Uttar Pradesh

StateCommission

A/2011/421

Tata Motors - Complainant(s)

Versus

Anil Bansal - Opp.Party(s)

R Chaddha

13 Dec 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2011/421
( Date of Filing : 11 Mar 2011 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Tata Motors
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Anil Bansal
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 13 Dec 2022
Final Order / Judgement

(सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

अपील सं0 :-421/2011

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, मेरठ द्वारा परिवाद सं0-389/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 06/01/2011 के विरूद्ध)

Tata Motors Limited commercial Vehicle division, Jeevan tara Building, 5 sansad marg, New Delhi-110001, through its Manager.

  1.                                                                                                Appellant   

Versus   

  1. Anil Bansal, 251, Harnam das road, Civil Lines, Meerut.
  2. Shree Vasu Automobiles ltd, C-1 Shatabadi nagar, Delhi road, Meerut Through its M.D. Shri Ajay Gupta
  3.                                                                                       Respondents   

     समक्ष

  1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य
  2. मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य

उपस्थिति:

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:-श्री राजेश चड्ढा

प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:-  श्री अभिषेक खरे के सहयोगी

                               अधिवक्‍ता श्री शिवांश शुक्‍ला

दिनांक:-03.02.2023  

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

  1.            जिला उपभोक्‍ता आयोग, मेरठ द्वारा परिवाद सं0 389/2005 श्री अनिल बंसल बनाम श्री वशु आटोमोबाइल लिमिटेड व अन्‍य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 06.01.2011 के विरूद्ध यह अपील पस्‍तुत की गयी है, जिसके माध्‍यम से परिवादी का परिवाद अपीलकर्ता टाटा मोटर्स के विरूद्ध स्‍वीकार करते हुए प्रश्‍नगत वाहन हेतु प्रदान की गयी सम्‍पूर्ण धनराशि रूपये 5,06,101/- मय 12 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज परिवाद दायर होने की तिथि से अंतिम भुगतान की तिथि तक अदा करने एवं मानसिक व शारीरिक क्षति के लिए रूपये 10,000/- एवं रूपये 5,000/- वाद व्‍यय परिवादी को प्रदान किये जाने के निर्देश दिये गये।
  2.            परिवाद पत्र में परिवादी का कथन इस प्रकार आया कि परिवादी ने विपक्षी सं0 2 व 3 टाटा मोटर्स, निर्माता वाहन कम्‍पनी की एक कार विपक्षी सं0 1 वशु आटोमोबाइल डीलर से दिनांक 01.11.2004 को खरीदी थी, जिसमें अनेक कमियां पायी गयी। खरीदते समय औसत प्रतिली0 19 से 21 किमी बताया गया था, जबकि कार का औसत 8 से 9 प्रति किमी था। इसके अतिरिक्‍त साइलेंसर से काला धुआं निकलना, कार झटके लेकर बीच रास्‍ते में बन्‍द होना एवं ए0सी0 चालू करने पर कार का चलना असम्‍भव हो जाना, गेयर बाक्‍स का फेल हो जाना, स्‍टेयरिंग का ठीक कार्य न करना, क्‍लच प्‍लेट खराब होना, पम्‍प ठीक प्रकार काम नहीं करना आदि समस्‍याएं उत्‍पन्‍न हुई। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा विभिन्‍न तारीखों पर वाहन ठीक कराने हुए ले जाया गया, जिसमें 10.02.2005, 21.02.2005, 23.06.2005, 29.06.2005, 04.07.2005, 10.07.2005, 12.08.2005 व 09.09.2009 में ठीक कराने ले जाया गया, किन्‍तु शिकायतों का निवारण न होने पर प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा यह परिवाद योजित किया गया, जिसमें कार का   मूल्‍य एवं अन्‍य धनराशियों की मांग की गयी।
  3.            विपक्षी सं0 1 द्वारा वादोत्‍तर में कथन किया गया कि प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी स्‍वच्‍छ भावना से न्‍यायालय में नहीं आया है। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी का प्रश्‍नगत वाहन दिनांक 01.12.2004 को 2623 किमी चलने के उपरान्‍त दुर्घटनाग्रस्‍त हो गया था। वाहन की गारण्‍टी तथा वारण्‍टी विपक्षी सं0 2 व 3 ने दी थी। अत: निर्माण संबंधी किसी दोष का अनुतोष उन्‍हीं से मांगा जा सकता है।
  4.            विपक्षी सं0 2 व 3 टाटा मोटर्स लिमिटेड की ओर से एक वादोत्‍तर दाखिल किया गया है जिसमें कहा गया है कि प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी की गाड़ी दिनांक 01.12.2004 को दुर्घटनाग्रस्‍त हो गयी थी। इस तथ्‍य को प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने जानबूझकर छुपाया है और इस प्रकार वह स्‍वच्‍छ हाथों से न्‍यायालय के समक्ष नहीं आया है। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी को इसलिए गाड़ी की वारण्‍टी का लाभ मैनुवल व सर्विस बुक के नियमों के अनुसार नहीं दिया जा सकता है क्‍योंकि प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने आवश्‍यक सर्विस मैनुवल व सर्विस बुक के अनुसार नहीं करायी थी। गाड़ी में साइलेंसर से धुएं की शिकायत पहली बार दिनांक 16.08.2005 को 15335 किमी चलने के बाद प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा दर्ज करायी गयी, जिसके ठीक होने के बाद फिर पुन: यह शिकायत परिवादी ने नहीं की। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी का परिवाद काम्‍पलैक्‍स नेचर का है। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने वाहन में मैनुफेक्‍चरिंग डिफेक्‍ट अर्थात निर्माण संबंधी दोष बताया है, किन्‍तु यह दोष क्‍या है, यह विशिष्‍ट रूप से अंकित नहीं है तथा इस संबंध में कोई एक्‍सपर्ट रिपोर्ट भी दाखिल नहीं की गयी है। अत: प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी का परिवाद खण्डित होने योग्‍य है।
  5.            दोनों पक्षों को सुनकर विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने उपरोक्‍त अनुतोष अर्थात प्रश्‍नगत वाहन का मूल्‍य एवं अन्‍य अनुतोष विपक्षी सं0 2 व 3 के विरूद्ध प्रदान किये, जिससे व्‍यथित होकर परिवाद के विपक्षी सं0 2 व 3 वाहन के निर्माणकर्ता द्वारा यह अपील प्रस्‍तुत की गयी है।
  6.            अपील में मुख्‍य रूप से यह आधार लिये गये हैं कि प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा इंजन दोषपूर्ण होना बताया गया जो गलत है। विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने गलत प्रकार से वाहन में निर्माण संबंधी दोष मानते हुए वाहन का मूल्‍य परिवादी को दिलाये जाने के आदेश पारित किये हैं, किन्‍तु कोई भी निर्माण संबंधी दोष साबित नहीं हुआ है, केवल शपथ पत्र के माध्‍यम से प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा लिख देना पर्याप्‍त नहीं है और इस आधार पर परिवाद स्‍वीकार नहीं किया जा सकता है। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने कम माइलेज की शिकायत की है जबकि जॉब कार्ड में ही 12 किमी एवं 11 किमी दर्शाया गया है, जो कम नहीं कहा जा सकता। वाहन का औसत किमी, वाहन के ड्राइवर के चालन, सड़क की दशा, वाहन का रखरखाव एवं प्रयोग के तरीके पर भी निर्भर करता है। परिवादी द्वारा जो जॉब कॉर्ड दिये गये हैं उसमें साधारण टूट-फूट जो चलाने पर आती है, के संबंध में वाहन की दुरूस्‍ती करायी गयी है। जॉब कार्ड के आधार पर वाहन में निर्माण संबंधी दोष साबित नहीं होता है। विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने गलत प्रकार से मनमाने व अवैध तरीके से वाहन में निर्माण संबंधी दोष मानते हुए निर्णय पारित किया है एवं परिवाद स्‍वीकार किया है। अत: निर्णय अपास्‍त होने योग्‍य एवं अपील स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।
  7.            अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्‍ता श्री राजेश चड्ढा एवं प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्धान अधिक्‍ता श्री अभिषेक खरे के सहयोगी अधिवक्‍ता श्री शिवांश शुक्‍ला को विस्‍तृत रूप से सुना गया। पत्रावली का सम्‍यक अवलोकन किया गया।
  8.            विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने प्रश्‍नगत वाहन में निर्माण संबंधी दोष मानते हुए वाहन का पूर्ण मूल्‍य निर्माणकर्ता अपीलार्थी से वापस दिलाये जाने का निर्णय दिया है। निर्माण संबंधी दोष देखने के लिए जॉब कार्ड का देखा जाना आवश्‍यक है। उक्‍त जॉब कार्ड मेमो आफ अपील के साथ संलग्‍नक के रूप में प्रतियां प्रस्‍तुत की गयी है। इसके अतिरिक्‍त परिवादी की ओर से प्रस्‍तुत किये गये आपत्ति पत्र दिनांकित 03.02.2014 के साथ संलग्‍नक के रूप में भी जॉब कार्ड प्रस्‍तुत किये गये हैं। जॉब कार्ड दिनांक 01.12.2004 सर्वप्रथम प्रस्‍तुत किया गया है, जिसके शीर्षक जॉब कार्ड के नीचे एक्‍सीडेंटल फॉर आल्‍सो अंकित है तथा इसमे शिकायत के कॉलम में ‘’A.C. & Heater not working’’ लिखा गया है, जिससे स्‍पष्‍ट होता है कि प्रथम जॉब कार्ड अर्थात जो दिनांक 12.01.2011 को वाहन खरीदने के उपरान्‍त प्रथम जॉब कार्ड उपलब्‍ध है, उसमें ही दुर्घटना के उपरान्‍त वाहन को सर्विस सेण्‍टर पर दिखाया जाना अंकित है। अपीलकर्ता की ओर से वारण्‍टी की शर्तों को प्रस्‍तुत किया गया है, जिसमें शर्त सं0 5 में स्‍पष्‍ट रूप से दिया गया है कि यह वारण्‍टी दुर्घटना के मामले में लागू नहीं होगी। स्‍पष्‍ट है कि प्रस्‍तुत मामले में प्रश्‍नगत वाहन क्रय किये जाने के 02 माह के अंदर दुर्घटनाग्रस्‍त हो गया था। इसके उपरान्‍त जॉब कार्ड में दर्शायी गयी कमियां होना स्‍वाभाविक है। उपरोक्‍त जॉब कार्ड के अवलोकन से यह भी स्‍पष्‍ट होता है कि दुर्घटना होने के उपरान्‍त भी उस तिथि पर केवल ए.सी. से संबंधित कमियां आयी है, जिसको दुरूस्‍त किया गया। इस तिथि के उपरान्‍त अगली जॉब कार्ड दिनांक 10.02.2005 का है, जिसमें पहली फ्री सर्विस कराया जाना है, जिसमें टायरों का रोटेशन, वाइपर ब्‍लेड, सीटों पर पन्‍नी तथा पॉल्‍यूशन सर्टिफाई होने का वर्णन है। इसके अतिरिक्‍त अन्‍य कोई कमी नहीं दर्शायी गयी है। इसके उपरान्‍त दिनांक 12.05.2005 को दूसरी फ्रीस सर्विस अंकित है, जिसमें व्‍हील बैलेंस, लो एवरेज 10-11 किमी तथा शोर होने की शिकायत की गयी है, जिसको चेक किया गया। इस प्रकार अगली सर्विस 31.08.2005 को तीसरी फ्री सर्विस है, जिसमें काला धुआं निकलना, एवरेज कम होना तथा व्‍हीकल मशीन की शिकायत है, जिसको दुरूस्‍त किया गया। अगली जॉब कार्ड दिनांक 14.12.2005 का है, जिसमें टाइमिंग कवर चेंज, हेड लाइट में नमी होना, वाइपर ब्‍लेड की शिकायत, लो एवरेज 12 किमी, सीट मैट भीगी होना, बैटरी गरम होना तथा फ्यूल पाइप लीकेज की शिकायत की गयी है। यह सभी शिकायतें ऐसी हैं जो चलने में टूट-फूट संबंधी शिकायत है। निर्माण संबधी किसी दोष की शिकायत इन सभी जॉब कार्ड में कहीं परिलक्षित नहीं होती है।  
  9.            उपरोक्‍त कमियां जो परिवादी द्वारा दर्शायी गयी है, उनसे निर्माण संबंधी त्रुटि वाहन में होने का कोई उल्‍लेख नहीं है।
  10.            उपरोक्‍त के संदर्भ में माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय हिन्‍दुस्‍तान मोटर्स लिमिटेड प्रति पी-वासुदेवा प्रकाशित IV (2006) CPJ 167 (N.C.) उल्‍लेखनीय है, जिसमें यह निर्णीत किया गया है कि बैटरी, टायर, बल्‍ब तथा ए.सी. आदि की कमियां निर्माण संबंधी दोष नहीं माना जा सकता है और इसके लिए निर्माण कर्ता वाहन को बदलने अथवा वाहन का मूल्‍य वापस करने के लिए बाध्‍य नहीं है।
  11.            वाहन का मूल्‍य वापस किये जाने के संबंध में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित निर्णय मारूति उद्योग लिमिटेड प्रति सुशील कुमार गबगौत्रा प्रकाशित II (2006) CPJ page 3 (S.C.) का उल्‍लेख करना भी उचित होगा। इस निर्णय में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि वाहन का मूल्‍य प्रश्‍नगत वाहन में निर्माण संबंधी दोष मानते हुए उस दशा में दिलवाया जा सकता है जब वाहन सड़क पर चलने योग्‍य न हो और वह खड़ा रहता हो। माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के        उपरोक्‍त निर्णय प्रस्‍तुत मामले में लागू होता है। इस मामले में जॉब कार्ड के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि वाहन लगातार प्रयोग में है एवं चल रहा है। अत: निर्माण संबंधी दोष मानते हुए वाहन का मूल्‍य दिलवाया जाना उचित नहीं है।   
  12.            इस संबंध में एक अन्‍य निर्णय राकेश गौतम बनाम संघी ब्रदर्स व अन्‍य प्रकाशित III (2010) CPJ PAGE 105 (N.C.)  का उल्‍लेख करना भी उचित होगा। इस निर्णय में भी माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने उपरोक्‍त निर्णयों को दोहराते हुए यह निर्णीत किया है कि जब तक कि निर्माण संबंधी दोष पूर्णता साबित न हो, वाहन का लौटाया जाना अथवा उसका मूल्‍य दिलवाया जाना उचित नहीं है।
  13.            माननीय राष्‍ट्रीय आयोग एवं उच्‍चतम न्‍यायालय के उपरोक्‍त निर्णयों को दृष्टिगत रखते हुए यह पीठ इस मत की है कि विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने निर्माण संबंधी दोष मानते हुए निर्माता से वाहन का सम्‍पूर्ण मूल्‍य दिलवाये जाने का आदेश पारित किये हैं, जो यह निर्णय उचित नहीं माना जा सकता है क्‍योंकि किसी विशेषज्ञ आख्‍या से अथवा प्रस्‍तुत किये गये जॉब कार्ड से यह तथ्‍य साबित नहीं होता है कि प्रश्‍नगत वाहन में कोई निर्माण संबंधी दोष था। यह तथ्‍य अवश्‍य है कि वाहन को बार-बार दुरूस्‍ती के लिए सर्विस सेण्‍टर पर ले जाया गया। अत: वाहन में इस प्रकार की त्रुटियां लगातार उत्‍पन्‍न हुई, जिसके लिए प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी को शारीरिक एवं मानसिक कष्‍ट हुआ, जिसके लिए क्षतिपूर्ति के रूप में जो धनराशि रूपये 10,000/- दिलवायी गयी, वह उचित प्रतीत होती है एवं रू0 5,000/- परिवाद व्‍यय के रूप में प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी को दिलवाया गया है, जो उचित है। तदनुसार परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार किये जाने एवं अपील भी आंशिक रूप से स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।

आदेश

       अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है। प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश इस प्रकार परिवर्तित कया जाता है कि प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी को अपीलार्थी/विपक्षी सं0 2 व 3 मानसिक व आर्थिक   क्षतिपूर्ति हेतु रू0 10,000/- एवं रूपये 5,000/- वाद व्‍यय के रूपये में अदा करें। उक्‍त धनराशि अंदर 03 माह अदा की जाये। उक्‍त धनराशि तीन माह के अंदर अदा न होने पर इस धनराशि पर 08 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज निर्णय की तिथि से अंतिम अदायगी तक अदा करेंगे। शेष निर्णय/आदेश अपास्‍त किया जाता है।

            अपील में उभय पक्ष वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

      आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

                                                      

       (विकास सक्‍सेना)                                (सुशील कुमार)

           सदस्‍य                                         सदस्‍य

 

 

         संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-3

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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