(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2034/2011
इण्डसइण्ड बैंक लिमिटेड
बनाम
अनूप कुमार सोनी पुत्र श्री गिरधारी लाल सोनी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अदील अहमद।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक : 27.03.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-104/2001, अनूप कुमार सोनी बनाम अशोक लेलैण्ड फाइनेंस कंपनी लि0 में विद्वान जिला आयोग, लखीमपुर-खीरी द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20.04.2011 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री अदील अहमद को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/ओदश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री राजीव कुमार सक्सेना अनपुस्थित हैं।
2. परिवादी का यह कथन है कि उसके द्वारा अंकन 3,87,177/-रू0 जमा करने थे, परन्तु विपक्षी द्वारा अंकन 4,30,630/-रू0 वसूल कर लिये गये, इसी आधार पर विद्वान जिला आयोग ने अंकन 43,453/-रू0 9 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस लौटाने का आदेश पारित किया है।
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3. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि परिवादी को कुल 2 लाख रूपये का ऋण प्रदान किया गया था। फाइनेंस चार्ज के रूप में अंकन 47,800/-रू0 तथा अंकन 12,000/-रू0 बीमा की राशि इस प्रकार कुल 2,59,800/-रू0 होती है। यह राशि 24 माह में लौटायी जानी थी, इसलिए वास्तविक धनराशि प्राप्त की गयी है। परिवादी के पक्ष में अदेयता प्रमाण पत्र भी जारी किया जा चुका है, इसके बाद उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
4. परिवाद के तथ्यों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवादी ने अंकन 1,42,177/-रू0 वाहन विक्रेता के पास जमा किये थे तथा अपीलार्थी से अंकन 2 लाख रूपये का ऋण प्राप्त किया था। ऋण की अदायगी का कोई विवरण परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में प्रस्तुत नहीं किया है, इसलिए यह निष्कर्ष देना संभव नहीं है कि परिवादी द्वारा नियत तिथि को किस्तों की अदायगी की गयी है या नहीं, किस्तों की अदायगी में कोई देरी की गया है या नहीं, देरी के कारण कोई दाण्डिक ब्याज देय हो पाया है या नहीं। परिवादी ने केवल एक भ्रामक तथ्य अंकित किया है कि उसके द्वारा अंकन 3,87,177/-रू0 जमा करने थे, जबकि विपक्षी ने अंकन 4,30,630/-रू0 जमा करा लिये। यदि यथार्थ में परिवादी द्वारा वास्तविक देय धनराशि से अधिक धनराशि जमा की गयी है तब परिवाद पत्र में इसका विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया जाना चाहिए था। फाइनेंस कंपनी की ओर से जो लेखा विवरण प्रस्तुत किया गया है, वह पत्रावली पर अनेक्जर सं0-4 के रूप में मौजूद है, जिसमें अंकन 4,30,630/-रू0 जमा करने का विवरण मौजूद नहीं है, केवल 4,05,268/-रू0 जमा किया गया है,
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जबकि अपीलार्थी कंपनी को अंकन 4,04,338/-रू0 वसूल करने थे। इस प्रकार कुल 940/-रू0 अधिक वसूल किये गये हैं। इस 940/-रू0 का उल्लेख भी अपीलार्थी कंपनी द्वारा लेखा विवरण में अंकित किया गया है। इस विवरण के अलावा अन्य कोई विवरण इस पीठ के समक्ष मौजूद नहीं है तथा विद्वान जिला आयोग ने भी लेखा विवरण पर कोई विचार नहीं किया। परिवादी द्वारा जमा राशि का कोई विवरण प्रस्तुत नहीं किया गया और परिवाद पत्र में भी जमा राशि का विवरण प्रस्तुत नहीं किया गया, इसलिए विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश मात्र कल्पना पर आधारित है, जो इस प्रकार परिवर्तित होने योग्य है कि जैसा कि साक्ष्य से साबित है कि परिवादी द्वारा केवल 940/-रू0 अधिक जमा किये गये हैं। अत: परिवादी केवल 940/-रू0 की राशि 9 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
आदेश
5. प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20.4.2011 इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि परिवादी द्वारा अधिक जमा की गयी धनराशि अंकन 940/-रू0 (नौ सौ चालिस रूपये) 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ परिवादी को अदा की जाय। शेष निर्णय/आदेश यथावत रहेगा।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
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आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3