(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
परिवाद संख्या : 499/2017
Mrs. Subhra Tripathi D/o Sri Lav Upadhyay W/o Sri Anurag Dutta Tripathi, R/o-4/315, Vivek Khand, Gomti Nagar, Lucknow-226002. .....परिवादिनी
बनाम्
Ansal Properties & Infrastructure Ltd., Office at Ground Floor, Y.M.C.A. Campus, 13, Rana Pratap Marg, Lucknow, Through Managing Director..
समक्ष :-
1- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष ।
उपस्थिति :
परिवादी की ओर से उपस्थित- श्री एस0 के0 वर्मा।
विपक्षी की ओर से उपस्थित- श्री मानवेन्द्र प्रताप सिंह।
दिनांक : 27-06-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवादिनी Mrs. Subhra Tripathi ने यह परिवाद विपक्षी Ansal Properties & Infrastructure Ltd. के विरूद्ध धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और निम्न अनुतोष चाहा है :-
- To direct the opposite parties to provide the physical possession of plot no. 0124 in sector-P, Pocket-01 having an area 162 Sq. Meter, as earliest OR refund the entire deposited amount Rs. 9,37,020/- with 24% interest on the amount
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deposited by the complainant with the effect from the respective dates of deposit to till the date f realization.
- To direct the opposite parties to pay a sum of Rs. 5,00,000/- as physical & mental agony and harassment to Complainant.
- To allow the complaint and direct the opposite parties to pay a sum of Rs. 55,000/- towards cost of the case.
- Any other order which this Hon’ble State Commission may deem fit and proper in the circumstances of the case may also be passed in favor of the complainant.
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि विपक्षी ने वर्ष, 2011 में प्लाट के संबंध में विज्ञापन प्रकाशित कर एलाटमेंट हेतु आवेदन पत्र आमंत्रित किया तथा यह आश्वासन दिया कि प्लाट का कब्जा 03 साल में दे दिया जायेगा। अत: विपक्षी के आश्वासन पर विश्वास करते हुए परिवादिनी ने विपक्षी की “Sushant Golf City” योजना में Resale के माध्यम से एक प्लाट नम्बर-0124, Sector-P, Pocket-01 में 162 Sq. Mt. का Mrs. Tanya से क्रय किया और उसके बाद उपरोक्त प्लाट विपक्षी ने परिवादिनी के नाम दिनांक 04-10-2011 को अन्तरित किया तथा उसके पक्ष में एलाटमेंट लेटर दिनांक 04-10-2011 जारी किया और Mrs. Tanya द्वारा जमा धनराशि परिवादिनी के नाम क्रेडिट किया। प्लाट की कुल धनराशि रू0 18,74,040/- थी। परिवादिनी ने रू0 9,37,020/- का भुगतान किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि जब वह वर्ष, 2012 में मौके पर गयी तो उसे पता चला कि वहॉं कोई विकास कार्य प्रारम्भ नहीं किया गया है, उसने विपक्षी के यहॉं अपनी आपत्ति
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दर्ज करायी तो विपक्षी ने उसे आश्वासन दिया कि शीघ्र ही कब्जा दे दिया जायेगा। उसके बाद परिवादिनी पुन: वर्ष 2015 में मौके पर गयी तो पुन: पाया कि कोई विकास कार्य प्रारम्भ नहीं किया गया है। उसने अनेकों पत्र विपक्षी को लिखा और दूरभाष से उससे वार्ता की, परन्तु उसे विपक्षी की ओर से कोई उत्तर नहीं मिला। परिवाद प्रस्तुत करने के पहले वह पुन: मौके पर गयी तो पाया कि वर्ष, 2011 की स्थिति ही कायम है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि 06 साल का समय बीतने के बाद भी विपक्षी ने प्लाट का कब्जा उसे नहीं दिया है और परिवादिनी को पता चला है कि भविष्य में प्लाट का कब्जा सम्भावित नहीं है, क्योंकि “Project Map” लखनऊ विकास प्राधिकरण ने स्वीकार नहीं किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी ने विपक्षी को या तो प्लाट का कब्जा देने या जमा धनराशि 24 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से वापस करने हेतु सूचित किया। तब विपक्षी ने शीघ्र ही कब्जा देने का आश्वासन दिया, परन्तु कब्जा नहीं दे सके। उसके बाद परिवादिनी ने उसे अधिवक्ता के माध्यम से विधिक नोटिस भेजा, कोई जवाब न मिलने पर उसने परिवाद प्रस्तुत कर उपरोक्त अनुतोष चाहा है।
विपक्षी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है जिसमें कहा गया है कि परिवादिनी ने परिवाद पत्र गलत कथन के साथ प्रस्तुत किया है। लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि परिवादिनी ने वर्ष, 2011 में कुछ किश्तें जमा की है उसके बाद उसने भुगतान इस बहाने से रोक दिया है कि मौके पर विकास कार्य नहीं किया गया है। ऐसी स्थिति में परिवाद हेतु वादहेतुक वर्ष, 2011 में उत्पन्न हुआ है, जबकि परिवाद उसने वर्ष, 2017 में प्रस्तुत किया है। अत: परिवाद में मियाद बाधक है।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि वायर एग्रीमेंट से उभयपक्ष बाधित है और वायर एग्रीमेंट के अनुसार प्लाट का कब्जा आवंटी को संबंधित अधिकारी से बिल्डिंग प्लान सेंक्सन होने की तिथि से 36 महीने के अंदर दिया जायेगा और यह
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व्यवस्था फोर्स मिज्योर परिस्थितियों में लागू नहीं होगी।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि वायर एग्रीमेंट के अनुसार यदि विपक्षी डेवलपर आवंटित प्लाट आवंटी को देने में किसी वजह से असफल रहता है तो आवंटी को विपक्षी द्वारा वैकल्पिक प्लाट दिया जायेगा।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि वायर एग्रीमेंट के अनुसार विलम्ब हेतु कोई क्षतिपूर्ति देय नहीं है। परिवादिनी को करार पत्र की शर्तों के अनुसार परियोजना पूर्ण होने का इन्तजार करना चाहिए और धैर्य रखना चाहिए। विपक्षी ने पहले ही परिवादिनी को विलम्ब से भुगतान पर देय ब्याज की धनराशि को वेव कर दिया है।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि परिवादिनी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता नहीं है, उसने लाभ अर्जित करने हेतु रियल स्टेट बिजनेस में धन लगाया है। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि परिवादिनी ने अवशेष धनराशि को समय के अंदर नहीं दिया है और भुगतान में चूक की है।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि यदि विपक्षी से परिवादिनी अपनी जमा धनराशि वापस चाहती है तो विपक्षी उसे अर्नेस्ट मनी काटकर बिना किसी ब्याज के उक्त धनराशि वापस करने को तैयार है। विपक्षी उसे अल्टरनेटिव प्लाट भी उपलब्ध करा सकता है। लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि परिवादिनी ने आवंटन करार दिनांक 04-10-2011 के अनुसार किश्तों का समय से भुगतान न करके अपना दायित्व पूरा नहीं किया है।
परिवादिनी की ओर से परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में शपथ पत्र और पूर्व आवंटी श्रीमती तानिया के नाम आवंटित वायर एग्रीमेंट दिनांक 13 जून, 2011, विपक्षी का पत्र दिनांक 20-10-2011 जिसके द्वारा परिवादिनी के नाम प्रश्नगत प्लाट आवंटित किया गया है और पूर्व आवंटी श्रीमती तान्या द्वारा अदा की गयी धनराशि रू0 5,62,2012/- उसके खाते में अन्तरित की गयी है, प्रस्तुत किया है।
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परिवादिनी ने परिवाद पत्र के साथ पूर्व आवंटी तान्या का आवेदन पत्र वास्ते एलाटमेंट और विपक्षी द्वारा व्यवस्थित प्रश्नगत फ्लैट के संबंध में अपने खाते का विवरण प्रस्तुत किया है। परिवादिनी ने परिवाद पत्र के साथ विपक्षी को प्रेषित नोटिस की प्रति भी प्रस्तुत की है।
विपक्षी की ओर से अथराइज्य सिग्नेचरी श्री आशीष सिंह का शपथ पत्र संलग्नकों सहित प्रस्तुत किया गया है1
परिवाद की अंतिम सुनवाई के समय परिवादिनी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री एस0 के0 वर्मा और विपक्षी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री मानवेंद्र प्रताप सिंह उपस्थित आए हैं।
मैंने उभयपक्ष के तर्क को सुना है तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
उभयपक्ष के अभिकथन एवं उनकी ओर से प्रस्तुत शपथ पत्रों और अभिलेखों से यह स्पष्ट है कि परिवादिनी को प्रश्नगत प्लाट अन्तरण के माध्यम से विपक्षी द्वारा आवंटित किया जाना निर्विवाद है।
परिवादिनी ने परिवाद पत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि उसने कुल रू0 9,37,020/- प्लाट के कुल मूल्य रू0 18,74,040/- के विरूद्ध जमा किया है। परिवादिनी ने परिवाद पत्र के साथ विपक्षी द्वारा व्यवस्थित अपने एकाउन्ट की फोटोप्रति प्रस्तुत की है, जिसके अनुसार विपक्षी के यहॉं परिवादिनी का रू0 9,37,020/- दिनांक 23 जून, 2011 से 09 दिसम्बर, 2011 तक की अवधि में जमा है।
प्रश्नगत भूखण्ड का आवंटन परिवादिनी के नाम दिनांक 20-10-2011 को विपक्षी ने अन्तरित किया है। 07 साल से अधिक का समय बीत चुका है, परन्तु अभी तक प्लाट को विकसित कर परिवादिनी को कब्जा विपक्षी ने नहीं दिया है और न ही निकट भविष्य में प्लाट को विकसित कर कब्जा अन्तरित किया जाना सम्भावित दिखता है। प्रश्नगत प्लाट व उससे संबंधित योजना का मैप लखनऊ विकास प्राधिकरण से परिवादिनी के अनुसार स्वीकृत भी नहीं है और
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विपक्षी ने परिवादिनी के इस कथन के खण्डन हेतु कोई अभिलेख भी प्रस्तुत नहीं किया है। विपक्षी ने परिवादिनी को कोई वैकल्पिक भूखण्ड भी आफर नहीं किया है। अत: पत्रावली पर उलपब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह मानने हेतु उचित और युक्तिसंगत आधार है कि परिवादिनी ने विपक्षी के यहॉं प्रश्नगत फ्लैट हेतु रू0 9,37,020/- जमा किया है। परन्तु सात साल से अधिक का समय बीतने के बाद भी उसे प्लाट विकसित कर कब्जा विपक्षी ने नहीं दिया है अत: इतनी लम्बी अवधि के बाद अब परिवादिनी को और इन्तजार करने को कहा जाना उचित और युक्तिसंगत नहीं दिखता है।
परिवादिनी की उपरोक्त जमा धनराशि रू0 9,37,020/- से विपक्षी 07 साल से अधिक समय से लाभान्वित हो रहा है। परिवादिनी उक्त धनराशि के लाभ से वंचित रही है और उसे भूखण्ड भी नहीं मिला है। 07 वर्ष बाद अब दूसरा भूखण्ड लेने में उसे निश्चित रूप से कीमत बढ़ने के कारण अधिक धन व्यय करना पड़ेगा। अत: विपक्षी से परिवादिनी की जमा धनराशि ब्याज सहित वापस दिलाया जाना उचित है।
उपरोक्त वर्णित तथ्यों के आधार पर परिवाद में मियाद बाधक नहीं है। विपक्षी का यह कथन स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है कि विपक्षी अर्नेस्टमनी की धनराशि की कटौती कर अवशेष जमा धनराशि परिवादिनी को वापस करेगा।
सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त परिवादिनी की जमा धनराशि ब्याज सहित उसे वापस दिलाया जाना ही उचित और न्यायसंगत है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा के0 ए0 नागमणि बनाम हाउसिंग कमिश्नर, कर्नाटका हाउसिंग बोर्ड III(2016)CPJ-16 (SC) के वाद में पारित निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए और उपरोक्त सम्पूर्ण तथ्यों पर विचार करते हुए ब्याज दर 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से निश्चित किया जाना उचित है।
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चूंकि परिवादिनी की जमा धनराशि जमा की तिथि से 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज के साथ उसे वापस दिलायी जा रही है अत: ऐसी स्थिति में परिवादिनी द्वारा याचित अन्य अनुतोष प्रदान करने हेतु उचित आधार नहीं है। परन्तु परिवादिनी को रू0 10,000/- वाद व्यय दिलाया जाना उचित है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है और विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादिनी की जमा धनराशि रू0 9,37,020/- परिवादिनी के नाम जमा की तिथि से अदायगी की तिथि तक 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज के साथ उसे दो माह के अंदर वापस करें। साथ ही विपक्षी परिवादिनी को रू0 10,000/- वाद व्यय भी प्रदान करे। दो माह के अंदर आदेशित धनराशि का भुगतान न करने पर परिवादिनी विधि के अनुसार उसकी वसूली की कार्यवाही कर सकती है।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा, आशु0