अपील संख्या- 997/2017
दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0 बनाम अनिल बंसल
आदेश
दिनांक- 12-02-2020
परिवाद संख्या- 153 सन् 2010 अनिल बंसल बनाम एम०डी० दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, द्धितीय आगरा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 06-08-2016 के विरूद्ध यह अपील धारा- 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष अपील हेतु निर्धारित समय-सीमा के बाद परिवाद के विपक्षी दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की ओर से विलम्ब माफी प्रार्थना-पत्र के साथ प्रस्तुत की गयी है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री महेन्द्र नाथ मिश्रा उपस्थित आए हैं। प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एच०एस० खत्री उपस्थित हो चुके हैं परन्तु विलम्ब माफी प्रार्थना-पत्र पर सुनवाई हेतु निश्चित तिथि दिनांक- 30-01-2020 को वे उपस्थित नहीं हुए हैं। अत: अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुनकर विलम्ब माफी प्रार्थना-पत्र का निस्तारण किया जा रहा है।
विलम्ब माफी प्रार्थना-पत्र के समर्थन में अपीलार्थी की ओर से शपथ-पत्र प्रस्तुत किया गया है जिसमें अपीलार्थी ने अपील प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब का कारण यह बताया है कि आक्षेपित निर्णय और आदेश दिनांक 06-08-2016 की प्रति अपीलार्थी के कार्यालय में प्राप्त हुयी जो मिसप्लेस हो गयी और पूरे प्रयास के बाद भी नहीं मिली। शपथ-पत्र में कहा गया है कि अर्बन एरिया आगरा दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0 से टोरण्ट पावर लि0 को दिनांक 01-04-2010 को अन्तरित कर दिया गया और अपीलार्थी का स्टाफ भी
2
अन्तरित कर दिया गया। इस कारण वहॉं स्टाफ की कमी थी। इस कारण निर्णय की तलाश नहीं की जा सकी। उसके बाद निष्पादन वाद में नोटिस प्राप्त होने पर पुन: निर्णय की तलाश की गयी परन्तु निर्णय की प्रति नहीं मिली। तब आक्षेपित निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि हेतु पुन: आवेदन पत्र दिया गया और आक्षेपित निर्णय की प्रति प्राप्त करने के बाद यह अपील प्रस्तुत की गयी है। .
प्रत्यर्थी की ओर से प्रति-शपथपत्र प्रस्तुत कर विलम्ब माफी प्रार्थना-पत्र का विरोध किया गया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि आक्षेपित निर्णय और आदेश की प्रति कार्यालय में मिसप्लेस होने के कारण अपील समय से नहीं प्रस्तुत की गयी है। निष्पादन वाद में जब नोटिस प्राप्त हुयी है तो आक्षेपित निर्णय की प्रति की पुन: तलाश की गयी है फिर भी निर्णय की प्रति नहीं मिली है तब पुन: प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त कर अपील प्रस्तुत की गयी है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जानबूझकर अपील प्रस्तुत करने में विलम्ब नहीं किया गया है। अपील प्रस्तुत करने में विलम्ब परिस्थितिवश हुआ है। विलम्ब क्षमा कर अपील का निस्तारण गुण-दोष के आधार पर किया जाना आवश्यक है।
मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय दिनांक- 06-08-2016 के द्वारा परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
3
परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह 8678/-रू० परिवादी को एक माह के अन्दर अदा करें। वाद व्यय उभय-पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि वह निर्णय/आदेश के दिनांक से एक माह के अन्दर उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि जिला फोरम द्धितीय आगरा में चेक अथवा ड्राफ्ट द्वारा जमा करें।
जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश का अनुपालन अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा नहीं किया गया है तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने जिला फोरम के समक्ष इजरावाद प्रस्तुत किया है जिसमें अपीलार्थी/विपक्षी को नोटिस जारी की गयी है तब अपीलार्थी/विपक्षी ने आक्षेपित निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त कर यह अपील प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय से यह स्पष्ट है कि जिला फोरम के समक्ष उभय-पक्ष उपस्थित हुये हैं और जिला फोरम ने उभय-पक्ष के साक्ष्य व तर्क पर विचार कर आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है तथा आक्षेपित आदेश के द्वारा मात्र 8,678/-रू० का भुगतान प्रत्यथी/परिवादी को करने हेतु अपीलार्थी/विपक्षी को आदेशित किया है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश की नि:शुल्क प्रमाणित प्रतिलिपि दिनांक 17-08-2016 को अपीलार्थी/विपक्षी को समय से प्राप्त हुयी है फिर भी उसने अपील समय से प्रस्तुत नहीं किया है और न ही निष्पादन अधीन आदेश का अनुपालन किया है। विवश होकर प्रत्यर्थी/परिवादी को इजरावाद प्रस्तुत करना पड़ा है और इजरावाद प्रस्तुत किये जाने के बाद अपीलार्थी की ओर से यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
4
सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा अपील प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब का बताया गया कथित कारण आधारयुक्त और विश्वसनीय नहीं प्रतीत होता है। आदेशित धनराशि मात्र 8,678/-रू० है और आक्षेपित निर्णय और आदेश उभय-पक्ष को सुनकर व उनके द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य पर विचार कर पारित किया गया है। अत: सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए मैं इस मत का हॅूं कि अपील प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब को क्षमा करने हेतु उचित आधार नहीं है। अत: विलम्ब माफी प्रार्थना-पत्र निरस्त किया जाता है और अपील कालबाधा के आधार पर अस्वीकार की जाती है।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कृष्णा, आशु0
कोर्ट नं01