Chhattisgarh

Rajnandgaon

CC/01/7

Munnalal Jain - Complainant(s)

Versus

Asstt Engineer MPEB RJN - Opp.Party(s)

Shri HB Gagi

08 Jan 2002

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
RAJNANDGAON (C.G.)
 
Complaint Case No. CC/01/7
 
1. Munnalal Jain
Rajendra Jain th. prop. munnalal jain lakholi road rajnandgaon
...........Complainant(s)
Versus
1. Asstt Engineer MPEB RJN
Rajnandgaon
2. Executive Engineer MPEB Rajnandgaon
MPEB Rajnandgaon
Rajnandgaon
CG
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. श्री जी.मिन्हाजुद़दीन PRESIDENT
 HON'BLE MR. जीवनलाल गोमास्ता MEMBER
 HON'BLE MS. कु. लतिका चौबे MEMBER
 
For the Complainant:Shri HB Gagi, Advocate
For the Opp. Party: Shri Sushant Tiwari, Advocate
 Shri Sushant Tiwari, Advocate
Dated : 08 Jan 2002
Final Order / Judgement

अनावेदक द्वारा बिना किसी आधार के परिवादी से अप्रेल 1997 से जुलाई 1998 तक की विद्यूत खपत का 4/15, 085/- वसूल किये जाने को अवैध घोषित कर उपरोक्‍त राशि मय ब्‍याज के परिवादी को वापस दिलाए जाने हेतु उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के तहत परिवाद पेश किया गया है।

          अनावेदक की ओर से प्रारंभिक आपत्ति पेश की गई है और प्रस्‍तुत परिवाद को उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा 24 क के तहत अवधि बाधित होना बतलाते हुए निरस्‍त किये जाने का निवेदन किया गया हैा

         प्रारंभिक आपत्ति पर आधिवक्‍ताओं के तर्क सुने गये।

         परिवादी के अनुसार अनावेदक द्वारा उसे अप्रेल 1997 से जुलाई 1998 तक की विघुत खपत की 4/:- राषि 15,085/- का विघुत देयक भेजा जाकर उसका भुगतान करने एवं भुगतान नहीं करने पर विघुत कनेक्‍शन विच्‍छेद कर देने की धमकी दी गई। ऐसी स्थिति में पर‍िवादी द्वारा उपरोक्‍त राषि का भुगतान किया गया जबकि अप्रेल 1997 से जुलाई 1998 तक की अवधि में परिवादी को भेजे गए विघुत देयकों की राषि का भुगतान परिवादी द्वारा पूर्व में ही किया जा चुका था। परिवादी पत्र के समर्थन में परिवादी की ओर से अन्‍य दस्‍तावेजों के अतिरिक्‍त बिल दिनांक 26/10/98 राषि 7,585/- एवं बिल दिनांक 24/12/98 राषि 7,550/- की फोटोप्रति पेश की गई है। इन बिलों की रााशियों के भुगतान से संबंधित रसीदों की फोटो प्रतियां भी पेश की गई है। बिल दिनांक 26/10/98 राषि 7,585/- रूपये का भुगतान 10/11/98 को किया गया है और बिल दिनांक 24/12/99 राषि 7,550/- रूपये का भुगतान दिनांक 05/01/99 को किया गया है। उपरोक्‍त बिलों को अवैध घोषित कर वसूली गई राशियों को मय ब्‍याज के वापस प्राप्‍त करने के लिए परिवादी को वाद कारण दिनांक 10/11/98 एवं बाद में दिनांक 5/1/99 को प्राप्‍त हुआ थाा उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 24क के तहत इस फोरम के समक्ष धारा 12 के तहत पेश किया जाने वाला परिवाद वाद कारण उत्‍पन्‍न होने के दो वर्षो के भीतर पेश किया गया है जिससे स्‍पष्‍ट है कि वर्तमान परिवाद दिनांक 10/11/98 एवं 5/1/99 के दो साल से ज्‍यादा अवधि बाद पेश किया गया है। परिवाद पेश करने में हुए विलंब के संबंध में ना तो कोई कारण बतलाया गया है और ना ही विलंब को क्षमा करने के लिए कोई आवेदन पेश किया गया है। ऐसी स्थिति में वर्तमान परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 24क के  तहत अवधि बाधित होने के कारण निरस्‍त किया जाता है। परिवादी यदि चाहे तो निर्धारित परिसीमा भीतर एवं आवश्‍यक होने पर धारा 14 भारतीय परिसीमा अधिनियम 1963 का लाभ प्राप्‍त करने हेतु कार्यवाही करते हुए सक्षम व्‍यवहार न्‍यायालय के समक्ष व्‍यवहार वाद संस्थित करने के लिए स्‍वतंत्र रहेगा। प्रकरण का अभिलेख नस्‍तीबध किया जाकर अभिलेखागार भेजा जावे।

 
 
[HON'BLE MR. श्री जी.मिन्हाजुद़दीन]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. जीवनलाल गोमास्ता]
MEMBER
 
[HON'BLE MS. कु. लतिका चौबे]
MEMBER

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