राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
परिवाद संख्या:-434/2017
Stuti Chaudhary, D/o Sri P.C. Chaudhary, R/o 1/218, Viram Khand, Gomti Nagar, Lucknow.
........... Complainant
Versus
1- The Managing Director, Ansal Properties and Infrastructure, Limited, Ansal Bhawan 16, Kasturba Gandhi Marg, New Delhi.
2- The General Managing, Ansal Properties and Infrastructure, Limited, Local Office, First Floor Y.M.C.A. Campus 13 Rana Pratap Marg, Dainik Jagran Chauraha, Lucknow.
……..…. Opp. Parties
समक्ष :-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य
परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री अनुराग त्रिपाठी
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : श्री मानवेन्द्र प्रताप सिंह
दिनांक :-01-10-2020
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवादिनी स्तुति चौधरी ने यह परिवाद विपक्षीगण मैनेजिंग डायरेक्टर, अंसल प्रापर्टीज एण्ड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड अंसल भवन, नई दिल्ली और जनरल मैनेजर, अंसल प्रापर्टीज एण्ड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड लोकल ऑफिस, लखनऊ के विरूद्ध धारा-17 (1)(ए) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और निम्न अनुतोष चाहा है:-
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A- The opposite parties may be commanded to allot any alternative flat to the complainant as provisioned in the agreement on the rate which was mutually agreed.
B- Or in alternative to make payment of damages suffered as losses by the complainant amounting to the tune of Rs. 21,00,582/-(rupee twenty one lakhs five hundred and eighty two), interst amounting to the tune of Rs. 6,81,964/- (rupee six lakhs, eighty one thousand, nine hundred and sixty four), legal fees amounting to the tune of Rs.35,000/- (rupee thirty five thousand) and Rs. 5,00,000/- (rupee five lakhs) in lieu of mental and physical harassment suffered by the complainant.
C- The opposite parties may further be commanded to pay expenses and cost of litigation to the complainant.
D- Any other relief which this Hon’ble Commission deems fit in the nature and circumstances of the case may be provided to the complainant.
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि विपक्षीगण ने सुशांत जीवन एन्क्लेव के नाम से ग्रुप हाउसिंग स्कीम जनसाधारण के लिए बिक्री हेतु शुरू की, जिसमें आवंटन हेतु परिवादिनी ने आवेदन पत्र दिनांक 13.5.2011 को प्रस्तुत किया और उभय पक्ष के बीच दिनांक 26.5.2011 को करार पत्र निष्पादित किया गया, जिसके अनुसार फ्लैट नं0-A-1/303 जीवन एन्क्लेव सुशांत गोल्फ सिटी सुल्तानपुर रोड़, लखनऊ उसके नाम अंतरित किया गया। इस फ्लैट का क्षेत्रफल 1236 वर्ग फुट था और मूल्य 2050.00 रू0 प्रतिवर्ग फुट था। इसके
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अतिरिक्त 03 प्रतिशत पी0एल0सी0 चार्ज भी था। फ्लैट का कुल मूल्य 26,09,814.00 रू0 था।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि परिवादिनी को आवंटित किये गये फ्लैट के बदले उसके मूल्य की 30 प्रतिशत धनराशि उसने विपक्षीगण के यहॉ जमा की और करार पत्र के अनुसार विपक्षीगण को बिल्डिंग प्लॉन सैक्सन की तिथि से 36 महीने के अन्दर निर्माण पूरा कर कब्जा देना था।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि उसने कुल 8,04,838.00 रू0 विपक्षीगण के यहॉ जमा किया। परन्तु उन्होंने तय अवधि में उसे कब्जा नहीं दिया। तब उसने दिनांक 20.01.2016 को विपक्षीगण से अपनी शिकायत दर्ज करायी और अपनी जमा धनराशि 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ वापस चाही, परन्तु विपक्षीगण ने सुनवाई पहले नहीं की और बाद में उसकी जमा धनराशि 8,04,838.00 रू0 उसे वापस कर दिया। उन्होंने उसे जमा धनराशि पर कोई सूद व क्षतिपूर्ति नहीं दिया। उसने विपक्षीगण से ब्याज और क्षतिपूर्ति की मॉग की परन्तु उन्होंने पत्र दिनांक 15.11.2016 के द्वारा इंकार कर दिया। अत: विवश होकर उसने दिनांक 03.02.2017 को विपक्षीगण को कानूनी नोटिस भेजा, जिसका उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। तब क्षुब्ध होकर उसने परिवाद राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि वर्तमान में मूल्य बढकर 3700.00 रू0 प्रतिवर्ग फुट हो गया है। इस प्रकार
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परिवादिनी को आवंटित फ्लैट का मूल्य 45,73,200.00 रू0 वर्तमान समय में होता है इस प्रकार परिवादिनी को 21,00,582.00 रू0 की क्षति हो रही है।
विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि परिवादिनी ने जो किश्त अदा की है वह मात्र भूमि की किश्त है उसने भूमि पर विकास हेतु कोई धनराशि अदा नहीं किया है अत: उसे निर्माण में विलम्ब के सम्बन्ध में कोई क्षतिपूर्ति नहीं मिल सकती है। लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि उन्होंने अपने दायित्व को पूरा किया है। उनका दायित्व परिवादिनी द्वारा समय से भुगतान पर आधारित है परन्तु परिवादिनी ने भुगतान नहीं किया है अत: निर्माण में विलम्ब हेतु वह ही उत्तरदायी है। विपक्षीगण की सेवा में कोई कमी नहीं है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि वर्ष-2011 में कुछ किश्तों के भुगतान के बाद उसने पेमेंट यह कहकर रोक दिया कि प्रश्नगत भूमि पर कोई विकास का कार्य नहीं हो रहा है। अत: ऐसी स्थिति में परिवाद हेतु वाद हेतुक वर्ष-2011 में उत्पन्न हुआ है जबकि उसने परिवाद वर्ष-2017 में मियाद अवधि समाप्त होने के बाद प्रस्तुत किया है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि परिवादिनी से हुए करार में यह प्राविधान है कि अगर विपक्षीगण आवंटित अपार्टमेंट उपलब्ध कराने में असफल रहते है तो वह
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परिवादिनी को वैकल्पिक अपार्टमेंट देंगे। परन्तु परिवादिनी ने वैकल्पिक भवन का इंतजार नहीं किया है। लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवादिनी ने लाभ अर्जित करने हेतु धन लगाया है अत: वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आती है।
लिखित कथन में विपक्षीगण ने यह भी कहा है कि यदि परिवादिनी अपनी जमा धनराशि वापस चाहती है तो विपक्षीगण उसे Earnst Money की कटौती कर धनराशि वापस करने को तैयार हैं, इसके साथ ही वे उसे वैकल्पिक भवन देने को तैयार हैं।
परिवादिनी की ओर से परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में अपना शपथपत्र प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन के समर्थन में श्री आशीष सिंह, ऑथराइज्ड सिग्नेचरी का शपथपत्र प्रस्तुत किया गया है।
परिवाद की अंतिम सुनवाई की तिथि पर परिवादिनी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अनुराग त्रिपाठी और विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री मानवेन्द्र प्रताप सिंह उपस्थित आये हैं।
विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने लिखित तर्क भी प्रस्तुत किया है।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है।
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हमने विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
परिवाद पत्र की धारा-10 में परिवादिनी ने कहा है कि दिनांक 20.01.2016 को उसने विपक्षी को अपनी शिकायत पर जोर देते हुए यह निवेदन किया कि उसे alternative flat उपलब्ध कराया जाये या उसकी जमा धनराशि 10 प्रतिश ब्याज और क्षतिपूर्ति के साथ उसे वापस की जाये, परन्तु विपक्षीगण ने कोई सुनवाई नहीं की। परिवाद पत्र की धारा-11 में परिवादिनी ने कहा है कि प्रारम्भ में विपक्षीगण ने उसके अनुरोध पर कोई सुनवाई नहीं की परन्तु बाद में 8,04,838.00 रू0 जो उसने जमा किया गया, उसको वापस कर दिया। परिवाद पत्र की धारा-11 में परिवादिनी ने कहा है कि विपक्षीगण ने कोई ब्याज और क्षतिपूर्ति उसे अदा नहीं किया। परिवाद पत्र में परिवादिनी ने यह नहीं कहा है कि उसने अपनी जमा धनराशि 8,04,838.00 रू0 विपक्षीगण से अण्डर प्रोटेस्ट प्राप्त किया है, इसके विपरीत परिवादिनी ने परिवाद पत्र का संलग्नक-5, परिवादिनी को विपक्षीगण द्वारा प्रेषित पत्र दिनांक 15.11.2016 की प्रति प्रस्तुत किया है जिसमें कहा गया है कि निर्माण में विलम्ब विपक्षी नियंत्रण से बाहर कारणों से हुआ है। इस पत्र में यह भी उल्लेख है कि परिवादिनी के अनुरोध पर उसे बतया गया था कि उसकी जमा धनराशि पर कोई ब्याज नहीं दिया जायेगा। इस पत्र में यह भी उल्लेख है कि परिवादिनी की सम्पूर्ण धनराशि बिना किसी कटौती के उसे वापस करने के अनुरोध को विपक्षीगण के प्रबन्ध
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तंत्र के सामने स्पेशल केस के रूप में रखा गया और प्रबन्ध तंत्र की अनुमति से उसकी जमा धनराशि का चेक उसे दिया गया है और उसने Orignal Copy of Agreement कम्पनी को वापस कर दिया है। इस पत्र के कथन का खण्डन परिवादिनी ने नहीं किया है और न ही कहा है कि उसने एग्रीमेंट विपक्षी कम्पनी को वापस नहीं किया है। इस प्रकार परिवाद पत्र के अभिकथन एवं परिवाद पत्र के साथ परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत विपक्षी के पत्र दिनांक 15.11.2016 से स्पष्ट है कि परिवादिनी ने अपने प्रश्नगत फ्लैट से सम्बन्धित करार पत्र विपक्षीगण को वापस करके अपनी जमा धनराशि 8,04,838.00 रू0 वापस प्राप्त किया है और परिवादिनी ने यह धनराशि अण्डर प्रोटेस्ट प्राप्त करने का कोई अभिकथन नहीं है। न ही ऐसा कोई अभिलेख प्रस्तुत किया गया है जिससे यह स्पष्ट है कि परिवादिनी ने यह धनराशि अण्डर प्रोटेस्ट प्राप्त की थी। परिवादिनी ने प्रश्नगत फ्लैट का करार पत्र विपक्षीगण को वापस देकर उपरोक्त धनराशि प्राप्त करने के दो माह बाद दिनांक 15.01.2017 को नोटिस विपक्षीगण को भेजा है जिसकी प्रति परिवाद पत्र का संलग्नक-6 है। यह नोटिस विद्वान अधिवक्ता के माध्यम से उसने प्रेषित किया है।
परिवाद पत्र के अभिकथन एवं परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत विपक्षीगण के उपरोक्त पत्र दिनांक 15.11.2016 एवं सम्पूर्ण तथ्यों, साक्ष्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करते हुए यह स्पष्ट होता है कि परिवादिनी ने अपना करार पत्र समर्पित कर विपक्षीगण से अपनी जमा
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धनराशि वापस प्राप्त की है और धनराशि प्राप्त करते समय अपनी कोई आपत्ति क्षतिपूर्ति या ब्याज हेतु दर्ज नहीं कराया है। करार पत्र समर्पित कर परिवादिनी द्वारा अपनी जमा धनराशि विपक्षीगण से प्राप्त करने पर करार पत्र समाप्त हो चुका है और परिवादिनी विपक्षीगण की उपभोक्ता नहीं रही है। ऐसी स्थिति में परिवादिनी को यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत विपक्षीगण के विरूद्ध प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं है और परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्ष मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा Vayalil Parameswaran Radhakrishna Pillai (DR.) Vs. Hebron Properties Pvt. Ltd. & Ors.के वाद में दिये गये निर्णय जो II (2019) CPJ 534 (NC) में प्रकाशित है में प्रतिपादित सिद्धांत पर आधारित है। मा0 राष्ट्रीय आयोग के निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धृत किया जा रहा है:-
“I have heard the learned counsel for the complainant on the question as to whether there is an existing relationship of the consumer and the service provider between the complainant and the Ops or not. In my opinion, once the agreement dated 2.7.2011 whereunder a villa was allotted to the complainant, was cancelled not unilaterally but with the mutual consent of the parties on account of financial difficulties of the complainant and it was agreed that the amount of Rs.2,25,00,000 would be refunded to the complainant
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along with an sum of Rs.1,25,00,000.00 as compensation, relationship of consumer and service provider between the parties came to an end. Thereafter, the complainant ceased to be a consumer of the OP within the meaning of Section 2(1)(d) of the Consumer Protection Act.”
परिवादिनी की ओर से परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा संदर्भित Fortune Infrastructure and Anr. Vs. Trevor D’Lima and Ors. के वाद में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय जो (2018) 5 Supreme Court Cases 442 में प्रकाशित है का लाभ परिवादिनी को वर्तमान परिवाद में उपरोक्त कारण से नहीं दिया जा सकता है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर परिवाद परिवादिनी को विधि के अनुसार सक्षम न्यायालय में कानूनी कार्यवाही करने की छूट के साथ निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-1