सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, ज्योतिवाफूलेनगर द्वारा परिवाद संख्या 37 सन 2006 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 22.02.2007 के विरूद्ध)
अपील संख्या 836 सन 2007
1. Union of India through Secretary Ministry of post & Telegraphs, New Delhi.
2. Senior Superintendent of post offices (Amroha) Moradabad Division (Moradabad)
.......अपीलार्थी/प्रत्यर्थी
-बनाम-
Anil Kumar Gupta S/o Sri Ram Gupta anju Gupta W/o Sri Anil Kumar Gupta yog Gupta S/o Sri Anil Kumar Gupta ( All three respondent residing at same Place R/o Pakka Bagh, Amroha, Jyogiba Phooley Nagar.
प्रत्यर्थी/परिवादीगण
समक्ष:-
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - डा0 उदय वीर सिंह।
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - कोई नहीं ।
दिनांक:-
श्री गोवर्धन यादव, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, ज्योतिवा फूलेनगर द्वारा परिवाद संख्या 37 सन 2006 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 22.02.2007 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है ।
संक्षेप में, तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार परिवादीगण ने अपीलकर्ता की मासिक आय योजना में निवेश किया था। परिवादीगण को अपीलकर्ता की ओर से एक नोटिस इस आशय की प्राप्त हुयी कि इस योजना के अन्तर्गत स्वीकृत अधिकतम सीमा से 04,86,000.00 रू0 अधिक निवेशित किए गए है, अत: अधिक निवेशित धनराशि पर ब्याज वापस कर दें। परिवादीगण ने एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते अधिक अदा किया गया ब्याज 74,153.00 रू0 वापस कर दिया तथा सीमा से अधिक निवेशित धन वाला खाता बंद कर दिया। परिवादीगण के कथनानुसार अधिक निवेशित धनराशि पर उक्त योजना के नियमानुसार बचत खाते के अन्तर्गत देय ब्याज की अदायगी अपीलकर्ता द्वारा की जानी थी किंतु अपीलकर्ता द्वारा यह धनराशि अदा नहीं की गयी। अपीलकर्ता से यह धनराशि पाने हेतु परिवादीगण द्वारा कई पत्र तथा विधिक नोटिस भेजे जाने के बावजूद परिवादीगण के पत्रों का कोई उत्तर अपीलकर्ता द्वारा नहीं दिया गया और न ही बचत खाते के अन्तर्गत देय धनराशि की अदायगी परिवादीगण को की गयी, अत: दिनांक 09.06.2005 तक देय ब्याज 41,708.00 रू0 एवं 09.06.2005 तक के उपरांत देय ब्याज 1460.00 रू0 का भुगतान तथा 500.00 रू0 प्रति दिन की दर से धनराशि की अदायगी तक क्षतिपूर्ति कराए जाने हेतु परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया गया।
परिवादीगण की ओर से प्रतिवादपत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया जिसमें मुख्य रूप से अपीलकर्तागण द्वारा यह अभिकथित किया गया कि चीफ एकाउण्ट आफीसर, लखनऊ के पत्र दिनांक 09.02.2005 द्वारा केवल दिया गया ब्याज वापस करने का आदेश प्राप्त हुआ है एवं मामला आडिट स्तर पर है, अत: एकाउण्ट आफीसर से ही ब्याज अदा करने के लिए नोटिस भिजवाऐं।
विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय दिनांक 22.02.2007 द्वारा परिवादीगण का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए अपीलकर्तागण को निर्देशित किया कि अपीलकर्तागण परिवादीगण को दिनांक 09.06.2005 से 28.07.2006 तक का ब्याज अंकन 3,461.00 रू0 तथा सेवा में कमी की क्षतिपूर्ति के रूप में 5000.00 रू0 अदा करें। इसके अतिरिक्त 1000.00 रू0 वादव्यय के रूप में अदा करें। इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
हमने अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता डा0 उदयवीर सिंह के तर्को को सुना। प्रत्यर्थीगण पर नोटिस की तामीला आदेश दिनांक 16.01.2018 द्वारा पर्याप्त मानी गयी। प्रत्यर्थीगण की ओर से तर्क प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नही हुआ। प्रत्यर्थीगण की ओर से आपत्ति डाक से प्रेषित की गयी, जो पत्रावली में सम्मिलित है।
अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत प्रकरण में प्रत्यर्थी/परिवादीगण ने मासिक आय योजना के अन्तर्गत तीन अलग-अलग संयुक्त खाते पोस्ट आफिस मंथली एकाउण्ट रूल्स 1987 के प्राविधानों का उल्लंघन करते हुए खोले। इस अनियमितता की जानकारी होने पर विभाग द्वारा तीन खातों में से एक खाता बंद कर दिया। खाता खोलते समय खाताधारक द्वारा इस आशय की घोषणा की जानी थी कि खाताधारक के पास इस योजना के अन्तर्गत दो खाते से अधिक खाते नहीं हैं। किंतु परिवादीगण द्वारा खाता खोलते समय यह घोषणा नहीं की गयी। खाताधारकों द्वारा अनियमित खाता खोलने की जानकारी मिलने पर खाताधारकों को सूचित किया गया कि तीसरा अनियमित खाता बंद कर दें। खाते के अंतर्गत दिए गए ब्याज एवं एजेण्ट का कमीशन काटने के उपरांत शेष धनराशि परिवादीगण को वापस कर दी गयी। अत: परिवाद योजित किए जाने का कोई औचित्य नहीं था। अपीलकर्तागण की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि उपरोक्त योजना के अन्तर्गत संयुक्त खाता खोले जाने की स्थिति में सभी खातों में निवेश 04,08,000.00 से अधिक नहीं किया जा सकता।
परिवादीगण की ओर से प्रस्तुत की गयी आपत्ति तथा परिवाद के अभिकथनों में यह स्वीकार किया गया कि प्रश्नगत योजना के अन्तर्गत खोले गए संयुक्त खाते में 04,08,000.00 से अधिक धन का निवेश नहीं किया जा सकता किंतु परिवादीगण का यह कथन है कि अधिक निवेशित धनराशि पर अपीलकर्तागण द्वारा डाकघर के बचत खाते में देय ब्याज की दर से अदायगी की जाएगी। इस संदर्भ में प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण द्वारा लिखित आपत्ति के साथ मंथली इनकम एकाउण्ट स्कीम से संबंधित फोटो प्रति दाखिल की गयी जिसके पैरा-09 में यह वर्णित है कि इस योजना के अन्तर्गत स्वीकृत सीमा से अधिक किए गए अनियमित निवेश पर बचत खाते में देय ब्याज की दर से अदायगी निवेशकर्ता को की जाएगी। इस तथ्य से अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता ने इनकार नहीं किया।
यह तथ्य निर्विवाद है कि अनियमित खाता दिनांक 09.06.2005 को बंद कर दिया गया । अपीलकर्तागण द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादीगण को दिनांक 09.06.2005 तक का ब्याज अदा किया जा चुका है। इस ब्याज की अदायगी को प्रत्यर्थी/परिवादी स्वयं स्वीकार करते हैं अत: अतिरिक्त अदायगी शेष नहीं है।
परिवादीगण के कथनानुसार दिनांक 09.06.2005 तक देय ब्याज की अदायगी परिवादीगण द्वारा मांगे जाने के बावजूद अपीलकर्तागण द्वारा नहीं की गयी जिसके कारण मजबूर होकर परिवादीगण को परिवाद जिला मंच के समक्ष दिनांक 09.06.2001 को योजित करना पडा । परिवाद योजित किए जाने के उपरांत दिनांक 28.07.2006 को परिवादीगण को 32,444.00 रू0 ब्याज की अदायगी की गयी।
अपीलकर्ता की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि अनियमित खाता बंद करने की तिथि 09.06.2005 के बाद अपीलकर्ता ब्याज की अदायगी के उत्तरदायी नहीं हैं। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि अपीलकर्ता से यह अपेक्षित था कि दिनांक 09.06.2005 तक बचत खाता की दर से देय ब्याज, खाता बंद किए जाने की तिथि के उपरांत शीघ्र परिवादीगण को अदा किया जाता, किंतु यह तथ्य निर्विवाद है कि परिवादीगण को दिनांक 09.06.2005 तक देय ब्याज की अदायगी परिवादीगण द्वारा इस संबंध में निरंतर पत्राचार किए जाने के बावजूद नहीं की गयी। अन्तत: उसे परिवाद योजित करना पड़ा । प्रत्यर्थी/पवरिवादीगण द्वारा परिवाद योजित किए जाने के उपरांत दिनांक 28.07.2006 को परिवादीगण को दिनांक 09.06.2005 तक देय ब्याज 32,444.00 रू0 अदा किए गए, ऐसी परिस्थिति में विद्वान जिला मंच का यह निष्कर्ष कि अपीलकर्ता द्वारा सेवा में त्रुटि की गयी, हमारे विचार से त्रुटिपूर्ण नहीं है। प्रश्गनत निर्णय द्वारा विद्वान जिला मंच ने परिवादीगण को 09.06.2005 से 28.07.2006 तक बचत खाते के अन्तर्गत देय ब्याज दर के अनुसार 3461.00 रू0 अदा करने हेतु आदेश पारित किया है तथा सेवा में कमी के संदर्भ में क्षतिपूर्ति हेतु 5000.00 रू0 भुगतान किए जाने हेतु आदेशित किया है एवं 1000.00 रू0 वाद व्यय दिए जाने हेतु आदेशित किया गया है। मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों के आलोक में जिला मंच द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय हमारे विचार से त्रुटिपूर्ण नहीं है।
परिणामत: प्रस्तुत अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त करते हुए जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, ज्योतिवाफूलेनगर द्वारा परिवाद संख्या 37 सन 2006 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 22.02.2007 को सम्पुष्ट किया जाता है।
उभय पक्ष इस अपील का अपना अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट-3
(S.K.Srivastav,PA)