राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या:-1891/2014
(जिला मंच, मेरठ द्धारा परिवाद सं0-205/2011 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 24.02.2014 के विरूद्ध)
Cholamandalam MS General Insurance Company Ltd., Regional Office, 2nd Floor, 4 Marry Gold, Shah Najaf Road, Sapru Marg, Lucknow through its Assistant General Manager.
........... Appellant/Opp. Party
Versus
Ankit Gupta, S/o Sri Akhil Kumar Gupta, R/o House No. 184 Abuane, Meerut.
……..…. Respondent/ Complainant
समक्ष :-
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य
मा0 गोवर्धन यादव, सदस्य
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री टी0के0 मिश्रा
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : श्री करन वीर सिंह
दिनांक :-15.6.2018
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील परिवाद संख्या-205/2011 में जिला मंच, मेरठ द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 24.02.2014 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार उसने एक नई टाटा सफारी कार दिनांक 19.9.2008 को 7,68,906.00 रू0 में क्रय की थी, जिसका पंजीयन संख्या यू0पी0 15ए0एच0 4200 थी। परिवादी की यह कार दिनांक 19.9.2008 से 18.9.2009 तक की अवधि के लिए अपीलार्थी बीमा कम्पनी से बीमित थी। परिवादी की यह कार मकान सं0-7/25, थाना पटेलनगर, नई दिल्ली से दिनांक 20.6.2009 को समय सुबह 8.00 बजे चोरी हो गई, जिसकी सूचना
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शीघ्र 100 नम्बर पर दिल्ली पुलिस एवं अपीलार्थी के एजेण्ट के माध्यम से अपीलार्थी बीमा कम्पनी को प्रेषित की गई। सम्बन्धित थाने में अ0सं0-263/2009 अन्तर्गत धारा-379 भा.द.संहिता के अन्तर्गत मुकदमा दर्ज किया गया। पुलिस ने विवेचना के उपरांत अंतिम आख्या दिनांक 21.7.2009 को न्यायालय में प्रस्तुत की, जो न्यायालय द्वारा दिनांक 18.12.2009 को स्वीकृत कर ली गई। परिवादी ने समस्त औपचारिकताऐं पूर्ण करते हुए बीमा दावा दिनांक 13.02.2010 को प्रेषित किया। अपीलार्थी ने पत्र दिनांकित 25.01.2010 द्वारा अवगत कराया कि प्रश्नगत कार थाना किदवई नगर कानपुर की पुलिस द्वारा दिनांक 06.9.2010 को बरामद कर ली गई है तथा पुलिस सुरक्षा में खड़ी गाड़ी की क्षति का उत्तरदायित्व बीमा कम्पनी का नहीं होगा। यह कहते हुए दावे की पत्रावली बन्द कर दी गई। अत: परिवाद बीमित धनराशि मय ब्याज तथा क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु जिला मंच के समक्ष योजित किया गया।
अपीलार्थी के कथनानुसार कथित चोरी की सूचना अत्याधिक विलम्ब से प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रेषित की गई। चोरी की घटना के प्रश्चात 11 दिन बाद पुलिस को और 15 दिन बाद अपीलार्थी बीमा कम्पनी को सूचना प्रेषित की गई। अत: बीमा पालिसी के नियम व शर्तों का उल्लंघन किए जाने के कारण बीमा दावा स्वीकार नहीं किया गया।
विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा परिवाद स्वीकार करते हुए अपीलार्थी बीमा कम्पनी को निर्देशित किया कि वह परिवादी के कथित वाहन की बीमित राशि की 75 प्रतिशत धनराशि एक माह में अदा करें, अन्यथा परिवादी उपरोक्त धनराशि दौरान परिवाद तावक्त वसूलयाबी 08 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित प्राप्त करने का अधिकारी होगा, इसके अतिरिक्त 5,000.00 रू0 परिवाद व्यय भी अदा किए जाने हेतु भी आदेशित किया गया।
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इस निर्णय से क्षुब्ध होकर अपील योजित की गई है।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री टी0के0 मिश्रा तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री करन वीर सिंह के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
प्रस्तुत अपील प्रश्नगत निर्णय दिनांकित 24.02.2014 के विरूद्ध दिनांक 19.9.2014 को योजित की गई है। इस प्रकार अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-15 के अन्तर्गत निर्धारित समय सीमा के बाद विलम्ब से योजित की गई है। अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब को क्षमा किए जाने हेतु प्रार्थना पत्र अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत किया गया है और प्रार्थना पत्र के समर्थन में शपथपत्र श्री अंकित मिश्रा, सहायक मैंनेजर लीगल का प्रस्तुत किया गया है। शपथपत्र में श्री अंकित मिश्रा द्वारा यह अभिकथित किया गया कि प्रश्नगत निर्णय दिनांकित 24.02.2014 की प्रमाणित प्रति प्राप्त करने हेतु प्रार्थना पत्र दिनांकित 25.02.2014 को प्रस्तुत किया गया तथा प्रमाणित प्रति दिनांक 03.3.2014 को प्राप्त हुई। अपीलार्थी के अधिवक्ता ने प्रमाणित प्रति अपीलार्थी के कार्यालय को भेजी, जो अपीलार्थी के कार्यालय में दिनांक 13.3.2014 को प्राप्त हुई और अपीलार्थी के कार्यालय द्वारा दिनांक 24.3.2014 को श्री टी0के0 मिश्रा को पत्रावली राय देने हेतु सुपुर्द की गई। श्री टी0के0 मिश्रा द्वारा अपनी राय दिनांक 02.4.2014 को अपील प्रस्तुत करने के संदर्भ में दी गई। गलती से प्रश्नगत प्रकरण की पत्रावली अन्य पत्रावलियों के साथ रख दिए जाने के कारण यह पत्रावली दिनांक 18.8.2014 को मिल सकी, तदोपरांत अपीलार्थी के लखनऊ कार्यालय द्वारा पत्रावली अपीलार्थी के मुख्य कार्यालय चेन्नई अपील की स्वीकृति हेतु भेजी गई। सक्षम अधिकारी द्वारा अपील योजित किए जाने की स्वीकृति दिनांक 01.9.2014 को प्रदान की गई। तदोपरांत चेन्नई कार्यालय द्वारा पत्रावली लखनऊ कार्यालय भेजी गई और 25,000.00 रू0 का बैंक
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ड्राफ्ट लखनऊ कार्यालय की प्रार्थना पर चेन्नई के व्यवसायिक शाखा द्वारा दिनांक 09.9.2014 को तैयार कराया गया और यह बैंक ड्राफ्ट लखनऊ कार्यालय को दिनांक 16.9.2014 को प्राप्त हुआ। दिनांक 17.9.2014 को पत्रावली विद्वान अधिवक्ता श्री टी0के0 मिश्रा प्रदान की गई, तदोपरांत अपील दिनांक 19.9.2014 को योजित की गई।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि प्रश्नगत निर्णय की प्रमाणित प्रति दिनांक 03.3.2014 को प्राप्त करने के उपरांत अपील दिनांक 02.4.2014 तक योजित की जानी आवश्यक थी, किन्तु 07 माह से अधिक विलम्ब के उपरांत यह अपील योजित की गई है। अपीलार्थी द्वारा अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब का जो कारण दर्शित किया गया है, उसके अवलोकन से यह विदित होता है कि अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब का पर्याप्त कारण दर्शित नहीं किया गया है। दर्शित किए गये कारणों से यह विदित होता है कि अपील समय सीमा के अन्दर योजित किए जाने हेतु गम्भीर प्रयास नहीं किए गये, बल्कि पूरी शिथिलता से सुविधानुसार कार्यवाही की गई। ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब का पर्याप्त कारण अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत न किए जाने के कारण अपील कालबाधित है और इसी आधार पर ही अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
जहॉ तक गुण-दोष के आधार पर अपील पर विचारण का प्रश्न है। अपील के आधारों में अपीलार्थी द्वारा यह अभिकथित किया गया है कि प्रश्नगत वाहन पुलिस द्वारा बरामद कर लिया गया था, जिसकी सूचना अपीलार्थी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी को प्रदान कर दी गई थी, तदोपरांत परिवादी के प्रतिनिधि द्वारा प्रश्नगत वाहन की चॉबियां तथा प्रथम सूचना रिपोर्ट की मूल प्रति प्राप्त कर ली गई थी, अत: अपीलार्थी बीमा कम्पनी का क्षतिपूर्ति की अदायगी का दायित्व नहीं माना जा सकता।
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अपीलार्थी का यह भी कथन है कि प्रश्नगत वाहन की कथित चोरी की सूचना सम्बन्धित थाने में 11 दिन बाद दी गई एवं अपीलार्थी बीमा कम्पनी को सूचना 14 दिन विलम्ब से दी गई, अत: बीमा पालिसी की शर्त सं0-1 व 9 का उल्लंघन किए जाने के कारण बीमा दावे की अदायगी नहीं की गई।
जहॉ तक प्रश्नगत वाहन की बरामदगी का प्रश्न है। प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि अपीलार्थी द्वारा पत्र दिनांकित 25.01.2010 परिवादी को प्रेषित किया। यह पत्र दिनांक 27.01.2011 को परिवादी को प्राप्त हुआ तथा इस पत्र के द्वारा परिवादी को सूचित किया गया कि परिवादी का वाहन थाना किदवई नगर कानपुर की पुलिस द्वारा बरामद कर लिया गया है, किन्तु इस पत्र में वाहन सं0- यू0पी015 एएच 4209 दर्शित था तथा वाहन की चोरी का दिनांक 03.7.2007 अंकित था, जबकि परिवादी के प्रश्नगत वाहन की पंजीयन सं0- यू0पी0 15 ए0एच0 4200 थी। इस प्रकार प्रत्यर्थी/परिवादी ने एक वर्ष पूर्व की तिथि अंकित करते हुए यह पत्र प्रेषित किया था। इस पत्र में अंकित विवरण के अनुसार कथित रूप से बरामद कार प्रत्यर्थी/परिवादी की नहीं थी, किन्तु फिर भी प्रत्यर्थी/परिवादी ने कानपुर जाकर सम्बन्धित न्यायालय में थाना किदवई नगर द्वारा बरामद की गई कार को अपने पक्ष में मुक्त कराने हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया। इस प्रार्थना पत्र पर न्यायालय द्वारा सम्बन्धित थाने से आख्या मॉगी गई। सम्बन्धित थाने से उपलब्ध करायी गई आख्या के अनुसार बरामद वाहन परिवादी का प्रश्नगत वाहन न होने के कारण थाना किदवई नगर की पुलिस द्वारा बरामद वाहन को परिवादी के पक्ष में मुक्त नहीं किया गया। ऐसी परिस्थिति में अपीलार्थी का यह तर्क स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि प्रश्नगत वाहन पुलिस द्वारा बरामद कर लिए जाने के कारण प्रश्नगत वाहन की चोरी के कारण अपीलार्थी क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु उत्तरदायी नहीं है।
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जहॉ तक कथित चोरी की सूचना अपीलार्थी बीमा कम्पनी को तथा पुलिस में विलम्ब से दिए जाने का प्रश्न है। Silversons Vs. Oriental Insurance Company Limited and another IV (2011) CPJ 9 (SC) के मामले में मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने ‘Promptʼ नोटिस के संदर्भ में विचार करते हुए निम्न मत व्यक्त किया है:-
Although, the view taken by the National Commission that for availing benefit of the Policy, the insured should give intimation to the insurer within 24 hours or 48 hours or at best within 72 hours appears to be too narrow and we are inclined to agree with the learned counsel for the appellant that it would be sufficient if intimation is given to the insurer within a reasonable period, but what should be the reasonable period within which the insured should inform the insurer about the loss of goods would depend upon the facts of each case and no straight jacket formula can be laid down to determine as to what would constitute prompt notice within the contemplation of clause 9 of the Institute Cargo Clauses.
जहॉ तक प्रस्तुत प्रकरण का प्रश्न है प्रत्यर्थी/परिवादी का यह कथन है कि प्रश्नगत वाहन की चोरी दिनांक 20.6.2009 को सुबह 8.00 बजे हुई थी और कार चोरी की सूचना परिवादी ने शीघ्र 100 नम्बर पर दिल्ली पुलिस को दी, किन्तु सम्बन्धित थाने की पुलिस ने यह कहकर परिवादी की रिपोर्ट दर्ज नहीं की कि वह पहले गाड़ी को स्वयं तलाश करें और काफी तलाशने के पश्चात जब गाड़ी नहीं मिली तो परिवादी की रिपोर्ट दर्ज की गई। अत: पुलिस में चोरी की सूचना विलम्ब से दिया जाना नहीं माना जा सकता। पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज किए जाने के उपरांत विवेचना की गई और विवेचना में प्रश्नगत कार की चोरी की घटना को असत्य नहीं पाया गया। पुलिस द्वारा विवेचना के उपरांत अंतिम आख्या सम्बन्धित न्यायालय में
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दिनांक 21.7.2009 को प्रेषित की गई और यह अंतिम आख्या न्यायालय द्वारा स्वीकार की गई। ऐसी परिस्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि परिवादी ने प्रश्नगत वाहन की चोरी की सूचना अनावश्यक विलम्ब से उपलब्ध करायी।
प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि विद्वान जिला मंच ने बीमित धनराशि की 75 प्रतिशत धनराशि की अदायगी हेतु अपीलार्थी को निर्देशित किया है। मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों के आलोक में हमारे विचार से अपील में बल नहीं है और अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष अपीलीय व्यय भार स्वयं वहन करेंगे।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-5