Uttar Pradesh

StateCommission

A/2486/2014

ICICI Bank - Complainant(s)

Versus

Anil Kumar - Opp.Party(s)

Shayam Kumar Rai

30 Jun 2016

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2486/2014
(Arisen out of Order Dated 26/09/2014 in Case No. C/407/2012 of District Ghaziabad)
 
1. ICICI Bank
Land Mark Race Course Circle Barodara
...........Appellant(s)
Versus
1. Anil Kumar
Plot N0. 152 Dimpi Gaurav Apartment Flat N0. 304 Sector 2-A Vaishali Ghaziabad
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Mahesh Chand MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 30 Jun 2016
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

         सुरक्षित

अपील सं0-2486/2014 

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्‍या-४०७/२०१२ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-२६/०९/२०१४ के विरूद्ध)

आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक लि0 मै0 सागर कार्निक चीफ मैनेजर पंजीकृत कार्यालय लैण्‍डमार्क रेस कोर्स सर्किल बड़ोदरा एवं एक अन्‍य ।

.....अपीलार्थीगण

बनाम

अनिल कुमार प्‍लाट नं0 १५२ डिम्‍पी गौरव अपार्टमेंट फ्लैट नं0 ३०४ सेक्‍टर ४-ए वैशाली गाजियाबाद।

                                    .......प्रत्‍यर्थी

समक्ष:-

  1. माननीय श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठा0सदस्‍य
  2. माननीय श्री महेश चन्‍द, सदस्‍य ।

अपीलकर्तागण की ओर से उपस्थित : श्री श्‍याम कुमार राय विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री अनिल कुमार स्‍वयं।

दिनांक11-11-2016

माननीय श्री महेश चन्‍द, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

      प्रस्‍तुत अपील जिला उपभोक्‍ता फोरम, गाजियाबाद द्वारा परिवाद        संख्‍या-४०७/२०१२ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक:२६/०९/२०१४ के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी है जिसमें निम्‍न आदेश पारित किया गया है-

     ‘’ परिवादी का परिवाद स्‍वीकार किया जाता है । विपक्षी बैंक तथा उसके मुख्‍य प्रबन्‍धक को आदेशित किया जाता है वह एक माह के अन्‍दर परिवादी के मूल विक्रय पत्र की तलाश करके उसे प्राप्‍त करा दें। क्षतिपूर्ति के रूप में देय धनराशि अंकन १००००/-रूपये और १०००/-रू0 कुल ११०००/-रू0 का भुगतान भी एक माह के अन्‍दर करे। इस अवधि के बाद इस धनराशि पर ०६ प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्‍याज भी देय होगा। ‘’

     संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादी अनिल कुमार ने विपक्षी आईसीआईसीआई बैंक गाजियाबाद से २ लाख ५० हजार रूपये का ऋण गाजियाबाद विकास प्राधिकरण की वैशाली योजना सेक्‍टर २-ए में फ्लैट सं0-३०४ क्रय करने के लिए ऋण लिया। परिवादी ने उक्‍त ऋण के लिए दिनांक १०/१२/२००२ को एक अनुबंध भी आईसीआईसीआई बैंक के साथ निष्‍पादित किया। परिवादी ने उक्‍त ऋण का पूर्ण भुगतान करके दिनांक ०४/०६/२०१२ को अदेयता प्रमाणपत्र बैंक से प्राप्‍त कर लिया। परिवादी ने दिनांक १५/०४/२००४ को ०१ लाख रूपये का दूसरा ऋण भी लिया।  दिनांक ०८/०९/२०१२ को परिवादी ने बैंक से बंधक संपत्ति के मूल कागजात वापस प्राप्‍त करने के संबंध में पत्र प्राप्‍त किया किन्‍तु बैंक के अनेक चक्‍कर लगाने के बावजूद संपत्ति से संबंधित कागजात प्राप्‍त नहीं हुए।

     अत: परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया गया जिसमें उसने बैंक से बंधक रखी संपत्ति से मूल कागजात वापस दिलाने अथवा उसे १० लाख रूपये ब्‍याज सहित वापस दिलाने की प्रार्थना की गयी। इसके अतिरिक्‍त उसने जिला मंच से १० लाख रूपये तथा विपक्षी पर मानसिक क्षतिपूर्ति भी दिलाने का अनुरोध किया।

     विपक्षी बैंक द्वारा प्रतिवाद किया गया और परिवाद पत्र में परिवादी द्वारा बैंक ऋण लेने और उसके वापस करने के तथ्‍यों को स्‍वीकार किया। प्रतिवाद पत्र में यह भी स्‍वीकार किया गया कि परिवादी ने विपक्षी बैंक से ऋण लेने के लिए केवल विल्‍डर द्वारा जारी की गयी पेमेंट की रसीद, विल्‍डर द्वारा जारी किया गया अनापत्ति प्रमाण पत्र ही प्राप्‍त किया था। उक्‍त कागजातों के अलावा परिवादी के पास अन्‍य कोई कागजात नहीं थे। प्रतिवादी ने अपने प्रतिवाद पत्र में यह भी कहा कि जिस समय ऋण लिया गया था, तत्‍समय उक्‍त फ्लैट निर्णाधीन था और निर्माण होने के बाद परिवादी के पक्ष में बैनामे का निष्‍पादन हो सकता था। परिवादी के पास मूल बैनामा नहीं था । बैंक ने जो कागजात रखे थे वह सभी उसे वापस कर दिए गए और उसे ऋण के संबंध में अदेयता प्रमाण पत्र भी निर्गत कर दिया गया। प्रतिवादी ने सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की है। परिवादी का परिवाद स्‍वीकार किए जाने योग्‍य नहीं है।

     विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता बहस के समय जिला मंच के समय उपस्थित नहीं हुए। 

     उभय पक्षों द्वारा दिए गए साक्ष्‍यों का अध्‍ययन करने एवं परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्कों को सुनने के बाद जिला मंच द्वारा प्रश्‍नगत आदेश पारित किया गया।  प्रश्‍गनत आदेश के द्वारा निर्देशित किया गया कि विपक्षी परिवादी को आदेश प्राप्‍त करने के एक माह की अवधि के अन्‍दर मूल विक्रय-विलेख तलाश करके उपलब्‍ध करा दे और क्षतिपूर्ति के रूप में कुल ११०००/-रू0 की धनराशि का भुगतान भी एक माह की अवधि में करेगा। उक्‍त अवधि के बाद इस धनराशि पर ०६ प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्‍याज दिए जाने का भी आदेश जिला मंच द्वारा किया गया।

     इसी आदेश से क्षुब्‍ध होकर यह अपील योजित की गयी है।

     अपीलकर्ता ने अपनी अपील में कहा है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा संपत्ति के मूल विक्रय-विलेख प्राप्‍त नहीं किए और विद्वान जिला फोरम द्वारा इस तथ्‍य की उपेक्षा कर निर्णय पारित करके त्रुटि की है। अपीलकर्ता ने यह भी कहा है कि प्रत्‍यर्थी को प्रश्‍गनत ऋण केवल आवंटन विलेख के आधार पर ही दिया गया। विद्वान जिला मंच का आदेश केवल कल्‍पनाओं के ऊपर ही आधारित है। परिवादी का परिवाद अपास्‍त होने योग्‍य है।

     अपीलकर्ता की अपील का प्रत्‍यर्थी की ओर से विरोध करते हुए प्रतिशपथ पत्र दाखिल किया गया है और प्रतिशपथ पत्र में कहा गया है कि प्रश्‍नगत संपत्ति का बैनामा दिनांक १९/१२/२००२ को सब रजिस्‍ट्रार गाजियाबाद के कार्यालय में निष्‍पादित हुआ और उक्‍त संपत्ति को क्रय करने के लिए अपीलकर्ता बैंक द्वारा दिनांक ०५/१२/२००२ को अनुबंध पत्र भी निष्‍पादित हुआ था। प्रत्‍यर्थी ने अपने शपथ पत्र में यह भी कहा है कि परिसंपत्ति का दिनांक १९/१२/२००२ को विक्रय विलेख निष्‍पादित हो जाने के बाद दिनांक २३/१२/२००२ को अपीलकर्ता ने मूल विक्रय विलेख सब रजिस्‍ट्रार कार्यालय से प्राप्‍त कर लिये थे । ऋण का समस्‍त भुगतान कर दिए जाने के बाद मूल विक्रय विलेख प्राप्‍त करने के लिए परिवादी/प्रत्‍यर्थी ने अपीलकर्ता से समय समय पर कई बार मांग की गयी। अपीलकर्ता द्वारा उसको विक्रय विलेख वापस नहीं किए गए। प्रत्‍यर्थी ने शपथ पत्र में यह भी कहा कि शपथ-पत्र के साथ संलग्‍न आर/२ वह सूची है जिसमें सब रजिस्‍ट्रार कार्यालय से विक्रय-विलेख प्राप्‍त करने वाले व्‍यक्ति के नाम और पते अंकित हैं। अंत में  प्राप्‍तकर्ता के हस्‍ताक्षर भी प्रमाणित हैं कि अपीलकर्ता के प्रतिनिधि ने ही प्रश्‍गनत विक्रय विलेख सब रजिस्‍ट्रार कार्यालय गाजियाबाद से प्राप्‍त कर लिए थे और उक्‍त प्रविष्टि सब रजिस्‍ट्रार कार्यालय की डायरी सं0-३२१/२२ दिनांक २३/१२/२००२ में स्‍पष्‍ट रूप से अंकित है।

     अपीलकर्तागण के विद्वान अधिवक्‍ता श्री श्‍याम कुमार राय एवं प्रत्‍यर्थी स्‍वयं श्री अनिल कुमार के तर्क सुने गए एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।

     उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागणों एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों का परिशीलन करने के बाद हम इस मत के हैं कि गृह ऋण लेने के लिए बैंक परिसंपत्ति जिस पर ऋण लिया गया है, के मूल अभिलेख अपने पास बंधक रखता है। यदि कोई संपत्ति निर्माणाधीन है और उसके लिए कोई ऋण लिया गया है तो परिसंपित्‍त के निर्माण होने के उपरांत उक्‍त कागजात ऋण देने वाली संस्‍था के पास जमा करना आवश्‍यक होता है और यदि कोई संपत्ति पहले से निर्मित है और उसे क्रय करने के लिए ऋण लिया जाता है तो ऋणी द्वारा उक्‍त कागजात मूल रूप में बैंक पास बंधक रखने होते हैं।

     इस प्रकरण में भी अपीलार्थी के प्रतिनिधि ने रजिस्‍ट्रार गाजियाबाद के कार्यालय से दिनांक २३/१२/२००२ को प्राप्‍त कर ली थी। यह अपीलार्थी को सुनिश्चित करना था कि उसके प्रतिनिधि ने उक्‍त मूल विक्रय-विलेख किसे हस्‍तगत किया। उन्‍हें प्रत्‍यर्थी/परिवादी को वापिस देने का पूर्ण उत्‍तरदायित्‍व अपीलार्थी/विपक्षी का है। विद्वान जिला मंच ने प्रश्‍नगत आदेश पारित कर कोई त्रुटि नहीं की है। अपीलार्थी की अपील में कोई बल नहीं है। तदनुसार अपील खण्डित किए जाने योग्‍य है।

आदेश

अपील खण्डित की जाती है। जिला उपभोक्‍ता फोरम, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्‍या-४०७/२०१२ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-२६/०९/२०१४ की पुष्टि की जाती है । अपीलकर्ता को यह भी निर्देशित किया जाता है कि यदि मूल विक्रय अभिलेख की किसी भी सूरत में उसके कार्यालय में उपलब्‍धता संभव न हो तो वह अपने खर्चे पर उक्‍त विक्रय अभिलेख की द्वितीय प्रति सबरजिस्‍ट्रार कार्यालय से प्राप्‍त कर प्रत्‍यर्थी को हस्‍तगत कराना सुनिश्चित करे।  

उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

उभयपक्षों को निर्णय की सत्‍यापित प्रति नियमानुसार उपलब्‍ध कराई जाए।

 

(उदय शंकर अवस्‍थी)                            ( महेश चन्‍द )

   पीठा0सदस्‍य                                     सदस्‍य

सत्‍येन्‍द्र, आशु0 कोर्ट नं0-४

 
 
[HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Mahesh Chand]
MEMBER

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