Uttar Pradesh

Barabanki

CC/97/2017

Dharmendra Kumar - Complainant(s)

Versus

Aryawart Gramin Bank & Bajaj Allianz Life Ins. Co. Ltd. - Opp.Party(s)

Pankaj Nigam & Others

27 Mar 2023

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बाराबंकी।

परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि       29.08.2017

अंतिम सुनवाई की तिथि            16.03.2023

निर्णय उद्घोषित किये जाने के तिथि  27.03.2023

परिवाद संख्याः 97/2017

धर्मेन्द्र कुमार बालिग पुत्र श्री महाबीर निवासी ग्राम औलिया लालापुर थाना सफदरगंज तहसील सिरौली गौसपुर जनपद-बाराबंकी।

द्वारा-श्री पंकज निगम, अधिवक्ता

श्री संजय कुमार वर्मा, अधिवक्ता

श्री धीरज गुप्ता, अधिवक्ता

श्री हेमन्त कुमार जैन, अधिवक्ता

 

बनाम

1.  आर्यावर्त ग्रामीण बैंक शाखा सैदनपुर जनपद बाराबंकी द्वारा शाखा प्रबंधक।

2.  बजाज एजियान्ज लाइफ इन्श्योरेन्स कम्पनी लि0 बेस्ट हब सेकेन्ड फ्लोर बजाज पिनसर्व सर्वे 208/01 बी.

     बिहाइन्ड बैक फील्ड इट बिल्डिंग विभव नगर रोड पूना महाराष्ट्र द्वारा शाखा प्रबंधक।

3.  बजाज लाइफ इंश्योरेन्स कम्पनी लि0 चतुर्थ तल हलवासिया फार्म हाउस हवीबुल्ला स्टेट ।। एम. जी. मार्ग

     हजरतगंज, लखनऊ उ0 प्र0, पिन नं0 226001

द्वारा-श्री टी0 यू0 चैधरी, अधिवक्ता

श्री संजय सिंह भदौरिया, अधिवक्ता

श्री सुधीर सिंह, अधिवक्ता

श्री अर्जुन कुमार, अधिवक्ता

समक्षः-

माननीय श्री संजय खरे, अध्यक्ष

माननीय श्रीमती मीना सिंह, सदस्य

माननीय डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी, सदस्य

उपस्थितः परिवादी की ओर से -श्री पंकज निगम, अधिवक्ता

              विपक्षी सं0-01 की ओर से-श्री सुबेश कुमार मिश्र, मैनेजर लीगल

              विपक्षी सं0-02 व 03 की ओर से-श्री संजय सिंह भदौरिया, अधिवक्ता

द्वारा-मीना सिंह, सदस्य

निर्णय

            परिवादी ने यह परिवाद, विपक्षीगण के विरूद्व धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 प्रस्तुत कर बीमा क्लेम की धनराशि रू0 2,12,518/-मय 18 प्रतिशत ब्याज सहित, मानसिक, शारीरिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति रू0 50,000/- अधिवक्ता शुल्क एवं वाद व्यय रू0 20,000/-दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया है।

            परिवादी ने परिवाद में अभिकथन किया है कि परिवादी के पिता महाबीर पुत्र रामरतन निवासी ग्राम औलिया लालपुर थाना सफदरगंज तहसील सिरौली गौसपुर जनपद-बाराबंकी ने एक के0 सी0 सी0 खाता संख्या-03413510000933 खोला था। खाता खोलते समय यह शर्त रखी गई थी कि परिवादी के पिता का रू0 2,50,000/-का बीमा विपक्षी संख्या-02 से कराना होगा। जिसका प्रीमियम प्रतिवर्ष विपक्षी संख्या-01 द्वारा परिवादी के पिता के खाते से बीमा कम्पनी के खातें में भेज दिया जायेगा। विपक्षी संख्या-01 द्वारा वर्ष 2013 से बराबर चार वर्षो तक के0 सी0 सी0 खातें से प्रीमियम की कुल धनराशि रू0 40,000/-की कटौती की गई। विपक्षी संख्या-01 के यहाँ  परिवादी के पिता का बचत खाता संख्या-034110100011709 है। परिवादी के पिता की दिनांक 25.04.2017 को स्वाभाविक मौत हो गई। विपक्षी संख्या-01 द्वारा समस्त औपचारिकतायें पूर्ण करते हुये क्लेम फार्म भरकर विपक्षी संख्या-02 को प्रेषित कर दिया गया था। परिवादी के पिता की पालिसी संख्या-0177311435 है। विपक्षी संख्या-01 द्वारा क्लेम की औपचारिकता पूरी करते समय समस्त मूल अभिलेख ले लिये गये थे। काफी समय बाद जब परिवादी को क्लेम की धनराशि नहीं मिली तब परिवादी ने दिनांक 05.07.2017 को विपक्षी संख्या-01 को पत्र प्रेषित करते हुये बीमित राशि परिवादी के बचत खाता संख्या-034110110001261 में भेजने हेतु निवेदन किया। दिनांक 25.07.2017 को विपक्षी संख्या-02 ने परिवादी के बचत खाता संख्या-034110110001261 में मु0 37,482/-प्रेषित किया। जिसकी जानकारी परिवादी को एस. एम. एस. के माध्यम से दिनांक 25.07.2017 को हुई। जिसके उपरान्त परिवादी विपक्षी संख्या-02 के यहाँ दिनांक 28.07.2017 को गया तो उसने बताया कि प्रीमियम की पांचवी किश्त  विपक्षी संख्या-01 द्वारा नहीं भेजी गई। परिवादी ने जानकारी चाही की जब उसके पिता के खाते में पर्याप्त धनराशि थी तो प्रीमियम की धनराशि खाते से धनराशि क्यो नहीं काटी गई तो विपक्षी ने कहा कि विपक्षी संख्या-02 के कर्मचारी/अभिकर्ता विपक्षी संख्या-01 के यहाँ प्रीमियम की धनराशि लेने गये थे लेकिन विपक्षी संख्या-01 ने प्रीमियम की धनराशि नहीं दी। इस संबंध में विपक्षी संख्या-01 से पूछने पर उसने कहा कि कोई प्रीमियम की धनराशि लेने नहीं आया तथा किसान कर्ज माफी चल रही थी सभी लोग उसी में व्यस्त थे इस लिये प्रीमियम भेजा नहीं जा सका। परिवादी ने रू0 37,482/-को विरोध के साथ प्राप्त किया। परिवादी के पिता का क्लेम न दिया जाना पूर्णतः गलत है जिससे परिवादी को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अतः परिवादी ने उक्त अनुतोष हेतु प्रस्तुत परिवाद योजित किया है। परिवाद के समर्थन में शपथपत्र दाखिल किया गया है।

            परिवादी के तरफ से सूची से आधार कार्ड, स्टेटमेन्ट आफ एकाउन्ट, पत्र दिनांक 02.08.2017, पासबुक की छाया प्रति, बीमा प्रीमियम रसीद दिनांक 26 जून 2010, ग्राम प्रधान द्वारा जारी मृत्यु प्रमाण पत्र तथा परिवादी का प्रार्थना पत्र दिनांक 05.07.2017 की छायाप्रतियाँ दाखिल किया है। परिवादी द्वारा अपने पिता महाबीर के के0 सी0 सी0 खातें की छाया प्रति दाखिल की गई है।

              विपक्षी संख्या-01 बैंक द्वारा जवाबदावा में कहा गया है कि परिवादी के पिता महाबीर द्वारा बीमा स्वेच्छा से सम्पूर्ण जानकारी लेने के बाद कराया गया था। प्रीमियम की राशि रू0 10,000/-प्रतिवर्ष थी। मृत्यु प्रमाण पत्र के अनुसार परिवादी के पिता की मृत्यु दिनांक 25.04.2017 को हुई। बीमा कम्पनी को डायरेक्ट प्रीमियम नहीं प्रेषित किया जाता था बल्कि उनका एजेन्ट बैंक आता था तथा नवीनीकरण लिस्ट उपलब्ध कराते था जिसके आधार पर प्रीमियम प्रेषित किया जाता था। चार वर्षो तक प्रीमियम नवीनीकरण लिस्ट उपलब्ध कराने पर समय से जमा करवाया जाता रहा किन्तु अन्तिम प्रीमियम जमा करने की तिथि को बीमा कम्पनी के एजेन्ट द्वारा शाखा में कोई लिस्ट उपलब्ध न करवाने की स्थिति में बीमा कम्पनी को प्रीमियम नहीं प्रेषित किया गया। परिवादी के पिता महाबीर पुत्र रामरतन का बचत खाता संख्या-034110100011709 है जो बराबर संचालित होता है। महाबीर पुत्र राम रतन द्वारा दिनांक 31.12.2012 को के0 सी0 सी0 के अंतर्गत ऋण खाता सं0-03413510000933 के माध्यम से ऋण लिया था। दिनांक 01.01.2013 को महाबीर पुत्र रामरतन द्वारा रू0 2,50,000/-का बीमा सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के उपरान्त स्वेच्छा से लिया गया जिसकी प्रीमियम राशि रू0 10,000/-प्रतिवर्ष पाँच वर्षो के लिये थी। बैंक द्वारा बीमा कम्पनी को प्रीमियम राशि इस लिये नहीं प्रेषित की गई क्योंकि बीमा कम्पनी का एजेन्ट नवीनीकरण लिस्ट लेकर नहीं आये। उक्त वाद में परिवादी बैंक से कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।

            विपक्षी संख्या-02 व 03 द्वारा जवाबदावा में कहा गया है कि परिवादी धर्मेन्द्र कुमार के पिता महावीर द्वारा विपक्षी बीमा कम्पनी की बाराबंकी शाखा से एक मास्टर पालिसी संख्या-0177311435 ग्रामीण बैंक सैदनपुर बाराबंकी के माध्यम से दिनांक 01.01.2013 को क्रय किया गया जिसका मेम्बरशिप 0291825625 है। पालिसी का प्रीमियम रू0 10,000/-वार्षिक था तथा बीमा धन रू0 2,50,000/-थी। प्रथम प्रीमियम दिनांक 15.01.2013, द्वितीय प्रीमियम दिनांक 31.01.2014, तृतीय प्रीमियम दिनांक 21.01.2015, चतुर्थ प्रीमियम दिनांक 30.01.2016 को प्रतिवर्ष रू0 10,000/-का प्रीमियम अदा किया गया परन्तु दिनांक 15.01.2017 को देय प्रीमियम का भुगतान नहीं किया गया। ग्रेस अवधि भी तीस दिन बाद समाप्त हो जाती है। बीमा धारक की मृत्यु के उपरान्त विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा पालिसी की नियम व शर्तो के अनुसार जो भुगतान राशि बन रही थी उसे परिवादी के बचत खाता संख्या-034110110001261 में जरिए नेफ्ट मु0 37,482/-दिनांक 25.07.2017 को भेज दिया गया। बीमा कम्पनी द्वारा ग्राहक सेवा में कोई लापरवाही नहीं की गई है। परिवादी के पिता की मृत्यु तिथि 25.07.2017 को ली गयी बीमा पालिसी की पांचवी किश्त जमा न होने के कारण पालिसी समाप्त हो चुकी थी। बीमा धारक के खातें में दिनांक 15.01.2017 को पर्याप्त धनराशि थी अथवा नहीं, स्पष्ट करने का भार परिवादी पर है। यदि यह स्पष्ट हो जाता है कि देय तिथि को खाते में पर्याप्त धनराशि थी तब भी परिवादी विपक्षी बीमा कम्पनी से किसी अनुतोष को प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। बीमा प्रीमियम भेजने का दायित्व विपक्षी संख्या-01 का था। विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा वादोत्तर के समर्थन में शपथपत्र दाखिल किया गया है।

           विपक्षी संख्या-02 व 03 की ओर से सूची से एकाउन्ट स्टेटमेन्ट पालिसी धारक महाबीर, प्रपोजल फार्म तथा बीमा प्रमाण पत्र की छाया प्रति दाखिल किया है। विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा मेम्बरशिप डिटेल की छाया प्रति दाखिल की गई है।

               परिवादी ने अपनी लिखित बहस दाखिल की है।

               विपक्षी संख्या-01 द्वारा लिखित बहस, अतिरिक्त लिखित बहस तथा मेम्बरशिप पालिसी होल्डर स्कीम दाखिल की गई है।

               विपक्षी संख्या-02 व 03 द्वारा लिखित बहस दाखिल की गई।

            परिवाद सुनवाई हेतु पेश हुआ। परिवादी, विपक्षी संख्या-01 एवम विपक्षी संख्या-02 व 03 के विद्वान अधिवक्ता उपस्थित हुये। पक्षों का कथन सुना गया एवम् पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों का परिशीलन किया गया।

      प्रस्तुत परिवाद में परिवादी के स्व0 पिता महाबीर द्वारा विपक्षी संख्या-01 की बैंक में दिनांक 20.09.2006 को एक बचत खाता संख्या-034110100011709 खोला गया था तथा दिनांक 31.12.2012 को के0 सी0 सी0 ऋण खाता संख्या-034125110000933 के माध्यम से रू0 3,00,000/-ऋण लिया गया। बैंक के माध्यम से दिनांक 01.01.2013 को उसका पाँच वर्षीय सामूहिक जीवन बीमा रू0 2,50,000/-का रू0 10,000/-वार्षिक प्रीमियम पर विपक्षी संख्या-02, 03 से कराया गया जिसका मास्टर पालिसी संख्या-0177311435 था। प्रीमियम राशि का भुगतान परिवादी के पिता के बचत खाते से विपक्षी बैंक द्वारा विपक्षी बीमा कम्पनी को अदा किया जाता था। पाँच वर्षीय बीमा की अन्तिम किश्त रू0 10,000/-का भुगतान खाते मे पर्याप्त धनराशि होने के बावजूद भी विपक्षी बीमा कम्पनी को नहीं किया गया जो दिनांक 15.01.2017 को देय थी। बीमा धारक की दिनांक 25.04.2017 को मृत्यु हो गयी जिसके उपरान्त परिवादी द्वारा बीमित राशि रू0 2,50,000/-का क्लेम किया गया। तदुपरान्त विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा बीमित राशि रू0 2,50,000/-के विरूद्व रू0 37,482/-का भुगतान परिवादी को किया गया जिससे क्षुब्ध होकर यह परिवाद प्रस्तुत किया गया।

            विपक्षी बैंक का मुख्य रूप से कथन है कि परिवादी के स्व0 पिता द्वारा विपक्षी बीमा कम्पनी से सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के बाद स्वेच्छा से बीमा कराया गया था। बैंक द्वारा बीमा कम्पनी को डायरेक्ट कोई प्रीमियम नहीं प्रेषित किया जाता था। बीमा कम्पनी के अभिकर्ता द्वारा प्रत्येक प्रीमियम तिथि पर शाखा में उपस्थित होकर बीमा नवीनीकरण की लिस्ट शाखा में उपलब्ध करायी जाती थी जिसके आधार पर बैंक द्वारा बीमा का प्रीमियम प्रेषित किया जाता था। बैंक द्वारा चार वर्षो तक अभिकर्ता द्वारा बीमा नवीनीकरण की लिस्ट उपलब्ध कराने पर समय से प्रीमियम जमा करवाया जाता रहा किन्तु अंतिम प्रीमियम जमा करने की तिथि को बीमा कम्पनी के अभिकर्ता शाखा में नहीं आये और न ही बीमा कम्पनी अथवा परिवादी के पिता द्वारा बीमा के नवीनीकरण से सम्बन्धित कोई अनुस्मारक शाखा को प्रेषित किया गया जिसके कारण बीमा का प्रीमियम जमा नहीं हो सका।

          परिवाद के संबंध में विपक्षी संख्या-02 व 03 का मुख्य रूप से कथन है कि दिनांक 01.01.2013 को परिवादी के स्व0 पिता द्वारा जीवन बीमा पालिसी अपने नाम से विपक्षी संख्या-01 के माध्यम से क्रय की थी। बीमा धन रू0 2,50,000/-की वार्षिक प्रीमियम  रू0 10,000/-थी जिसका भुगतान विपक्षी संख्या-01 के माध्यम से दिनांक 15.01.2013, 31.01.2014, 21.01.2015 व 30.01.2016 को किया गया था। बीमे की पाँचवी वार्षिक प्रीमियम दिनांक 15.01.2017 को जमा करना था जो नहीं किया गया। पालिसी के नियम व शर्तो के अनुसार देय तिथि के तीस दिनों तक बीमे की किश्त न जमा किये जाने के कारण पालिसी Lapse हो गयी। बीमाधारक की दिनांक 25.04.2017 को मृत्यु होने के उपरान्त विपक्षी संख्या-01 के माध्यम से बीमा दावा क्लेम दिलाये जाने हेतु आवेदन किया गया जिस पर बीमा पालिसी के नियम व शर्तो के अनुसार बीमा दावा का निस्तारण करते हुये दिनांक 25.07.2017 को रू0 37,482/-जरिये नेफ्ट परिवादी के खाते में भेज दिया गया। परिवादी द्वारा अपने पिता की मृत्यु दिनांक 25.04.2017 को होना अंकित किया गया है परन्तु मृत्यु के संबंध में कोई भी सुसंगत साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है और न ही मृत्यु होने का कोई कारण दर्शित किया गया है। परिवादी मृतक का नामिनी पुत्र होने के बावत कोई भी सुसंगत साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है। बीमे की पाँचवी किश्त की देय तिथि को बीमा धारक के खातें में पर्याप्त धनराशि थी अथवा नहीं, साक्ष्य परिवादी द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया है। यदि देय तिथि को बीमाधारक के खातें में पर्याप्त धनराशि थी तब बीमा किश्त भेजने का उत्तरदायित्व विपक्षी संख्या-01 पर था।

            उभय पक्षों के उपरोक्त तथ्यों के आधार पर विवेचन हेतु प्रमुख बिन्दु है कि वर्तमान प्रकरण में सामूहिक बीमा पालिसी के अंतर्गत विपक्षी आर्यावर्त बैंक द्वारा मृतक महाबीर के के0 सी0 सी0 खातें से प्रत्येक वर्ष किश्त काटकर बीमा किश्त की धनराशि बीमा कम्पनी को प्रेषित किया जाना बीमा संविदा में तय होने के आधार पर यदि बैंक द्वारा बीमा कम्पनी को समय से बीमा प्रीमियम खातें से काटकर नहीं भेजा गया और बीमित सदस्य की मृत्यु हो गई तो उक्त स्थिति में मृतक महाबीर के वारिस को बीमा क्लेम की धनराशि बैंक या बीमा कम्पनी किसके द्वारा देय होगी, यदि मृतक के खातें में बीमा प्रीमियम काटे जाने की तिथि पर पर्याप्त धनराशि थी।

             विपक्षी संख्या-01 आर्यावर्त बैंक का तर्क है कि बैंक बीमा धारक तथा बीमा कम्पनी के मध्य एजेन्ट का कार्य करता है। बीमा धनराशि का भुगतान करना बीमा कम्पनी का दायित्व है। जबकि बीमा कम्पनी का कथन है कि समय से बीमा प्रीमियम जमा न करने पर मृतक महाबीर का बीमा Lapse हो गया था और चूँकि बैंक ने किश्त अदा करने में त्रुटि की है अतः बीमा कम्पनी का तर्क है कि बीमा धनराशि अदा करने का उत्तरदायित्व बैंक का है। विपक्षी संख्या-01 आर्यावर्त बैंक द्वारा निम्नलिखित नजीरों में प्रतिपादित विधि सिद्वान्तों का सन्दर्भ लिया गया हैः-

          1.  देलही इलेक्ट्रिक सप्लाई अंडरटेकिंग बनाम बसन्ती देवी एवं अन्य, अपील (सिविल) 6113/1995 (मा0   

               सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय दिनांकित 28.09.1999)

          2.  श्रीमती नीता विज बनाम एल0 आई0 सी0 एवं अन्य रिट याचिका सं0-7163/2014 (मा0 मध्य प्रदेश उच्च

               न्यायालय, जबलपुर पीठ निर्णय दिनांकित 29.11.2016)

          3.  सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया एवं अन्य बनाम श्रीमती हीरा सोनी एवं अन्य 2005 (।) ए एल टी 20 (मा0

               राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्ली निर्णय दिनांकित 04.11.2004)

          मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के उपरोक्त निर्णय सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया एवं अन्य बनाम श्रीमती हीरा सोनी एवं अन्य में उपरोक्त सन्दर्भित मा0 सर्वोच्च न्यायालय की निर्णयज विधि देलही इलेक्ट्रिक सप्लाई अंडरटेकिंग बनाम बसन्ती देवी एवं अन्य के विधि सिद्वान्तों को उद्वरित करते हुये निर्णय पारित किया गया है। मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया एवं अन्य बनाम श्रीमती हीरा सोनी एवं अन्य के निर्णय दिनांकित 04.11.2004 के तथ्य लगभग समान है। मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा सामूहिक बीमा मास्टर पालिसी में बैंक द्वारा उस योजना के बैंक के सदस्य के खातें से प्रीमियम काटकर बीमा कम्पनी को प्रेषित किया जाता था। बैंक द्वारा एक सदस्य श्री नन्द किशोंर का बीमा प्रीमियम समय से न प्रेषित किये जाने पर और नन्द किशोर की मृत्यु हो जाने पर उसकी बीमा पालिसी स्ंचेम होना कहते हुये बीमा कम्पनी ने बीमा क्लेम धनराशि देने से इंकार कर दिया। मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा इस निर्णय में मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय को उद्वरित करते हुये निर्णीत किया गया,

“In Desu V. Basanti Devi (1999) 8 SCC 229=AIR 2000 SC 43, the Hon’ble Supreme Court in relation to a similar kind of Group Insurance Scheme under the name of Salary Saving Scheme, observed in para 11 about the relationship, between the Desu and LIC in following words:

“Desu is certainly not an insurance agent within the meaning of the aforesaid Insurance Act and the regulations but Desu is certainly an agent as defined in Section182 of the Contract Act. The mode of collection of premium has been indicated in the Scheme itself and the employer has been assigned the role of collecting premium and remitting the same of LIC. As far as the employee as such is concerned, the employer will be an agent of LIC. It is a matter of common knowledge that insurance companies employ agents. When there is no insurance agent as defined in the regulations and Insurance Act, the general principles of the law of agency as contained in the Contract Act are to be applied.”

The Hon’ble Supreme Court further observed that the authority of Desu to collect premium on behalf of LIC was implied. In any case, Desu had ostensible authority to collect premium and so for the employee was concerned Desu was an agent of LIC to collect premium on its behalf.

Accordingly, we hold the Central bank of India was acting as an agent having implied authority of the LIC of collecting the insurance premium from the employees. The moment the amount was deducted from the salary of employees by the Central Bank it would be deemed to have been paid to the Life Insurance Corporation. Failure on the part of the agent having an implied authority to receive premium on receipt by deduction from the salary coupled with failure to deposit the same with LIC could not lead to lapse of the policy by any stretch of imagination.”

          उपरोक्त के आधार पर मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा बीमा कम्पनी को उपरोक्त क्लेम की धनराशि ब्याज सहित मृतक बीमा के लाभार्थी को देने के आदेश किये। मा0 सर्वोच्च न्यायालय तथा मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के उपरोक्त सन्दर्भित निर्णयों के विधि सिद्वान्त लागू करने पर यह स्पष्ट है कि विपक्षी संख्या-01 अर्थात आर्यावर्त बैंक बीमा संविदा के अनुसार सामूहिक बीमा पालिसी का पालिसी होल्डर है और बीमा कम्पनी के एजेन्ट के रूप में दिखने में (Ostensibly) बीमा कम्पनी का अभिकर्ता है। अभिकर्ता द्वारा प्रीमियम अदा करने में त्रुटि होने की स्थिति में बीमा पालिसी का स्ंचेम होना नहीं माना जायेगा। अभिकर्ता के मृत्य दावे के भुगतान के लिये बीमा कम्पनी उत्तरदायी है।

           यह स्वीकृत तथ्य है कि मृतक महाबीर के के. सी. सी खातें में प्रीमियम देय होने की दिनांक पर प्रीमियम की धनराशि काटने हेतु उसके के. सी. सी. खाते में पर्याप्त धनराशि थी। मृतक महाबीर के खातें से प्रीमियम की धनराशि काटकर बीमा कम्पनी को प्रेषित करने के लिये बीमा संविदा के अंतर्गत विपक्षी संख्या-01 बैंक अधिकृत था। विपक्षी संख्या-01 बैंक की यह अधिकारिता विपक्षी संख्या-02 व 03 बीमा कम्पनी के एजेन्ट के रूप में मानी जायेगी और अधिकृत एजेन्ट द्वारा समय से बीमा प्रीमियम न जमा करने के आधार पर बीमा कम्पनी बीमा पालिसी Lapse करने का आधार नहीं ले सकती क्योंकि, अपने अभिकर्ता की गलती के लिये उपरोक्त संदर्भित निर्णयज विधियों के विधि सिद्वान्तों के अनुसार बीमा कम्पनी उत्तरदायी है। प्रीमियम अदा किये जाने में मृतक महाबीर की कोई त्रुटि नहीं है। अतः मृतक महाबीर के बीमा क्लेम की धनराशि से उसके लाभार्थी को वंचित नहीं किया जा सकता।

            उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मृतक महाबीर द्वारा जीवन बीमा सीधे बीमा कम्पनी से नहीं कराया गया था बल्कि विपक्षी बैंक की ग्रुप इन्श्योरेन्स स्कीम के अन्तर्गत स्कीम के सदस्य के रूप में बैंक द्वारा बीमा कम्पनी से कराया गया था। बीमाधारक का जीवन बीमा व्यक्तिगत न होकर सामूहिक बीमा था। प्रीमियम की धनराशि बैंक द्वारा विपक्षी बीमा कम्पनी को प्रतिवर्ष देय समय पर प्रेषित की जाती थी। स्कीम के तहत पालिसी होल्डर आर्यावर्त बैंक है। मृतक महाबीर उक्त स्कीम का के0 सी0 सी0 खाताधारक होने के आधार पर सदस्य था। अतएव यदि बीमाधारक के खातें में पर्याप्त धनराशि थी, तो प्रीमियम भुगतान करने की जिम्मेदारी विपक्षी बैंक की बीमा कम्पनी के एजेन्ट के रूप में ही थी। यदि किसी त्रुटिवश बैंक द्वारा प्रीमियम की अंतिम किश्त का भुगतान समय से बीमा कम्पनी को नहीं किया जा सका तो बीमा कम्पनी द्वारा अपने एजेन्ट बैंक को प्रीमियम प्राप्त कराने के लिए अनुस्मारक जारी किया जाना चाहिए था परन्तु बीमा कम्पनी द्वारा प्रीमियम जमा करने के संबंध में बैंक को कोई अनुस्मारक आदि प्रेषित किये जाने का कोई साक्ष्य नहीं है।

             उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि मृतक महाबीर की विपक्षी संख्या-01 आर्यावर्त बैंक में के. सी. सी. खातें के आधार पर विपक्षी बैंक द्वारा विपक्षी संख्या-02 व 03 से कराये गये ग्रुप इंश्योरेन्स के अंतर्गत बीमित महाबीर की मृत्यु होने पर देय बीमा क्लेम की धनराशि रू0 2,50,000/-अदा करने का उत्तरदायित्व विपक्षी बीमा कम्पनी पर है। बीमा कम्पनी द्वारा पूर्व में अदा की गई बीमा प्रीमियम की धनराशि रू0 37,482/-लाभार्थी को अदा कर दी गई है। उक्त पूर्व अदा धनराशि, बीमित राशि रू0 2,50,000/-से समायोजित करते हुये उस पर ब्याज सहित परिवादी को निश्चित समायावधि में भुगतान कराने हेतु आदेशित किया जाना उचित होगा।

            विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी के पिता महाबीर के बीमा दावा का भुगतान न कर सेवा में कमी की गई है जिसके लिये बीमा कम्पनी से परिवादी क्षतिपूर्ति व वाद व्यय भी पाने का अधिकारी है।

              उपरोक्त विवेचन के आलोक में वर्तमान परिवाद विपक्षी संख्या-02 व 03 बीमा कम्पनी के विरूद्व आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।

आदेश

            परिवाद संख्या-97/2017 अंशतः स्वीकार किया जाता है। बीमित राशि रू0 2,50,000/-मे से बीमा कम्पनी द्वारा पूर्व में अदा की गई धनराशि रू0 37,482/-घटाते हुये शेष रू0 2,12,518/- परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि 29.08.2017 से अदायगी की तिथि तक 6% साधारण वार्षिक ब्याज सहित पैंतालिस दिवस में अदा करें। विपक्षी सं0-02 व 03 परिवादी को क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 3,000/-तथा वाद व्यय के रूप में रू0 2,000/- भी पैंतालिस दिन में अदा करेगें। पैतालिस दिवस में अनुपालन न करने की स्थिति में आदेशित धनराशि रू0 2,12,518/-पर अदायगी की तिथि तक 9% की दर से ब्याज देय होगा।

(डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी)       (मीना सिंह)         (संजय खरे)

         सदस्य                      सदस्य                अध्यक्ष

यह निर्णय आज दिनांक को  आयोग  के  अध्यक्ष  एंव  सदस्य द्वारा  खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।

(डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी)       (मीना सिंह)         (संजय खरे)

         सदस्य                      सदस्य                अध्यक्ष

दिनांक 27.03.2023

 

 

 

 

 

 

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