राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-2179/2013
मैसर्स भारती एयरटेल मिमिटेड द्वारा ऑथराइज्ड सिग्नेचरी (सीनियर मैनेजर लीगल), एयरटेल काम्प्लैक्स, विभूति खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ।
बनाम
अनिल चोपड़ा फ्लैट नं0-36, 5वीं मंजिल एबी ब्लॉक दलीपपुर टावर्स 6 सप्रू मार्ग हजरतगंज, लखनऊ यू0पी0।
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री वी0पी0 शर्मा के सहयोगी
श्री सत्येन्द्र सिंह
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : श्री सत्य प्रकाश
दिनांक :- 23.7.2024
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी/विपक्षी मैसर्स भारती एयरटेल मिमिटेड द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, द्विवतीय (अतिरिक्त पीठ), लखनऊ द्वारा परिवाद सं0-120/2006 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 28.02.2013 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अप्रैल, 2006 में अपीलार्थी/विपक्षी कंपनी के कर्मचारियों के कहने पर एक टेलीफोन संयोजन इंटरनेट ब्राडबैंड सुविधा सहित लगवाया गया था। प्रत्यर्थी/परिवादी का शेयर बाजार का कार्य केवल इंटरनेट पर ही निर्भर था एवं उस समय प्रत्यर्थी/परिवादी की बेटी की मेडिकल की परीक्षा हेतु भी इंटरनेट की आवश्यकता थी। अत्एव उक्त संयोजन दिनांक 22.4.2006 को प्रत्यर्थी/परिवादी के घर
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अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा लगाया गया, जिसका टैरिफ प्लान एयरटेल 250 था। एडीएसएल मोडेम जो कि इंटरनेट ब्राडबैंड सुविधा हेतु था वह प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपना क्रय किया हुआ था, इसलिये उसका किराया नहीं लगना चाहिये था, किन्तु दिनांक 22.4.2006 से दिनांक 30.4.2006 तक अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से टेलीफोन संयोजन तथा इंटरनेट ब्राडबैंड का संयोजन करने प्रत्यर्थी/परिवादी के घर पर कोई नहीं आया और न ही कोई मोडेम संयोजन इंटरनेट ही करने आया, तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने परेशान होकर कंपनी को एक पत्र के द्वारा उक्त संयोजन वापस लेने को कहा।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी को एक बिल दिनांक 28.5.2006 को 601/-रू0 का प्राप्त हुआ जो कि अधिक व त्रुटिपूर्ण था जिसमें सीपीई और डीएसएल रेटल चाजैज रू0 62.7 एवं रू0 158.33 के तथा पेरेलर रिंगिग चार्जेज रू0 8.17 के लगे थे, जो कि नहीं लगने चाहिये थे, तब प्रत्यर्थी/परिवादी बिल लेकर अपीलार्थी/विपक्षी के चक्कर लगाता रहा और अपीलार्थी/विपक्षी के कहने पर रू0 500/- दिनांक 12.6.2007 को जमा करके वापस आ गया और फिर अगले माह भी दिनांक 25.6.2006 को प्रत्यर्थी/परिवादी को दूसरा त्रुटिपूर्ण बिल जो कि दिनांक 23.6.2006 का था प्राप्त हुआ। इसके बाद मासिक रेंटल जो कि रू0 250/- होना चाहिये था उसे अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा रू0 349/- लगा दिया गया जिसमें सीपीई रेंटल चार्जेज तथा पेरेलर रिंगिग चार्जेज भी शामिल थे जो कि नहीं लगने चाहिये थे।
यह कि दिनांक 28.7.2006 को प्रत्यर्थी/परिवादी के पास अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से एक कर्मी उसमान आया और हमेशा के लिये परेशानी से मुक्ति दिलाने हेतु आश्वासन देकर चला गया किन्तु
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कुछ भी नहीं हुआ बल्कि बिल का भुगतान करने के उपरान्त फोन व इंटरनेट संयोजन कट जाता था। तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने एक पत्र अपीलार्थी/विपक्षी कंपनी को दिनांक 09.11.2006 को लिखा, जिसके उपरान्त सारी आउटगोइंग काल्स एवं इंटरनेट संयोजन काट दिया गया तथा प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा भेजी गयी विधिक नोटिस का भी विपक्षी द्वारा कोई जवाब नहीं दिया गया अत्एव क्षुब्ध होकर परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विस्तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
"परिवादी अनिल चोपड़ा का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध स्वीकार करते हुये विपक्षी को यह निर्देश दिया जाता है कि परिवादी के विरूद्ध कोई शेष धनराशि बकाया नहीं है अतएव वे इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त होने के दो माह के अंदर परिवादी को मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति स्वरुप रू0 50,000/- वाद दायर करने की तिथि से ता अदायेगी तक 9 (नौ) प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर के साथ अदा करें, यदि विपक्षी उक्त निर्धारित अवधि के अंदर परिवादी को उक्त धनराशि अदा नहीं करते है तो विपक्षी को, उक्त धनराशि पर उक्त तिथि से ता अदायेगी तक 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर के साथ अदा करना पड़ेगा। इसके अतिरिक्त विपक्षी परिवादी को रु0 2000/- वाद व्यय भी अदा करगें।"
जिला उपभोक्ता आयोग के प्रश्नगत निर्णय/आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से प्रस्तुत अपील योजित की गई है।
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अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्य और विधि के विरूद्ध है। यह भी कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपीलार्थी के अभिकनों पर विचार न करते हुए जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है, वह अनुचित है।
यह भी कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख परिवाद पोषणीय नहीं है एवं अपीलार्थी द्वारा किसी प्रकार की सेवा में कमी नहीं की गई है। यह भी कथन किया गया कि बिलों की देनदारी से बचने के लिए प्रस्तुत किया गया है। अपीलार्थी के अधिवक्ता द्वारा अपील को स्वीकार कर जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश को अपास्त किये जाने की प्रार्थना की गई।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्य और विधि के अनुकूल है और उसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
प्रस्तुत अपील विगत 11 वर्षों से लम्बित है एवं पूर्व में अनेकों तिथियों पर अधिवक्तागण की अनुपस्थिति के कारण स्थगित की जाती रही है अत्एव आज मेरे द्वारा उभय पक्ष की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता द्व्य के कथनों को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।
मेरे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के कथनों को सुनने के पश्चात तथा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया अपीलार्थी कम्पनी द्वारा टेलीफोन
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व इंटरनेट ब्राडबैंड का संयोजन, संयोजित न कराया जाना एवं अधिक शुल्क बिल में जोड़ा जाना अपीलार्थी कम्पनी के अनुचित व्यापारिक व्यवहार की श्रेणी में आता है तथा बिल के भुगतान के उपरांत भी कनेक्शन न जोड़ा जाना अपीलार्थी कम्पनी की सेवा में कमी को दर्शित करता है। इस सम्बन्ध में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: विधि सम्मत है एवं विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो अनुतोष अपने प्रश्नगत आदेश में प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रदान किया गया है, उसमें किसी प्रकार कोई अवैधानिकता अथवा विधिक त्रुटि नहीं पायी गई, तद्नुसार प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
अपीलार्थी को आदेशित किया जाता है कि वह उपरोक्त आदेश का अनुपालन 45 दिन की अवधि में किया जाना सुनिश्चित करें। अंतरिम आदेश यदि कोई पारित हो, तो उसे समाप्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील को योजित करते समय यदि कोई धनराशि अपीलार्थी द्वारा जमा की गयी हो, तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
हरीश सिंह
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,
कोर्ट नं0-1