राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-1384/2022
(जिला उपभोक्ता आयोग, मैनपुरी द्वारा परिवाद सं0-68/2021 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 30-09-2022 के विरूद्ध)
आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0, पॉंचवॉं तल, सम्मिट बिल्डिंग, बी-503 टू बी-508, प्लाट नं0-टीसीजी 3/3 निकट रोठास प्लमेरिया, विभूति खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ उत्तर प्रदेश 226010 द्वारा अधिकृत हस्ताक्षरी।
....................अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
आशीष चौहान पुत्र नरेश सिंह चौहान निवासी झिंझाई-ऑदेन-पड़रिया, थाना कोतवाली, जिला मैनपुरी-205001
....................प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
1. मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्रीमती शुचिता सिंह विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री बी0पी0 द्विवेदी विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- 30-05-2024.
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला उपभोक्ता आयोग, मैनपुरी द्वारा परिवाद सं0-68/2021 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 30-09-2022 के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में परिवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने अपनी कार महिन्द्रा एक्स यू, वी. 300 जिसका नंबर यू.पी.84ए डी-2065 है, का बीमा विपक्षी बीमा कंपनी से दिनांक 18.12.2019 को करवाया था। परिवादी दिनांक 31.01.2020 को अपनी कार से कन्नौज से वापस अपने घर लखनऊ एक्सप्रेस वे से लौट रहा था, जब 95 कि0मी0 के बोर्ड के आस पास पहुंचा तभी कथनानुसार सामने से अचानक गाय के आ जाने
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के कारण गाड़ी डिवाइडर से टकराने के कारण पलट गई और पूर्ण क्षतिग्रस्त हो गयी। परिवादी ने समय से विपक्षी बीमा कंपनी को सूचना दे दी तथा तब से परिवादी की गाड़ी क्षतिग्रस्त हालत में राजेन्द्रा ऑटो व्हील्स इटावा पर खड़ी है। परिवादी ने विपक्षी बीमा कंपनी से बार बार संपर्क किया तो न ही कोई जबाब मिला और न ही परिवादी की गाड़ी बनवाई गई। इससे परिवादी को शारीरिक एवं मानसिक परेशानी हो रही है। परिवादी ने दिनांक 27.07.2020 को विपक्षी को जरिये अधिवक्ता नोटिस भेजा जिसका विपक्षी द्वारा कोई जबाब नहीं दिया गया। अतः परिवादी द्वारा प्रश्नगत परिवाद विद्वान जिला आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
विपक्षी की ओर से जबाव दावा विद्वान जिला आयोग के समक्ष दाखिल किया गया, जिसमें परिवाद के अधिकांश कथनों को अस्वीकार किया गया। कथन किया कि परिवादी ने बीमा पालिसी का नंबर अकित नहीं किया तथा मूल रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र एवं मूल बीमा पालिसी दाखिल नहीं की। परिवादी ने दुर्घटना होने की कोई सूचना उसे नहीं दी तथा दुर्घटना के संबंध में थाने में दी गई सूचना भी संलग्न नहीं की। बीमा पालिसी में शर्त है कि कोई भी दुर्घटना होने पर वाहन स्वामी बीमा कंपनी को उसके टोल फ्री नम्बर पर सूचना प्रदान करेगा, जिससे वह अपने सर्वेयर से दुर्घटना के तथ्य एवं दुर्घटनाग्रस्त वाहन की क्षति की जाँच करा सके, परन्तु परिवादी ने ऐसा नहीं किया। परिवादी द्वारा बीमा नियमों के अनुसार कार्य नहीं किया गया। परिवादी ने आवश्यक औपचारिकतायें पूर्ण नहीं कीं। अतः परिवाद संचालनीय नहीं है और खारिज किये जाने योग्य है।
विद्वान जिला आयोग द्वारा दोनों पक्षों को सुनने तथा दोनों पक्षों के साक्ष्यों का विश्लेषण करने के उपरान्त निम्नलिखित आदेश पारित किया गया :-
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'' परिवाद उपरोक्तानुसार आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेश दिया जाता है कि वह 75 दिन के अंदर परिवादी को प्रतिकर की धनराशि 5,37,766/- रू0 अदा करेंगे। यदि इस अवधि में विपक्षी द्वारा परिवादी को यह धनराशि अदा नहीं की जाती है तो विपक्षी परिवादी को परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 6 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी अदा करेंगे। शेष अनुतोष के लिये परिवाद निरस्त किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो। ''
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
अपीलार्थी ने अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिए हैं कि प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश परिकल्पनाओं पर आधारित है तथा वास्तविक तथ्यों एवं साक्ष्य पर विचार किए बिना ही पारित किया गया है। विद्वान जिला आयोग द्वारा अन्वेषक की आख्या पर ध्यान दिए बिना ही प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है। यह तथ्य अन्वेषक की रिपोर्ट में आया है एवं इसे परिवादी ने खण्डित नहीं किया है कि प्रश्नगत वाहन दुर्घटना के समय जिस ड्राइवर द्वारा चलाया जा रहा था वह भारी नशे के प्रभाव में था। विद्वान जिला आयोग ने परिवादी के कथनों पर अधिक बल दिया है तथा चिकित्सीय प्रमाण एवं अन्वेषण आख्या के तथ्यों को नजरंदाज किया है। परिवादी द्वारा बीमा पालिसी एवं मोटर वाहन अधिनियम की शर्तों का उल्लंघन किया गया है, जिस कारण बीमा की धनराशि परिवादी को देय नहीं है, किन्तु इस बिन्दु पर विद्वान जिला आयोग ने विचार नहीं किया है। बीमा कम्पनी द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई है एवं उचित प्रकार से बीमा के क्लेम को अस्वीकार किया गया है। अपीलार्थी द्वारा उपरोक्त आधारों पर प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश को अपास्त करते हुए अपील स्वीकार किए जाने की प्रार्थना की गई है।
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हमारे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को विस्तार से सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध कथनों/अभिकथनों/प्रलेखीय साक्ष्यों तथा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश का सम्यक् रूप से परिशीलन किया गया।
अपीलार्थी बीमा कम्पनी द्वारा निर्गत रेपूडेशन लैटर दिनांकित 25-03-2020 के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि इस आधार पर बीमा के क्लेम को अस्वीकार किया गया है कि अन्वेषक की रिपोर्ट के अनुसार दुर्घटना के समय वाहन का ड्राइवर एल्कोहल के प्रभाव में वाहन चला रहा था। इस प्रकार मोटन वाहन अधिनियम के प्रावधानों एवं बीमा की शर्तों का उल्लंघन किया गया है। इसी आधार पर बीमा के क्लेम को अस्वीकार किया गया है, किन्तु इस सम्बन्ध में यह तथ्य उल्लेखनीय है कि अपीलार्थी/बीमा कम्पनी द्वारा ऐसा कोई प्रमाण पीठ के समक्ष नहीं रखा गया है कि वास्तव में वाहन के ड्राइवर द्वारा एल्कोहल की कितनी मात्रा का सेवन किया गया था, जिसे साक्ष्य से प्रमाणित होना भी आवश्यक है। इस सम्बन्ध में कोई दस्तावेजी साक्ष्य पीठ के समक्ष नहीं रखा गया है, जिससे यह स्पष्ट होता हो कि ड्राइवर द्वारा सेवन किए गए एल्कोहल का प्रतिशत कितना था।
इस सम्बन्ध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम पर्ल बेवरेज लि0, III (2021) CPJ 44 (NC) दिशा निर्देशन देता है। इस मामले में यह निर्णीत किया गया है कि यदि इस आधार पर बीमा के क्लेम को अस्वीकार किया गया है कि वाहन के ड्राइवर द्वारा नशीला पदार्थ, जैसे : शराब आदि लिया गया है, तो यह आधार मात्र पर्याप्त नहीं है, यदि कम मात्रा में नशीले पदार्थ का सेवन किया गया है तो इस आधार पर बीमा के क्लेम को अस्वीकार किया जाना उचित नहीं है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार एल्कोहल की मात्रा 30 मिलीग्राम, प्रति 100 एम.एल. रक्त में होती है या उससे अधिक पाया जाता है तो यह माना जा सकता है कि
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ड्राइवर द्वारा अधिक मात्रा में एल्कोहल लिया गया है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि यदि बीमा कम्पनी यह साबित कर देती है कि दुर्घटना एल्कोहल लिए जाने के कारण हुई है तो इस आधार पर बीमा के क्लेम को अस्वीकार किया जा सकता है।
प्रस्तुत मामले में घटना दिनांक 31-01-2020 को होनी बताई गई है। सामान्यतौर पर उन दिनों कोहरे का मौसम रहता है। ऐसी दशा में एल्कोहल के सेवन के साथ वाहन चलाना निश्चय ही जोखिम भरा कार्य है, जिसे बीमा की शर्तों का उल्लंघन माना जा सकता है।
इसके अतिरिक्त श्री विजय कुमार, श्री आशीष चौहान,श्री संदीप शर्मा तथा श्री शैलेन्द्र सिंह के सम्बन्ध में चिकित्सीय आख्या सम्बन्धी प्रपत्रों में भारी शराब की दुर्गन्ध आने का वर्णन है। यद्यपि एल्कोहल का प्रतिशत चिकित्सीय आख्या में नहीं आया है, किन्तु भारी एल्कोहल की दुर्गन्ध होना इस सम्भावना (Preponderance of Probability) की ओर संकेत करता है कि वाहन में बैठे सभी व्यकित, जिनमें ड्राइवर भी शामिल था, भारी मात्रा में एल्कोहल का सेवन किए हुए थे। ऐसी दशा में दुर्घटना होना निश्चय ही उनकी लापरवाही कही जा सकती है।
जहॉं तक विद्वान जिला आयोग के प्रश्नगत निर्णय का प्रश्न है, विद्वान जिला आयोग ने अपने निर्णय में 5,37,766/- रू0 की आज्ञप्ति की है, जिसका आधार यह लिया गया है कि सर्वेयर ने 5,97,518/- रू0 की आख्या प्रस्तुत की है, जिसमें से 10 प्रतिशत तत्काल सूचना न देने के लिए कम करते हुए उक्त आज्ञप्ति की गई है। विद्वान जिला आयोग के निर्णय के प्रकाश में सर्वेयर की आख्या का अवलोकन किया गया, जो अभिलेख पर अपील के संलग्नक-5 के रूप में उपलब्ध है। उक्त आख्या दिनांकित 27-02-2020 द्वारा हरप्रीत सिंह अन्वेषक, के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि इस आख्या में किसी भी धनराशि को सन्दर्भित (recommend) किए जाने का उल्लेख नहीं है। आख्या में इस आशय का
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विवरण दिया गया है कि सभी चिकित्सीय अभिलेखों में भारी एल्कोहल की दर्गन्ध उपस्थित होना दर्शाया गया है। इस प्रकार विद्वान जिला आयोग द्वारा 5,97,518/- रू0 सर्वेयर आख्या के आधार पर आज्ञप्त किया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है।
पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी ने भी पीठ के समक्ष वाहन की मरम्मत के ऐस्टीमेट अथवा क्षति का कोई प्रमाण नहीं दिया है और न ही इस आशय के किसी साक्ष्य का उल्लेख प्रश्नगत निर्णय में दृष्टिगोचर होता है। इस प्रकार स्वयं परिवादी द्वारा ही एक ओर विद्वान जिला आयोग अथवा इस पीठ के समक्ष क्षति का कोई प्रमाण नहीं दिया गया है और दूसरी ओर सर्वेयर द्वारा भी क्षति का कोई आंकलन प्रस्तुत नहीं किया गया है। ऐसी दशा में परिवादी की ओर से क्षति का प्रमाण न दिए जाने के आधार पर भी परिवादी का परिवाद आज्ञप्त नहीं किया जा सकता है।
उपरोक्त विवेचन के आधार पर परिवादी को मांगा गया अनुतोष अथवा वाहन की क्षति के फलस्वरूप क्षति की धनराशि दिलाया जाना उचित नहीं है, क्योंकि एक ओर मोटर वाहन अधिनियम एवं बीमा की शर्तों के उल्लंघन का संकेत मिलता है और दूसरी ओर क्षति का कोई प्रमाण भी नहीं दिया गया है। विद्वान जिला आयोग द्वारा उपरोक्त बिन्दुओं पर विचार किए बिना उपरोक्त धनराशि 5,87,766/- रू0 आज्ञप्ति की गई है, जो विधि सम्मत नहीं कही जा सकती है।
तदनुसार विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त करते हुए वर्तमान अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, मैनपुरी द्वारा परिवाद सं0-68/2021 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं
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आदेश दिनांक 30-09-2022 अपास्त किया जाता है।
अपील व्यय उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
अपीलार्थी द्वारा यदि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-15 के अन्तर्गत यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो वह सम्पूर्ण धनराशि मय अर्जित ब्याज के अपीलार्थी को विधि अनुसार शीघ्रातिशीघ्र वापस अदा कर दी जाए।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
दिनांक :- 30-05-2024.
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-1.