(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
परिवाद संख्या :224/2018
श्रीमती मीना सिंह
बनाम
अंसल प्रापर्टीज एण्ड इन्फ्रास्ट्रेक्चर लिमिटेड व अन्य
दिनांक : 29-08-2022
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
परिवादी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार शर्मा उपस्थित। विपक्षी संख्या-1 व 2 की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्रीमती सुरंगमा शर्मा उपस्थित। विपक्षी संख्या-3 की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री योगेश तिवारी उपस्थित।
निर्विवादित रूप से विपक्षी कम्पनी द्वारा परिवादी को आवंटित फ्लैट का कब्जा (दिनांक 07 जून, 2010) 36 माह अर्थात तीन वर्ष की अवधि में प्राप्त कराया जाना था, जिस हेतु परिवादी द्वारा कुल धनराशि रू0 23,00,000/- विपक्षी कम्पनी के पक्ष में वर्ष 2014 तक जमा कर दी गयी थी परन्तु विभिन्न कारणों से विपक्षी कम्पनी द्वारा आवंटित फ्लैट का कब्जा दिनांक 31-08-2018 से पूर्व परिवादी को प्राप्त नहीं कराया जा सका तथा यह कि परिवाद प्रस्तुत किये जाने के साथ परिवादी द्वारा विलम्ब से कब्जा दिये जाने हेतु तथा सम्पूर्ण जमा धनराशि पर जमा की तिथि से भुगतान की तिथि तक देय ब्याज व मानसिक एवं शारीरिक कष्ट हेतु तथा वाद व्यय हेतु अनुतोष दिलाये जाने की प्रार्थना की गयी है।
पूर्व में प्रस्तुत परिवाद अनेकों तिथियों पर सूचीबद्ध हुआ जिस पर पक्षकारों के विद्धान अधिवक्तागण को सुनने के उपरान्त अनेकों अवसर विपक्षी कम्पनी को प्रदान किये जाते रहे, तदोपरान्त विपक्षी कम्पनी की ओर से उपस्थित विद्धान अधिवक्ता श्रीमती सुरंगमा शर्मा द्वारा पूर्व आदेशों के अनुपालन में एक विवरण गणना चार्ट विपक्षी कम्पनी द्वारा परिवादी को देय धनराशि का प्रस्तुत किया गया जिसमें उल्लिखित धनराशि रू0 5,29,516/- अंकित की गयी है जिसके विरूद्ध परिवादी द्वारा उपरोक्त अवधि में गणना की गयी धनराशि की गणना रू0 10,24,391/- बतायी गयी है।
सम्पूर्ण तथ्यों एवं वाद की परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए तथा उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण की सहमति से प्रस्तुत परिवाद को अंतिम
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रूप से निर्णीत किया जाता है तथा न्यायहित में विपक्षी कम्पनी को पक्षकारों की सहमति से आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को कुल धनराशि रू0 6,00,000/- आर.टी.जी.एस. के माध्यम से अथवा एकाउन्ट पेयी चेक के माध्यम से निर्णय से दो माह की अवधि में (प्रत्येक माह तीन-तीन लाख रूपये के हिसाब से) प्राप्त कराया जाना सुनिश्चितर करें। तदनुसार प्रस्तुत परिवाद को अंतिम रूप से निर्णीत किया जाता है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
प्रदीप मिश्रा, आशु0 कोर्ट नं0-1