राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-३१६/२०१५
(जिला मंच, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-३३९/२०१२ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक १८-१२-२०१४ के विरूद्ध)
डॉ0 अम्बेडकर इन्स्टीट्यूट आफ टेक्नॉलॉजी फॉर हैण्डीकैप्ड यू0पी0 (AN Autonomous Institute Established by U.P. Government) अवधपुरी कानपुर द्वारा डायरेक्टर श्री गौरव चन्द्र पुत्र श्री एस0के0 गंगल, निवासी फ्लैट नं0-ई-१, साईं वाटिका अपार्टमेण्ट्स, ७/२०१-बी, स्वरूप नगर, कानपुर। .............अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
अनुज कुमार पुत्र श्री राजेन्द्र कुमार निवासी सी-१२०, द्वितीय तल, चन्दननगर, कानपुर नगर, यू.पी.। ............प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री सर्वेश कुमार शर्मा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 मिश्रा विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- ०१-०५-२०१९.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-३३९/२०१२ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक १८-१२-२०१४ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार परिवादी ने अपीलार्थी शिक्षण संस्थान में आई0टी0 पाठ्यक्रम के प्रथम वर्ष सत्र २०१०-२०११ हेतु दिनांक २३-०८-२०१० को प्रवेश लिया। इसके निमित्त परिवादी ने अपीलार्थी को ५१,१५०/- रू० का भुगतान किया। प्रवेश लेने के उपरान्त ही परिवादी को अपनी मॉं की गम्भीर बीमारी का पता चला और उसने शिक्षा सत्र प्रारम्भ होने के पूर्व ही अपीलार्थी संस्थान को सूचित कर दिया कि अपनी व्यक्तिगत पारिवारिक विवशता के कारण वह आगे शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकता। अत: परिवादी ने अपीलार्थी से अनुरोध किया कि परिवादी द्वारा जमा की गई ट्यूशन फीस, सिक्यारिटी मनी व कॉशन मनी के रूप में जमा किया गया ५१,१५०/- रू० अपीलार्थी परिवादी को वापस कर दे। अपीलार्थी ने कॉशनमनी व सिक्योरिटी मनी का २५००/- रू० परिवादी के स्थानीय संरक्षक श्री संजीव कुमार वर्मा को बैंक चेक के माध्यम से वापस कर दिया किन्तु शिक्षण शुल्क वापस नहीं किया। अपीलार्थी द्वारा बताया गया कि उनके यहॉं शिक्षण शुल्क वापस किये जाने का प्राविधान
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नहीं है।
अपीलार्थी को पंजीकृत डाक से नोटिस प्रेषित की गई किन्तु अपीलार्थी द्वारा प्रतिवाद जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया।
जिला मंच द्वारा प्रश्नगत निर्णय द्वारा परिवाद अपीलार्थी के विरूद्ध स्वीकार किया गया तथा अपीलार्थी को निर्देशित किया कि निर्णय की तिथि के ०२ माह के अन्दर अपीलार्थी प्रत्यर्थी/परिवादी को ४८,६५०/- रू० तथा उस पर ०६ प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज का भुगतान करे। ब्याज का आगणन परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि अर्थात् दिनांक ३१-०५-२०१२ से होगा। अपीलार्थी निर्णय के दो माह के भीतर परिवादी को वाद व्यय के रूप में २,०००/- रू० तथा मानसिक क्लेश की प्रतिपूर्ति हेतु भी २,०००/- रू० अदा करे।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री सर्वेश कुमार शर्मा एवं प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 मिश्रा के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
अपीलार्थी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत निर्णय जिला मंच ने क्षेत्राधिकार के अभाव में पारित किया है। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि मा0 राष्ट्रीय आयोग ने रीजन इन्स्टीट्यूट आफ को-ऑपरेटिव मैनेजमेण्ट बनाम नवीन कुमार चौधरी, III (2014) CPJ 120 (NC) के मामले में यह निर्णीत किया है कि अपीलार्थी शिक्षण संस्थान का प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता नहीं माना जा सकता। अपीलार्थी शिक्षण संस्थान द्वारा कोई सेवा प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रदान नहीं की गई। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि जिला मंच द्वारा इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया गया कि शासनादेश दिनांकित १०-०४-२००६ के अनुसार फीस वापस नहीं की जाकती, फिर भी अपीलार्थी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को कॉशनमनी २५००/- रू० वापस की गई। अपीलार्थी द्वारा द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई। जिला मंच द्वारा इस तथ्य की ओर भी ध्यान नहीं दिया गया कि संस्थान के कोर्स में प्रवेश लेने के उपरान्त प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने व्यक्तिगत कारणों से ही अपीलार्थी संस्थान को छोड़ा है। प्रत्यर्थी/परिवादी को इस तथ्य से अवगत करा दिया गया था कि शासनादेश दिनांकित १०-०४-२००६ के अनुसार अपीलार्थी को फीस वापस नहीं की जा सकती।
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प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से यह तर्कप्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने सत्र वर्ष २०१०-२०११ में अपीलार्थी शिक्षण संस्थान में आई0टी0 पाठ्यक्रम के अन्तर्गत प्रथम वर्ष २०१० में प्रवेश लिया तथा इस निमित्त अपीलार्थी ५१,१५०/- रू० का भुगतान किया था। प्रवेश लेने के बाद ही परिवादी को अपनी मॉं की गम्भीर बीमारी का पता चला तो परिवादी द्वारा शिक्षण सत्र प्रारम्भ होने के पूर्व ही अपीलार्थी को सूचित किया कि व्यक्तिगत पारिवारिक विवशता के कारण वह आगे अध्ययन नहीं कर सकता। परिवादी को उसके स्थानीय संरक्षक के माध्यम से मात्र कॉशनमनी का २५००/- वापस किया गया किन्तु शेष जमा धनराशि परिवादी को वापस नहीं की गई। अपीलार्थी की ओर से जिला मंच के समक्ष अधिवक्ता उपस्थित हुए तथा उनके द्वारा लिखित कथन दाखिल करने हेतु कई बार समय लिया गया किन्तु लिखित कथन दाखिल नहीं किया गया। अन्तत: जिला मंच द्वारा प्रश्नगत निर्णय पारित किया गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा उपरोक्त सन्दर्भित मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा रीजन इन्स्टीट्यूट आफ को-ऑपरेटिव मैनेजमेण्ट बनाम नवीन कुमार चौधरी, III (2014) CPJ 120 (NC) के मामले में दिये गये निर्णय का हमने अवलोकन किया। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा उपरोक्त सन्दर्भित निर्णय में मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा बिहार स्कूल एक्जामिनेशन बोर्ड बनाम सुरेश प्रसाद सिन्हा, IV (2009) CPJ 34 (SC) में पारित निर्णय दिनांक ०४-०९-२००९ तथा महर्षि दयानन्द यूनिवर्सिटी बनाम सुरजीत कौर, III (2010) CPJ 19 (SC) के मामले में दिए गये निर्णयों को सन्दर्भित किया गया है किन्तु इन निर्णयों से सम्बन्धित मामलों के तथ्य एवं परिस्थितियॉं प्रश्नगत परिवाद के तथ्यों एवं परिस्थितियों से भिन्न हैं। इन मामलों में विचारणीय बिन्दु भिन्न थे। बिहार स्कूल बोर्ड के मामले में मा0 उच्चतम न्यायालय के समक्ष विचारणीय बिन्दु यह था कि स्कूल एक्जामिनेशन बोर्ड उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत आता है अथवा नहीं। माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया कि बिहार स्कूल एक्जामिनेशन बोर्ड द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षा, उत्तर पुस्तिका का मूल्यांकन, अंक पत्रों का प्रदान किया जाना उसके संविधीय कृत्य हैं। इन संविधीय कृत्यों को सम्पादित करने के लिए बोर्ड को सेवा प्रदाता नहीं माना जा सकता और न ही परीक्षार्थी को उपभोक्ता माना जा सकता। इसी प्रकार महर्षि दयानन्द यूनिवर्सिटी के मामले में मा0 उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णीत किया कि यूनिवर्सिटी द्वारा बी.एड. डिग्री प्रदान किये जाने का विवाद
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उपभोक्ता मंच में पोषणीय नहीं है, क्योंकि कोई भी न्यायालय विधिक प्रावधानों के विरूद्ध निर्देश पारित नहीं कर सकता। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सन्दर्भित मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा एवं मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये निर्णयों में यह निर्णीत नहीं किया गया है कि शिक्षण संस्थान द्वारा सेवा में त्रुटि किए जाने की स्थिति में उपभोक्ता मंच द्वारा अनुतोष प्रदान नहीं किया जा सकता।
बुद्धिष्ट मिसन डेण्टल कालेज बनाम भूपेश (२००९) ४ एससीसी ४७३ के मामले में मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया कि फीस प्राप्त करके शिक्षण संस्थान द्वारा शिक्षा प्रदान किया जाना सेवा की श्रेणी में माना जायेगा। ऐसी परिस्थिति में शिक्षण संस्थान को सेवा प्रदाता तथा विद्यार्थी को उपभोक्ता माना गया। मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया कि यदि सेवा प्रदान नहीं की गई तब फीस के भुगतान का कोई प्रश्न नहीं है।
कण्ट्रोलर विनायक मिशन डेण्टल कालेज बनाम दीपिका खरे, सिविल अपील सं0-५२१३-५२१४/२०१० निर्णीत दिनांकित ०९-०७-२०१० में भी मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा विद्यार्थी को क्षतिपूर्ति कराई गई।
जहॉं तक प्रस्तुत प्रकरण का प्रश्न है, प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद के अभिकथनों में यह अभिकथित किया है कि अपीलार्थी शिक्षण संस्थान में प्रवेश लेने के बाद ही अपनी मॉं की गम्भीर बीमारी के कारण सत्र शुरू होने के पूर्व ही परिवादी ने संस्थान को सूचित किया कि वह अपने व्यक्तिगत कारणें से शिक्षण संस्थान में शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकता तथा जमा की गई फीस की वापसी की मांग की किन्तु शिक्षण संस्थान द्वारा ध्यान नहीं दिया गया। जिला मंच के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा कोई प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया। अपील के आधारों में भी अपीलार्थी ने परिवाद के इस अभिकथन से इन्कार नहीं किया गया है बल्कि अपीलार्थी द्वारा अपील के आधारों में यह अभिकथित किया गया है कि परिवादी ने स्वेच्छा से संस्थान में प्रवेश के उपरान्त अपने व्यक्तिगत कारणों से संस्थान को छोड़ दिया। शासनादेश दिनांकित १०-०४-२००६ के अनुसार परिवादी को फीस वापस नहीं की जा सकती।
अपील मेमो के साथ अपीलार्थी ने शासनादेश दिनांकित १०-०४-२००६ की फोटोप्रति दाखिल की है जिसके अवलोकन से यह विदित होता है कि इस शासनादेश के अनुसार छात्र द्वारा प्रवेश सम्बन्धी औपचारिकताओं को पूरी करने के बाद/सत्र के बीच में अध्ययन छोड़ देने पर शिक्षण
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शुल्क को वापस न किया जाए। उल्ल्ेखनीय है कि इस शासनादेश में यह तथ्य भी उल्लिखित है कि फीस वापसी के उक्त प्राविधानों को प्रवेश के समय ही छोत्रों को लिखित रूप से सूचित करने के उपरान्त प्रवेश फार्म पर ही उनकी सहमति विश्वविद्यालय द्वारा प्राप्त कर लिया जाना चाहिए। परिवाद के अभिकथनों में परिवादी द्वारा यह अभिकथित किया गया है कि अपीलार्थी संस्थान द्वारा पहले यह सूचित नहीं किया गया था कि प्रवेश निरस्त करने पर शिक्षण शुल्क वापस नहीं किया जायेगा। विपक्षी द्वारा कोई प्रतिवाद जिला मंच के समक्ष नोटिस के बाबजूद तथा विपक्षी की ओर से अधिवक्ता नियुक्त होने के बाबजूद प्रस्तुत नहीं किया गया। अपील के आधारों में भी यह अभिकथित नहीं किया गया है कि शासनादेश दिनांकित १०-०४-२००६ के विषय में परिवादी को लिखित रूप से अथवा अन्य किसी माध्यम से सूचित किया गया और न ही विद्यालय द्वारा ऐसी किसी शर्त से प्रवेश लेते समय परिवादी को सूचित किए जाने की कोई साक्ष्य अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत की गई। ऐसी परिस्थिति में शासनादेश दिनांकित १०-०४-२००६ के अनुसार परिवादी को शासनादेश की कोई सूचना परिवादी के संस्थान में प्रवेश के समय प्राप्त न कराए जाने, तद्नुसार शासनादेश में उल्लिखित शर्तों का स्वयं अपीलार्थी संस्थान द्वारा अनुपालन न किए जाने के कारण इस शासनादेश के आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी द्वा जमा फीस उसे वापस न किया जाना सेवा में त्रुटि माना जायेगा।
ऐसी परिस्िथति में हमारे विचार से परिवादी को उसके द्वारा जमा की गई ४८,६६५/- रू० फीस की वापसी से सम्बन्धित जिला मंच द्वारा पारित आदेश त्रुटिपूर्ण नहीं है। अपील में बल नहीं है। अपील तद्नुसार निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। जिला मंच, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-३३९/२०१२ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक १८-१२-२०१४ की पुष्टि की जाती है।
इस अपील का व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्द्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-२.