(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-45/2008
दि डिविजनल मैनेजर, दि न्यू इण्डिया एश्योरेंस कं0लि0 बनाम अनिल कुमार पुत्र श्री गोविन्द राम
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आईपीएस चड्ढा।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक : 28.08.2024
माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-556/2002, अनिल कुमार बनाम न्यू इण्डिया एश्योरेंस कंपनी लि0 में विद्वान जिला आयोग, गाजियाबाद द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 7.12.2007 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आईपीएस चड्ढा को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
2. विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए अंकन 30,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति एवं अंकन 2,000/-रू0 वाद व्यय अदा करने का आदेश पारित किया है। 45 दिन के अन्दर यह राशि अदा नहीं करने पर इस राशि पर 12 प्रतिशत की दर से ब्याज अदा करने के लिए भी आदेशित किया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार दिनांक 9.12.1997 को परिवादी द्वारा एक जनता व्यक्तिगत दुर्घटना पालिसी 10 वर्ष के लिए प्राप्त की गई थी, जिसे दिनांक 10.10.2002 को निरस्त कर दिया
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गया, इसलिए इस पालिसी को जारी रखने और क्षतिपूर्ति के रूप में अंकन 1,00,000/-रू0 दिलाये जाने के अनुतोष के साथ परिवाद प्रस्तुत किया गया।
4. बीमा कंपनी का कथन है कि बीमा कंपनी को यह अधिकार प्राप्त है कि बीमा पालिसी किसी भी समय निरस्त की जा सकती है। प्रस्तुत केस में निरस्तीकरण की सूचना परिवादी को दी गई थी, इसलिए बीमा पालिसी को जारी रखने के अनुतोष के साथ परिवाद प्रस्तुत किया गया है, परन्तु विद्वान जिला आयोग ने पालिसी जारी रखने का कोई अनुतोष जारी नहीं किया है, अपितु क्षतिपूर्ति की राशि अंकन 30,000/-रू0 अदा करने का आदेश पारित कर दिया। चूंकि पालिसी अपनी पूर्ण अवधि तक जारी नहीं रही, इसलिए क्षतिपूर्ति की राशि अदा करने का आदेश नहीं दिया जा सकता, क्योंकि बीमा पालिसी जारी करने का कोई आदेश पारित नहीं किया गया है। चूंकि बीमा कंपनी को यह अधिकार प्राप्त है कि वह मध्य अवधि में बीमा पालिसी निरस्त कर सकती है। अत: बीमा कंपनी द्वारा इस अधिकार का प्रयोग किया गया है, इस अधिकार के प्रयोग करने में किसी प्रकार की सेवा में कमी नहीं की गई है, इसलिए इस आधार पर परिवादी अंकन 30,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए अधिकृत नहीं है। तदनुसार विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने और प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
5. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश 07.12.2007 अपास्त किया जाता है तथा परिवाद खारिज किया जाता है।
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प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2