सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या-923/2011
(जिला उपभोक्ता फोरम, मथुरा द्वारा परिवाद संख्या-127/2005 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.04.2011 के विरूद्ध)
1. सेण्ट्रल बैंक आफ इण्डिया, कृष्णा नगर, ब्रांच मथुरा, द्वारा मैनेजर।
2. रिजनल मैनेजर, सेण्ट्रल बैंक आफ इण्डिया, 37/214, IInd फ्लोर, संजय पैलेस, आगरा।
3. जनरल मैनेजर, सेण्ट्रल बैंक आफ इण्डिया, सेण्ट्रल आफिस, चन्द्रमुखी नरिमन प्वाइंट, मुम्बई।
अपीलकर्तागण/विपक्षीगण
बनाम्
1. अरूण कुमार अग्रवाल पुत्र राम नारायण अग्रवाल।
2. श्रीमती इन्दु रानी अग्रवाल पत्नी अरूण कुमार अग्रवाल, बोथ निवासीगण-169 महाबीर नगर भूतेश्वर, जिला मथुरा। (मृतक)
2/1. विनीत अग्रवाल पुत्र अरूण कुमार अग्रवाल, निवासी-169 महाबीर नगर भूतेश्वर, जिला मथुरा।
2/2. श्रीमती अनीशा अग्रवाल पत्नी श्री महेश अग्रवाल एवं पुत्री अरूण कुमार अग्रवाल, निवासिनी-28-बी, कृष्णा पुरी, मथुरा।
प्रत्यर्थीगण/परिवादी संख्या-1/प्रतिस्थापित वारिसान
समक्ष:-
1. माननीय श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलकर्तागण की ओर से : श्री सी0के0 सेठ, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से : श्री एम0एल0 वर्मा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 29.05.2019
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, मथुरा द्वारा परिवाद संख्या-127/2005 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.04.2011 के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी संख्या-1 के कथनानुसार प्रत्यर्थी संख्या-1 व उसकी पत्नी श्रीमती इन्दुरानी अग्रवाल का एक सेविंग बैंक खाता संख्या-2573 अपीलकर्ता, बैंक में था। उक्त खाते में प्रत्यर्थी संख्या-1 द्वारा अपने सेवानिवृत्त होने पर समस्त फण्ड की राशि जमा करायी गयी। प्रत्यर्थी संख्या-1 को अपीलकर्ता, बैंक से एक पत्र दिनांकित 25.01.2003 प्राप्त हुआ, जिसमें यह उल्लिखित था कि प्रत्यर्थी संख्या-1 तथा उसकी पत्नी द्वारा किसी अशोक कुमार को नवीन चेक बुक जारी करने के लिए प्रार्थना पत्र दिया था और उस पत्र के अनुसार अपीलकर्ता संख्या-1 ने नवीन चेक बुक पत्रवाहक अशोक कुमार को जारी कर दी। इसे देखकर प्रत्यर्थी संख्या-1 को आश्चर्य हुआ उस समय अपराह्न 2 बजे थे। प्रत्यर्थी संख्या-1 तुरन्त बैंक पहुंचा जहां अपीलकर्ता संख्या-1 ने उसे संतोषपूर्वक जवाब नहीं दिया और यह कह दिया कि आज शनिवार है, इसलिए आप पासबुक छोड़ दीजिए सोमवार दिनांक 27.01.2003 को आकर मिलिए। अपीलकर्ता संख्या-1 के इस व्यवहार पर तुरन्त ही प्रत्यर्थी संख्या-1 ने उनके क्षेत्रीय प्रबन्धक अपीलकर्ता संख्या-2 को एक टेलीग्राम उन समस्त बातों के संबंध में प्रेषित कर दिया तथा दिनांक 27.01.2003 को जब प्रत्यर्थी संख्या-1 अपीलकर्ता संख्या-1 के पास पहुंचा तो अपीलकर्ता संख्या-1 ने प्रत्यर्थी संख्या-1 को उसकी पासबुक में गलत इन्द्राज करते हुए पासबुक लौटा दी। प्रत्यर्थी संख्या-1 ने अपीलकर्ता संख्या-1 को उस समय एक पत्र इस आशय का दिया कि प्रत्यर्थी संख्या-1 द्वारा किसी भी अशोक कुमार नाम के व्यक्ति को प्रार्थना पत्र चेक बुक प्राप्त करने हेतु कभी नहीं दिया गया और न ही प्रत्यर्थी संख्या-1 किसी अशोक कुमार नाम के व्यक्ति को जानता है, जिससे अपीलकर्ता संख्या-1 ने प्राप्त करके अग्रिम कार्यवाही किये जाने हेतु कहा इसके उपरान्त जब प्रत्यर्थी संख्या-1 को ज्ञात हुआ कि प्रत्यर्थी संख्या-1 के सेविंग बैंक खाता संख्या-2573 से दिनांक 01.01.2003 से दिनांक 21.01.2003 तक 11,00,000/- रूपये की धनराशि प्रत्यर्थी संख्या-1 के फर्जी हस्ताक्षर एवं फर्जी प्रार्थना पत्र के आधार पर चेक बुक प्राप्त करके निकाल ली गयी। प्रत्यर्थी संख्या-1 द्वारा इस सन्दर्भ में एक प्रथम सूचना रिपोर्ट अपराध संख्या-87/2003 अन्तर्गत धारा-420, 467, 468 तथा 120 बी आईपीसी के तहत चौकी कृष्णा नगर, थाना कोतवाली, मथुरा में दर्ज करायी गयी। प्रत्यर्थी संख्या-1 का यह भी कथन है कि ऐसा प्रतीत होता है कि अपीलकर्ता संख्या-1 के यहां कार्यरत कर्मचारी ने आपस में साज करके प्रत्यर्थी संख्या-1 के खाते से 11,00,000/- रूपये की धनराशि निकाली गयी। प्रत्यर्थी संख्या-1 का यह भी कथन है कि प्रत्यर्थी संख्या-1 के पास पुरानी चेक बुक मौजूद थी और उसके द्वारा कोई प्रार्थना पत्र नई चेक बुक जारी करने हेतु नहीं दिया गया था। अपीलकर्ता की ओर से 11,00,000/- रूपये की धनराशि निकाले जाने के बाद चेक जारी किये जाने के सन्दर्भ में प्रत्यर्थी संख्या-1 को सूचना भेजी गयी। अत: 11,00,000/- रूपये की धनराशि मय ब्याज वसूली तथा क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय की अदायगी हेतु परिवाद जिला मंच ने योजित किया गया।
अपीलकर्तागण द्वारा जिला मंच के समक्ष प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया। अपीलकर्तागण के कथनानुसार प्रस्तुत प्रकरण जिला मंच के समक्ष पोषणीय नहीं था, क्योंकि इस प्रकरण में परिवादीगण के साथ कथित रूप से धोखा-धड़ी का प्रश्न निहित था। इस सन्दर्भ में वाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, मथुरा के न्यायालय में लम्बित है। परिवाद परिवादीगण ने वस्तुत: धन की वसूली हेतु किया है। ऐसे मामलों की सुनवाई का क्षेत्राधिकार जिला मंच को प्राप्त नहीं है।
जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा परिवादीगण का परिवाद स्वीकार करते हुए अपीलकर्तागण को निर्देशित किया कि अपीलकर्तागण 11,00,000/- रूपये की धनराशि जो परिवादीगण के उपरोक्त बचत खाते से आहरण की गयी है, परिवादीगण को अदा करें तथा मानसिक कष्ट हेतु अपीलकर्तागण परिवादीगण को 25,000/- रूपये अदा करें तथा साथ ही वाद व्यय के रूप में 2000/- रूपये भी अपीलकर्तागण परिवादीगण को अदा करें। इस प्रकार उपरोक्त कुल धनराशि पर 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज वाद दायर करने की दिनांक से ता वसूलयाबी अपीलकर्तागण अदा करेंगे।
इस निर्णय एवं आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
हमने अपीलकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता श्री सी0के0 सेठ तथा प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री एम0एल0 वर्मा के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
अपीलकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत परिवाद जिला मंच के समक्ष पोषणीय नहीं है। प्रश्नगत परिवाद जिला मंच द्वारा संक्षिप्त प्रक्रिया के अन्तर्गत निर्णीत नहीं किया जा सकता है। परिवाद के निस्तारण हेतु विस्तृत साक्ष्य की आवश्यकता होगी। धनराशि की वसूली हेतु प्रत्यर्थीगण/परिवादी संख्या-1 दीवानी न्यायालय में वाद योजित कर सकता है। अपीलकर्ता की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि परिवादी संख्या-1 द्वारा लिखायी गयी प्रथम सूचना रिपोर्ट की विवेचना के उपरान्त आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया जा चुका है तथा फौजदारी वाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, मथुरा में लम्बित है, जिसमें यह निर्णीत किया जाना है कि प्रस्तुत प्रकरण के सनदर्भ में कोई धोखा-धड़ी की गयी अथवा नहीं। इस मामलें में यह निर्णीत किया जाना है कि परिवादीगण के हस्ताक्षर किसके द्वारा बनाए गए। यह भी निर्णीत किया जाना है कि प्रस्तुत प्रकरण के सन्दर्भ में स्वंय परिवादीगण की क्या भूमिका रही है।
प्रत्यर्थीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि प्रस्तुत प्रकरण में यह तथ्य निर्विवाद है कि परिवादी संख्या-1 एवं उसकी पत्नी का एक बचत खाता अपीलकर्ता, बैंक में स्थित था। इस बैंक खाते के सन्दर्भ में चेकबुक जारी किये जाने हेतु एक प्रार्थना पत्र दिनांकित 31.12.2002 को अपीलकर्ता, बैंक के शाखा प्रबन्धक को परिवादीगण द्वारा कथित रूप से प्रेषित किया गया, जिसके द्वारा कथित रूप से श्री अशोक कुमार नाम के व्यक्ति को परिवादीगण के बचत खाते के संचालन हेतु चेक बुक प्राप्त करने हेतु अधिकृत किया गया। इस प्रार्थना पत्र पर परिवादीगण ने अपने हस्ताक्षर से इंकार किया है, किन्तु इस प्रार्थना पत्र के आधार पर अपीलकर्ता, बैंक द्वारा चेक बुक अशोक कुमार नाम के व्यक्ति को जारी की गयी तथा जारी की गयी चेक बुक के चेकों से दिनांक 01.01.2003 को तीन लाख रूपये, दिनांक 02.01.2003 को तीन लाख रूपये, दिनांक 03.01.2003 को चार लाख रूपये तथा दिनांक 16.01.2003 को एक लाख रूपये कुल 11 लाख रूपये का भुगतान किया गया। प्रत्यर्थीगण की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि दिनांक 31.12.2002 को अवैध रूप से परिवादीगण के खाते के सन्दर्भ में चेकबुक जारी किये जाने के बाद चेकबुक जारी किये जाने की सूचना तत्काल परिवादीगण को प्रेषित नहीं की गयी, बल्कि अपीलकर्ता, बैंक द्वारा पंजीकृत डाक से यह सूचना दिनांक 23.01.2003 को प्रेषित की गयी। प्रत्यर्थीगण द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि स्वंय अपीलकर्तागण यह स्वीकार करते हैं कि चेकबुक जारी किये जाने के सन्दर्भ में प्रेषित प्रार्थना पत्र दिनांक 31.12.2002 पर परिवादीगण के हस्ताक्षर नहीं हैं। अपीलकर्तागण यह भी स्वीकार करते हैं कि इस प्रकरण में बैंक के कर्मचारीगण, श्रीमती सरोज परासर, श्री मदन मोहन गौतम एवं श्री अरविन्द कुमार के विरूद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया जा चुका है। फौजदारी वाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, मथुरा के न्यायालय में लम्बित है।
उल्लेखनीय है कि परिवादी संख्या-1, श्री अरूण कुमार अग्रवाल ने प्रस्तुत अपील के सन्दर्भ में आपत्ति प्रस्तुत करते हुए अपना शपथपत्र प्रस्तुत किया है। इस शपथपत्र के संलग्नक-2 के रूप में प्रश्नगत बचत खाते के सन्दर्भ में कथित रूप से परिवादीगण द्वारा अपीलकर्तागण बैंक को प्रेषित पत्र दिनांकित 31.12.2002 की फोटोप्रति दाखिल की गयी है। स्वंय अपीलकर्तागण यह स्वीकार करते हैं कि उक्त फौजदारी वाद के सन्दर्भ में इस पत्र पर जारीकर्ता के हस्ताक्षर की जांच करायी गयी, इस जांच में इस पत्र पर परिवादीगण के हस्ताक्षर नहीं पाए गए, बल्कि परिवादीगण के हस्ताक्षर ट्रेस किए हुए पाए गए। परिवादी संख्या-1 ने शपथपत्र के साथ संलग्नक- 3/1 लगायत 3/4 के रूप दिनांकित 01.01.2003 से दिनांक 16.01.2003 के मध्य, जारी की गयी चेक बुक के चेकों का उपयोग करते हुए कुल 11 लाख रूपये के भुगतान से संबंधित चेकों की फोटोप्रति दाखिल की गयी। संलग्नक-1 के रूप में अपीलकर्तागण, बैंक द्वारा कथित रूप से परिवादीगण द्वारा प्रेषित अधिकार पत्र दिनांकित 31.12.2002 के आधार पर श्री अशोक कुमार को चेक बुक जारी किये जाने के सन्दर्भ में प्रेषित पत्र की फोटोप्रति दाखिल की गयी। यह पत्र पंजीकृत डाक से दिनांक 23.01.2003 को परिवादीगण को भेजा गया। उल्लेखनीय है कि नई चेकबुक दिनांकित 31.12.2002 को जारी की गयी तथा नई चेकबुक के आधार पर दिनांक 01.01.2003 से दिनांक 16.01.2003 के मध्य लगभग 11 लाख रूपये का भुगतान अपीलकर्तागण बैंक द्वारा किया गया, किन्तु परिवादीगण को इसकी सूचना उपरोक्त भुगतान किये जाने के बाद दिनांक 23.01.2003 को भेजी गयी। यह सूचना दिनांक 31.12.2002 को ही क्यों नहीं भेजी गयी, इस सन्दर्भ में अपीलकर्तागण बैंक द्वारा कोई स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया गया। प्रत्यर्थीगण के कथनानुसार परिवादीगण को यह पत्र दिनांकित 25.01.2003 को प्राप्त हुआ पत्र प्राप्त होते ही उसी दिन परिवादीगण ने अपीलकर्तागण बैंक के संबंधित शाखा प्रबन्धक से सम्पर्क किया तथा उन्हें सूचित किया कि उनके द्वारा ऐसा कोई अधिकार पत्र जारी नहीं किया गया है। परिवादीगण को जारी की गयी मूल चेकबुक उनके पास मौजूद है। परिवादीगण द्वारा ही कथित घटना के सन्दर्भ में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी गयी। पुलिस द्वारा विवेचना के उपरान्त अपीलकर्तागण बैंक के कर्मचारीगण द्वारा प्रथम दृष्टया धोखा-धड़ी किया जाना बताते हुए आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया गया।
उल्लेखनीय है कि परिवादीगण द्वारा अपीलकर्तागण बैंक के संबंधित शाखा प्रबन्धक को इस संबंध में सूचना प्रेषित किये जाने के बावजूद कि परिवादीगण द्वारा नई चेक बुक जारी किये जाने हेतु कोई पत्र दिनांकित 31.12.2002 अपीलकर्तागण बैंक को प्रेषित नहीं किया गया और कोई धनराशि उनके द्वारा आहरित नहीं की गयी, बैंक के अधिकारियों द्वारा कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रस्तुत प्रकरण के सन्दर्भ में दर्ज नहीं करायी गयी। बैंक का अपना भी सतर्कता विभाग होता है। अपीलकर्तागण बैंक का यह कथन नहीं है कि कथित घटना के सन्दर्भ में जांच हेतु प्रकरण बैंक के सतर्कता विभाग को सन्दर्भित किया गया। यह भी उल्लेखनीय है कि स्वंय परिवादीगण द्वारा लिखायी गयी प्रथम सूचना रिपोर्ट की विवेचना के उपरान्त पुलिस द्वारा परिवादीगण को कथित घटना में किसी प्रकार संलिप्त होना नहीं पाया गया, बल्कि बैंक के कर्मचारियों को ही कथित घटना में संलिप्त होना बताते हुए उनके विरूद्ध ही आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। ऐसी परिस्थिति में अपीलकर्तागण बैंक द्वारा कोई अन्यथा साक्ष्य प्रस्तुत न किये जाने के बावजूद मात्र इस आधार पर कि परिवादीगण के खाते से धनराशि अवैध रूप से आहरित की गयी। कथित घटना में परिवादीगण की संलिप्तता नहीं मानी जा सकती।
जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत की गयी साक्ष्य से यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित था कि परिवादीगण के बचत खाते से अवैध रूप से 11 लाख रूपये निकाले गये तथा इस कृत्य में अपीलकर्तागण बैंक के कर्मचारियों की संलिप्तता रही। अत: जिला मंच का यह निष्कर्ष कि अपीलकर्तागण बैंक द्वारा सेवा में त्रुटि किया जाना प्रमाणित है, हमारे विचार से त्रुटिपूर्ण नहीं है।
प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि जिला मंच द्वारा पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का उचित परिशीलन करते हुए तथा मामलें के तथ्यों एवं परिस्थितियों का उचित आंकलन करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया गया है, किन्तु जिला मंच ने अवैध रूप से आहरित 11 लाख रूपये पर 09 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज के भुगतान के साथ ही 25,000/- रूपये क्षतिपूर्ति के रूप में भुगतान हेतु आदेशित किया है। ब्याज सहित आहरित धनराशि की अदायगी हेतु निर्देशित किए जाने के बाद 25,000/- रूपये क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाया जाना न्यायोचित नहीं होगा। अत: 25,000/- रूपये क्षतिपूर्ति के रूप में अदायगी हेतु पारित आदेश अपास्त किए जाने योग्य है। अपील तदनुसार आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला मंच द्वारा मानसिक कष्ट के रूप में 25,000/- दिलाये जाने हेतु पारित आदेश अपास्त किया जाता है। शेष आदेश की पुष्टि की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय एवं आदेश की सत्यप्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्द्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2