(राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ)
सुरक्षित
अपील संख्या 2755/2001
(जिला मंच गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0 559/1996 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 18/03/1998 के विरूद्ध)
हेमेन्द्र कुमार वर्मा स्वर्गीय ठाकुर हरनाम सिंह, निवासी बी-212, नानकपुरा, नई दिल्ली-110021
…अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
मेसर्स अंसल हाउसिंग एण्ड कंस्ट्रक्शन लिमिटेड, 15-यू0जी0एफ0, इन्द्र प्रकाश, 21 बाराखम्भा रोड, नई दिल्ली-110001
.........प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:
1. मा0 श्री चन्द्रभाल श्रीवास्तव, पीठा0 सदस्य।
2. मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य ।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री ए0के0 पाण्डेय।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 विसारिया।
दिनांक :- 24/02/2016
मा0 श्री संजय कुमार , सदस्य द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
परिवाद सं0 559/1996 हेमेन्द्र कुमार वर्मा बनाम मेसर्स अंसल हाउसिंग एण्ड कंस्ट्रक्शन लि0 में जिला मंच गाजियाबाद द्वारा दिनांक 18/03/2011 को निर्णय/आदेश पारित करते हुए परिवाद खण्डित कर दिया गया जिससे क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/परिवादी द्वारा वर्तमान अपील योजित की गई है।
परिवाद का कथन संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने दिनांक 24/09/1992 को विपक्षी के यहां मु0 50,000/ रूपये जमा करके एक यूनिट बुक कराई तत्पश्चात विपक्षी ने चिरजीव बिहार की एक यूनिट सं0 353/ए परिवादी को आवंटित की, जिसका मूल्य 300/ रूपये प्रति वर्गमीटर बताया गया । तत्पश्चात परिवादी को कोने की यूनिट में नं0 22, सेक्टर-1 चिरजीवन बिहार परिवादी को आवंटित की। परिवादी ने 24/06/93 तक इस यूनिट के मूल्य में 85 प्रतिशत राशि जमा कर दी। उसे जनवरी, 1995, में कब्जा दिया गया। इस अवधि में विपक्षी उसे अपने व्यापारिक उपयोग में लाता रहा और विपक्षी ने आवंटित यूनिट का मूल्य भी
2
बढ़ा दिया। ऐसी स्थिति में परिवादी ने अनुरोध किया कि यूनिट का बढ़ा हुआ मूल्य उससे वसून न किये जाय और जो मु0 44690.30 रूपये उससे बढ़ी हुई राशि वसूल की है उसे वापस कराई जाए जो विपक्षी ने यूनिट को व्यापारिक प्रयोग में लिया उसके लिए से मु0 54000/ रूपये मुआवजा दिलाया जाय।
विपक्षी द्वारा जिला मंच के समक्ष उपस्थित होकर अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया तथा यह अभिवचन किया है कि परिवादी ने कब्जा ले लिया है अब वह मूल्य के संबंध में कुछ नहीं कह सकता है और फोरम को मूल्य निर्धारण करने का अधिकार नहीं है। विपक्षी ने कहा कि वह आवंटित यूनिट का व्यापारिक प्रयोग में नहीं लाया। ऐसी स्थिति में वह कोई मुआवजा पाने का अधिकारी नहीं है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री ए0के0 पाण्डेय उपस्थित है। प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 विसारिया उपस्थित हैं। उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण की बहस को विस्तारपूर्वक सुना गया एवं प्रश्नगत निर्णय एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों का गंभीरता से परिशीलन किया गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क दिया कि विपक्षी/प्रत्यर्थी के योजना ‘’चिरजीवी विहार’’ सेक्टर ए में फ्लैट (यूनिट) की बुकिंग कराई थी। विपक्षी/प्रत्यर्थी फ्लैट का आवंटन दिनांक 07/01/95 को किया। प्रत्यर्थी/विपक्षी ने जिस फ्लैट का आवंटन किया उस फ्लैट का निर्माण कर मॉडल (व्यापारिक कार्य हेतु) के रूप में प्रयोग करते रहे। उनका यह कहना गलत है कि फ्लैट का निर्माण नहीं हुआ था। परिवादी/अपीलार्थी को निर्धारित तिथि से एक वर्ष 06 माह बाद कब्जा प्रदान किया गया। विलंब से कब्जा देना सेवा में कमी साबित है। प्रत्यर्थी/विपक्षी ने फ्लैट का मूल्य बढ़ाकर मु0 44,690/ रूपये कर दिया। बढ़े हुए धनराशि की मांग कर रहे हैं। जिला फोरम ने जो निर्णय/आदेश दिया है वह सही एवं उचित नहीं है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क दिया कि जिला फोरम ने जो निर्णय/आदेश दिया है वह सही एवं उचित है। जिला फोरम को मूल्य वृद्धि से संबंधित मामला सुनने का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। परिवादी ने कब्जा प्राप्त कर लिया है। अपील खारिज होने योग्य है।
आधार अपील एवं संपूर्ण पत्रावली का परिशीलन किया जिससे यह प्रतीत होता है कि परिवादी/अपीलार्थी ने विपक्षी/प्रत्यर्थी के योजना में फ्लैट की बुकिंग कराई थी। निर्माण सन 1991 में हुआ परन्तु इसका आवंटन दिनांक 07/01/95 दिया गया कब्जा देने में एक वर्ष 06
3
माह का विलंब से दिया गया है जो सेवा में कमी साबित है क्योंकि आवंटित फ्लैट माडल के रूप में विपक्षी/प्रत्यर्थी इस्तेमाल करता रहा जिससे व्यापारिक लाभ प्राप्त करता रहा। विलंब से कब्जा दिये जाने के संबंध में अपीलार्थी/परिवादी ने विपक्षी/प्रत्यर्थी से शिकायत भी किया था जिसका कोई समाधान नहीं किया गया। विलंब से कब्जा प्राप्त होने पर प्रत्यर्थी/विपक्षी से क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है। अपीलार्थी/परिवादी क्षतिपूर्ति के रूप में मु0 30,000/ रूपये एवं वाद व्यय के रूप में मु0 5000/ रूपये पाने का अधिकारी है। अपील अंशत: स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील अंशत: स्वीकार की जाती है। जिला फोरम का निर्णय/आदेश दिनांक 18/03/98 खण्डित किया जाता है। प्रत्यर्थी/विपक्षी क्षतिपूर्ति के रूप में मु0 30,000/ रूपये एवं वाद व्यय के रूप में मु0 5,000/ रूपये दो माह के अंदर अदा करें।
(चन्द्र भाल श्रीवास्तव) (संजय कुमार)
पीठासीन सदस्य सदस्य
सुभाष चन्द्र आशु0 कोर्ट नं0 1