(राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ)
सुरक्षित
(जिला मंच प्रथम आगरा द्वारा परिवाद सं0 148/2010 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 11/05/2011 के विरूद्ध)
अपील संख्या 1043/2011
State Bank of India, a body corporate constituted under the State Bank of India Act, 1955 having it’s Corporate Office at Mumbai and a Local Head Office at 11, Sansad Marg, New Delhi and inter alia one of its Branch Known as Kagarol Branch, District: Agra
…अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
Sri Anil Kumar Garg, adult, son of Sri Ashok Kumar Garg R/0 Kasba Kheragad, District: Agra
.........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:
1. मा0 श्री चन्द्रभाल श्रीवास्तव, पीठा0 सदस्य।
2. मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य ।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री अंशुमाली सूद।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री प्रशान्त कुमार मिश्रा।
दिनांक 29-07-2015
मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
प्रस्तुत अपील परिवाद सं0 148/10 अनिल कुमार गर्ग बनाम स्टेट बैंक आफ इंडिया, जिला फोरम, प्रथम आगरा द्वारा पारित आदेश दिनांक 11/05/2011 से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत की गई है।
जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी को आदेश दिया है कि आदेश की तिथि से 30 दिन के अंदर विपक्षी परिवादी को जमा रसीदों पर जो ब्याज दी जा रही थी उससे अधिक विपक्षी द्वारा जो ब्याज ली गई है उसे परिवादी को वापस करे। साथ ही 3000/ रूपया परिवाद व्यय अदा करे। अवहेलना करने पर ब्याज की धनराशि पर 09 प्रतिशत (जो अत्यधिक ली गई है) उस पर आदेश की तिथि से ता अदायगी देय होगी।
परिवाद का कथन संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी द्वारा विपक्षी के खाते में 1,02,00,000/ रूपया जमा किया था जमा करने के उपरान्त लिमिट बनवाई थी क्योंकि विपक्षी ने कहा था कि टी.डी.एस. ज्यादा लगेगा। विपक्षी ने 1,02,00,000/ रूपये की अलग-अलग
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एस.टी.डी.आर. बनवाई। विपक्षी ने अलग-अलग एस.टी.डी.आर बनवाकर ब्याज ज्यादा ली। जबकि एक करोड़ व इससे अधिक सावधि जमा राशि के आधार पर निर्गत ओ.डी. लिमिट पर ब्याज अधिकर नहीं लिया जायेगा। जबकि विपक्षी ने इस सावधि जमा धनराशि पर अधिक ब्याज लिया है। अत: अधिक ली गई ब्याज 10,00000/ रूपये व क्षतिपूर्ति की मांग की है।
विपक्षी ने अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर परिवाद का विरोध किया है तथा कहा कि परिवादी ने एस.टी.डी.आर. बनवाने का अनुरोध किया था कोई भय टी.डी.एस. का नहीं दिखाया गया। परिवादी ने एस.टी.डी.आर. अलग-अलग बनवाई थी। अलग-अलग लिमिट बांधी गई थी। परिवादी का कहना कि उसने एक साथ 1,02,00,000/ रूपये जमा किया था गलत है। परिवादी से जो ब्याज ली गई है सही ली गई है। परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता नहीं है। अत: परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
अपीलार्थी एवं प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्तागण की बहस को विस्तार से सुना गया एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क दिया कि परिवादी/प्रत्यर्थी ने अपने को व्यापारी बताया है। उसने ओवर ड्राफ्ट लिमिट व्यवसायिक उद्देश्य के लिए लिया था। जीविकोपार्जन के लिये नहीं लिया था। अपीलार्थी ने परिवाद इस आधार पर दाखिल किया है कि ब्याज की गणना जो किया गया है वह गलत है। जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय/आदेश उचित एवं सही नहीं है खण्डित करने योग्य है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क दिया कि जिला फोरम का निर्णय/आदेश सही है। जिला फोरम ने सभी तथ्यों पर विचार करते हुए जो निर्णय/आदेश दिया वह सही एवं उचित है। अपीलार्थी की अपील खारिज होने योग्य है।
आधार अपील एवं संपूर्ण पत्रावली का परिशीलन किया जिससे यह प्रतीत होता है कि परिवादी/प्रत्यर्थी एक व्यापारी है। परिवादी अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान ‘’ शिवा ट्रैक्टर’’ को संचालित करने के लिए ओ0डी0 लिमिट की सुविधा अपीलार्थी/विपक्षी से प्राप्त की थी। जो मैसी टैक्टर (TAFE) की डीलरशिप से संबंधित है। डीलरशिप के आधार पर किसानों को ट्रैक्टर विक्रीत करती है। परिवादी/प्रत्यर्थी के पक्ष में अपीलार्थी द्वारा ओ0डी0 लिमिट खाता सं0 11371156396 स्वीकृत हुआ था। परिवादी/प्रत्यर्थी ने विशेष सावधि जमा धनराशि पर विभिन्न तिथियों में एस.टी.डी.आर. अलग-अलग बनवाई। बैंकिंग नियमानुसार ओ0डी0 लिमिट
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के लिए लिया जाने वाला ब्याज उच्चतम ब्याज दर प्राप्त करने वाली एस.टी.डी.आर. से 01 प्रतिशत अधिक ब्याज दर प्राप्त करने की अपीलार्थी/विपक्षी बैंक को अधिकार प्राप्त था जिसके अनुसार अपीलार्थी विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी/प्रत्यर्थी से 10.25 प्रतिशत से 01 प्रतिशत अधिक ब्याज अर्थात 11.25 (10-25 – 1.00) लिया गया है। 01 प्रतिशत ब्याज लिए जाने के संबंध में अपीलार्थी बैंक ने ई. सरकुलर नं0 PB/CITU/ 51 दिनांक 28 जनवरी 2008 प्रस्तुत किया गया है जिसमें यह वर्णित है:-
2. MODIFICATIONS:
A few circles advised that they were losing business to competitors, since they were offering a finer rate of interest. In the circumstances, it has been decided to revise the rate of interest currently being charged on loans against T D Rs. The rates would therefore be as under:-
(i) 1% over the rate paid on the relative time deposit offered as security if the loan amount is below Rs.1.00 crore.
अपीलार्थी/विपक्षी बैंक द्वारा उक्त सरकुलर के निर्देशानुसार परिवादी/प्रत्यर्थी से 01 प्रतिशत ब्याज अधिक अर्थात 11.25 प्रतिशत ब्याज लिया गया है जो बैंक के नियमानुसार लिया गया है।
माननीय राष्ट्रीय आयोग ने SAFE HOME DEVELOPERS AND CONTRACTORS Versus SAMATA SAHAKARI BANK LTD. DLT Soft ware low on computer vo/- IV (NC) 729 में यह विधि व्यवस्था प्रतिपादित किया है:-
11. Perusal of paragraph 4 of the complaint clearly reveals that most f the cheques have been encashed by way of overdraft, thus, It becomes clear that prima facie overdraft facility was provided by opposite party to the complainant. Complainant, in reply to the application submitted that overdraft facility was granted against fixed deposit receipt, but it is very much clear that complainant’s current account was having facility of overdraft. As current account with overdraft facility was for commercial purpose, prima facie, complainant does not fall within the purview of consumer under the Consumer Protection Act and complaint is not maintainable.
उपरोक्त् विधि व्यवस्था के आलोक, तथ्य एवं परिस्थितियों पर विचार करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि परिवादी/प्रत्यर्थी ने विपक्षी से अपने हक में ओ0डी0 लिमिट स्वीकृत कराया था जो एक करोड़ से अधिक था। परिवादी/प्रत्यर्थी ने अपने वाद पत्र की दफा-6 में यह स्पष्ट रूप से कहा है कि ‘’ विपक्षी द्वारा बरती गई अनियमितता से परिवादी को मानसिक व व्यापारिक क्षति हुई है जिसके एवज में परिवादी विपक्षी से मु0 8,00,000/ रूपये क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है। परिवादी/प्रत्यर्थी के कथन से यह साबित होता है कि परिवादी
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व्यापारिक लाभ के उद्देश्य से भिन्न-भिन्न एस.टी.डी.आर. भिन्न-भिन्न तिथियों में बनाये गये थे। व्यापारिक उद्देश्य से बनाये गये। इस प्रकार प्रश्नगत प्रकरण में परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नही आता है क्योंकि परिवादी/प्रत्यर्थी व्यापारिक उद्देश्य से एस.टी.डी.आर. अपीलार्थी/विपक्षी से बनवायी थी। अपीलार्थी के अपील में बल पाया जाता है। अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 11/05/2011 अपास्त किया जाता है। उभय पक्ष अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(चन्द्रभाल श्रीवास्तव)
पीठा0 सदस्य
(संजय कुमार)
सदस्य
सुभाष आशु0 कोर्ट 2