राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 2169/2015
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम प्रथम, बरेली द्वारा परिवाद सं0- 224/2013 में पारित आदेश दि0 16.09.2015 के विरूद्ध)
Shriram general insurance company limited, E-8, EPIP, RIICO Industrial area, Sitapura, Jaipur (Rajasthan) -302022 Branch Office 16, Chintal house, station road, Lucknow through its Manager.
………….Appellant.
Versus
Ashish gupta S/o Shri Vinod kumar R/o 342, Indira nagar, Bareilly.
……………Respondent
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दिनेश कुमार, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : सुश्री तारा गुप्ता, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 10.10.2017
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 224/2013 आशीष गुप्ता बनाम श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 में जिला फोरम प्रथम, बरेली द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 16.09.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद अंशत: स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
“परिवादी आशीष गुप्ता का उपभोक्ता परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध अंशत: अंकन 84,500/-रू0 की वसूली हेतु स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण पृथक-पृथक एवं संयुक्त रूप से उक्त धनराशि का भुगतान परिवादी को 30 दिन के अंदर करें, अन्यथा परिवादी उक्त धनराशि पर परिवाद दायर करने की दिनांक 03.12.2013 से 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी होगा। परिवादी परिवाद व्यय के रूप में विपक्षीगण से अंकन 5,000/- रूपये (पांच हजार रूपये) मात्र प्राप्त करने का भी अधिकारी होगा।“
जिला फोरम के निर्णय व आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील परिवाद के विपक्षी श्री राम जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 ने प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से उसके विद्वान अधिवक्ता श्री दिनेश कुमार और प्रत्यर्थी की ओर से उसकी विद्वान अधिवक्ता सुश्री तारा गुप्ता उपस्थित आयी हैं।
मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि वह टाटा मैजिक जिसका पंजीयन सं0- यू0पी0 25 ए0टी0/2894 का पंजीकृत स्वामी है। उसका यह वाहन अपीलार्थी/विपक्षी की बीमा कम्पनी से बीमाकृत था। बीमा अवधि में ही दि0 10.03.2012 को अंतर्गत थाना तिलहर, जिला शाहजहांपुर प्रत्यर्थी/परिवादी के उपरोक्त वाहन को ट्रक नं0- यू0पी0 27टी/3438 ने टक्कर मार दी जिससे वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया। परिवादी द्वारा दुर्घटना की रिपोर्ट थाने में दर्ज करायी गई और सूचना अपीलार्थी/बीमा कम्पनी को टोल फ्री नम्बर पर दी गयी तब बीमा कम्पनी ने सर्वेयर नियुक्त किया और प्रत्यर्थी/परिवादी ने सम्पूर्ण औपचारिकतायें पूरी की, परन्तु अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने कोई भुगतान नहीं किया। अत: विवश होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
अपीलार्थी बीमा कम्पनी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर जिला फोरम के समक्ष कहा गया है कि वाहन का प्रयोग व्यावसायिक उद्देश्य से किया जा रहा था। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ता नहीं है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से यह भी कहा गया है कि सर्वेयर ने साल्वेज की कीमत व पालिसी एक्सेस क्लास की धनराशि घटाने के बाद प्रत्यर्थी/परिवादी को 84,500/-रू0 अदा करने की संस्तुति की थी जो औपचारिकतायें पूर्ण करने के उपरांत देय थी, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी ने औपचारिकतायें पूरी नहीं कीं। इस कारण अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने कोई भुगतान नहीं किया है। अपीलार्थी बीमा कम्पनी की ओर से सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गई है।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को वाहन में हुई क्षति की पूर्ति हेतु सर्वेयर द्वारा आकलित धनराशि 84,500/-रू0 अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से दिलाया जाना उचित है। अत: जिला फोरम ने उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी/बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम का निर्णय त्रुटिपूर्ण है। जिला फोरम ने जो 09 प्रतिशत की दर से ब्याज दिया है वह अधिक है। जिला फोरम ने वाद व्यय के रूप में 5,000/-रू0 की जो धनराशि दिलायी है वह भी अधिक है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश उचित और युक्ति संगत है। इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी को जो सर्वेयर द्वारा आकलित क्षतिपूर्ति दिलायी है वह उचित है। जिला फोरम ने जो 09 प्रतिशत की दर से ब्याज दिया है वह अधिक है, उसे कम कर 06 प्रतिशत किया जाना उचित है। जिला फोरम ने जो वाद व्यय के मद में 5,000/-रू0 दिलाया है वह भी अधिक प्रतीत होता है। अत: उसे कम कर 3,000/-रू0 किया जाना उचित प्रतीत होता है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश संशोधित करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को 84,500/-रू0 जिला फोरम के निर्णय के अनुसार अदा करें और जिला फोरम द्वारा निर्धारित समयावधि में अदा न होने पर उक्त धनराशि पर 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक ब्याज अदा करें।
जिला फोरम द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को वाद व्यय के मद में दिलायी गई धनराशि 5,000/-रू0 को संशोधित करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को 3,000/-रू0 वाद व्यय के रूप में प्रदान करें।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0-1