राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2116/2000
(जिला उपभोक्ता फोरम, सोनभद्र द्वारा परिवाद संख्या-781/98 में पारित निर्णय दिनांक 22.06.2000 के विरूद्ध)
बांच मैनेजर इलाहाबाद बैंक, ओबरा, जिला सोनभद्र। .....अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
अशोक कुमार शर्मा प्रोपेराइटर, विशाल पुस्तक केन्द्र, वी.आई.पी.
रोड, ओबरा जिला सोनभद्र व एक अन्य। ......प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
समक्ष:-
1. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 19.04.2022
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या 781/98 अशोक कुमार शर्मा बनाम शाखा प्रबंधक, इलाहबाद बैंक में पारित निर्णय व आदेश दिनांक 22.06.2000 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। इस आदेश द्वारा विपक्षी को आदेशित किया गया है कि परिवादी द्वारा बैंक में जमा की गई रू. 63000/- की पूर्ण एवं अंतिम भुगतान किया गया है, इसलिए परिवादी को ऋण मुक्त घोषित करें अथवा इस राशि को क्षतिपूर्ति मानते हुए परिवादी के खाते में जमा करें और तत्कालीन शाखा प्रबंधक से वसूल करें।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी ने स्वरोजगार योजना के तहत वर्ष 1986 में रू. 50000/- कैश क्रेडिट लि0 विशाल पुस्तक केन्द्र के नाम से स्वीकृत कराया था। वर्ष 1992 में परिवादी की दुकान में लूट हुई और उसका सामान गायब कर दिया गया। दि. 06.04.92 के बाद कैश क्रेडिट एकाउन्ट में सही लेन-देन नहीं कर पाए। बैंक प्रबंधक ने नियमों
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के विपरीत वसूली प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया। कैश क्रेडिट लि0 ऋण की वसूली प्रमाण पत्र से नहीं की जा सकती, इसलिए बैंक द्वारा सेवा में कमी गई। तदनुसार परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. बैंक द्वारा प्रस्तुत लिखित कथन की धारा 21 में गलत आर.सी. जारी करने का तथ्य स्वीकार किया गया और जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष आवेदन दिया गया कि रू. 63000/- जमा करने के पश्चात समझौते द्वारा मामला निपटा दिया गया है और परिवादी अधिक धनराशि देने में असमर्थ है। जिला उपभोक्ता मंच ने इस तथ्य को सही मानते हुए उपरोक्त वर्णित आदेश पारित किया है।
4. इस निर्णय व आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय विधि विरूद्ध है। वसुली प्रमाण पत्र को निरस्त करने तथा परिवादी के कथन मात्र से अंतिम रूप से ऋण खाते को सेटेल करने का आदेश अवैधानिक है।
5. केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना। प्रश्नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
6. परिवाद पत्र में मांगे गए अनुतोष के अनुसार विपक्षी द्वारा आर.सी. जारी कर सेवा में त्रुटि कारित की गई है, इसलिए आर.सी. को रद्द करने का अनुरोध किया गया। वसूली प्रमाणपत्र जारी करने के संबंध में विधिक स्थिति पूर्णत: स्पष्ट है कि जब किसी उपभोक्ता पर ऋण राशि बकाया है तब इस राशि की वसूली ऋणदाता द्वारा विधि के अंदर अनुज्ञेय किसी भी तरीके से की जा सकती है, जिसमें आर.सी. जारी करना भी है, यदि आर.सी.
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अवैधानिक रूप से भी जारी की गई है तब भी जिला उपभोक्ता मंच को आर.सी. रद्द करने का अधिकार प्राप्त नहीं है।
7. जिला उपभोक्ता मंच ने अपने निर्णय में उल्लेख किया है कि परिवादी द्वारा रू. 63000/- जमा कर दिए गए हैं, इसलिए इस राशि को अंतिम एवं पूर्ण भुगातन मान लिया जाए। यह आदेश भी क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर पारित किया गया है। यद्यपि भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 62 के अनुसार दो पक्षकारों के मध्य देय राशि से कम राशि अदा करने पर संपूर्ण ऋण का भुगतान माना जा सकता है, परन्तु जिला उपभोक्ता मंच को यह आदेश देने का अधिकार प्राप्त नहीं है कि बैंक कम राशि प्राप्त कर पूर्ण एवं अंतिम भुगतान मान ले। पूर्ण एवं अंतिम भुगतान न मानने या मानना बैंक का विवेकाधिकार है, अत: स्पष्ट है कि जिला उपभोक्ता मंच ने विधि विरूद्ध निर्णय पारित किया है, जो अपास्त होने योग्य है।
आदेश
8. अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय भार स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की
वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित
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किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
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