(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 2325/2012
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग कोर्ट नं0 1, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0- 84/2010 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 12.09.2012 के विरुद्ध)
Mrs. Anita Arora W/o Mr. Ashok Arora R/o R-5/18, (Opp. Bank of Baroda) Raj Nagar, Ghaziabad U.P.
……..Appellant.
Versus
M/s Ansal Housing Finance & Leasing Co. Ltd, 1110- 11th Floor Ansal Bhawan 16, Kasturba Gandhi marg, New Delhi-01, Having its Branch Office in Sundram Building at Raj Nagar, District Centre at Raj Nagar, Ghaziabad.
…………Respondent
समक्ष:-
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
माननीया डॉ0 आभा गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : श्री संग्राम सिंह,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से : श्री अंकित श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 24.05.2022
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 84/2010 श्रीमती अनीता अरोरा बनाम मैसर्स अंसल हाउसिंग फाइनेंस एण्ड लीजिंग कम्पनी लि0 में जिला उपभोक्ता आयोग कोर्ट नं0- 1, गाजियाबाद द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 12.09.2012 के विरुद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
2. अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा परिवाद पत्र इन अभिकथनों के साथ प्रस्तुत किया गया है कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी मैसर्स अंसल हाउसिंग फाइनेंस एण्ड लीजिंग कम्पनी लि0 से अपने व्यापार चलाने हेतु सुन्दरम बिल्डिंग राजनगर 'गाजियाबाद' में एक दुकान की बुकिंग की थी और इस बुकिंग के लिए रू0 12,750/- जमा की थी। प्रत्यर्थी/विपक्षी ने इस सम्बन्ध में यूनिट सं0- 116 एलाट किया जिसकी धनराशि अपीलार्थी/परिवादिनी बराबर जमा करती रही। इसके बावजूद प्रत्यर्थी/विपक्षी ने अपीलार्थी/परिवादिनी को दुकान का कब्जा नहीं दिया जिस कारण परिवाद लाया गया। अपीलार्थी/परिवादिनी ने दुकान का कब्जा दिलाये जाने एवं रजिस्ट्री कराए जाने हेतु वाद योजित किया गया है।
3. प्रत्यर्थी/विपक्षी की ओर से वादोत्तर दाखिल किया गया जिसमें कहा गया था कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने दुकान की बुकिंग करायी थी, किन्तु अपीलार्थी/परिवादिनी आवंटन की शर्तों के अनुसार धनराशि का भुगतान नहीं किया और वह डिफाल्टर रही जिस कारण वह दुकान का कब्जा पाने की अधिकारी नहीं है। अपीलार्थी/परिवादिनी का परिवाद कालबाधित है तथा अपीलार्थी/परिवादिनी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आती है और परिवाद उपभोक्ता न्यायालय में चलने योग्य नहीं है।
4. विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद इन आधारों पर खारिज किया कि अपीलार्थी/परिवादिनी की दुकान कामर्शियल स्पेस थी, इसलिए दुकान के सम्बन्ध में सेवा में कमी के आधार पर उपभोक्ता आयोग में परिवाद नहीं लाया जा सकता है। स्वयं अपीलार्थी/परिवादिनी ने परिवाद पत्र में बताया है कि उसने व्यापार चलाने के लिए दुकान की बुकिंग करायी थी। अत: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)d के अंतर्गत अपीलार्थी/परिवादिनी उपभोक्ता नहीं है। उक्त निर्णय से व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है जिसमें कथन किया गया है कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने दुकान की मूल्य 1,17,000/-रू0 के विरुद्ध 1,11,150/-रू0 का भुगतान किया था एवं अनुबंध की शर्तों के अनुसार समस्त अदायगी की। दुकान का अंतिम क्षेत्रफल प्रत्यर्थी/विपक्षी के पत्र सं0- AGM(S) सुन्दरम/2692 दिनांकित 06.12.1995 के माध्यम से पुष्ट भी किया गया, किन्तु अपीलार्थी/परिवादिनी को इसका कब्जा नहीं दिया गया तथा वर्ष 2008 में मनमाने तौर पर दुकान का दाम के एवज में रू01,96,223.76पैसे की मांग की गई जिस कारण यह अपील प्रस्तुत की गई है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने गलत तौर पर अपीलार्थी/परिवादिनी को उपभोक्ता न मानते हुए यह दावा किया है जब कि अपीलार्थी/परिवादिनी की ओर से दायर किए गए रिप्लीकेशन दि0 25.05.2012 में यह कथन किया गया है कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने अपने जीवन यापन हेतु स्वरोजगार के लिए दुकान खरीदी थी। अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा अपील के पैरा सं0- 2 में इस बात का उल्लेख किया है कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने अपनी पुत्री के साथ जीवन यापन हेतु स्वरोजगार के लिए दुकान बुक करायी थी, किन्तु इस मामले में अपीलार्थी/परिवादिनी उपभोक्ता है एवं विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने गलत प्रकार से अपीलार्थी/परिवादिनी को उपभोक्ता न मानते हुए एवं दुकान को व्यावसायिक उद्देश्य से बुक किए जाने का निष्कर्ष दिया है, जो निष्कर्ष गलत है अत: प्रश्नगत निर्णय व आदेश खण्डित होने योग्य एवं अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
5. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री संग्राम सिंह एवं प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री अंकित श्रीवास्तव को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया गया।
6. अपील व परिवाद पत्र के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने अपने निर्णय में अपीलार्थी/परिवादिनी को परिवाद के आधार पर कि यह दुकान व्यवसाय हेतु ली जा रही है, व्यावसायिक उद्देश्य से मानते हुए परिवाद को उपभोक्ता न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर पाया है। धारा 2(1)d के अनुसार कोई भी वस्तु यदि व्यावसायिक उद्देश्य से क्रय की जाती है तो क्रेता को उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माना जायेगा और क्रेता एवं विक्रेता के मध्य उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता के सम्बन्ध नहीं माने जा सकते हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2(1)d के अनुसार ऐसे में क्रय की गई वस्तु (प्रस्तुत मामले में दुकान) के सम्बन्ध में लाया गया परिवाद उपभोक्ता मामले में पोषणीय नहीं है।
7. प्रस्तुत मामले में परिवाद के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि कहीं भी इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया गया कि अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा प्रश्नगत दुकान अपने जीविकोपार्जन हेतु स्वरोजगार के उद्देश्य से क्रय की जा रही थी। अभिवचनों के अवलोकन से यह तथ्य स्पष्ट है। इस सम्बन्ध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय शिखा बिडला बनाम डी0एल0एफ0 रिटेलर्स डेवलपर्स (1)2013 सी0पी0जे0 पृष्ठ 665 का उल्लेख करना उचित है। इस निर्णय में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि धारा 2(1)d उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत किसी व्यावसायिक उद्देश्य से क्रय की गई सम्पत्ति के सम्बन्ध में स्पष्ट अभिवचन आवश्यक है कि यह कार्य क्रेता अपने जीवनयापन हेतु स्वरोजगार के उद्देश्य से कर रहा है जब तक अभिवचन में यह विशिष्ट तथ्य स्पष्ट तौर पर नहीं आता है, तब तक व्यावसायिक उद्देश्य से खरीदी गई सम्पत्ति को क्रेता को उपभोक्ता नहीं माना जा सकता है। धारा 2(1)d के अंतर्गत परिवाद पोषणीय नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उचित प्रकार से इस प्रकार के अभिवचन न होने के आधार पर उचित प्रकार से निष्कर्ष दिया है कि परिवाद पोषणीय नहीं है, क्योंकि अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा व्यावसायिक उद्देश्य से प्रश्नगत दुकान को क्रय किया गया है। स्वयं अपीलार्थी/परिवादिनी के अभिवचन परिवाद पत्र के प्रस्तर 02 में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि- "That the Complainant being in need of a shop for running her business, booked a shop hereinafter called "a unit" in the Sundaram Building at Raj Nagar District Centre Ghaziabad by depositing Rs. 12,750.00 at the time of booking." जिससे स्पष्ट होता है कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने स्वयं स्वीकार किया है कि उसने प्रश्नगत दुकान व्यावसायिक उद्देश्य से क्रय किया है एवं परिवाद या अन्य किसी अभिवचन में इस दुकान को जीवनयापन हेतु 'स्वरोजगार' के उद्देश्य से क्रय किया जाना उल्लिखित नहीं है। अत: मा0 राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णय के अनुसार अपीलार्थी/परिवादिनी एवं प्रत्यर्थी/विपक्षी के मध्य उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता के सम्बन्ध नहीं माने जा सकते हैं तथा वाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उचित प्रकार से परिवाद खारिज किया है, अत: प्रश्नगत निर्णय में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। तदनुसार प्रश्नगत निर्णय व आदेश पुष्ट होने योग्य एवं अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
8. अपील निरस्त की जाती है। प्रश्नगत निर्णय व आदेश की पुष्टि की जाती है तथा अपीलार्थी/परिवादिनी का परिवाद खारिज किया जाता है। परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत पोषणीय न होने के कारण अपीलार्थी/परिवादिनी को यह स्वतंत्रता प्रदान की जाती है कि वह उचित फोरम में अपना परिवाद प्रस्तुत कर सकती है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (डॉ0 आभा गुप्ता)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0-3