राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-116/2015
(सुरक्षित)
1. GANESH BABU YADAV, aged about 47 years, son
of Sri Puran Singh Yadav, resident of B-1, Dalmia
Chini Mills, Jawaharpur, Ramkot, Sitapur.
2. SMT. PRITI YADAV, aged about 45 years, wife of
Mr. Ganesh Babu Yadav resident of B-1, Dalmia
Chini Mills, Jawaharpur, Ramkot, Sitapur.
....................परिवादीगण
बनाम
1. ANSAL PROPERTIES AND INFRASTRUCTURE
LIMITED, registered office situated at 115 Ansal
Bhawan, 16 Kasturba Marg, New Delhi 110001,
through its Director.
2. ANSAL PROPERTIES AND INFRASTRUCTURE
LIMITED Regional Office situated at YMCA
Campus 13 Rana Pratap Marg, Lucknow-226001,
through its Director/Managing Director.
...................विपक्षीगण
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
परिवादीगण की ओर से उपस्थित : श्री सर्वेश कुमार शर्मा ,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : श्री अनुराग सिंह के सहयोगी
श्री मोहित मिश्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 19-07-2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
वर्तमान परिवाद धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत परिवादीगण गणेश बाबू यादव एवं श्रीमती प्रीति यादव ने विपक्षीगण अंसल प्रापर्टीज एण्ड इन्फ्रास्ट्रक्चर लि0
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रजिस्टर्ड आफिस नई दिल्ली एवं अंसल प्रापर्टीज एण्ड इन्फ्रास्ट्रक्चर लि0 रीजनल आफिस लखनऊ के विरूद्ध आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और निम्न उपशम चाही है:-
- To direct the opposite parties to provide the physical possession of the fully finished allotted Flat No. C/2/0224 or to provide an alternative Flat in the similar scheme or in any other scheme on the choice of the complainant alternatively to make good the complainant with appropriate value of property to be purchased in District Lucknow to which he is entitle.
- Direct the opposite parties to pay interest at the rate of 24% on the amount deposited by the complainants with effect from the dates of respective doposits till the date of physical possession.
- Direct the opposite parties to pay a sum of Rs.5,00,000/- (Rupees Five lacs only) as damages for committing deficiency in service and for the harassment and mental agony caused to the complainants.
- Direct the opposite parties to pay a sum of Rs.5,00,000/- (Rupees Five lacs only) as compensation to the complainants on account of Unfair Trade Practice.
- Direct the opposite parties to pay interest at the rate of 24% on the aforementioned amount of damages and compensation.
- Award appropriate Punitive Damages to the complainants on account of mental agony and suffering.
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- Direct the opposite parties to pay the complainants the loss of the rent.
- Direct the opposite parties not to adopt such kind of Unfair Trade Practice in near future.
- Allow the complaint and direct the opposite parties to pay a sum of Rs.1,00,000/- (Rupees One Lakh Only) towards cost of the case.
- Any other order which this Hon’ble State Commission may deem fit and proper in the circumstances of the case may also be passed.
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि विपक्षीगण ने सुलतानपुर रोड, लखनऊ पर सुशांत गोल्फ सिटी नाम से योजना प्रारम्भ की और यह आश्वासन दिया कि निर्माण से सम्बन्धित सभी आवश्यक अनुमति विभिन्न विभागों से प्राप्त कर ली गयी है और निर्माण कार्य प्रगति पर है। आवंटी को बहुत ही जल्द वर्ष 2010 में कब्जा दे दिया जाएगा। अत: विपक्षीगण के कथन पर विश्वास करते हुए परिवादीगण ने बुकिंग कराया है और विपक्षीगण ने आवंटन पत्र दिनांक 24.06.2008 के द्वारा भवन नं0 सी/2/0224 परिवादीगण को आवंटित किया है, जिसका कुल मूल्य 30,61,361/-रू0 है, जिसमें एच0डी0एफ0सी0 बैंक से 24,57,000/-रू0 की आर्थिक सहायता प्राप्त कर विपक्षीगण के यहॉं परिवादीगण ने जमा किया है और बायर एग्रीमेंट, जो यद्यपि एकपक्षीय रूप से बायर द्वारा तैयार किया गया था और उस पर परिवादीगण का भी हस्ताक्षर प्राप्त किया गया था, में यह स्पष्ट रूप से प्राविधान है कि कब्जा बिल्डिंग का प्लान स्वीकृत होने के 36 महीने के अन्दर
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दिया जाएगा, जो विपक्षीगण के अनुसार पहले ही प्राप्त किया जा चुका था।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि उनके और विपक्षीगण एवं एच0डी0एफ0सी0 बैंक के बीच त्रिपक्षीय करार दिनांक 25.06.2008 को निष्पादित किया गया, जिसमें बैंक ने परिवादीगण को 24,57,000/-रू0 की ऋण सुविधा प्रदान की, जिस पर फ्लोटिंग रेट आफ इण्ट्रेस्ट देय है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण जब निर्माण स्थल पर गए तो पाया कि वहॉं निर्माण सम्बन्धी गतिविधियॉं रूकी हुई हैं। वहॉं उपस्थित विपक्षीगण के प्रतिनिधि ने बताया कि वर्ष 2012 में कब्जा दिया जाएगा। उसके बाद पुन: परिवादीगण निर्माण स्थल पर गए तो कब्जा वर्ष 2013 तक के लिए स्थगित कर दिया गया। इस प्रकार परिवाद पत्र के अनुसार विपक्षीगण ने सेवा में त्रुटि की है, जिससे परिवादीगण को अपने परिवार के साथ किराए के मकान में रहना पड़ा है, जिसके लिए उन्हें प्रति माह 15,000/-रू0 किराया देना पड़ा है और इसके साथ ही परिवादीगण को बैंक से लिए गए ऋण पर ब्याज भी देना पड़ रहा है। परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण बार-बार मौखिक रूप से व पत्र के माध्यम से कब्जा हस्तांतरण हेतु विपक्षीगण से अनुरोध करते रहे हैं, परन्तु उन्हें कब्जा नहीं मिला है। इस बीच दिनांक 27.05.2014 को विपक्षीगण द्वारा एक अन्य आवंटी को सूचित किया गया कि भूमि Soil Testing और Piling प्रगति पर है। फिर भी कुछ टावर्स में निर्माण कार्य शुरू किया जा चुका है। उसके बाद पुन:
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दिनांक 25.08.2014 को विपक्षीगण ने एक अन्य आवंटी को सूचित किया कि परियोजना के पूर्ण होने में विलम्ब इस कारण हो रहा है कि स्वीकृति हेतु प्रस्तुत नक्शे पर सक्षम अधिकारी की स्वीकृति प्राप्त नहीं हुई है स्वीकृति जल्द ही प्राप्त कर ली जाएगी, जिससे परिवादीगण को यह पता चला कि परिवादीगण को आवंटित भवन का नक्शा सक्षम अधिकारी से स्वीकृत नहीं है। इस प्रकार विपक्षीगण ने सक्षम अधिकारी द्वारा निर्माण स्वीकृति की गलत सूचना दिया है, जो सेवा में त्रुटि है और अनुचित व्यापार पद्धति है। अत: परिवादीगण ने परिवाद आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है।
विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर कहा गया है कि परिवादीगण धारा-2 (डी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता नहीं हैं क्योंकि उन्होंने रियल स्टेट बिजनेस में लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से धन लगाया है।
विपक्षीगण ने अपने लिखित कथन में यह भी कहा है कि परिवादीगण ने वास्तविकता को छिपाया है और सही कथन आयोग के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया है।
लिखित कथन में विपक्षीगण ने यह भी कहा है कि विपक्षीगण की प्रश्नगत योजना को स्वीकृति सक्षम अधिकारी से प्राप्त थी। उन्होंने इस सन्दर्भ में कोई गलत कथन नहीं किया है। उन्होंने ग्राहकों को बुकिंग के लिए तब आमंत्रित किया है जब उनके प्रोजेक्ट का ले-आउट प्लान और रिवाइज्ड डी0पी0आर0 लखनऊ डेवलपमेंट अथॉरिटी से स्वीकार किया जा चुका था और आवास विकास परिषद से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त हो चुका था।
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लिखित कथन में विपक्षीगण ने कहा है कि निर्माण में विलम्ब भू-स्वामियों द्वारा माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष उ0प्र0 सरकार द्वारा की गयी भू-अर्जन की कार्यवाही को चुनौती देने के कारण हुआ है, जिसके लिए विपक्षीगण उत्तरदायी नहीं हैं।
उभय पक्ष ने अपने कथन के समर्थन में शपथ पत्र संलग्नकों सहित प्रस्तुत किया है।
परिवादीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री सर्वेश कुमार शर्मा और विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अनुराग सिंह के सहयोगी श्री मोहित मिश्रा उपस्थित आए हैं।
मैंने उभय पक्ष के तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है।
परिवादीगण परिवाद पत्र में कथित तथ्यों के आधार पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत उपभोक्ता हैं। विपक्षीगण ऐसा कोई साक्ष्य या आधार नहीं दिखा सके हैं, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि परिवादीगण ने व्यवसायिक लाभ हेतु धन लगाया है।
परिवादीगण ने प्रश्नगत भवन हेतु भुगतान बैंक से लोन लेकर किया है और सम्पूर्ण तथ्यों एवं साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त स्पष्ट यही होता है कि परिवादीगण ने प्रश्नगत भवन अपने आवास हेतु बुक किया है और वे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत उपभोक्ता हैं।
परिवाद पत्र का संलग्नक-1 एलाटमेंट लेटर है, जिसके अनुसार विपक्षीगण ने परिवादीगण को सुशांत गोल्फ सिटी
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योजना लखनऊ में मकान नं0 C/2/0224, Rosewood-Duplex, जिसका क्षेत्रफल 162sq.meters था और बिल्टअप एरिया 181 sq.meters था, आवंटित किया है और इस यूनिट का कुल मूल्य 30,61,361/-रू0 निर्धारित किया गया है। परिवादीगण और विपक्षीगण के बीच बायर एग्रीमेंट का निष्पादन 09 मई, 2008 को हुआ है। इस बायर एग्रीमेंट के अनुसार सम्पूर्ण मूल्य का 10 प्रतिशत धनराशि अर्थात् 340908.75/-रू0 एलाटमेंट के समय दिनांक 08.05.2008 को देय थी। शेष 85 प्रतिशत धनराशि 25,49,997.45/-रू0 45 दिन के अन्दर देय थी। निर्विवाद रूप से परिवादीगण और विपक्षीगण एवं एच0डी0एफ0सी0 बैंक के बीच त्रिपक्षीय करार दिनांक 25.06.2008 को निष्पादित किया गया है, जिसके अनुसार एच0डी0एफ0सी0 बैंक ने परिवादीगण को 24,57,000/-रू0 का ऋण स्वीकार किया है और इस ऋण की धनराशि का भुगतान विपक्षीगण को किया गया है। इस प्रकार परिवादीगण प्रश्नगत भवन के मूल्य का 95 प्रतिशत विपक्षीगण को जून 2008 में अदा कर चुके हैं। बायर एग्रीमेंट के प्रस्तर 20 में अंकित है कि, “The DEVELOPER shall endeavour to complete the construction within two years form the date of commencement of construction on receipt of sanctioned plans from the competent authority.”
बायर एग्रीमेंट के इस प्रस्तर 20 में यह भी उल्लेख है कि यदि ऐसे किसी कारण से जो बिल्डर के नियंत्रण से बाहर है
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विलम्ब होता है तो ऐसी स्थिति में डेवलपर को कब्जा हस्तांतरण हेतु युक्त संगत समय बढ़ाने का अधिकार होगा।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि परिवादीगण ने प्रश्नगत भवन हेतु कुल मूल्य की 95 प्रतिशत धनराशि जून 2008 में अदा कर दी है, परन्तु अब तक उसे प्रश्नगत भवन का कब्जा प्राप्त नहीं हुआ है और न ही विपक्षीगण ने इस प्रकार का कोई स्पष्ट आश्वासन दिया है कि वह निकट भविष्य में आवंटित भवन पर परिवादीगण को कब्जा हस्तांतरित कर देंगे। उभय पक्ष के अभिकथन से यह स्पष्ट है कि प्रश्नगत निर्माण सम्बन्धी स्वीकृति सक्षम अधिकारी से अभी अन्तिम रूप से प्राप्त नहीं हुई है। अत: परियोजना हेतु पूर्ण और अन्तिम स्वीकृति प्राप्त किए बिना बुकिंग प्रारम्भ किया जाना तथा आवंटी से आवंटित भवन के मूल्य का 95 प्रतिशत जमा कराया जाना और उसके बाद इतनी लम्बी अवधि तक आवंटी को भवन से वंचित रखना निश्चित रूप से अनुचित व्यापार पद्धति है और सेवा में त्रुटि है। परिवादीगण द्वारा वर्ष 2008 में जमा धनराशि विपक्षीगण के पास है और वे उससे लाभान्वित हो रहे हैं। इसके विपरीत परिवादीगण को ऋण की धनराशि पर बैंक को ब्याज देना पड़ा है और आवास हेतु किराए पर भवन लेना पड़ा है।
सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए मैं इस मत का हूँ कि परिवादीगण द्वारा जमा धनराशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से दो वर्ष पहले की तिथि दिनांक 18.06.2013 से कब्जा दिए जाने की तिथि तक उपरोक्त जमा धनराशि पर
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परिवादीगण को 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज दिलाया जाना तथा प्रश्नगत भवन के कब्जा हस्तांतरण हेतु समय अवधि निश्चित किया जाना उचित है और यदि इस अवधि में प्रश्नगत भवन का कब्जा हस्तांतरण सम्भव न हो तो परिवादीगण को प्रश्नगत भवन की श्रेणी व क्षेत्रफल एवं मूल्य का वैकल्पिक भवन उपलब्ध कराने हेतु विपक्षीगण को आदेशित किया जाना उचित है। उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद आंशिक रूप से उपरोक्त प्रकार से स्वीकार किए जाने योग्य है। परिवादीगण द्वारा याचित अन्य उपशम प्रदान करने हेतु उचित आधार नहीं है।
आदेश
परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे परिवादीगण को आवंटित भवन नं0 सी/2/0224 का निर्माण कार्य पूर्ण कर 06 माह के अन्दर उसका कब्जा परिवादीगण को दें और आवश्यक अभिलेख निष्पादित करें तथा दिनांक 18.06.2013 से कब्जा देने की तिथि तक परिवादीगण द्वारा जमा धनराशि पर उसे 09 (नौ) प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करें। यदि उपरोक्त अवधि में विपक्षीगण उपरोक्त भवन का कब्जा परिवादीगण को देने में असफल रहते हैं तो वे उसके स्थान पर 06 माह के अन्दर दूसरा वैकल्पिक भवन उसी श्रेणी व क्षेत्रफल एवं मूल्य का उन्हें उपलब्ध करावें और वैकल्पिक भवन उपलब्ध कराने तक उपरोक्त धनराशि पर उपरोक्त
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तिथि से 09 (नौ) प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करते रहें।
विपक्षीगण, परिवादीगण को 10,000/-रू0 वाद व्यय भी अदा करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1