राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
परिवाद संख्या-29/2017
सुरक्षित
Col Deepak Kumar Sreevastava, S/o Ranjeet Prasad Sreevastava, R/o 28/1, Nehru Enclave, Cantt. Lucknow.
परिवादी
बनाम्
Ansal Properties and Infrastructure Ltd., First Floor, YMCA Campus-13, Rana Pratap Marg, Lucknow-226001.
विपक्षी
समक्ष :-
परिवादी की ओर से उपस्थित- विद्धान अधिवक्ता श्री अदील अहमद।
विपक्षी सं0-1 की ओर से उपस्थित- विद्धान अधिवक्ता श्री विकास कुमार वर्मा।
1- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
दिनांक : 28-05-2018
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-29/2017 Col Deepak Kumar Sreevastava बनाम् Ansal Properties and Infrastructure Ltd के विरूद्ध परिवाद धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष परिवादी कर्नल Deepak Kumar Sreevastava ने विपक्षी Ansal Properties and Infrastructure Ltd. के विरूद्ध प्रस्तुत किया है और निम्न अनुतोष चाहा है :-
- Direct the respondent company to refund the amount invested i.c. Rs. 8,65,985.23 whit 18% interest from the date booking of the flat i.e. 19-04-2011 which will amount to more than Rs. 8,96,294.00 as on date as the complainant is an army officer with no additional source of income and has invested hard
-
earned money which he needs now to pay for higher education of children.
- Hold the opposite parties jointly and severally liable to pay to the complainant a sum of Rs.5,00,000/- as mental trauma and agony.
- Hold the opposite parties jointly and severally liable to pay to the complainant a sum of Rs. 50,000/- towards legal expenses.
- To pass any other order or direction as this Hon’ble Forum may deem fit in the facts and circumstances of the case protecting the rights and interests of the complainant.
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि विपक्षी के विज्ञापन से प्रभावित होकर परिवादी विपक्षी के यहॉं एक फ्लैट विपक्षी द्वारा प्रस्तावित टाऊनशिप Sushant Jeevan Enclave में बुक करने हेतु गया और प्रारम्भिक वार्ता के बाद दिनांक 30-05-2011 को उसके और विपक्षी के बीच एलाटमेंट करारा लेटर निष्पादित किया गया, जिसके द्वारा फ्लैट Sushant Jeevan Enclave जो शहीद पथ, लखनऊ के करीब है में बी-1 टावर पर फ्लैट संख्या-3 आवंटित किया गया। आवंटित फ्लैट का मूल्य रू0 24,10,200/- है जिसका भुगतान एलाटमेंट लेटर के सिड्यूल के अनुसार करना था।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि एलाटमेंट लेटर दिनांक 30-05-2011 के अनुसार आवंटित यूनिट का कब्जा परिवादी को 36 महीने में दिया जाना था और यह भी प्राविधान था कि अप्रत्याशित परिस्थितियों में कब्जे की अवधि बढ़ाई भी जा सकती है। परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि दिनांक 13-01-2015 तक परिवादी ने कुल रू0 8,65,985.23 पैसे की धनराशि का भुगतान विपक्षी को किया है, परन्तु विपक्षी उसे कब्जा देने में असफल रहा है और विपक्षी उसे झूठा आश्वासन देता रहा है कि फ्लैट का निर्माण यथाशीघ्र पूरा कर दिया जायेगा। परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि अंत में दिनांक 16-05-2016 को उसने विपक्षी को ईमेल पत्र भेजकर यह पूछा कि टावर में 5 साल से अब तक कोई निर्माण कार्य क्यों नहीं हा रहा है।
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परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि विपक्षी द्वारा आवंटित फ्लैट का कब्जा देने में विलम्ब के कारण उसे आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ रहा है। अत: परिवादी ने परिवाद राज्य उपभोक्ता आयोग के समक्ष उपरोक्त अनुतोष की याचना के साथ प्रस्तुत किया है।
विपक्षी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है, जिसमें कहा गया है कि परिवाद का मूल्यांकन 20,00,000/-रू0 से कम है अत: परिवाद राज्य आयोग के समक्ष ग्राह्य नहीं है।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवादी ने अपने लाभ हेतु अपना धन बुकिंग में इन्वेस्ट किया है। अत: परिवाद धारा-2(1)(डी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य नहीं है।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि करार के अनुसार विपक्षी डेवलपर्स को निर्माण पूरा करने हेतु युक्तिसंगत समय दिया जायेगा। इसके साथ ही यह कहा गया है कि करार में फोर्स मिज्योर की जो परिभाषा दी गयी है उसके अनुसार फोर्स मिज्योर परिस्थितियों के कारण निर्माण में विलम्ब हो रहा है।
परिवादी की ओर से परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में परिवादी का शपथ पत्र फोटोग्राफ के साथ प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी की ओर से भी लिखित कथन के समर्थन में नंदकिशोर, लीगल मैनेजर का शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन सावधानीपूर्वक किया है।
परिवादी द्वारा याचित अनुतोष से स्पष्ट है कि उसने जमा धनराशि रू0 8,65,985.23 पैसे 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से बुकिंग की तिथि दिनांक 19-04-2011 से वापस दिलाये जाने का अनुतोष चाहा है। ब्याज की यह धनराशि अम्बरीश शुक्ला आदि बनाम् फेरस इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा0लि0 2016 (4) सी.पी.आर.83 के वाद में मा0 राष्ट्रीय आयोग की पूर्ण पीठ द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत के आधार पर प्रतिकर मानी जायेगी और वाद के मूल्यांकन में सम्मिलित की जायेगी। अत: परिवादी द्वारा जमा धनराशि रू0 8,65,985.23 पैसे में याचित
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ब्याज की धनराशि जोड़ने पर परिवाद का मूल्यांकन 20,00,000/-रू0 से अधिक हो जाता है। इसके साथ ही परिवादी ने 5,00,000/-रू0 मानसिक कष्ट हेतु क्षति भी चाहा है। अत: परिवाद में याचित अनुतोष के आधार पर परिवाद का मूल्यांकन रू0 20,00,000/- से अधिक है। अत: यह परिवार राज्य आयोग के आर्थिक क्षेत्राधिकार की सीमा में आता है। अत: मूल्यांकन के आधार पर परिवाद राज्य आयोग के समक्ष ग्राह्य न होने की बावत विपक्षी का उपरोक्त कथन स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
निर्विवाद रूप से परिवादी ने विपक्षी की परियोजना सुशान्त गोल्फ सिटी में एक और फ्लैट बुक किया है जिसके संबंध में उसने परिवाद संख्या-97/2017 कर्नल दीपक कुमार श्रीवास्तव बनाम् अंसल प्रापर्टीज राज्य आयेाग के समक्ष प्रस्तुत किया है। परन्तु माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा प्रथम अपील संख्या-101/2015 Dr. Poonam Aggarwal Vs. M/s Gujral Associates & Anr. में पारित निर्णय दिनांक 06-03-2017 में प्रतिवादित सिद्धान्त को दृष्टगत रखते हुए परिवादी द्वारा दो फ्लैट बुक किये जाने के मात्र आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि उसने फ्लैट में इन्वेस्टमेंट लाभ अर्जित करने हेतु वाणिज्यिक उद्देश्य से किया है और विपक्षी उपलब्ध साक्ष्यों से यह साबित करने में असफल रहा है कि परिवादी ने वाणिज्यिक उद्देश्य से व्यापार के लिए फ्लैट बुक किये है। अत: परिवादी को धारा-2(1)(डी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ता न मानने हेतु उचित आधार नहीं है।
उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह तथ्य निर्विवाद है कि विपक्षी की प्रस्तावित टाऊनशिप Sushant Jeevan Enclave में परिवादी ने फ्लैट बुक किया, जिसके आधार पर उसे Sushant Jeevan Enclave जो शहीद पथ, के पास लखनऊ में स्थित है बी-1 फ्लैट नम्बर-3 आवंटित किया गया है और दिनांक 30-05-2011 को परिवादी और विपक्षी द्वारा एलाटमेंट लेटर हस्ताक्षरित व निष्पादित किया गया है।
परिवादी ने दिनांक 13-01-2015 तक रू0 8,65,985.23 पैसे जमा किया है यह तथ्य भी निर्विवादित है। यह तथ्य भी निर्विवाद है कि अभी तक फ्लैट का निर्माण कार्य पूरा कर कब्जा परिवादी को अन्तरित नहीं किया गया है।
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विपक्षी के अनुसार निर्माण कार्य में विलम्ब फोर्स मिज्योर परिस्थितियों के कारण हुआ है परन्तु विपक्षी ने जो फोर्स मिज्योर कारणों का उल्लेख किया हैं वह भ्रामक है। निर्माण में इतने लम्बे विलम्ब का बताया गया कारण युक्तिसंगत और उचित प्रतीत नहीं होता है। परिवादी को दिनांक 30-05-2011 को एलाटमेंट लेटर निष्पादित किये जाने के बाद करीब 07 साल का समय बीत चुका है और दिनांक 13-01-2015 तक रू0 8,65,985.23 पैसे परिवादी एलाटमेंट लेटर के अनुसार विपक्षी को अदा कर चुका है। अत: फ्लैट का निर्माण कार्य पूरा कर कब्जा परिवादी को विपक्षी द्वारा इतनी लम्बी अवधि तक न दिया जाना अनुचित व्यापार पद्धति है।
परन्तु परिवाद पत्र की धारा-6 से स्पष्ट है कि दिनांक 16-05-2016 को परिवादी ने ईमेल के द्वारा विपक्षी से यह सूचना चाही है कि टावर के निर्माण में 05 साल के बाद भी क्यों कोई निर्माण कार्य शुरू नहीं हो रहा है और इस सूचना के बाद ही उसने परिवाद प्रस्तुत कर दिया है। परिवादी ने विपक्षी से निर्माण पूरा कर यथाशीघ्र कब्जा दिये जाने अथवा जमा धनराशि ब्याज सहित वापस किये जाने का अनुरोध नहीं किया है जबकि एलाटमेंट लेटर के क्लाज-16 और 22 के अनुसार विपक्षी परिवादी को वैकल्पिक भवन भी उपलब्ध करा सकता है और वैकल्पिक भवन उपलब्ध न होने की दशा में परिवादी की जमा धनराशि वापस कर सकता है।
उपरोक्त सम्पूर्ण तथ्यों, साक्ष्यों एवं उभयपक्ष के अभिकथन पर विचार करने के उपरान्त मैं इस मत का हॅूं कि विपक्षी को निर्माण कार्य पूर्ण कर एलाटमेंट करार के अनुसार अवशेष धनराशि प्राप्त कर आवंटित फ्लैट उसी लोकल्टी में उसी क्षेत्रफल व गुणवत्ता का दूसरा वैकल्पिक भवन उपलब्ध कराने का अवसर दिया जाये और यदि विपक्षी निर्धारित समय में ऐसा करने में असफल रहता है तब उसे परिवादी की जमा धनराशि 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से जमा की तिथि से अदायगी की तिथि तक के ब्याज के साथ परिवादी को वापस करने हेतु आदेशित किया जाये।
सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए अन्य याचित अनुतोष प्रदान किया जाना उचित नहीं प्रतीत होता है।
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उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है और विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह छ: माह के अंदर निर्माण कार्य पूरा कर एलाटमेंट लेटर के अनुसार परिवादी से अवशेष धनराशि प्राप्त कर आवंटित फ्लैट या उसी लोकल्टी में उसी क्षेत्रफल व गुणवत्ता का दूसरा वैकल्पिक फ्लैट परिवादी को उपलब्ध कराये और उसका कब्जा परिवादी को हस्तगत कर आवश्यक अभिलेख निष्पादित करे। यदि इस अवधि में विपक्षी परिवादी को फ्लैट का कब्जा देने में असफल रहता है तो विपक्षी परिवादी को सम्पूर्ण जमा धनराशि जमा की तिथि से अदायगी की तिथि तक 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ उसे वापस करेगा।
विपक्षी परिवादी को दस हजार रूपया वाद व्यय भी अदा करेगा।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
प्रदीप मिश्रा, आशु0
कोर्ट नं0-1