Uttar Pradesh

StateCommission

R/2013/110

Avadh Building Construction - Complainant(s)

Versus

Anuradha Saluja - Opp.Party(s)

Rajesh Chaddha

21 Sep 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Revision Petition No. R/2013/110
( Date of Filing : 26 Jul 2013 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Avadh Building Construction
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Anuradha Saluja
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 21 Sep 2022
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

                                                      (सुरक्षित)

पुनरीक्षण सं0 :- 110/2013

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, (द्वितीय) लखनऊ द्वारा विविध वाद सं0- 10/2012 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20/03/2013 के विरूद्ध)

Avadh Building Construction Company 3, China Bazar, Near Tulsi Cinema, Lucknow; and at 6/29 East Patel Nagar, New Delhi, Through Shri Anil Rajpal

 

  1.                                                                                     Revisionist     

Versus

 

Anuradha Saluja, D/O Shri Harish Saluja, N-136, Panchseel Park, New Delhi.

  •                                                                               Respondent   

समक्ष                                             

मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य

मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य

उपस्थिति:

पुनरीक्षणकर्ता की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:-  श्री राजेश चड्ढा

प्रत्‍यर्थी की ओर विद्वान अधिवक्‍ता:-          कोई नहीं ।

दिनांक:-02.11.2022

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

  •  
  1.            प्रस्‍तुत पुनरीक्षण याचिका जिला उपभोक्‍ता आयोग, (द्वितीय) लखनऊ द्वारा पारित विविध वाद सं0 10/2012 में पारित आदेश दिनांकित 20.03.2013 के विरूद्ध अंतर्गत धारा 17(बी) के तहत यह पुनरीक्षण आवेदन प्रस्‍तुत किया गया है, जिला उपभोक्‍ता मंच ने धारा 340 सीआरपीसी प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा असत्‍य शपथ पत्र देने के कारण परिवादी के विरूद्ध धारा 340 सीआरपीसी के अंतर्गत कार्यवाही करने के लिए आवेदन दिया गया है, जो जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा इस आधार पर खारिज कर दिया गया है कि कार्यवाही करने का कोई आधार नहीं बनता। तदनुसार आवेदन खारिज कर दिया गया।
  2.           इस निर्णय/आदेश को इस आधार पर चुनौती दी गयी है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा असत्‍य शपथ पत्र प्रस्‍तुत किया गया। उसके द्वारा दिया गया परिवाद संधारणीय नहीं था, इसलिए जिला उपभोक्‍ता मंच ने       असत्‍य शपथ पत्र के आधार पर कार्यवाही न करते हुए कानूनी भूल पारित की है, जबकि धारा 340 सीआरपीसी का आवेदन स्‍वीकार किया जाना चाहिए   था। प्रत्‍यर्थी/परिवादी का यह कथन प्रस्‍तुत केस में यह तर्क रहा है कि रिट याचिका सं0 4808/2001 में पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी द्वारा एक शपथ पत्र दाखिल किया गया था, जिसमें उल्‍लेख किया गया था कि फ्लैट निर्मित हो चुका है, इसलिए इसी जानकारी के आधार पर उसने वर्ष 1983 में ही फ्लैट निर्मित होने का कथन किया था, इसलिए प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा शपथ पत्र में जो उल्‍लेख किया गया, वह स्‍वयं पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी द्वारा          उपरोक्‍त वर्णित रिट याचिका में दिये गये शपथ पत्र के आधार पर किया गया, इसलिए धारा 340 सीआरपीसी के अंतर्गत कार्यवाही न करने का निर्णय विधिसम्‍मत है। यह पुनरीक्षण खारिज होने योग्‍य है, फिर यह भी कि धारा 340 के अंतर्गत प्रस्‍तुत किये गये किसी आवेदन को स्‍वीकार करने या रद्द करने के आदेश के विरूद्ध धारा 341 सीआरपीसी के अंतर्गत अपील प्रस्‍तुत की जाती है न कि रिवीजन। अत: इस आधार पर भी पुनरीक्षण आवेदन खारिज किये जाने योग्‍य है।
    •  

पुनरीक्षण आवेदन खारिज किया जाता है।

आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

 

(विकास सक्‍सेना)(सुशील कुमार)सदस्‍य सदस्‍य

 

 

  • , आशु0 कोर्ट 3  

 

                   

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

                                   (सुरक्षित)

अपील सं0 :- 985/2013

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, (द्वितीय) लखनऊ द्वारा परिवाद सं0- 31/2002 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 30/03/2013 के विरूद्ध)

 

Avadh Building Construction Company 3, China Bazar, Near Tulsi Cinema, Lucknow; and at 6/29 East Patel Nagar, New Delhi, Through Shri Anil Rajpal

 

  1.                                                                         Appellant    

Versus

 

Anuradha Saluja, D/O Shri Harish Saluja, N-136, Panchseel   Park, New Delhi.                               

            ……………Respondent   

                                                                                        

     समक्ष

  1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य   
  2. मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य

उपस्थिति:

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:-  श्री राजेश चड्ढा

प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:-    कोई नहीं

दिनांक:-02.11.2022  

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

  1.           विद्धान जिला उपभोक्‍ता (द्वितीय), लखनऊ द्वारा परिवाद सं0 31/2002, अनुराधा सलूजा बनाम अवध बिल्डिंग कान्‍स्‍ट्रक्‍शन कंपनी द्वारा पारित निर्णय व आदेश दिनांकित 30.03.2013 के विरूद्ध यह अपील प्रस्‍तुत की गयी है। जिला उपभोक्‍ता मंच द्वितीय लखनऊ द्वारा परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया है कि परिवादी को आवंटित फ्लैट बकाया धनराशि प्राप्‍त कर विक्रय पत्र निष्‍पादित कराया। मानसिक प्रताड़ना के मद में 50,000/- रूपये एवं वाद व्‍यय हेतु 5,000/- अदा करने का आदेश दिया है।
  2.           परिवाद के तथ्‍यों के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने     अपने पिता द्वारा अवध बिल्डिंग कन्‍स्‍ट्रकशन कम्‍पनी द्वारा निर्माण कराये जाने वाले बहुमंजली व्‍यवसायिक काम्‍पलेक्‍स के द्वितीय तल पर फ्लैट सं0 8 को क्रय किये जाने हेतु विक्रय करारनामा दिनांक 07.03.1981 को कराया था, जो 02 वर्षों में बनाकर दिया जाना था, परंतु एलडीए की आपत्ति के कारण निर्माण कार्य समय से पूरा नहीं हो सका। वर्ष 2001 में निर्माण कार्य पूर्ण कर लिया गया, परंतु विपक्षी द्वारा कम्‍पनी खत्‍म हो गयी, यह कह दिया गया। जबकि फ्लैट पूरी तरह से तैयार है स्‍वयं कम्‍पनी के पार्टनर अनिल कुमार राजपाल द्वारा रिट याचिका संख्‍या 4808/2001 मय शपथ पत्र देकर वर्ष 1983 में निर्माण कार्य पूरा करने का उल्‍लेख किया है, इसलिए आवंटित भवन का कब्‍जा प्रापत करने के लिए मानसिक प्रताड़ना के मद में 50,000/- तथा आर्थिक नुकसान के मद में 25,000/- रूपये हेतु परिवाद प्रस्‍तुत किया गया था। अपीलार्थी/विपक्षी का कथन है कि उसकी कम्‍पनी 02.09.1982 को बन्‍द हो चुकी है तथा 29.05.1984 को भंग का आदेश पारित हो चुका है। रिट याचिका में प्रश्‍नगत विवाद नहीं था, अपितु एक अन्‍य विवाद था। परिवाद 08 वर्षों के      पश्‍चात प्रस्‍तुत किया गया है, जो कालबाधित है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने धनराशि वापस लेने के लिए एक पत्र लिखा था, किन्‍तु धन प्राप्‍त नहीं किया और झूठा परिवाद प्रस्‍तुत कर दिया गया।
  3.           दोनों पक्षकारों के साक्ष्‍य पर विचार करने के पश्‍चात जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा यह निष्‍कर्ष दिया कि चूंकि प्रत्‍यर्थी/परिवादी को कभी भी कब्‍जा सुपुर्द करने का पत्र नहीं सौंपा गया, इसलिए उपभोक्‍ता परिवाद समय से बाधित नहीं है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी को हमेशा वाद कारण उत्‍पन्‍न रहा है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा बुकिंग धनराशि जमा की गयी है, इसलिए परिवादी 886 वर्गफुट का वाणिज्यिक फ्लैट प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत है। यह भी निष्‍कर्ष दिया गया है कि विपक्षी केवल यह कहकर नहीं बच सकता कि कम्‍पनी बन्‍द हो चुकी है और बुक फ्लैट का निर्माण नहीं हो सकता।
  4.           इस निर्णय एवं आदेश को अस आधारों पर चुनौती दी गयी है कि अत्‍यधिक देरी से उपभोक्‍ता परिवाद प्रस्‍तुत किया गया है। परिवादी के अधिवक्‍ता द्वारा दिनांक 12.12.1997 को दिये गये नोटिस के जवाब दिनांक 24.01.1998 में सूचित कर दिया गया था कि भवन निर्माण संभव नहीं है इसलिए इस योजना को छोड़ दिया गया और वर्ष 1982 में भंग हो चुकी है। इस पत्र को प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा प्राप्‍त नहीं किया गया इसलिए अपीलार्थी की कोई देनदारी नहीं बनती। यद्यपि जमा राशि वापस प्राप्‍त करने के लिए पत्र देखा गया। जिला उपभोक्‍ता मंच ने इस सब तथ्‍यों पर कोई विचार नहीं किया और एक निर्णय पारित किया है, जो अपास्‍त होने योग्‍य है।
  5.           केवल अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्‍ता को सुना। प्रत्‍यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। अपीलार्थी के विद्धान     अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि चूंकि निर्माण कार्य किया जाना संभव नहीं था, इसलिए इस योजना को छोड़ दिया गया और प्रत्‍यर्थी/परिवादी को लिखा गया कि वे अपने द्वारा जमा राशि वापस प्राप्‍त कर सकते हैं, परंतु राशि वापस प्राप्‍त करने के बजाय     उपभोक्‍ता परिवाद प्रस्‍तुत कर दिया गया, जो संधारणीय नहीं है। प्रस्‍तुत केस में अपीलार्थी द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादी को दिये गये नोटिस में स्‍पष्‍ट उल्‍लेख है कि नक्‍शा पास न होने के कारण भवन का निर्माण नहीं हो सका, इसलिए प्रत्‍यर्थी/परिवादी को आवंटित यूनिट का कब्‍जा दिया जाना संभव नहीं है, परंतु इस पत्र के साथ      नक्‍शा निरस्‍त करने के प्राधिकरण के पत्र की कोई प्रति संलग्‍न नहीं की गयी, इसलिए प्रत्‍यर्थी/परिवादी कभी भी सुनिश्चित नहीं हो सका कि उसे आवंटित भवन प्राप्‍त नहीं होगा। नियमित रूप से आवंटित यूनिट को प्राप्‍त करने के लिए प्रयासरत रहा इसलिए जिला    उपभोक्‍ता मंच का यह निष्‍कर्ष विधिसम्‍मत है कि परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद के लिए वाद कारण निरंतर रूप से बना रहा और यह परिवाद समया‍वधि से बाधित नहीं है।
  6.           अपीलार्थी के तर्कों को सुनने एवं पत्रावली के अवलोकन से तथ्‍य साबित है कि जिस व्‍यवसायिक काम्‍प्‍लेक्‍स में प्रत्‍यर्थी/ परिवादी का फ्लैट आवंटित किया गया था, उस काम्‍प्‍लेक्‍स का    नक्‍शा प्राधिकरण द्वारा प्राप्‍त नहीं किया जा सका और विवादों के कारण यह योजना ठप्‍प हो गयी, इसलिए जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा पारित यह निर्णय लागू किया जाना संभव नहीं है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी को आवंटित भवन का कब्‍जा प्राप्‍त कराया जाये। इस केस की स्थिति के अनुसार केवल प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा जमा राशि ब्‍याज सहित तथा अन्‍य खर्चों के साथ जिनका उल्‍लेख जिला उपभोक्‍ता मंच ने अपने निर्णय में किया है, आदेश पारित किया जा सकता है। अत: अपील तदनुसार आंशिक रूप से स्‍वीकार होने योग्‍य है।

आदेश

                    अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है। जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा द्वारा पारित निर्णय व आदेश इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि अपीलार्थी/विपक्षी प्रत्‍यर्थी/परिवादी को उसके द्वारा जमा राशि जमा करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 09 प्रतिशत ब्‍याज के साथ वापस लौटाये। निर्णय का शेष भाग पुष्‍ट किया जाता है। 

                 अपील में उभय पक्ष अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

              आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

         

       (विकास सक्‍सेना)                     (सुशील कुमार)

           सदस्‍य                            सदस्‍य

 

 

संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-3

 

 

  

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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