Madhya Pradesh

Gwalior

CC/15/2015

FIRM MOTILAL GYAPRASAD TROUGH ANIL GUPTA - Complainant(s)

Versus

ANDHRA BANK THROUGH MANAGER - Opp.Party(s)

M.L.SHARMA

16 Jan 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER FORUM GWALIO
FINAL ORDER
 
Complaint Case No. CC/15/2015
 
1. FIRM MOTILAL GYAPRASAD TROUGH ANIL GUPTA
MADHAV GANJ, LASHKAR
GWALIOR
MADHYA PRADESH
...........Complainant(s)
Versus
1. ANDHRA BANK THROUGH MANAGER
LASHKAR
GWALIOR
MADHYA PRADESH
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
  Smt.Abha Mishra PRESIDING MEMBER
  Dr.Mridula Singh MEMBER
 
For the Complainant:M.L.SHARMA, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

 परिवादी द्वारा अधिवक्ता श्री एम0एल0शर्मा उपस्थित। 
                  परिवाद की ग्राह्यता के संबंध में परिवादी के तर्क सुने।
                  प्रकरण का अवलोकन किया गया। विचार किया गया।
                  परिवादी के अभिवचानुसार उसकी फर्म मोतीलाल ग्या प्रसाद माधौगंज चैराहा लश्कर ग्वालियर में स्थित है जो कपडे का व्यवसाय करती है जिसके भागीदारों में अनिल कुमार गुप्ता परिवादी भी है। उक्त फर्म के नाम से अनावेदक आन्धा बंैंक में एक चालू (करेण्ट) खाता भी है जिस खाते से उक्त फर्म द्वारा व्यवसाय से संबंधित नगद व चैक द्वारा संव्यवहार किया जाता है। परिवादी फर्म द्वारा फर्म श्यामसुन्दर कोडामल भाटिया के नाम से एक चैक क्रमांक 29814 तादादी 8813रू का दिनांक 25.11.2014 जारी किया गया किन्तु अनावेदक बैंक द्वारा उक्त चैक भुगतान हेतु प्रस्तुत किए जाने पर उसे हस्ताक्षर अपर्याप्त के रिमार्क के साथ वापस कर दिया जिससे चैक भुगतान न होने से उक्त श्याम सुन्दर कोडामल फर्म द्वारा परिवादी के विरूद्ध धारा 138 निगोशियेबल इंस्ट्र्मेण्ट एक्ट के तहत कार्यवाही बाबत मजबूर होना पडेगा बताया तब परिवादी फर्म द्वारा उक्त फर्म को नगद भुगतान कर दिया गया चैक वापस लिया गया। जिससे परिसर संस्था की साख को भारी क्षति पहुंची है। परिवादी फर्म के खाते मे पर्याप्त राशि थी। इस प्रकार अनावेदक द्वारा की गयी सेवा में कमी के आधार पर यह परिवाद पेश करने हेतु विवश होना पडा है।
              परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में किए गए अभिवचनो से ही स्पष्ट है कि परिवादी एवं अनावेदक के मध्य का संव्यवहार व्यावसायिक उद्येश्य की पूर्ति हेतु था। परिवादी का कहीं ऐसा अभिवचन नहीं है कि उसके द्वारा पूर्णतः स्वरोजगार के आशय से एक मात्र जीविकोपार्जन के लिए उक्त व्यवसाय का संचालन किया जाता है जो भारी पैमाने पर अर्थ लाभ के उद्येश्य से नहीं है जब कि परिवादी के अभिवचन से स्पष्ट दर्शित होता है कि उसके द्वारा व्यवसाय का संचालन किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(1)(डी)(।।) एवं अपवाद को देखते हुए परिवादी अनावेदकगण के उपभोक्ता की परिधि में नहीं आता है। 
                   इसके अतिरिक्त भी देखें तो परिवादी स्वयं का अभिवचन है कि अनावेदक बैंक द्वारा परिवादी फर्म का चैक हस्ताक्षर अपर्याप्त होने के कारण अनादृत किया गया जब कि परिवादी का कोई अभिवचन नहीं है कि विवादित चेक पर हस्ताक्षर अपर्याप्त नहीं थे बल्कि परिवादी फर्म का केवल यह अभिवचन है कि उसके खातें पर्याप्त राशि थी जिसका चैक के अनादरण से कोई संबंध ही नहंी था। ऐसी स्थिति मे प्रथम दृष्ट्या अनावेदक बैंक द्वारा सेवा में कोई कमी किया जाना भी दशित नहंी होता है। 
                    अतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अंतिम सुनवाई हेतु ग्राह्य किए जाने योग्य न होने से इसे प्रारंभिक स्तर पर ही निरस्त किया जाता है। प्रकरण सांख्यिकीय प्रयोजन हेतु पंजीबद्ध हो। आदेश की प्रतिलिपि परिवादी को निःशुल्क दी जावे। परिणाम दर्ज कर प्रकरण अभिलेखागार में जमा हो। 
                         आदेश मैने लिखाया
डाॅ मृदुला ंिसंह   
                          श्रीमती आभा मिश्रा
   सदस्य                        सदस्य            

 
 
[ Smt.Abha Mishra]
PRESIDING MEMBER
 
[ Dr.Mridula Singh]
MEMBER

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