सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
(जिला उपभोक्ता आयोग, प्रथम लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या 657 सन 2005 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 17.09.2018 में बढोत्तरी हेतु)
अपील संख्या 2668 सन 2018
चन्द्र दत्त बाजपेयी पुत्र श्री राम दत्त बाजपेयी निवासी 14, बताशेवाली गली, अमीनाबाद, लखनऊ ।
..अपीलार्थी/परिवादी
-बनाम-
1. अंसल हाउसिंग फाइनेंस एण्ड लीजिंग कं0लि0 रजि0 आफिस 115, अंसल भवन, 16, कस्तूरबा गांधी मार्ग, नई दिल्ली 110001 द्वारा जनरल मैनेजर ।
2. अंसल हाउसिंग एण्ड कान्स्ट्रक्शन लि0 ए-1/12 विश्वास खण्ड, गोमतीनगर लखनऊ द्वारा शाखा प्रबन्धक ।
..प्रत्यर्थी/विपक्षीगण
समक्ष:-
मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य ।
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री विकास अग्रवाल।
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्रीमती सुचिता सिंह ।
दिनांक:- 09-02-2021
श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला उपभोक्ता आयोग, जिला आयोग, प्रथम लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या 657 सन 2005 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 17.09.2018 में बढोत्तरी हेतु प्रस्तुत की गयी है ।
संक्षेप में, प्रकरण के आवश्यक तथ्य इस प्रकार हैं अपीलार्थी/परिवादी ने वर्ष 1987 में आवासीय प्लाट के आवंटन हेतु विपक्षीगण के यहां आवेदन किया । दिनांक 16.05.1988 को अंसल हाउसिंग फाइनेंस एण्ड लीजिंग कं0लि0 द्वारा उसे सेक्टर-के, आशियाना लखनऊ में प्लाट संख्या 307, जिसका रकबा 231 वर्गमीटर था, मु0 275.00 रू0 प्रति वर्गमीटर की दर से आवंटित किया गया, जिसकी कुल कीमत 63,525.00 रू0 थी। अपीलार्थी/परिवादी ने विभिन्न तिथियों में दिनांक 14.01.1989 तक विपक्षीगण के पास प्लाट की कुल कीमत मु0 63,525.00 रू0 जमा कर दी। परिवादी ने उक्त प्लाट पर भौतिक कब्जा विक्रय पत्र तथा दिलाए जाने हेतु कई बार अनुरोध किया लेकिन विपक्षीगण ने कोई कार्यवाही नहीं की। दिनांक 29.07.2005 को विपक्षी संख्या-2 अंसल हाउसिंग एण्ड कान्स्ट्रक्शन लि0 द्वारा प्रेषित एक पत्र अपीलार्थी/परिवादी केा इस आशय का प्राप्त हुआ कि परिवादी ने सभी बकाया राशि का भुगतान नहीं किया है इसलिए चेक के माध्यम उसके द्वारा जमा सम्पूर्ण धन 63,525.00 रू0 उसे वापस किया जा रहा है। परिवादी का कथन है कि उसे प्रश्नगत प्लाट अंसल हाउसिंग फाइनेंस एण्ड लीजिंग कं0लि0 द्वारा आवंटित किया गया था जबकि उसका आवंटन अंसल हाउसिंग एण्ड कान्स्ट्रक्शन लि0 द्वारा निरस्त किया गया है। परिवादी का यह भी कथन है कि विपक्षीगण द्वारा उसे कभी सूचित नहीं किया गया कि उसे किन औपचारिकताओं की पूर्ति करनी है तथा प्लाट निरस्तीकरण पत्र दिनांक 29.07.2005 में यह उल्लिखित किया गया है कि उसने निरस्तीकरण पत्र दिनांक 14.06.2001 को भेज दिया है, जोकि उसे अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। पत्र में परिवादी का पता 14 बादशाह स्ट्रीट अमीनाबाद लखनऊ अंकित है, जबकि उसके घर का पता 14 बताशा वाली गयी, अमीनाबाद लखनऊ है। परिवादी ने इस संबंध में विधिक नोटिस दिनांक 01.09.2005 को विपक्षीगण को भेजकर, विपक्षीगण द्वारा प्रेषित चेक उन्हें वापस कर दिया और अनुरोध किया कि औपचारिकताऐं पूरी कराकर प्रश्नगत प्लाट का विक्रय विलेख परिवादी के पक्ष में किया जाए परन्तु विपक्षीगण द्वारा कोई सुनवाई नहीं की गयी जिससे क्षुब्ध होकर प्लाट नम्बर के-307 (नया नम्बर के-1044) को निरस्त करने का आदेश निरस्त करने, प्लाट का विक्रय पत्र परिवादिनी के पक्ष में करने तथा जमा धनराशि पर 24 प्रतिशत ब्याज, 25 हजार रू0 अपीलार्थी/परिवादी एवं 05 हजार वाद व्यय हेतु परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया।
विपक्षीगण की ओर से संयुक्त वादोत्तर प्रस्तुत कर उल्लिखित किया गया कि पूर्व में प्रश्नगत 231 वर्गमीटर का प्लाट 275.00 रू0 प्रति वर्गमीटर की दर से पूर्व अन्य को आवंटित किया गया था। पूर्व आवंटी द्वारा उक्त राशि जमा न करने तथा पूर्व आवंटी के अनुरोध पर परिवादी को प्रश्नगत प्लाट आवंटित किया गया था। पूर्व आवंटी ने पैसा जमा नहीं किया था अत: उस पर देय ब्याज भी परिवादी को ही देना था । परिवादी को भूखण्ड निबंधन कराने हेतु 20,992.74 रू0 जमा करने के लिए कहा गया और इस संबंध में कई अनुस्मारक दिए गए, लेकिन परिवादी ने धनराशि जमा नहीं की जिसके कारण उसको आवंटित प्लाट निरस्त कर दिया गया तथा परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि जरिए चेक परिवादी को वापस कर दी गयी। विपक्षीगण द्वारा निरस्तीकरण पत्र का पता सहीं अंकित किया गया है और उसी पते पर परिवादी को चेक भेजा गया, जो उसे प्राप्त हो गया है। विपक्षीगण का यह भी कथन है कि परिवादी द्वारा उसे विधिक नोटिस नहीं दी गयी ।
जिला मंच ने उभय पक्ष के साक्ष्य एवं अभिवचनों के आधार पर यह अवधारित करते हुए कि '' कि यह क्षेत्राधिकार इस फोरम को प्राप्त नहीं है कि वह किसी आदेश को निरस्त कर सके ऐसी परिस्थिति में निरस्तीकरण के संबंध में आदेश पारित करना उचित नहीं होगा '' निम्न आदेश पारित किया :-
'' परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को निर्देश दिया जाता है कि वह परिवादिनी को उसके द्वारा जमा धनराशि मु0 63,525.00 रू0 मय 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ परिवादिनी द्वारा भुगतान किए जाने की तिथि से वास्तविक भुगतान होने पर 45 दिन के अन्दर अदा करेगें साथ ही साथ मानसिक, शारीरिक क्षति के लिए मु0 5000.00 तथा वाद व्यय के लिए मु0 5000.00 अदा करेगें। यदि आदेश का पालन निर्धारित अवधि में नहीं होता है तो उपरोक्त सम्पूर्ण राशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भुगतेय होगा ''
उक्त आदेश से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत अपील परिवादी द्वारा योजित की गयी है।
अपील के आधारों में कहा गया है कि जिला आयोग का निर्णय साक्ष्य एवं विधि के विरूद्ध है और दोषपूर्ण है। परिवादी द्वारा प्लाट संख्या 307 (नया नम्बर के-1044) का कब्जा व रजिस्ट्री कराए जाने की याचना के साथ अपील स्वीकार करने की याचना की है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला आयोग का निर्णय व आदेश उचित है। अपील बलरहित है और निरस्त किए जाने योग्य है।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क विस्तारपूर्वक सुने एवं पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों का सम्यक अवलोकन किया।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि परिवादी ने विपक्षीगण से दिनांक 16.05.1988 को सेक्टर-के, आशियाना लखनऊ में प्लाट संख्या 307, आवंटित कराया जिसकी कुल कीमत मु0 63,525.00 रू0 थी जिसका भुगतान दिनांक 14.01.1989 तक कर दिया गया फिर भी विपक्षीगण ने उक्त प्लाट कैसिल कर दिया और उसकी रजिस्ट्री अन्य के पक्ष में कर दी जबकि विपक्षीगण की ओर से उल्लिखित किया गया कि पूर्व में प्रश्नगत प्लाट इसके पूर्व अन्य को आवंटित था लेकिन पूर्व आवंटी द्वारा उक्त राशि जमा न करने तथा पूर्व आवंटी के अनुरोध पर परिवादी को प्रश्नगत प्लाट आवंटित किया गया था । परिवादी ने पूर्ण धनराशि जमा नहीं की जिसके कारण उसको आवंटित प्लाट निरस्त कर दिया गया ।
विद्वान अधिवक्ता विपक्षी का तर्क है कि परिवादी द्वारा प्रश्नगत प्लाट के सम्पूर्ण मूल्य का भुगतान न करने के कारण प्लाट कैंसिल करके अन्य व्यक्ति को आवंटित कर दिया गया है तथा परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि परिवादी को चेक द्वारा उपलब्ध करा दी है और प्रश्नगत प्लाट बेंचने का एग्रीमेंट कर प्लाट का आवंटन तृतीय पक्ष को कर दिया है जबकि परिवादी ने उक्त चेक यह कहते हुए विपक्षीगण को वापस कर दी थी कि वह निर्णय से सन्तुष्ट नहीं है और आदेश के विरूद्ध अपील करेगा।
हमने पत्रावली पर विपक्षीगण द्वारा उपलब्ध कराए गए विक्रय-विलेख दिनांकित 12.02.2019 का अवलोकन किया जिसके पृष्ठ 15 में उल्लिखित है कि – that the allotment letter and agreement to sell both dated 01-11-2018 signed and agreed by and between the license and the purchaser, shall form an integral part of this sale deed and the same shall be read and construed in addition and not in derogation to this deed, in case of any contravention the contents of said agreement to sell and allotment letter shall supersede.
इसके अतिरिक्त agreement to sell के पृष्ठ 3 में उल्लिखित किया गया है कि & “AND WHEREAS the vendee has gone through all the court records, including the court order dated 17-9-2018 and he also acknowledges that there is a possibility of Appeal by Mr. Bajpai where Mr. Bajpai might even win the Court case and vendee might lose the plot, even then the vendee wishes to purchase the aforesaid plot with all the aforesaid risk and cost attached to the property, provided the same is sold to him a concessional rate.
अत: उपरोक्त संधि से स्पष्ट है कि विपक्षीगण की जानकारी में था कि परिवादी अपील प्रस्तुत करेगा परन्तु फिर भी परिवादी के अधिकारों का हनन करते हुए विपक्षीगण ने प्रश्नगत प्लाट को लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से तृतीय पक्ष को कम मूल्य पर बेंच दिया ।
परिवादी द्वारा अपने सप्लीमेंटी शपथपत्र के पृष्ठ 20 के साथ संलग्न एग्रीमेंट टू सेल दिनांकित 01.11.18 के बोर्ड रिजोलेशन दिनांकित 09.08.2018 की प्रति दाखिल की गयी है जिसमें उल्लेख है कि विपक्षीगण द्वारा उक्त रिजोलेशन दिनांक 09.08.2018 को पारित कर प्रश्नगत प्लाट को तीसरे पक्ष के हक में हस्तांतरण करने का मसौदा तैयार कर लिया गया था, जबकि पक्षों के बीच तय था कि प्रश्नगत प्लाट दौरान मुकदमा किसी अन्य को विक्रय नहीं किया जाएगा ।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट है कि उक्त एग्रीमेंट टू सेल को विक्रय विलेख का अंग न बनाकर लखनऊ विकास प्राधिकरण एवं पंजीकरण कार्यालय के अधिकारियों को गुमराह करके विक्रय-विलेख निष्पादित किया गया है । मामला न्यायालय के समक्ष लम्बित एवं विचाराधीन होने के बाद प्रश्नगत प्लाट का हस्तांतरण एवं रजिस्ट्री अन्य पक्ष को करने के कारण प्रथम सूचना रिपोर्ट भी थाने पर अंकित करायी गयी है ।
विद्वान जिला मंच द्वारा अपने विवेच्य निर्णय में उल्लिखित किया है कि विपक्षीगण ने इस संदर्भ में कोई भी कागजात दाखिल नहीं किए है जिससे यह प्रतीत हो सके कि परिवादी का आवंटन वर्ष 2001 में निरस्त किया गया है। जबकि परिवादी ने विपक्षीगण के पत्र दिनांकित 29.07.2005 की छायाप्रति दाखिल की है जिससे यह स्पष्ट होता है कि आवंटन दिनांक 14.06.2006 को निरस्त किया गया है। प्रश्नगत प्लाट का विक्रय-विलेख तृतीय पक्ष को निष्पादित हो चुका है और विक्रय विलेख शून्य करने का अधिकार आयोग को नहीं है। हमारे अभिमत से विपक्षीगण द्वारा प्रश्नगत प्लाट का विक्रय-विलेख अपील के विचाराधीन होते हुए भी तृतीय पक्ष के हक में किया गया है एवं प्लाट बेंचने की प्रक्रिया तथ्यों को छिपाकर निष्पादित करायी गयी है तथा बिक्रय विलेख में ''भार मुक्त'' दर्शाते हुए गलत तथ्यों का समावेश किया गया है, जो विपक्षीगण की सेवा में कमी को परिलक्षित करता है।
हम विद्वान जिला मंच के इस तर्क से सहमत नहीं हैं कि आवंटन निरस्तीकरण पत्र निरस्त करने का अधिकार जिला मंच को नहीं है क्योंकि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 14 में यह अधिकार दिया गया है कि यदि कहीं सेवा में कमी है तो उस कमी को दूर कराने का अधिकार फोरम को है और इस संबंध में आदेश पारित न विद्वान जिला मंच द्वारा भूल कारित की गयी है क्योंकि परिवादी द्वारा प्लाट संख्या 307 (नया नम्बर के-1044) के मूल्य की पूर्ण धनराशि वर्ष 1989 में ही जमा की जा चुकी थी, अत: परिवादिनी उक्त प्लाट की रजिस्ट्री व कब्जे का पूर्ण रूप से अधिकारी था। चूंकि प्लाट संख्या 307 (नया नम्बर के-1044) की रजिस्ट्री तृतीय पक्ष के हक में की जा चुकी है, अत: उसके संबंध में कोई आदेश पारित करना उचित नही होगा।
अपीलार्थी/परिवादी द्वारा विद्वान जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत परिवाद में प्लाट की कीमत की मांग नही की गयी थी फिर भी प्लाट की कीमत देने का आदेश जिला मंच द्वारा पारित किया गया है। अत: न्यायसंगत होगा कि विपक्षीगण द्वारा परिवादी को प्लाट संख्या 307 (नया नम्बर के-1044) के स्थान पर उसी कीमत एवं आकार प्रकार का अन्य प्लाट अपनी किसी अन्य योजना में आवंटन कर उसका कब्जा दे अथवा प्लाट की रजिस्ट्री के दिनांक को प्रचलित सर्किल रेट की दर से प्लाट की कीमत मय ब्याज परिवादिनी को उपलब्ध कराऐं।
परिणामत:, प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है तथा जिला फोरम का प्रश्नगत निर्णय दिनांकित 17.09.2018 को इस सीमा तक संशोधित किया जाता है कि परिवादी को प्लाट संख्या 307 (नया नम्बर के-1044) के स्थान पर उसी कीमत एवं आकार प्रकार के समतुल्य अन्य प्लाट का आवंटन करे अथवा प्लाट की रजिस्ट्री के दिनांक को प्रचलित सर्किल रेट की दर से प्लाट की कीमत मय 12 (बारह) प्रतिशत ब्याज सहित ता अदायगी अदा करें। आदेश का अनुपालन अन्दर दो माह हो।
विपक्षीगण, परिवादी को मानसिक क्लेश एव वाद व्यय हेतु 20,000.00 रू0 अलग से अदा करेगा ।
(राजेन्द्र सिंह) (गोवर्धन यादव)
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