राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-486/2016
( सुरक्षित )
(जिला उपभोक्ता फोरम, फतेहपुर द्वारा परिवाद संख्या-120/2011 में पारित निर्णय और आदेश दिनांकित 10-02-2016 के विरूद्ध)
Shriram General Insurance Company Limited, E-8, EPIP, RIICO Industrial Area, Sitapura Jaipur (Rajasthan)-302022 Branch Office-16, Chintal House, Station Road, Lucknow through its Manager. अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
Ashish Patel, S/o Late Argun Singh, R/o Village-Chitaura, Post-Mevli, Thana-Malwa, Ditt. Fatehpur.
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
- माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
- माननीय श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दिनेश कुमार।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री उमेश कुमार।
दिनांक : 10-02-2017
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-120/2011 आशीष पटेल बनाम् प्रबन्धक, श्री राम जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 में जिला फोरम, फतेहपुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 10-02-2016 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के अपीलकर्ता/विपक्षी Shriram General Insurance Company Limited की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवादी का परिवाद स्वीकार करते हुए आदेशित किया है कि परिवादी विपक्षी से मु0 4,94,000/-रू0 परिवाद दर्ज करने की तिथि दिनांक 01-10-2011 से अंतिम
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वसूली तक 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ पाने का अधिकारी है। जिला फोरम ने यह भी आदेशित किया है कि परिवादी विपक्षी से वाद व्यय एवं शारीरिक और मानसिक क्षति के लिए 5,000/-रू0 और पाने का अधिकारी है। इसके साथ ही जिला फोरम ने आदेशित किया है कि विपक्षी श्री राम जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 उपरोक्त धनराशि परिवादी को निर्णय की तिथि से एक महीने के अंदर अदा करें।
अपीलार्थी की ओर से उसके विद्धान अधिवक्ता श्री दिनेश कुमार और प्रत्यर्थी की ओर से उसकेउ विद्धान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार उपस्थित आए।
वर्तमान अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी आशीष पटेल ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम, फतेहपुर के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने दिनांक 09-07-2010 को महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा लि0 की बुलेरो जीप जिसका इंजन नं0-जी0एफ0ए0 4 एफ0-91750, तथा चेचिस नम्बर-ए0 5 एफ0 76417 है, क्रय किया और उसका बीमा अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कमपनी से 15,814/-रू0 प्रीमियम अदा कर कराया जो दिनांक 09-07-2010 से 08-07-2011 तक वैघ था। वाहन का पंजीयन नम्बर-यू0पी0-71-के0-9788 है।
दिनांक 31-08-2010/1-09-2010 की रात में प्रत्यर्थी/परिवादी का उपरोक्त वाहन चित्रकूट धाम, जनपद-चित्रकूट से चोरी हो गया। उसके बाद उसने घटना की सूचना थाना-सीतापुर, चित्रकूट कर्बी को दी, जिसके आधार पर अपराध संख्या-442/2010 अन्तर्गत धारा-379 आई0पी0सी0 उक्त थाने में पंजीकृत किया गया और पुलिस द्वारा विवेचना की गयी परन्तु उसका
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उपरोक्त वाहन बरामद नहीं हुआ और न ही चोरी का कोई सुराग लगा। अत: पुलिस ने दिनांक 03-10-2010 को न्यायालय में अंतिम रिपोर्ट प्रेषित किया, जो न्यायालय द्वारा स्वीकार की गयी।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र में कहा है कि उसने गाड़ी चोरी के तत्काल बाद रजिस्टर्ड डाक से समस्त असल कागजात विपक्षी को भेजा तथा व्यक्तिगत रूप से ब्रांच आफिस में जाकर मिला। परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। अत: विवश होकर दिनांक 29-08-2011 को जरिये अधिवक्ता नोटिस भेजा, परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा कोई सुनवाई नहीं की गयी तब विवश होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी ने जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत कर परिवाद का विरोध किया है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी ने उपरोक्त वाहन प्रत्यर्थी/परिवादी का होना और अपीलार्थी/विपक्षी से बीमाकृत होना स्वीकार किया है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने चोरी की घटना की सूचना थाने में विलम्ब से दिया है और यह पता लगाने के बाद कि गाड़ी बउवा सचान द्वारा चोरी की गयी है, रिपोर्ट में उसका नाम नहीं लिखाया है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कथित चोरी की घटना संदिग्ध है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराये है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया कि घटना के समय वाहन वाणिज्यिक उद्देश्य से प्रयोग किया जा रहा था अत: अपीलार्थी/विपक्षी क्षतिपूर्ति अदा करने हेतु उत्तरदायी नहीं है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि
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अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है और प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद कायम रहने योग्य नहीं है।
उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त जिला फोरम ने यह निष्कर्ष निकाला है कि अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा जो तत्काल सूचना न देने का बिन्दु उठाया गया है उसमें कोई बल नहीं है।
जिला फोरम ने यह निष्कर्ष निकाला है कि अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने बीमित धनराशि का भुगतान परिवादी/प्रत्यर्थी को न कर सेवा में त्रुटि की है अत: बीमित धनराशि 4,94,000/-रू0 का भुगतान करने हेतु वह उत्तरदायी है। अत: जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने वाहन की कथित चोरी की घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट विलम्ब से थाने में दर्ज करायी है और अपीलार्थी/विपक्षी को भी विलम्ब से सूचना दी है तथा अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा मांग किये जाने के बावजूद आवश्यक अभिलेख प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रस्तुत नहीं किया है अत: अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने पत्र दिनांक 27-11-2011 के द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा बंद कर दिया है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने बीमा पालिसी की शर्तों का पालन नहीं किया है अत: उसका दावा अस्वीकार किये जाने हेतु उचित आधार है, अत: अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने उसका दावा अस्वीकार कर न तो अनुचित व्यापार पद्धति अपनाई है और न ही सेवा में कोई त्रुटि की है। अपीलार्थी बीमा कम्पनी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और
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आदेश विधि विरूद्ध है। अपीलार्थी बीमा कम्पनी के विद्धान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अर्न्तगत उपभोक्ता नहीं है क्योंकि वाहन वाणिज्यिक उद्देश्य से प्रयोग किया जा रहा था।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता ने अपील का विरोध किया और तर्क किया है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है। अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा बिना किसी उचित आधार के अस्वीकार किया है अत: जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार कर कोई त्रुटि या अवैधानिकता नहीं की है।
हमने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
उभयपक्ष के अभिकथन से यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रश्नगत वाहन का पंजीकृत स्वामी प्रत्यर्थी/परिवादी है और उसका यह वाहन चोरी की कथित घटना के समय अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से बीमाकृत था।
अपीलार्थी/विपक्षी का कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन चोरी की घटना की सूचना विलम्ब से थाने में दर्ज करायी है। चिक एफ0आर0आई0 की फोटोप्रति मेमों अपील के संलग्नक-4 के रूप में संलग्न की गयी है, जिससे स्पष्ट है कि चोरी की कथित घटना 31-08-2010/01-09-2010 की दरमियानी रात की है और घटना की रिपोर्ट दिनांक 04-09-2010 को 9.30 AM पर थाना सीतापुर, चित्रकूट में दर्ज की गयी है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत प्रथम सूचना रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से निम्न उल्लेख किया गया है।
'' दिनांक 31-08-2010/01-09-2010 की रात करीब 10 बजे गाड़ी खड़ी करके खाना-पीना खाकर हम लोग सो गये। करीब 2.40 बजे सुबह चोर गाड़ी चोरी करके ले जा रहे थे। मैं आवाज सुनकर जगा और शोर किया तब
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गाड़ी लेकर चोर भाग गये। जिसका हम लोगों ने मोटर साईकिल से पीछा किया, लेकिन गाड़ी दिखायी नहीं दी, जिसकी सूचना हमने करीब 3.10 बजे कोतवाली कर्वी को मोबाइल से दिया। इसके बाद हम लोग गाड़ी को तलाश करते रहे और इसी दौरान कुछ लोगों द्वारा सूचना मिली कि बउवा सचान जो कि हमारी बगल में कम्प्यूटर स्टेशनरी की दुकान किये हुए है, के द्वारा ही गाड़ी चुराई गयी है।''
प्रथम सूचना रिपोर्ट के उपरोक्त उल्लेख से यह स्पष्ट है कि घटना के तुरन्त बाद उसी समय मोबाइल फोन से पुलिस को सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी ने दी और उसके बाद वह गाड़ी की तलाश करता रहा। अंत में जब गाड़ी का कोई सुराग नहीं मिला और गाड़ी बरामद नहीं हुई तब उसने घटना की रिपोर्ट दिनांक 04-09-2010 को 9.30 A.M. पर स्थानीय थाने में दर्ज करायी है।
अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रथम सूचना रिपोर्ट के कथन से स्पष्टया इंकार नहीं किया है और न ही ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत किया है जिससे यह कहा जा सके कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने घटना की तुरन्त सूचना मोबाइल से थाना-कर्वी की पुलिस को नहीं दी थी।
उपरोक्त सम्पूर्ण तथ्यों व साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने घटना की तुरन्त सूचना पुलिस को दी है और इस संबंध में जिला फोरम ने जो निष्कर्ष निकाला है वह आधारयुक्त और विधिसम्मत है।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि उसने गाडी चोरी की घटना की तत्काल सूचना मय कागजात रजिस्ट्री डाक से
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अपीलार्थी बीमा कम्पनी को भिजवाई और व्यक्तिगत रूप से ब्रांच आफिस, कानपुर जाकर मिला।
अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से यह दर्शित नहीं किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा रजिस्टर्ड डाक से भेजी गयी सूचना उसके कार्यालय में कब प्राप्त हुई। अपीलार्थी/विपक्षी ने स्पष्टया इस बात से भी इंकार नहीं किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने व्यक्तिगत रूप से घटना की सूचना अपीलार्थी बीमा कम्पनी के ब्रांच आफिस कानपुर जाकर नहीं दी है। परिवाद पत्र के कथन का समर्थन प्रत्यर्थी/परिवादी ने शपथ पत्र के माध्यम से किया है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में किये गये कथन पर अविश्वास व्यक्त करने का कोई उचित आधार नहीं है।
अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा पत्र दिनांक 27-11-2011 के द्वारा बंद किया है जिसमें उन्होंने 9 दिन विलम्ब से कम्पनी को सूचना दिये जाने का उल्लेख किया है। परिवाद पत्र के उपरोक्त कथन से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने घटना की सूचना अपीलार्थी बीमा कम्पनी को रजिस्ट्री डाक से भेजा है। परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी ने रजिस्ट्री डाक प्राप्त होने की तिथि नहीं बताया है। अत: अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी का प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा विलम्ब से सूचना दिये जाने का कथन आधारयुक्त नहीं दिखता है। इसके साथ ही उल्लेखनीय है कि बीमा पालिसी का नोटिस क्लाज जो मेमो अपील के आधा F में अंकित किया गया है, उसकी शब्दावली भ्रामक है जिसको पढ़ने से ऐसा लगता है कि एक्सीडेन्टल लास और डैमेज की दशा में बीमा कम्पनी को लिखित सूचना तुरन्त दी जायेगी और चोरी की दशा में पुलिस को तुरन्त सूचना दी जायेगी।
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बीमा पालिसी के ऐसे ही प्राविधान के संदर्भ में विस्तृत रूप से इस आयोग की पीठ द्वारा अपील संख्या-479/2015 मैनेजर, आई0सी0आई0सी0आई0 लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 बनाम सौरभ यादव में पारित निर्णय और आदेश दिनांक 03-11-2016 में मा0 सर्वोच्च न्यायालय एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा विभिन्न निर्णयों में प्रतिपादित सिद्धान्त एवं आई0आर0डी0ए0 के सर्कुलर दिनांक 20-09-2011 के प्रकाश में विचार किया गया है और यह निर्णीत किया गया है कि बीमा कम्पनी को चोरी की घटना की सूचना दिये जाने से संबंधित बीमा पालिसी का प्राविधान भ्रामक है। वास्तविक दावे को मात्र विलम्ब के आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
उपरोक्त अपील संख्या-479 वर्ष 2015 में इस आयोगकी पीठ ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग के निम्न निर्णयों के आधार पर उपरोक्त निष्कर्ष निकाला है-
- United India Insurance V/s Pushpalaya Printers (2004) 3 S.C.C 694 S.C.
- Bajaj Allianz General Insurance Company Limited
V/s Abdul Sattar and another 2016 (1) CPR. 541 (NC). - Reliance General Insurance Company Limited V/s Jai Pradash Revision Petition No. 2479 of 2015 (NC).
अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कथित चोरी की घटना को जाली और फर्जी दर्शित करने हेतु कोई साक्ष्य या उचित आधार दर्शित नहीं किया गया है।
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प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रथम सूचना रिपोर्ट में चोरी की घटना में एक व्यक्ति बउवा सचान के संलिप्त होन की शंका जाहिर की गयी है परन्तु पुलिस ने वाद विवेचना अंतिम रिपोर्ट प्रेषित की है। पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कथित चोरी की घटना को संदिग्ध व बनावटी होने का उल्लेख नहीं किया है।
अत: सम्पूर्ण तथ्यों, साक्ष्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा जो विलम्ब से सूचना दिये जाने के आधार पर अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने बंद किया है वह अनुचित व अवैधानिक है।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र में स्पष्ट रूप से यह कथन किया है कि उसने अपीलार्थी/विपक्षी को आवश्यक अभिलेख रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से भेजा है। अपीलार्थी/विपक्षी ने रजिस्ट्री से प्राप्त अभिलखों का विवरण आदि प्रस्तुत नहीं किया है। इसके साथ ही उपरोक्त विवेचना के आधार पर यह स्वीकृत तथ्य है कि प्रत्यर्थी/परिवादी वाहन का पंजीकृत स्वामी है और उसका वाहन कथित चोरी की घटना के समय अपीलार्थी बीमा कम्पनी से बीमाकृत था तथा उसने चोरी की घटना की सूचना चित्रकूट के थाने में दर्ज करायी है जिसमें पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट प्रेषित किया है अत: ऐसी स्थिति में अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा कथित रूप से अभिलेख प्रस्तुत न किये जाने के कारण भी जो बंद किया गया है वह उचित नहीं हैं।
अपीलार्थी बीमा कम्पनी की ओर से इस बात का कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है कि प्रश्नगत वाहन कथित चोरी की घटना के समय व्यावसायिक वाहन के रूप में प्रयोग किया जा रहा था।
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उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना एवं उभयपक्ष के अभिकथन तथा उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी का उपभोक्ता है और अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी का यह कथन उचित नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2.1.डी के अन्तर्गत उपभोक्ता नहीं है।
उपरोक्त विवेचना एवं ऊपर निकाले गये निष्कर्षों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा बंद कर सेवा में त्रुटि की है और जिला फोरम ने वाहन की बीमाकृत धनराशि ब्याज सहित अदा करने का जो आदेश अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को दिया है वह विधि सम्मत है। हमारी राय में जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा स्वीकार कर कोई त्रुटि नहीं की है। जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। अपील सव्यय निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील सव्यय निरस्त की जाती है। अपीलार्थी प्रत्यर्थी/परिवादी को दस हजार रूपया अपील व्यय अदा करेगा।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत जमा धनराशि ब्याज सहित जिला फोरम को विधि के अनुसार निस्तारण हेतु भेजी जाये।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (जितेन्द्र नाथ सिन्हा)
अध्यक्ष सदस्य
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा