राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-920/2012
(जिला उपभोक्ता फोरम, कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या 654/2006 में पारित निर्णय दिनांक 13.02.12 के विरूद्ध)
1. सीनियर डिवीजन कामर्शियल मैनेजर, नार्दन रेलवे, मुरादाबाद।
2. स्टेशन मास्टर मुरादाबाद रेलवे स्टेशन मुरादाबाद
3. स्टेशन मास्टर, चन्दौली रेलवे स्टेशन, चन्दौली। .........अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम्
अंकित अवस्थी पुत्र लक्ष्मीकांत अवस्थी, एडवोकेट निवासी-76 इनकम
टैक्स सोसाइटी विनायकपुर जिला कानपुर नगर। ......प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :कोई नहीं।
दिनांक 30.10.2017
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या 654/2006 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दि. 13.02.2012 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है। जिला मंच ने निम्न आदेश पारित किया है:-
'' उपरोक्त कारणों से परिवादी द्वारा प्रस्तुत वाद विपक्षीगण के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि परिवादी को निर्णय के 30 दिन के अंदर रू. 15000/- अदा कर देवे।''
संक्षेप में परिवादी के अनुसार तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने दि. 20.12.05 को कानपुर से देहारादून जाने के लिए एक रेलवे टिकट संख्या 86833697 पी.एन.आर. संख्या 242-0978013 क्रय किया तथा उसके मित्र को बर्थ संख्या 61 व 62 कोच संख्या एस-6 आरक्षित था, परन्तु ट्रेन आने पर संबंधित स्लीपर कोच एस-6 के दरवाजे बंद थे जिससे वह उस डिब्बे में नही चढ़ सका। परिवादी के अनुसार उसने रेलवे अधिकारियों एवं जी.आर.पी. से शिकायत किया तब उन लोगों ने परिवादी व उसके साथी को किसी भी क्लास में यात्रा करने की अनुमति प्रदान की, जिसके कारण परिवादी दूसरे कोच में चला गया। जब ट्रेन चंदौसी रेलवे स्टेशन पर पहुंची तब विपक्षी के अधिकारियों ने पुलिस की सहायता से परिवादी के
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साथ दुर्व्यवहार किया और ट्रेन से यात्रा करने की अनुमति नहीं दी तथा दूसरी ट्रेन से भेजने के लिए भी कोई प्रयास नहीं किया, जिसके संबंध में परिवादी ने मुरादाबाद स्टेशन मास्टर के यहां दि. 21.12.05 को शिकायत दर्ज कराई। विपक्षी रेलवे की इस सेवा में कमी के कारण वह अपने साथी सहित उत्तरांचल पी.सी.एस परीक्षा में सम्मिलित नहीं हो सका।
जिला मंच के समक्ष विपक्षी रेलवे द्वारा अपना जवाबदावा प्रस्तुत करते हुए परिवाद का प्रतिवाद किया और यह अभिकथन किया कि दि. 20.12.05 को जब ट्रेन संख्या 4163 संगम एक्सप्रेस कानपुर सेन्ट्रल स्टेशन पहुंची तो कोच संख्या एस-6 द्वितीय श्रेणी शयनयान एवं अन्य सभी कोच के सभी दरवाजे खुले हुए थे तथा सभी यात्री आराम से उतर एवं चढ़ रहे थे। किसी यात्री ने बर्थ न मिलने की शिकायत नहीं की। विपक्षीगणों ने यह भी कहा कि यह अवश्य था कि पी.सी.एस. की परीक्षा देने के लिए देहरादून जाने वालों की संख्या अधिक थी, इसके बावजूद आरक्षित वर्ग के यात्रीगण अपने निर्दिष्ट सीटों पर आसानी से पहुंचे। ट्रेन के कोचों के सभी दरवाजे खुले थे। इतना अवश्य हो सकता है कि उस दिन यात्रियों की भीड़ होने के कारण यात्रियों को ट्रेन में थोड़ी देर लगी हो। यात्रा के दिन अलीगढ़ स्टेशन में राजकोट स्टेशन पर यह सूचना प्राप्त हुई कि वातानुकूलित शयन यान में अनधिकृत यात्री की भीड़ भरी हुई है जिन्हें कोच से बाहर निकलवाया जाए। इस सूचना पर स्टेशन मास्टर अलीगढ़ द्वारा स्टेशन मास्टर राजघाट को कोच संख्या ए.सी.-2 को खाली करवाने हेतु सूचित किया गया, किंतु राजघाट पर समय कम होने के कारण स्टेशन मास्टर चंदौसी को अनधिकृत यात्रियों से भरे यात्रियों से खाली कराने हेतु निर्देश दिया गया। स्टेशन मास्टर रेलवे स्टेशन चंदौसी ने जी.आर.पी. पुलिस एवं रेलवे सुरक्षा बल को साथ लेकर वातानुकूलित शयन यान से अनधिकृत रूप से यात्रा कर रहे यात्रियों को सम्मानपूर्वक चंदौसी रेलवे स्टेशन पर उतार कर खाली करवाया गया। स्टेशन मास्टर चंदौसी ने परिवादी एवं उसके मित्र को ट्रेन संख्या 4163 से आगे गंतव्य स्टेशन देहारादून तक की यात्रा करने से रोका नहीं था। चंदौसी स्टेशन पर द्वितीय श्रेणी शयन यान एस-5,6, 7 व 8 के सभी दरवाजे पूर्ण रूप से खुले थे। परिवादी व उसके मित्र ने अनधिकृत रूप से ए.सी. कोच में यात्रा की, जिन्हें बाद में चंदौसी स्टेशन पर उतारा गया। रेलवे अधिकारी ने इस प्रकरण की जांच की और शिकायत गलत पाई गई थी। परिवादी ने मुरादाबाद स्टेशन पर झूठी शिकायत दर्ज कराई, किंतु 13.30
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बजे दोपहर के बाद मुरादाबाद स्टेशन से देहरादून तक सीधे जाने के लिए कोई ट्रेन नहीं थी, अन्यथा परिवादी संख्या 2 अवश्य ही उचित व्यवस्था व सहयोग करता।
पीठ ने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों एवं साक्ष्यों का भलीभांति परिशीलन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
यह तथ्य निर्विवाद है कि परिवादी कानपुर सेंट्रल स्टेशन से देहारादून जाने के लिए दि. 20.12.05 को टिकट अपने साथी के साथ क्रय किया, जिनकी आरक्षित बर्थ संख्या 61, 62 एस-6 में था। परिवादी के अनुसार एस-6 के दरवाजे बंद थे, इसलिए वे अपने साथी के साथ आरक्षित कोच में नहीं उतर सके और रेलवे अधिकारियों से संपर्क होने पर उनके द्वारा किसी भी कोच में बैठकर जाने की अनुमति दी थी। विपक्षी रेलवे विभाग का कहना है कि कोच एस-6 के दरवाजे बंद नहीं थे व सभी दरवाजे खुले थे और सामान्य तरीके से चढ़ रहे थे, परन्तु उसने स्वयं स्वीकार किया है कि देहरादून जाने के लिए तत्समय एक गाड़ी थी जिसमें पी.सी.एस. परीक्षा के कारण भीड़ ज्यादा थी। इस तरह की घटनाएं जब कोई विशेष परीक्षा होती है तो सामान्यत: देखी जाती है। परीक्षार्थी जो अपना टिकट आरक्षित नहीं करा सके हैं या जिनके पास सामान्य टिकट होता है भीड़ होने की दशा में आरक्षित कोच में चढ़ जाते हैं और भीड़ इतनी अधिक होती है कि जी.आर.पी. के कुछ मुट्ठी भर सिपाही उनको कोच से बाहर नहीं निकाल पाते हैं और आरक्षित टिकटों वाले यात्री या तो खड़े होकर यात्रा करते हैं या अपनी यात्रा निरस्त कर देता है। अपीलार्थी ने अपने लिखित कथन में यह अभिलिखित किया है कि कानपुर सेन्ट्रल स्टेशन पर कोच संख्या 56 के दरवाजे खुले हुए थे और यात्री आराम से चढ़ व उतर रहे थे, जबकि दूसरी और यह स्वीकार भी किया है कि पी.सी.एस. परीक्षा देने के लिए देहरादून जाने वालों की संख्या अधिक थी। ऐसी स्थिति में यात्रियों की स्टेशन पर क्या हालत होती है यह सर्वविदित है, अत: अपीलार्थी का यह कथन स्वीकार होने योग्य नहीं है कि कोच एस-6 के दरवाजे खुले हुए थे। रेलवे का यह दायित्व था कि आरक्षित कोच को स्टेशन पर जिस पर अनधिकृत व्यक्ति सवार थे उनसे खाली कराया जाता और जिनके पास आरक्षित टिकट थे उन्हें यात्रा की अनुमति दी जाती। परिवादी जो एक महत्वपूर्ण परीक्षा को देने जा रहा था और उसका जाना आवश्यक था, अत: वह मजबूरी में ए.सी.कोच में चढ़ गया। रेलवे ने भेदभाव करते हुए जो लोग अनधिकृत रूप से ए.सी
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द्वितीय श्रेणी के कोच में थे उनको तो चंदौसी स्टेशन पर उतार दिया गया, परन्तु सामान्य द्वितीय श्रेणी कोच से अनधिकृत रूप से यात्रा कर रहे यात्रियों को नहीं उतारा गया। परीक्षार्थी जो परीक्षा देने के लिए जा रहा है उसका मुख्य लक्ष्य ट्रेन से अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचना होता है, लेकिन परिवादी जब यात्रा नहीं कर सका तब उसके द्वारा चंदौसी से मुरादाबाद आकर स्टेशन मास्टर मुरादाबाद को अपनी शिकायत दर्ज कराई गई और यह अनुरोध किया गया कि उसे किसी तरह से देहरादून पहुंचाया जाए। इस तथ्य को अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा स्वयं अपने लिखित कथन में स्वीकार किया है कि परिवादी ने प्रतिवादी संख्या 2 के यहां शिकायत दर्ज कराई, किंतु 13.30 बजे दोपहर के बाद मुरादाबाद स्टेशन से देहरादून सीधे जाने के लिए कोई ट्रेन नहीं थी, अन्यथा प्रतिवादी संख्या 2 अवश्य ही उचित व्यवस्था व सहयोग करता, अत: यह साक्ष्यों से सिद्ध है कि परिवादी के पास एस-6 आरक्षित कोच का टिकट था और वह भीड़ के कारण नहीं चढ़ सका, क्योंकि कोच का दरवाजा बंद था। उसने मजबूरी में ए.सी.-2 के डिब्बे में यात्रा चंदौसी तक की और चंदौसी में उसे रेलवे द्वारा उतारा गया, परन्तु वह एस-6 में नहीं चढ़ सका। इसकी शिकायत भी उसने दर्ज कराई, परन्तु कोई व्यवस्था उसकी देहरादून जाने के लिए नहीं हो पाई, जिससे वह पी.सी.एस परीक्षा में नहीं बैठ सका। निश्चित रूप से यह रेलवे विभाग/अपीलार्थी की सेवा में कमी दर्शाता है। जिला मंच का निर्णय साक्ष्यों पर आधारित है तथा विधिसम्मत है। हम उसमें कोई त्रुटि नहीं पाते हैं एवं जिला मंच का आदेश पुष्ट किए जाने योग्य है। तदनुसार अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। जिला मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश दि. 13.02.12 की पुष्टि की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध कराई जाए।
(राज कमल गुप्ता) (महेश चन्द)
पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, आशुलिपिक
कोर्ट-5