनी द्वारा भुगतान नहीं किया गया।
3. बीमा कंपनी का कथन है कि सर्वे रिपोर्ट के अनुसार कुल 1,12,026/-रू0 की क्षति हुई है। परिवादी ने बढ़ा-चढ़ा कर क्षति की मांग की है।
4. विद्वान जिला आयोग द्वारा परिवाद पत्र के समर्थन में प्रस्तुत किए गए शपथ पत्र तथा दस्तावेजों पर विचार करते हुए यह निष्कर्ष दिया गया कि दुर्घटनाग्रस्त वाहन की मरम्मत में कुल 2,28,000/-रू0 खर्च हुए हैं। अत: इसी राशि को 8 प्रतिशत साधारण ब्याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया गया साथ ही मानसिक प्रताड़ना की मद में अंकन 10,000/-रू0 एवं वाद व्यय की मद में अंकन 2,000/-रू0 अदा करने के लिए भी आदेशित किया
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गया।
5. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि सर्वेयर द्वारा किए गए आंकलन के अनुसार क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया जाना चाहिए। उनके द्वारा अपने तर्क के समर्थन में नजीर Khatema Fibers Ltd Vs. New India Assurance Company Ltd & Anr में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय की प्रतिलिपि प्रस्तुत की गई है, जिसमें व्यवस्था दी गई है कि सर्वेयर रिपोर्ट का विश्लेषण विधि विज्ञान प्रयोगशाला के अनुसार नहीं किया जा सकता जैसा कि सिविल न्यायालय करती है, जब तक सर्वेयर रिपोर्ट के बारे में यह निष्कर्ष न दिया जाए कि वह तथ्यात्मक बिन्दुओं पर आधारित नहीं है और मनमाने रूप से तैयार की गई है तब तक रिपोर्ट में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है।
6. अत: उपरोक्त नजीर के आलोक में इस बिन्दु पर विचार करना है कि क्या सर्वेयर द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पूर्णतया प्रमाणिक है, इस प्रश्न का उत्तर नकारात्मक है, क्योंकि परिवादी ने मरम्मत में खर्च होने वाली राशि के बिल प्रस्तुत किए हैं तथा धनराशि जमा करने की रसीद प्रस्तुत की है। महेन्द्रा एण्ड महेन्द्रा के अधिकृत गैराज से मरम्मत करायी गयी है, इसलिए मरम्मत में जो धनराशि खर्च हुई है, उस पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है। अत: प्रस्तुत केस में सर्वेयर रिपोर्ट प्रमाणिक नहीं मानी जा सकती। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त होने योग्य
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है।
आदेश
7. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3