(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या- 903/2019
(जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या- 726/2007 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 13-06-2019 के विरूद्ध)
माई कार प्राइवेट लिमिटेड, शोरूम 84/54-सी जरीब चौकी, जी०टी० रोड, कानपुर द्वारा इट्स अटार्नी होल्डर श्री एस०एस० चौहान
बनाम
अरविन्द कुमार पाण्डेय, पुत्र श्री सी०के० पाण्डेय निवासी- मकान नं० 119/171 ओम नगर दर्शनपुरवा कानपुर नगर।
समक्ष :-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक सिन्हा
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- विद्वान अधिवक्ता श्री मनीष कुमार शर्मा
दिनांक : 17-10-2022
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी माई कार प्राइवेट लिमिटेड द्वारा विद्वान जिला आयोग कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या- 726/2007 अरविन्द कुमार पाण्डेय बनाम माई कार प्राइवेट लिमिटेड, जरीब चौकी, जी०टी० रोड, कानपुर नगर व एक अन्य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 13-06-2019 के विरूद्ध इस आयोग के समक्ष योजित की गयी है।
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परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी, विपक्षी कम्पनी में सन् 2004 में टीम लीडर के पद पर कार्यरत था। सेवाकाल के दौरान परिवादी द्वारा विपक्षी कम्पनी से मारूति 800 ए.सी. कार खरीदने का प्रस्ताव किया गया जिसकी स्वीकृति विपक्षी कम्पनी द्वारा प्रदान की गयी और विपक्षी ने मारूति कंट्रीवाइड फाइनेंस कम्पनी से ऋण फाइनेंस करा दिया तथा सभी औपचारिकताएं पूर्ण कराकर मारूति कंट्रीवाइड फाइनेंस कम्पनी से 1,50,000/-रू० का ऋण प्राप्त कर लिया। विपक्षी कम्पनी में कार्यरत रहते हुए परिवादी ने दिसम्बर 2004 से लगातार प्रश्नगत कार प्राप्त करने हेतु प्रयास किया और ऋण की मासिक किस्त 2320/-रू० का भुगतान भी करता रहा। विपक्षी द्वारा सभी औपचारिकताएं पूर्ण करायी गयीं और मार्जिन मनी को छोड़कर सभी भुगतान प्राप्त कर लिया गया परन्तु परिवादी को प्रश्नगत कार की डिलीवरी नहीं दी गयी। जब परिवादी द्वारा अपनी जमा धनराशि की मांग विपक्षी से की गयी तब उसके सभी लाभांश एवं वेतन भी रोक दिया गया एवं अंततोगत्वा उसे नौकरी से भी निकाल दिया गया। अत: विपक्षी द्वारा अपनी सेवा में घोर कमी कारित की गयी है जिससे विवश होकर परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया।
विपक्षी के कथनानुसार फाइनेंस कम्पनी से 1,41,473/-रू० स्वीकृत हुआ। शेष रकम 108000/-रू० वाहन की डिलीवरी के पूर्व जमा किया जाना था जो परिवादी द्वारा जमा नहीं किया गया। 25,000/-रू० की चेक दी गयी जो पैसा न होने के कारण अनाद्रित हो गयी। समस्त धनराशि जमा न करने के कारण परिवादी को उपरोक्त कार की डिलीवरी नहीं दी जा सकी।
विद्वान जिला आयोग ने उभय-पक्षों को सुनने के उपरान्त तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का परिशीलन करने के उपरान्त परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
परिवादी का प्रस्तुत परिवाद, विपक्षीगण के विरूद्ध आंशिक रूप से इस आशय से स्वीकार किया जाता है कि निर्णय एवं आदेश पारित करने के 30 दिन
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के अन्दर विपक्षीगण, परिवादी को प्रश्नगत ऋण धनराशि रू० 1,50,000/- मय 08 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से दौरान मुकदमा तायूम वसूली अदा करें तथा 5000/-रू० परिवाद व्यय भी अदा करें।
उपरोक्त निर्णय के विरूद्ध प्रस्तुत अपील अपीलार्थी कम्पनी द्वारा योजित की गयी है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक सिन्हा उपस्थित हुए एवं प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री मनीष कुमार शर्मा उपस्थित हुए।
उभय-पक्ष के विद्वान अधिवक्ताद्व्य के तर्क को विस्तारपूर्वक सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों एवं साक्ष्यों का गहनता से परिशीलन किया गया।
मेरे द्वारा विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्गनत निर्णय/आदेश का भी अवलोकन किया गया।
जिला आयोग ने अपने निष्कर्ष में यह अंकित किया है कि परिवादी विपक्षी कम्पनी में सन् 2004 में टीम लीडर के पद पर कार्यरत था और परिवादी द्वारा विपक्षी कम्पनी से मारूति 800 ए.सी. कार क्रय करने हेतु बुकिंग की गयी। विपक्षी कम्पनी द्वारा मारूति कंट्रीवाइड फाइनेंस कम्पनी से 1,50,000/-रू० का ऋण फाइनेंस कराया गया तथा सभी औपचारिकताएं पूर्ण कराकर 1,50,000/-रू० कम्पनी द्वारा दिनांक 24-01-2005 को प्राप्त कर लिया गया। परिवादी द्वारा ऋण की समस्त किश्तें भी अदा की गयीं किन्तु विपक्षी कम्पनी द्वारा उपरोक्त कार परिवादी को नहीं दी गयी और न ही उपरोक्त जमा धनराशि वापस की गयी। विपक्षी कम्पनी द्वारा परिवादी के पक्ष में 1,50,000/-रू० का ऋण स्वीकृत कराया गया जिसे विपक्षी द्वारा प्राप्त किया गया है। परिवादी की जमा धनराशि वापस न कर विपक्षी कम्पनी द्वारा सेवा में कमी की गयी है।
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उपरोक्त समस्त तथ्यों एवं साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि विद्वान जिला आयोग द्वारा समस्त प्रपत्रों एवं साक्ष्यों का विधिवत ढंग से परीक्षण एवं परिशीलन करने के उपरान्त निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है जिसमें किसी हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 13-06-2019 की पुष्टि की जाती है।
अपील में उभय-पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
कृष्णा,आशु0 कोर्ट न0-1