राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
पुनरीक्षण वाद संख्या-86/2017
( सुरक्षित )
( जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, इलाहाबाद द्वारा परिवाद संख्या-530/2016 में पारित आदेश दिनांकित 24-05-2017 के विरूद्ध )
Indusind Bank Ltd. State Office at Saran Chamber-II, Park Road, Hazratganj, Lucknow through its Manager Legal, interalia office at Adarsh Squire, 2nd Floor, On upper Side of ICICI Bank, 2-Sardar Patel Marg, Civil Lines, Allahabad.
पुनरीक्षणकर्ता
बनाम्
Ashok Kumar Singh S/o Sri Ram Lakhan Singh, R/o 774, Dariya Bagh, Allahabad.
प्रत्यर्थी
समक्ष :-
- माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
- माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : श्री बृजेन्द्र चौधरी।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : श्री आर0 के0 मिश्रा।
दिनांक :30-08-2017
माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-530/2016 अशोक कुमार सिंह बनाम् इण्डसइण्ड बैंक लि0 में पारित आदेश दिनांक 24-05-2017 के विरूद्ध यह पुनरीक्षण याचिका उपरोक्त परिवाद के विपक्षी इण्डसइण्ड बैंक लि0 की ओर से धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश निम्न है:-
‘’………………आदेश दिनांक 06-01-2017 को दृष्टिगत रखते हुए परिवादी फरवरी, मार्च एवं अप्रैल, 2017 की किश्तों की दिनांक 05-06-2017 तक
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करेगा इसके उपरान्त एग्रीमेंट के अनुसार किश्तों की अदायगी परिवादी द्वारा नियमित रूप से की जावे। दिनांक 05-06-2017 तक फरवरी, मार्च एवं अप्रैल, 2017 की किश्तों का भुगतान किये जाने पर प्रश्नगत वाहन को परिवादी के पक्ष में रिलीज किया जावे। पत्रावली वास्ते अग्रिम सुनवाई हेतु नियत तिथि दिनांक 30-05-2017 को पेश हो। ‘’
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री बृजेन्द्र चौधरी तथा विपक्षी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री आर0 के0 मिश्रा उपस्थित आए।
हमने उभयपक्ष के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
पुनरीक्षणकर्ता के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधान के विरूद्ध है। जिला फोरम द्वारा अन्तरिम आदेश दिनांक 06-01-2017 को आक्षेपित आदेश के द्वारा संशोधित किया है जबकि जिला फोरम को अपने पूर्व पारित आदेश को संशोधित करने का अधिकार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत नहीं है, जैसा कि मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राजीव हितेन्द्र पाठक व अन्य बनाम अच्युत काशीनाथ कारेकर व अन्य IV(2011) CPJ-35 (NC) के वाद में स्पष्ट मत व्यक्त किया है
पुनरीक्षणकर्ता के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विपक्षी/परिवादी द्वारा जिला फोरम के आदेश दिनांक 06-01-2017 का अनुपालन न करने पर वाहन को कब्जे में लिया गया है। जिला फोरम ने अधिकार क्षेत्र न होते हुए भी द्धितीय अन्तरिम आदेश प्रार्थना पत्र ग्रहण कर आदेश दिनांक 24-05-2017 पारित किया है।
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पुनरीक्षणकर्ता के विद्धान अधिवक्ता का यह भी तर्क है पुनरीक्षणकर्ता ने धारा-17 Arbitration and Conciliation Act-1996 के अन्तर्गत पारित एवार्ड के अनुसार वाहन कब्जे में लिया है। पुनरीक्षणकर्ता के विद्धान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय के द्वारा परिवाद पत्र में याचित उपशम प्रदान किया है जो अंतिम निस्तारण के समय ही प्रदान किया जा सकता है अत: इस आधार पर जिला फोरम का निर्णय त्रुटिपूर्ण है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आदेश आधारयुक्त और विधिसम्मत है। वाहन आदेश दिनांक 06-01-2017 के द्वारा जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी की अभिरक्षा में दिया था अत: आदेश दिनांक 06-01-2017 के अनुपालन में कोई चूक विपक्षी/परिवादी से हुई है तो जिला फोरम के संज्ञान में यह तथ्य लाना चाहिए था और जिला फोरम को सूचित करने के बाद ही वाहन को अभिरक्षा में लेना चाहिए था क्योंकि परिवाद अभी विचाराधीन है।
विपक्षी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता ने मा0 सर्वोच्च न्यायालय Citicorp.Maruti Finance Ltd., Vs. S. Vijayalaxmi के वाद में दिये गये निर्णय जो 2012(1)CCC-1(NS) में प्रकाशित है प्रस्तुत किया है जिसमें मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से निम्न मत व्यक्त किया है-
“ That even in case of mortgaged goods Subject to Hire-Purchase Agreements, the recovery process has to be in accordance with law and the recovery process referred to in the Agreements also contemplates such recovery ot be effected in due process of saw and not by use of force.
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा रिवीजन पिटीशन संख्या-3835/2013 M/s Magma Fincorp Ltd. Versus.Gulzar Ali में
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पारित निर्णय दिनांक 17 अप्रैल, 2015 संदर्भित किया गया है जिसमें मा0 राष्ट्रीय आयोग ने अपने पूर्व पारित निर्णय को उद्धरित किया है जो निम्न है;
“1. In a case decided by this Commission, reported in “Instalment Supply Ltd., Vs. Kangra Ex-Serviceman Transport Co. & Anr.”, I (2007) CPJ 34 (NC), the first two lines start as under :-
“ The issue involved in this case is, whether, a complaint can be decided by the Consumer Fora after an arbitration award is already passed. The simple answer to this question is, ‘No’.”
हमने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
उभयपक्ष को यह स्वीकार है कि प्रश्गनत परिवाद में अन्तरिम आदेश दिनांक 06-01-2017 पारित किया है जिसके द्वारा विपक्षी/परिवादी को आदेश में अंकित शर्तों का पालन करने पर वाहन दिया गया है यह उभयपक्ष को स्वीकार है। आदेश दिनांक 06-01-2017 के अनुपालन में प्रश्नगत वाहन विपक्षी/परिवादी को पुनरीक्षणकर्ता ने दिया है। पुनरीक्षणकर्ता का कथन है कि आदेश दिनांक 06-01-2017 का पालन विपक्षी/परिवादी ने नहीं किया है और किश्तों के भुगतान में चूक की है। अत: पुनरीक्षणकर्ता ने वाहन पुन: उसने अपने कब्जे में लिया है।
चूंकि परिवाद अभी विचाराधीन है और आदेश दिनांक 06-01-2017 के द्वारा वाहन विपक्षी/परिवादी को दिया गया है ऐसी स्थिति में आदेश दिनांक 06-01-2017 के पालन में चूक होने पर जिला फोरम के संज्ञान में यह तथ्य लाया जाना चाहिए था और जिला फोरम से इस संदर्भ में उचित आदेश प्राप्त करने के बाद बीमा कम्पनी को पुन: वाहन अपने कब्जे में लेना चाहिए था। ऐसा न्यायिक अनुशासन के लिए आवश्यक है। जिला फोरम के
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आदेश दिनांक 06-01-2017 के अनुपालन में विपक्षी/परिवादी को वाहन दिये जाने के बाद उक्त वाहन जिला फोरम को अवगत कराये बिना पुनरीक्षणकर्ता द्वारा पुन: कब्जे में इस आधार पर लिया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने आदेश का पालन नहीं किया है। जिला फोरम को सूचित किये बिना पुनरीक्षणकर्ता द्वारा वाहन कब्जे में लिया जाना विधि और न्याय के सिद्धान्त के विरूद्ध दिखता है। अत: ऐसी स्थिति में जिला फोरम ने जो आदेश दिनांक 24-05-2017 पारित किया है उसे अधिकार रहित और विधि विरूद्ध नहीं कहा जा सकता है। जिला फोरम धारा-13(3)(बी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ऐसा अन्तरिम आदेश पारित करने हेतु सक्षम है। इस आदेश के द्वारा न तो पूर्व पारित आदेश पर पुनर्विचार किया गया है और न ही पूर्व पारित आदेश को रिकाल किया गया है।
आक्षेपित आदेश से स्पष्ट है कि जिला फोरम ने विपक्षी/परिवादी को वाहन आदेश की तिथि तक की बकाया किश्तों का भुगतान करने के बाद ही देने का आदेश दिया है जो वाद की परिस्थितियों में अनुचित एवं विधि विरूद्ध नहीं कहा जा सकता है। वाहन की नीलामी परिवाद के निस्तारण के पूर्व किये जाने से परिवाद का उद्देश्य विफल हो जायेगा। वाहन खड़ा रखने पर वाहन खराब होने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है और वहान खड़ा रखने से विपक्षी परिवादी को अपूर्णनीय क्षति होगी। ऐसी स्थिति में जिला फोरम ने सम्पूर्ण अवशेष किश्तों का भुगतान करने पर वाहन की अन्तरिम सुपुदर्गी के लिए जो आदेश पारित किया है उसे अनुचित और विधि विरूद्ध नहीं कहा जा सकता है और यह कहना उचित नहीं है कि ऐसा आदेश परिवाद के अंतिम निस्तारण के समय ही प्रदान किया जा सकता है।
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आक्षेपित निर्णय और आदेश में जिला फोरम ने पुनरीक्षणकर्ता द्वारा कथित Arbitration Award के संबंध में विचार नहीं किया है अत: इस स्तर पर इस संबंध में इस पुनरीक्षण याचिका में कोई निर्णय दिया जाना उचित नहीं है। पुनरीक्षणकर्ता इस संदर्भ में अपनी आपत्ति जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस मत के हैं कि पुनरीक्षणकर्ता द्वारा प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका उसे इस छूट के साथ निरस्त किया जाना उचित है कि वह कथित Arbitration Award के आधार पर परिवाद की ग्राह्यता के संबंध में अपनी आपत्ति जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत करने हेतु स्वतंत्र है।
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर पुनरीक्षण याचिका विपक्षी को इस छूट के साथ निरस्त की जाती है कि वह कथित Arbitration Award के आधार पर परिवाद की गाह्यता के संबंध में अपनी आपत्ति जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत करने हेतु स्वतंत्र है और यदि ऐसी आपत्ति जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत की जाती है तो उसका निस्तारण जिला फोरम एक माह के अंदर विधि के अनुसार सुनिश्चित करेगा।
उभयपक्ष जिला फोरम के समक्ष दिनांक 05-10-2017 को उपस्थित हो।
यदि विपक्षी द्वारा परिवाद Arbitration Award के आधार पर परिवाद की गाह्यता के संबंध में आपत्ति निश्चित तिथि पर प्रस्तुत की जाती है तो इस आपत्ति के निस्तारण तक प्रश्नगत आक्षेपित निर्णय और आदेश दिनांक 24-05-2017 का क्रियान्वयन स्थगित रहेगा।
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उभयपक्ष जिला फोरम के समक्ष दिनांक 03-10-2017 को उपस्थित हों। पुनरीक्षणकर्ता अपनी आपत्ति इस तिथि से 15 दिन के अंदर प्रस्तुत कर सकता है।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (बाल कुमारी)
अध्यक्ष सदस्य
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा, आशु0