(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 432/2014
केसा हाउस सिविल लाइंस कानपुर नगर व एक अन्य।
बनाम
श्रीमती अंजुम खान पत्नी श्री मो0 तारिक।
समक्ष:-
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री इसार हुसैन, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री प्रमेन्द्र वर्मा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 06.11.2024
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 417/2011 श्रीमती अंजुम खान बनाम केसा हाउस सिविल लाइंस व एक अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 31.12.2013 के विरुद्ध यह अपील योजित की गई है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद एकपक्षीय रूप से स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है:-
‘’उपरोक्त कारणों से परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत वाद विपक्षीगण के विरूद्ध एकपक्षीय रूप से स्वीकार किया जाता है। परिवादिनी का विद्युत संयोजन सं0-008229 स्थाई रूप से विच्छेदित किया जाता है। विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि निर्णय के 30 दिन के अंदर परिवादिनी को सम्पूर्ण क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 10,000.00 अदा कर देवें।‘’
प्रत्यर्थी/परिवादिनी का परिवाद पत्र में संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी एक छोटी सी दुकान में पी0सी0ओ0 संचालित करती थी तथा पी0सी0ओ0 संचालन हेतु विद्युत सयोजन नं0- 008229 प्राप्त किया था, जिसका मीटर नं0- सी0पी0 2450 था। दि0 23.03.2007 को पुराना मैकेनिकल मीटर बदलकर नया इलेक्ट्रॉनिक मीटर लगाया गया। मोबाइल का प्रचलन बढ़ने के कारण पी0सी0ओ0 सितम्बर 2007 में बन्द हो गया, उस समय मीटर रीडिंग 802 थी। जुलाई 2009 तक अपीलार्थीगण/विपक्षीगण द्वारा कोई बिल जारी न करने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अपीलार्थीगण/विपक्षीगण से सम्पर्क किया तब अपीलार्थीगण/विपक्षीगण ने दि0 23.07.2009 को रू0 14,628/- का बिल जारी किया, जिसमें मीटर रीडिंग 802 से 852 तथा यूनिट खर्च 208 प्रदर्शित किया गया था, जबकि उस समय भी मीटर रीडिंग मात्र 802 थी। प्रत्यर्थी/परिवादिनी, अपीलार्थीगण/विपक्षीगण से विद्युत बिल संशोधित करने के लिये कहा, लेकिन अपीलार्थीगण/विपक्षीगण के कर्मचारियों ने रू0 1000/- तथा रू0 7000/- जमा करने हेतु निर्देशित किया। अपीलार्थीगण/विपक्षीगण द्वारा मांगी गई अवैध धनराशि को प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने जमा करने से मना कर दिया। विद्युत संयोजन की आवश्यकता न होने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने मीटर उखाड़ लेने के लिये निवेदन किया तथा बिल को संशोधित करने के लिये प्रार्थना किया। इसी कारणवश प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दि0 31.07.2009 को रू0 15,000/-उधार लेकर 14,628/-रू0 अपीलार्थीगण/विपक्षीगण के यहां अदा कर दिया। दि0 20.10.2010 को अपीलार्थीगण/विपक्षीगण के कर्मचारी प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पी0सी0ओ0 पर आये तथा मीटर रीडिंग जांच कर मीटर उखाड़ कर एक रसीद प्रत्यर्थी/परिवादिनी को दे दिया। फोरम द्वारा आदेश पारित किये जाने के पश्चात प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने रू0 12,679.00 दि0 13.03.2013 को अदा कर दिया। इसके बावजूद प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा अधिक अदा की गई धनराशि को अपीलार्थीगण/विपक्षीगण वापस नहीं किये, जिससे व्यथित होकर प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने यह परिवाद प्रस्तुत किया है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपीलार्थीगण/विपक्षीगण को नोटिस जारी की गई, लेकिन पर्याप्त तामीला के बावजूद अपीलार्थीगण/विपक्षीगण फोरम के समक्ष उपस्थित नहीं आये। इस कारण अपीलार्थीगण/विपक्षीगण के विरूद्ध मुकदमा एकपक्षीय रूप से चलाये जाने का आदेश पारित किया गया।
हमारे द्वारा अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री प्रमेन्द्र वर्मा को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परीक्षण व परिशीलन किया गया।
प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने प्रत्यर्थी/परिवादिनी का विद्युत संयोजन सं0- 008229 स्थायी रूप से विच्छेदित किया है। पीठ के अनुसार निर्णय में कोई दोष परिलक्षित नहीं होता है, जिस आधार पर उक्त निर्णय/आदेश में हस्तक्षेप करने का आधार हो।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अन्य तर्कों के साथ-साथ यह भी कथन किया गया कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने अपीलार्थीगण/विपक्षीगण द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी को सम्पूर्ण क्षतिपूर्ति के रूप में 10,000/-रू0 अदा करने हेतु आदेशित किया है, जो उचित नहीं है।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि प्रश्नगत निर्णय व आदेश साक्ष्य पर आधारित है, जिसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादिनी को सम्पूर्ण क्षतिपूर्ति के रूप में 10,000/-रू0 अदा करने हेतु अपीलार्थीगण/विपक्षीगण को आदेशित किया है जो न्यायोचित प्रतीत नहीं होता है। तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय व आदेश दि0 31.12.2013 इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी को सम्पूर्ण क्षतिपूर्ति के रूप में देय धनराशि 10,000/-रू0 (दस हजार रू0) अपास्त की जाती है। शेष प्रश्नगत निर्णय व आदेश की पुष्टि की जाती है।
उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थीगण द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय व आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुधा उपाध्याय)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3