Uttar Pradesh

StateCommission

A/1238/2018

Royal Sundaram General Insurance Co. Ltd - Complainant(s)

Versus

Anil Kumar Shukla - Opp.Party(s)

Dinesh Kumar

15 Nov 2019

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1238/2018
( Date of Filing : 02 Jul 2018 )
(Arisen out of Order Dated 05/06/2018 in Case No. C/167/2017 of District Agra-II)
 
1. Royal Sundaram General Insurance Co. Ltd
Agra
...........Appellant(s)
Versus
1. Anil Kumar Shukla
Agra
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 15 Nov 2019
Final Order / Judgement

(सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।

अपील संख्‍या : 1238/2018

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, द्धितीय, आगरा द्वारा परिवाद संख्‍या-167/2017 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 05-06-2018 के विरूद्ध)

Royal Sundaram General Insurance Company Ltd., F.C-6, First Floor, Block No.4/41-B, Friends Tower, Sanjay Palace, Distt. Agra, through Head Office Royal Sundaram General Insurance Company Ltd., No-1,II Floor Subramanium Club House Road, Chennai-600002 through its Officer In-Charge.                                                                         .....अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1

बनाम्

  1. Anil Kumar Shukla S/o Shri Janardhan Shukla resident of Lavkush Bihar, Kekretha, Thana-Sikendra and District-Agra.  ...प्रत्‍यर्थी/परिवादी
  2. Madhusudan Motors Pvt. Ltd., B-05, Lawyers Colony, Bypass Road, 

Distt. Agar....प्रत्‍यर्थी/विपक्षी सं0-2

समक्ष  :-

1- मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान,  अध्‍यक्ष ।

उपस्थिति :

अपीलार्थी  की ओर से उपस्थित-   श्री दिनेश कुमार के सहयोगी

                              श्री आनंद भार्गव।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित-      श्री विनय प्रताप राठौर।

दिनांक : 17-12-2019

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उद्घोषित निर्णय

        परिवाद संख्‍या-167/2017 अनिल कुमार शुक्‍ला बनाम् रायल सुन्‍दरम जनरल इंश्‍योरेंस कम्‍पनी लि0 व एक अन्‍य में जिला फोरम, द्धितीय, आगरा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 05-06-2018 के

 

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विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

        आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया है :-

        ‘’परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे प्रश्‍नगत वाहन की बीमित घोषित मूल्‍य मु0 3,33,821/-रू0 तथा इस धनराशि पर परिवाद दायर करने की तिथि से 06 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज की दर से ब्‍याज भुगतान की तिथि तक इस निर्णय की तिथि से एक माह के अंदर परिवादी को अदा करें। परिवादी मानसिक, शारीरिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति के रूप में मु0 2000/-रू0 विपक्षीगण से पाने का अधिकारी है।‘’

        जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्‍ध होकर परिवाद के विपक्षी सं0-1 रॉयल सुन्‍दरम जनरल इंश्‍योरेंस कम्‍पनी लि0 ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।

        अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्‍ता श्री दिनेश कुमार के सहयोगी श्री आनंद भार्गव और प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्‍ता श्री विनय प्रताप राठौर उपस्थित आए हैं।

        मैंने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

         अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 रायल सुन्‍दरम जनरल इंश्‍योरेंस कम्‍पनी एवं प्रत्‍यर्थी/विपक्षी संख्‍या-2 मधुसूदन मोटर्स प्रा0लि0  के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उसने मारूती ईको कार जिसका पंजीयन संख्‍या-यू0पी0-80-डी0आर0-4415 है प्रत्‍यर्थी/विपक्षी सं0-2 मधुसूदन मोटर्स प्रा0लि0 से क्रय की थी और उसकी बीमा पालिसी अपीलार्थी/विपक्षी संख्‍या-1 रॉयल सुन्‍दरम जनरल

 

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इं0कं0लि0 द्वारा जारी की गयी थी जो दिनांक 15-04-2016 से दिनांक 14-04-2017  की अवधि के लिए वैघ थी। बीमा अवधि में ही दिनांक 27-06-2016 को अज्ञात चोरों ने वाहन को चोरी कर लिया। उसने वाहन चोरी की तुरन्‍त सूचना अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी के एजेन्‍ट जिसके माध्‍यम से बीमा कराया था को फोन से दी और उसी समय अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी को भी सूचना दी तथा पुलिस के 100 नम्‍बर पर भी फोन किया और थाना सिकन्‍दरा में उसी दिन लिखित तहरीर दी परन्‍तु दिनांक 02-07-2016 को थाने पर अपराध पंजीकृत किया गया।

         परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी द्वारा सर्वेयर नियुक्‍त किया गया। सर्वेयर ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी से बीमा कवर नोट, इंश्‍योरेंस कवर, कार की चाबी व अन्‍य आवश्‍यक कागजात लिये तथा आश्‍वासन दिया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी को शीघ्र क्‍लेम मिल जायेगा।

         परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि पुलिस ने जॉंच के बाद अंतिम आख्‍या प्रेषित किया, परन्‍तु प्रत्‍यर्थी/परिवादी जब बीमा कम्‍पनी के कार्यालय में गया तो बीमा कम्‍पनी के कर्मचारी द्वारा यह कहा गया कि सूचना में देरी की गयी है इस कारण बीमित धनराशि का भुगतान बीमा कम्‍पनी नहीं कर सकती है, जबकि  प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने चोरी की सूचना तुरन्‍त बीमा कम्‍पनी को दिया है।

          परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने विपक्षीगण को विधिक नोटिस भेजा, फिर भी अपीलार्थी विपक्षी सं0-1 एवं प्रत्‍यर्थी/विपक्षी संख्‍या-2 ने कोई जवाब नहीं दिया। तब विवश  होकर प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है।

         अपीलार्थी/विपक्षी संख्‍या-1 बीमा कम्‍पनी की ओर से लिखित कथन प्रस्‍तुत किया गया है जिसमें कहा गया है कि परिवादी ने वाहन में ए0सी0 एवं सी0एन0जी0 किट लगवाकर Material Alteration  किया है, जिसका पालिसी में पृष्‍ठांकन नहीं कराया है, जो बीमा पालिसी की शर्त

 

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का उल्‍लंघन है। अत: बीमा पालिसी की शर्त के उल्‍लंघन किये जने के कारण प्रत्‍यर्थी/परिवादी का बीमा दावा उचित आधार पर खारिज किया गया है। 

         लिखित कथन में अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी ने कहा है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने प्राइवेट कार पैकेज लिया है, परन्‍तु वाहन बलोनी कोचिंग के विद्यार्थियों को लेने व ले जाने के प्रयोग में लाया जा रहा था। लिखित कथन में अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी ने कहा है कि वाहन चोरी की सूचना 22 दिन बाद दिनांक 27-06-2016 को बीमा कम्‍पनी को दी गयी है जो बीमा पालिसी की शर्तों का उल्‍लंघन है। बीमा पालिसी के अनुसार वाहन चोरी की सूचना वाहन चोरी होने के तुरन्‍त बाद दिया जाना आवश्‍यक है।

          जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍यों पर विचार करने के उपरान्‍त यह माना है कि अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी का बीमा दावा खारिज कर सेवा में कमी की है अत: जिला फोरम ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए उपरोक्‍त आदेश पारित किया है।

         अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय तथ्‍य और विधि के विरूद्ध है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने वाहन चोरी की सूचना 22 दिन विलम्‍ब से बीमा कम्‍पनी को दिया है जो बीमा पालिसी की शर्त का उल्‍लंघन है। अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी द्वारा  बीमा दावा अस्‍वीकार किये जाने हेतु उचित आधार है।

         अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी के विद्धान अधिवक्‍ता का तर्क है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने प्रश्‍नगत वाहन का बीमा प्राइवेट वाहन के रूप में कराया है परन्‍तु वह वाहन का प्रयोग वाणिज्यिक उद्देश्‍य से किया जा रहा था  जो बीमा  पालिसी की शर्त का उल्‍लंघन है।

         अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी के विद्धान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि वाहन में ए0सी0 एवं सी0एन0जी0 किट लगवाकर Material

 

 

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Alteration  किया गया है परन्‍तु इस परिवर्तन का पृष्‍ठांकन बीमा पालिसी पर नहीं कराया गया है।

         अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी के विद्धान अधिवक्‍ता का तर्क है कि अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी का बीमा दावा उचित आधार पर अस्‍वीकार किया है। उसकी सेवा में कोई कमी नहीं है।

         प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय तथ्‍य अैर विधि के अनुकूल है और उसमें किसी हस्‍तक्षेप की आवश्‍यकता नहीं है।

         अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी की ओर से निम्‍न न्‍याय निर्णयों को संदर्भित किया गया है :-

  1. II (2017) CPJ 83 (NC) Universal Sompo General Insurance Company Limited. Vs. Roop Lal Dangi.
  2. I(2017) CPJ 493. (NC) Pradeep Kumr Tiwari. Vs. Oriental Insurance Company Ltd. & Anr.
  3. National Insurance Co. Ltd. Vs. Nitin Khandelwal on 08 May 2008, Appeal (Civil) 3409 of 2008 by Supreme Court of India.

         प्रत्‍यर्थी की ओर से निम्‍न न्‍याय निर्णयों को संदर्भित किया गया है:-

  1. Om Prakash Vs. Reliance General Insurance and Another. Civil appeal No. 15611 of 2017.
  2. Naimuddin Vs. Tata A.I.G. General Inssurance Co. (SCDRC) Appeal No. 1072/2015.
  3. Slim Vs. The Divisional Manager Sri Ram General Insurance Co. Ltd., (SCDRC) Appeal No. 270/2018

 

  1.  
  1. National Insurance Co. Vs. Kulwan Singh CPJ-2018 (iv) 62 (NC)
  2. Chola Mandalam Vs. Tansusree Mondal CPJ 2018 (iv) 260 (NC)

       मैंने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है। मैंने उभयपक्ष की तरफ से संदर्भित न्‍याय निर्णयों का आदरपूर्वक अवलोकन किया है।

परिवादी के अनुसार उसने अपने वाहन की चोरी की सूचना घटना के दिन ही पुलिस को दिया, परन्‍तु पुलिस ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 02-07-2016 को पंजीकृत किया है। सर्वेयर ने अपनी जॉंच आख्‍या में यह स्‍वीकार किया है कि पुलिस को सूचना अविलम्‍ब दी गयी है परन्‍तु पुलिस ने प्रथम सूचना रिपोर्ट 05 दिन विलम्‍ब से दर्ज किया है। बीमा कम्‍पनी ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी का क्‍लेम पुलिस को विलम्‍ब से सूचना देने के आधार पर रिप्‍यूडिएट भी नहीं किया है। बीमा कम्‍पनी ने प्रत्‍यर्थी का बीमा दावा बीमा कम्‍पनी को 22 दिन बाद सूचना दिये जाने के आधार पर रिप्‍यूडिएट किया है।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने तुरन्‍त सूचना बीमा कम्‍पनी के एजेन्‍ट को दिया जिससे बीमा कराया था। उसने उसी समय अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी को भी सूचना दिया। बीमा कम्‍पनी के सर्वेयर ने अपनी आख्‍या में लिखा है कि बीमा कम्‍पनी को सूचना 22 दिन विलम्‍ब से दी गयी परन्‍तु विलम्‍ब का कारण सर्वेयर ने उल्लिखित किया है कि डीलर के कारण बीमा कम्‍पनी को सूचना में विलम्‍ब हुआ है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने वाहन डीलर प्रत्‍यर्थी संख्‍या-2 से खरीदा है, बीमा भी डीलर के माध्‍यम से कराया है। अत: बीमा कम्‍पनी चोरी को सूचना डीलर के माध्‍यम से दिया जाना स्‍वाभाविक है और सूचना बीमा कम्‍पनी को विलम्‍ब से डीलर ने भेजा है। अत: बीमा कम्‍पनी को विलम्‍ब से सूचना पहुँचने का उचित कारण है। प्रत्‍यर्थी ने तुरन्‍त पुलिस को सूचना दिया है और डीलर जिसके माध्‍यम से बीमा कराया था उसको भी तुरन्‍त सूचना दिया है अत: बीमा कम्‍पनी को विलम्‍ब से सूचना प्राप्‍त होने के आधार पर बीमा कम्‍पनी दावा अस्‍वीकार नहीं कर सकती है।

      

  1.  

पुलिस विवेचना अथवा सर्वेयर की जॉंच में कथित चोरी की घटना फर्जी पाये जाने का उल्‍लेख नहीं है।

       माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने ओम प्रकाश बनाम रिलायंस जनरल इंश्‍योरेंस व एक अन्‍य 2018 (1) CPR 907 (SC) के निर्णय में स्‍पष्‍ट मत व्‍यक्‍त किया है कि वास्‍तविक क्‍लेम को मात्र विलम्‍ब से सूचना के आधार पर बीमा कम्‍पनी रिप्‍यूडिएट नहीं कर सकती है यदि विलम्‍ब से सूचना का उचित कारण है। माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धृत है:-

“It is common knowledge that a person who lost his vehicle may not straightaway go to the Insurance Company to claim compensation. At first, he will make efforts to trace the vehicle. It is true that the owner has to intimate the insurer immediately after the theft of the vehicle. However, this condition should not bar settlement of genuine claims particularly when the delay in intimation or submission of documents is due to unavoidable circumstances. The decision of the insurer to reject the claim has to be based on valid ground. Rejection of the claims on purely technical grounds in a mechanical manner will result in loss of confidence of policy-holders in the insurance industry. If the reason of delay in making a claim is satisfactorily explained, such a claim cannot be rejected on the

 

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ground of delay. It is also necessary to state here that it would not be fair and reasonable to reject genuine claims which had already been verified and found to be correct by the Investigator. The condition regarding the delay shall not be a shelter to repudiate the insurance

claims which have been otherwise proved to be genuine. It needs no emphasis that the Consumer Protection Act aims at providing better protection of the interest of consumers. It is a beneficial legislation that deserves liberal construction. This laudable object should not be forgotten while considering the claims made under the Act.”

आई0आर0डी0ए0 द्वारा जारी सर्कुलर दिनांक 20.09.2011 में भी निम्‍न दिशा निर्देश दिये गये हैं:-

“The insurers’ decision to reject a claim shall be based on sound logic and valid grounds. It may be noted that such limitation clause does not work in isolation and is not absolute. One needs to see the merits  and  good  spirit   of   the   clause,   without compromising on bad claims. Rejection of claims on purely technical grounds in a mechanical fashion will result in policy holders losing confidence in the insurance industry, giving rise to excessive litigation.

 

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Therefore, it is advised that all insurers need to develop a sound mechanism of their own to handle such claims with utmost care and caution. It is also advised that the insurers must not repudiate such claims unless and until the reasons of delay are specifically ascertained, recorded and the insurers should satisfy themselves that the delayed claims would have otherwise been rejected even if reported in time.”

माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने युनाईटेड इण्डिया इंश्‍योरेंस कं0लि0 व एक अन्‍य बनाम राहुल कादियान 2018 (1) CPR 772 (NC) के निर्णय में आई0आर0डी0ए0 के उपरोक्‍त सर्कुलर के आधार पर माना है कि वास्‍तविक क्‍लेम को मात्र विलम्‍ब से सूचना के आधार पर अस्‍वीकार नहीं किया जा सकता है। माननीय राष्‍ट्रीय आयोग के निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धृत है;

“From the guidelines of the IRDA, it is clear that genuine claims are not to be repudiated on the basis of delay in intimation to the insurance company. In the instant case the specific condition in case of theft  that police must be immediately informed, has been complied with and therefore the veracity of the incident cannot be questioned. Thus, the claim seems to be a genuine claim

 

 

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and therefore the above mentioned IRDA Circular seems to be applicable in the instant case.”

       IRDA के उपरोक्‍त सर्कुलर एवं माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय एवं माननीय राष्‍ट्रीय आयोग के उपरोक्‍त निर्णयों को दृष्टिगत रखते हुए यह स्‍पष्‍ट है कि बीमा कम्‍पनी ने विलम्‍ब से सूचना दिये जाने के आधार पर प्रत्‍यर्थी का बीमा दावा अस्‍वीकार कर गलती की है जो बीमा कम्‍पनी की सेवा में कमी है।

       उपरोक्‍त विवेचना एवं IRDA के उपरोक्‍त सर्कुलर और माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय एवं माननीय राष्‍ट्रीय आयोग के उपरोक्‍त निर्णयों में प्रतिपादित सिद्धान्‍त के आधार पर अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी के विद्धान अधिवक्‍ता द्वारा संदर्भित उपरोक्‍त निर्णयों का कोई लाभ अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी को वर्तमान अपील में नहीं मिल सकता है।

       वाहन में कथित Material Alteration या वाहन का कथित वाणिज्यिक प्रयोग कथित चोरी की घटना का कारण नहीं है। चोरी की घटना के समय वाहन खड़ा था। प्रयोग में नहीं था।

       सम्‍पूर्ण विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी का बीमा क्‍लेम रिप्‍यूडिएट करने हेतु उचित आधार नहीं है। जिला फोरम ने परिवाद स्‍वीकार कर जो अनुतोष प्रत्‍यर्थी/परिवादी को प्रदान किया है वह उचित है। अपील बलरहित है। अत: सव्‍यय निरस्‍त की जाती है। अपीलार्थी प्रत्‍यर्थी/परिवादी को 10,000/-रू0 अपील व्‍यय भी देगा।

      

                 (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)

  अध्‍यक्ष

कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा, आशु0

       

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT
 

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