Uttar Pradesh

StateCommission

A/2001/1523

Meerut Development Authority - Complainant(s)

Versus

Arun Prakash - Opp.Party(s)

Bhanu Prakash Duby

17 Nov 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2001/1523
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District )
 
1. Meerut Development Authority
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Arun Prakash
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary PRESIDING MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-1523/2001

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्‍या-256/97 में पारित आदेश दिनांक  26.05.2001 के विरूद्ध)

मेरठ डेवलपमेन्‍ट अथारिटी मेरठ, द्वारा सेके्टरी।       .........अपीलार्थी@विपक्षी

बनाम्

अरून प्रकाश पुत्र श्री लक्ष्‍मन प्रसाद गुप्‍ता निवासी एन-53,

एम.आई.जी. पल्‍लवपुरम फेज-11, मेरठ।              ........प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

1. मा0 श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्‍य।

2. मा0 श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित    : कोई नहीं।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित     :अरून प्रकाश स्‍वयं उपस्थित।

दिनांक 12.02.16

मा0 श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

      प्रस्‍तुत अपील जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम मेरठ के परिवाद संख्‍या 256/97 में पारित निर्णय एवं आदेश दि. 26.05.2001 के विरूद्ध योजित की गई है। जिला मंच द्वारा निम्‍न आदेश पारित किया गया:-

      '' एतद्द्वारा विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि वे परिवादी को जो उन्‍होंने भवन की कीमत के संबंध में अधिक राशि अंकन 12646.71 ब्‍याज की मद के अंकन 12259.60 लाभ की मद के तथा रू. 2000/- अकल्पित मद के तथा 2090.30 रख रखाव शुल्‍क के मद के कुल अंकन 28996.61 पैसे जमा करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक बारह प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज के साथ एक माह में वापिस करें, इसके अतिरिक्‍त विपक्षी परिवादी को एक हजार रूपये वाद व्‍यय तथा दो हजार रूपये बतौर क्षतिपूर्ति भी अदा करें।  इसके अलावा विपक्षी को यह भी आदेश दिया जाता है वे एक माह की अवधि में आवंटित भवन का विक्रय अभिलेख परिवादी के हक में निष्‍पादित करें।''

      प्रत्‍यर्थी को व्‍यक्तिगत रूप से सुना गया। अपीलार्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ, अत: पीठ ने यह निर्णय लिया कि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-30 के उपधारा (2) के अंतर्गत निर्मित उ0प्र0 उपभोक्‍ता संरक्षण नियमावली 1987 के नियम 8 के उपनियम (6) के दृष्टिगत प्रस्‍तुत अपील का निस्‍तारण गुणदोष के आधार पर कर दिया जाए।

-2-

      संक्षेप में परिवादी के तथ्‍य इस प्रकार हैं कि उसने स्‍ववित्‍त पोषित योजना के अंतर्गत मध्‍यम आय वर्ग के भवन के आवंटन हेतु दि. 29.01.91 को अंकन रू. 20100/- जमा कर पंजीकरण कराया था। उसके बाद विपक्षी के मांग करने पर शेष कीमत रू. 180900/- दि. 29.04.91 को जमा करा दी। विपक्षी द्वारा परिवादी को दि. 29.04.91 को भवन संख्‍या एन-53 पल्‍लवपुरम फेस द्वितीय आवंटन कर दिया गया।  परिवादी ने दि. 06.04.92 को उक्‍त आवंटित भवन का कब्‍जा भी प्राप्‍त कर लिया।  परिवादी ने भवन के निर्धारित अंतिम मूल्‍य का विवरण मांगा तो विपक्षी ने भवन की कीमत अंकन 210000/- रूपये में निर्माण अवधि 18 माह का ब्‍याज अंकन 12647.71 तथा विपक्षी द्वारा प्राप्‍त शुद्ध लाभ अंकन 12259.60 रख रखाव शुल्‍क अंकन 2090.30 तथा अकल्पि व्‍यय अंकन 2000/- गलत व मनमाने ढंग से बताये गये जो परिवादी से गलत तौर पर वसूल कर कर लिये गये।  परिवादी का कथन है कि चूंकि भवन का निर्माण उससे अग्रिम राशि लेकर कराया गया इस कारण विपक्षी निर्माण अवधि का कोई ब्‍याज प्राप्‍त करने के अधिकारी नहीं है। इस प्रकार इस मद में जो रकम अंकन 12259.60 जोड़ी गई है वह गलत है इसी प्रकार रख रखाव अकल्पित व्‍यय के मद की रकम भी गलत जोड़ी गई है।

      जिला मंच का निर्णय/आदेश दि. 26.05.2001 का है। अपील दि. 24.07.2001 को प्रस्‍तुत की गई है। इस प्रकार अपील विलम्‍ब से प्रस्‍तुत की गई। अपीलार्थी द्वारा विलम्‍ब को क्षमा करने हेतु प्रार्थना पत्र दिया है जो शपथपत्र से समर्थित है। अपीलार्थी ने जो विलम्‍ब से अपील दाखिल करने के जो कारण दर्शाए गए हैं वह विलम्‍ब को क्षमा किए जाने हेतु पर्याप्‍त है, अत: विलम्‍ब क्षमा किया जाता है।

      अपीलार्थी ने अपने अपील के प्रस्‍तर-7 में यह कथन किया है कि उसके द्वारा परिवादी को विकसित सेक्‍टर में प्‍लाट बदलने के लिए प्रस्‍ताव दिया था, अत: परिवादी द्वारा जो धन की वापसी की मांग की गई है वह उचित नहीं है। अपीलार्थी विकास प्राधिकरण उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता है। प्रत्‍यर्थी द्वारा बताया गया कि उसके द्वारा भवन का कब्‍जा प्राप्‍त किया जा चुका है। प्राधिकरण द्वारा जो उसे अंतिम आंकलन दिया गया, उसमें गलत ब्‍याज जोडा गया है और अभी तक विक्रय पत्र निष्‍पादित नहीं किया गया है। अपीलार्थी ने अपील आधार के प्रस्‍तर 3 में जो प्‍लाट बदलने के प्रस्‍ताव के संबंध में जिक्र किया गया है यह एक नया अभिकथन है जो जिला मंच के समक्ष नहीं कहा गया था, अत: 

 

-3-

स्‍वीकार योग्‍य नहीं है। परिवादी ने स्‍वयं वित्‍तपोषित योजना के अंतर्गत पंजीकरण कराया गया था और उसके द्वारा समय से सारी धनराशि जमा की गई है। विकास प्राधिकरण द्वारा भवन के अंतिम मूल्‍य में जो ब्‍याज लगाया गया है उसका कोई आधार नहीं बताया गया, जबकि भवन के मूल्‍य की समस्‍त धनराशि पहले से ही परिवादी से जमा कराई जा चुकी है, अत: ब्‍याज का कोई औचित्‍य नहीं बनता है। जहां तक क्षेत्राधिकार का प्रश्‍न है यह स्‍थापित नियम है कि विकास प्राधिकरणों द्वारा जो आवंटन मकानों के किए जाते हैं उससे संबंधित प्रकरण उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत आते हैं।

      जिला मंच ने साक्ष्‍यों की पूर्ण विवेचना करते हुए अपना निर्णय एवं निष्‍कर्ष दिया है, जो विधिसम्‍मत है, उसमें हम किसी हस्‍तक्षेप की आवश्‍यकता नहीं पाते हैं।  तदनुसार अपील निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

आदेश

     प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त की जाती है।

      पक्षकार अपना व्‍यय भार स्‍वयं वहन करेंगे।

 

    

        (राम चरन चौधरी)                               (राज कमल गुप्‍ता)

         पीठासीन सदस्‍य                                      सदस्‍य

राकेश, आशुलिपिक

      कोर्ट-5

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary]
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