जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-100/2009
राम तीरथ आयु लगभग 34 साल पुत्र श्री राम नाथ साहू साकिन मकान नम्बर 3/4/55 मोहल्ला तेली टोला रिकाबगंज पोस्ट शहर थाना व जिला फैजाबाद।
................परिवादी
बनाम
अनिल कुमार सिंह प्रोपराइटर/मैनेजर मै0 रैमको इन्जीनियर्स मैन्यूफैक्चरर आफ शीटफेड आफसेट प्रिंन्टिग मशीन मकान नम्बर 3/14/709 मोहल्ला दिल्ली दरवाजा पोस्ट शहर थाना तहसील व जिला फैजाबाद। ..................विपक्षी
निर्णय दिनाॅक 06.05.2015
उद्धोषित द्वारा - श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य।
निर्णय
परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी ने विपक्षी से मिनी शेड फील्ड आफसेट प्रिंन्टिग मशीन माडल नम्बर 10ग15 डी एक्स दिनांक 01.11.2008 को रुपये 1,80,000/- अदा कर के दिनांक 13.11.2008 को खरीदी। परिवादी ने दिनांक 22.10.2008 को नगद रुपये 5,000/-, दिनांक 13-11-2008 को नगद रुपये 15,000/- दिनांक 22.10.2008 को चेक संख्या 161608/558/08 से रुपये 30,000/- व चेक संख्या 331434 से रुपये 65,000/- चेक संख्या 0387679/28.02.09 से दिनांक 13.11.2008 को रुपये 40,000/- तथा चेक संख्या 0387680/10.05.09 से रुपये 25,000/- कुल रुपये 1,80,000/- का भुगतान किया। विपक्षी ने दिनांक 13.11.2008 को प्रिंन्टिग मशीन परिवादी के घर आ कर लगाया। दिनांक 15.11.2008 को परिवादी ने छपाई का काम शुरु किया, किन्तु मशीन 15 दिन चलने के बाद बन्द हो गयी और लाख कोशिश के बाद भी नहीं चली तो परिवादी ने विपक्षी को सूचित किया। मशीन की गारंटी दो वर्ष की थी। मशीन खराब होने के एक सप्ताह बाद विपक्षी ने एक आदमी मशीन ठीक करने के लिये भेजा। मेकेनिक के द्वारा मशीन खोलने पर पता लगा कि मशीन काफी पुरानी है और उसके पुर्जे काफी घिसे हुए हैं। जिसकी सूचना परिवादी ने विपक्षी का तुरन्त दी। विपक्षी ने कहा कि परिवादी की मशीन वारंटी में बदल दी जायेगी अभी कुछ समय लगेगा और एक माह का समय मांगा। एक माह बाद परिवादी ने पुनः विपक्षी से मशीन बदलने के लिये कहा तो विपक्षी ने और समय मांगा तब परिवादी को विपक्षी की बातों पर संदेह होने लगा और मशीन न बदलने व न चलने से परिवादी का काम ठप हो गया और परिवादी को रुपये 500/- प्रति दिन की हानि होने लगी है। विपक्षी ने परिवादी को पुरानी मशीन दे कर अनुचित व्यापार व्यवहार को अपनाया है। परिवादी ने दिनांक 17.02.2009 को अपने अधिवक्ता द्वारा एक नोटिस विपक्षी को दिया और मशीन के मद में जमा रुपये 1,15,000/- वापस करने तथा क्षतिपूर्ति के मद में रुपये 50,000/- की मांग की क्यों कि परिवादी ने चेक संख्या 0387679 तथा 0387680 का भुगतान अपनी बैंक में प्रार्थना पत्र दे कर रोक दिया था। विपक्षी ने न तो परिवादी का रुपया वापस किया और न ही मशीन को बदला तथा परिवादी के नोटिस का उत्तर विपक्षी ने अनर्गल आरोपों व अपमान जनक शब्दांे के साथ दिया और दिनांक 23.02.2009 को मशीन का पैसा वापस करने अथवा मशीन बदलने से मना कर दिया। परिवादी जब विपक्षी के पास गया तो विपक्षी व उसके स्टाफ ने परिवादी को भद्दी भद्दी गालियां दे कर वहां से भगा दिया और अन्जाम भुगतने को कहा तथा हाथा पाई की कोशिश की, परिवादी जब अपनी जान बचा कर भागने लगा तो विपक्षी ने कहा तुम ऐसे नहीं मानोगे जब थाने में तुम्हारी तुड़ाई करायी जायेगी तब मानोगे, परिवादी जान बचा कर भाग आया। विपक्षी ने पुरानी मशीन की रंगाई पुताई करा कर परिवादी को बेच दी और अनुचित व्यापार व्यवहार को अपनाया है। परिवादी को विपक्षी से रुपये 1,15,000/- मशीन का वास्तविक मूल्य जो परिवादी ने विपक्षी को अदा किया, क्षतिपूर्ति रुपये 1,10,000/- पोस्ट डेटेड चेक संख्या 0387679 दिनांकित 28-02-2009 तथा चेक संख्या 0387680 दिनांकित 10.05.2009 विपक्षी से वापस दिलाया जाय एवं अन्य उपशम जो न्यायालय उचित प्रतीत करे परिवादी को विपक्षी से दिलावें।
विपक्षी ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है और परिवादी को प्रिंटिंग मशीन कथित दिनांक को बेचना स्वीकार किया है तथा परिवादी के परिवाद के अन्य कथनोें से इन्कार किया है। विपक्षी ने परिवादी द्वारा किये गये भुगतान से जिस प्रकार बताया है से इन्कार किया है। परिवादी ने दिनांक 13.11.2008 को उत्तरदाता को रुपये 15,000/- का नगद भुगतान नहीं किया है। चेक संख्या 0387679 तथा 0387680 का भुगतान रुपये 40,000/- तथा रुपये 25,000/- भी उत्तरदाता को नहीं मिला है। परिवादी ने भुगतान से बचने के लिये अपना परिवाद दाखिल किया है। उत्तरदाता ने परिवादी को मशीन की कोई वारण्टी नहीं दी थी और न ही किसी प्रकार का आश्वासन दिया था। उत्तरदाता ने जहां से परिवादी को सामान मंगवा कर दिया है उसका व्यापार परिपत्र भी व्यापार कर विभाग द्वारा जारी किया गया है। मशीन खराब होने की सूचना पूरी तरह गलत है। उत्तरदाता जहां से मशीन मंगवाता है उसे स्वयं स्थापित कर के चालू करने के बाद ग्राहक की संतुष्टि के बाद ही वापस जाता है। परिवादी ने उक्त मशीन से अच्छी कमाई कर ली है और उत्तरदाता की बकाया रकम रुपये 80,000/- न देना पड़े इसलिये अपना परिवाद दाखिल किया है। उत्तरदाता ने परिवादी द्वारा दिये गये चेक अपने खाते में दिनांक 22.07.2009 जमा कराये तो वह अनादरित हो कर अपर्याप्त धनराशि की आख्या के साथ वापस आ गये। इसके बाद उत्तरदाता ने धारा 138 एन.आई. एक्ट के तहत परिवादी को एक विधिक नोटिस दिया और भुगतान न मिलने पर द्वितीय अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट फैजाबाद में धारा 138 एन.आई. एक्ट के तहत परिवाद दाखिल किया है जिसमें धारा 200 का बयान हो चुका है तथा तलबी पर बहस हेतु दिनांक 07.11.2009 की तारीख नियत है। परिवादी ने अपना परिवाद मनगढ़ंत आधारों पर दाखिल किया है। उत्तरदाता ने परिवादी को अपशब्द नहीं कहे तथा न ही कोई धमकी दी है। यदि ऐसा होता तो परिवादी ने पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई होती। परिवादी उत्तरदाता से कोई रकम पाने का अधिकारी नहीं है। परिवादी ने मशीन खरीदना स्वीकार किया है जो व्यापार के लिये है इस प्रकार परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी मंे नहीं आता है। परिवादी का परिवाद प्रत्येक दशा में निरस्त किये जाने योग्य है।
परिवदी एवं विपक्षी के विद्वान अधिवक्तागण की बहस को सुना एवं पत्रावली का भली भंाति परिशीलन किया। परिवादी ने अपने पक्ष के समर्थन मंे अपना शपथ पत्र, सूची पर विपक्षी द्वारा दी गयी रसीद दिनांक 13.11.2008 की छाया प्रति, विपक्षी द्वारा एडवांस में ली गयी धनराशि की रसीद दिनांक 20-10-2008 की छाया प्रति, परिवादी द्वारा विपक्षी को दिये गये चेकों दिनांकित 22.10.2008 की छाया प्रतियां, विपक्षी को भेजे गये नोटिस की छाया प्रति, विपक्षी द्वारा परिवादी के नोटिस के उत्तर की छाया प्रति, वैट फार्म डी 3 दिनांकित 11.11.2008 की मूल प्रति, टैक्स इनवायस दिनांकित 11.11.2008 की मूल प्रति, फार्म 38 दिनांकित 06.11.2008 की मूल प्रति, मैकेनिक के हाथ की लिखी रसीद दिनांक 24-02-2009 की मूल प्रति, परिवादी ने साक्ष्य मंे अपना शपथ पत्र, सूची पर उर्मिला कालेज आफ टेक्नोलाजी एण्ड मैनेजमेंट के प्रधानाचार्य एवं इंजीनियर शम्भू दयाल श्रीवास्तव तथा विभागाध्यक्ष इंजीनियर अमरजीत यादव, मैकेनिकल इंजीनियर की एक्सपर्ट रिपोर्ट का प्रमाण पत्र दिनांक 04.05.2015 तथा अपनी लिखित बहस दाखिल की है जो शामिल पत्रावली है। विपक्षी ने अपने पक्ष के समर्थन मंे अपना लिखित कथन तथा अपने पक्ष के समर्थन में बृज किशोर का शपथ पत्र दाखिल किया है जो शामिल पत्रावली है।
विपक्षी का कथन है कि परिवादी ने 10 माह मशीन चला कर मशीन बदलने या रुपया वापस करने को कहा था गलत है क्यों कि परिवादी के यहां मशीन दिनांक 13.11.2008 को लगी थी और परिवादी ने विपक्षी को दिनांक 17-02-2009 को ही नोटिस दे दिया था। इस प्रकार परिवादी ने तीन माह में ही विपक्षी को नोटिस दे दिया था। इस प्रकार परिवादी की मशीन दस माह नहीं चली। परिवादी का कथन है कि मशीन की वारण्टी दो वर्ष विपक्षी ने दी थी। विपक्षी का कथन है कि उसने परिवादी को कोई वारण्टी मशीन के सम्बन्ध मंे नहीं दी अगर यह मान भी लिया जाय कि विपक्षी ने परिवादी को कोई वारण्टी नहीं दी थी तो वह भी गलत है क्यों कि विपक्षी ने परिवादी को मशीन की जो रसीद दिनांक 13.11.2008 दी है उसमें सब से नीचे शर्तों की लाइन में मशीन की वारण्टी एक वर्ष लिखी है, इस प्रकार परिवादी की मशीन की वारण्टी एक वर्ष मान्य है। परिवादी ने उर्मिला कालेज आफ टेक्नोलाजी एण्ड मैनेजमेन्ट के प्रधानाचार्य, शम्भू दयाल श्रीवास्तव जो कि इंजीनियर हैं तथा अमरजीत यादव, मैकेनिकल इंजीनियर एवं विभागाध्यक्ष का संयुक्त प्रमाण पत्र दाखिल किया है जिसमें स्पष्ट उल्लेख है कि परिवादी की प्रिंटिंग मशीन दिनांक 04-05-2015 से 9 वर्ष पुरानी है। परिवादी ने अपना परिवाद वर्ष 2009 में दाखिल किया है और प्रमाण पत्र के अनुसार परिवादी की मशीन वर्ष 2009 से तीन वर्ष पहले की है अर्थात् पुरानी है। इस प्रकार प्रमाणित होता है कि विपक्षी ने परिवादी को चली हुई पुरानी मशीन बेच कर अनुचित व्यापार व्यवहार को अपनाया है। विपक्षी का यह कथन है कि उसने परिवादी के विरुद्ध 138 एन.आई. एक्ट के अन्तर्गत एक परिवाद सिविल न्यायालय मंे चला रखा है, जब कि परिवादी ने अपने परिवाद में ही कहा है कि मशीन ठीक न चलने के कारण उसने विपक्षी को दिये गये चेकों का भुगतान रोकने का निर्देश अपनी बैंक को दे दिया था। विपक्षी ने अगस्त 2009 मंे धारा 138 एन.आई. एक्ट के तहत द्वितीय अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट फैजाबाद के यहां अपना मुकदमा दाखिल किया था जब कि परिवादी ने अपना परिवाद जिला फोरम में मार्च 2009 में ही दाखिल कर दिया था। इस प्रकार विपक्षी ने अपना मुकदमा परिवादी के विरुद्ध पेशबन्दी में दाखिल किया है। परिवादी द्वारा मशीन का खरीदा जाना और वारण्टी अवधि मंे उसका खराब होना तथा विपक्षी द्वारा ठीक न करना या मशीन न बदलना विपक्षी द्वारा परिवादी की सेवा में कमी का मामला बनता है। बृज किशोर उर्फ छोटू पुत्र छठ्ठी राम ने अपना शपथ पत्र दाखिल किया है और कहा है कि उसने परिवादी के यहां मशीन लगने के एक माह बाद से प्रिंटिंग का काम शुरु किया था और एक वर्ष तक छपाई का काम किया इस बीच परिवादी ने विपक्षी को मशीन को ठीक करने कभी नहीं बुलाया जो कि गलत व फर्जी है क्यों कि तीन माह बाद तो परिवाद दाखिल हो गया था और परिवादी की मशीन बन्द पड़ी थी तो छोटू ने एक वर्ष तक छपाई का काम कैसे किया, छोटू की यह बात गलत प्रमाणित होती है। परिवादी ने जो चेक विपक्षी को दिये थे उसने उन्हें भुगतान के लिये अपने बैंक में दिनांक 22-07-2009 को जमा किया जब कि परिवादी मार्च 2009 में ही अपना परिवाद दाखिल कर चुका था। इस प्रकार विपक्षी ने पेशबन्दी में परिवादी के चेकों का स्तेमाल किया है। परिवादी ने अपने पोस्ट डेटेड चेक संख्या 0387679 दिनांकित 28.02.2009 तथा चेक संख्या 0387680 दिनांकित 10.05.2009 विपक्षी से वापस दिलाये जाने की मांग की है जो कि अब तक अक्रियाषील हो गये हैं, दोनों पक्षों को निर्देष दिया जाता है कि इन प्रष्नगत चेकों का वह कहीं भी प्रयोग नहीं करेंगे और परिवादी को उक्त चेक वापस दिलाया जाना उचित नहीं है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में सफल रहा है। विपक्षी ने अपनी सेवा में कमी की है। परिवादी अनुतोष पाने का अधिकारी है। परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरुद्ध अंाशिक रुप से स्वीकार एवं अंाशिक रुप से खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरुद्ध अंाशिक रुप से स्वीकार एवं अंाशिक रुप से खारिज किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को आदेश की दिनांक से 30 दिन के अन्दर रुपये 1,15,000/- का भुगतान करे। यदि विपक्षी परिवादी को निर्धारित अवधि 30 दिन में भुगतान नहीं करता है तो विपक्षी परिवादी को रुपये 1,15,000/- (रुपये एक लाख पन्द्रह हजार मात्र) पर परिवाद दाखिल करने की दिनांक से तारोज वसूली की दिनांक तक 9 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज का भी भुगतान करेगा। विपक्षी परिवादी को क्षतिपूर्ति के मद में रुपये 20,000/- (रुपये बीस हजार मात्र) तथा परिवाद व्यय के मद में रुपये 3,000/- (रुपये तीन हजार मात्र) भी अदा करे। भुगतान के समय परिवादी विपक्षी को प्रश्नगत मशीन वापस करेगा।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय आज दिनांक 06.05.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष