(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
परिवाद सं0 :-502/2017
लिली श्रीवास्तव, 5/94, विराम खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ-226010
- परिवादिनी
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मेसर्स अंसल प्रापर्टीज एण्ड इन्फ्रास्ट्रक्चर लि0 वाईएमसीए कैम्पस, 13 राणा प्रताप मार्ग, लखनऊ 2260001 द्वारा अधिशासी निदेशक
समक्ष
- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
उपस्थिति:
परिवादी की ओर विद्धान अधिवक्ता :- श्री एस0एन0 पाण्डेय
विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- सुश्री सुरंगमा शर्मा
दिनांक:-20.10.2022
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
- यह उपभोक्ता परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध कम क्षेत्राधिकार वाले (1285) स्क्वायर फीट फ्लैट को 1400 क्षेत्राधिकार का बताकर अधिक जमा राशि अंकन 5,10,525/- रूपये 18 प्रतिशत ब्याज सहित वापस प्राप्त करने के लिए अन्य आनुषंगिक अनुतोषों के लिए प्रस्तुत किया गया है।
- परिवाद पत्र के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि परिवादी द्वारा जो भवन आवंटित कराया गया उसका विक्रय पत्र दिनांक 12;04.2016 को परिवादी के पक्ष में निष्पादित किया जा चुका है। कब्जा दिनांक 14.04.2006 को परिवादी को उपलब्ध कराया जा चुका है।
- परिवादी क विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि हमारे द्वारा नोटिस दिया गया कि इसमें कि तुरंत आपत्ति प्रस्तुत की गयी है जबकि विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि कब्जा प्राप्त करते समय तथा विक्रय पत्र निष्पादित करते समय किसी प्रकार की आपत्ति नहीं की गयी तदनुसार नजीर टी0के0ए0 पदमानाभन बनाम अभियान सीजीएचएस लिमिटेड दिनांकित 04.01.2016 में दी गयी व्यव्स्था के अनुसार अब परिवादी तथा विपक्षी के मध्य उपभोक्ता का संबंध नहीं है इसलिए उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं है। उपरोक्त नजीर के तथ्य के अनुसार आवंटित भवन का भौतिक कब्जा 27.02.2004 को सुपुर्द कर दिया गया। कब्जा देने में 11 माह की देरी हुई थी। कब्जा प्राप्त करने के पश्चात 08.08.2005 को उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया। अभिलेख पर यह तथ्य स्थापित नहीं पाया गया कि कब्जा प्राप्त करते समय उपभोक्ता द्वारा किसी प्रकार की आपत्ति की गयी है। चूंकि उपभोक्ता ने बिना किसी शर्त के कब्जा दिनांक 27.04.2004 को प्राप्त कर लिया और कोई आपत्ति नहीं की गयी इसलिए इस तिथि के बाद से परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में आना समाप्त हो गया। पक्षकारों के मध्य निष्पादित करार भी समाप्त हो गया, इसलिए जिस दिन परिवाद प्रस्तुत किया गया, दोनों पक्षकारों के मध्य उपभोक्ता या सेवा प्रदाता के संबंध नहीं थे, इसलिए उपभोक्ता परिवाद को संधारणीय नहीं माना गया।
- प्रस्तुत केस में भी विक्रय पत्र निष्पादित हो चुका है। इसलिए पक्षकारों के मध्य उपभोक्ता विवाद का अस्तित्व नहीं है। अत: यह उपभोक्ता विवाद संधारणीय नहीं है। परिवाद खारिज होने योग्य है।
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परिवाद खारिज किया जाता है।
उभय पक्ष परिवाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना)(सुशील कुमार)
संदीप आशु0 कोर्ट नं0 2