(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1453/2001
The Branch Manager, Allahabad bank, Branch Bhinga, District Sravasti.
………Appellant
Versus
1. Anarkali, W/o Ramdeen, R/o Village Tadava Bankatwa, Pargana/Tehsil/Post-Bhinga, District Sravasti.
2. Branch Manager, National insurance company limited, Office at Gonda, Gonda road, Behraich.
……….Respondents
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी
श्री मनोज कुमार,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से : कोई नहीं।
दिनांक:- 19.02.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 01/2001 अनार कली बनाम शाखा प्रबंधक नेशनल इंश्योरेंस कं0लि0 व एक अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दि0 02.05.2001 के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 15 के अंतर्गत यह अपील प्रस्तुत की गई है। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश द्वारा परिवाद स्वीकार करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 बैंक को निर्देशित किया गया है कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को अंकन 9,000/-रू0 अदा करें और 250/-रू0 वाद व्यय अदा करें।
2. परिवाद पत्र के अवलोकन से ज्ञात होता है कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने अंकन 9,000/-रू0 का ऋण दि0 04.08.1998 को भैंस क्रय करने के लिए प्राप्त किया था। इस भैंस का बीमा प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 1 से कराया गया था और पशु चिकित्साधिकारी द्वारा टैग नं0- 68990 लगाया गया था। भैंस की मृत्यु दि0 15.07.1999 को हो गई। उसी दिन अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 को सूचित कर दिया गया तथा भैंस के मृत शरीर का परीक्षण कराया गया। बीमा कम्पनी द्वारा क्लेम स्वीकार नहीं किया गया, इसलिए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. प्रत्यर्थी सं0- 2/बीमा कम्पनी का कथन है कि अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 बैंक के माध्यम से दि0 16.08.1999 को भैंस के मरने की सूचना प्राप्त हुई थी जब कि पालिसी की शर्त के अनुसार तुरंत सूचना दी जानी चाहिए थी।
4. अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 बैंक का कथन है कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी द्वारा भैंस की मृत्यु की जानकारी दि0 15.07.1999 को दे दी गई थी और अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 बैंक ने बीमा कम्पनी को क्लेम फार्म प्रेषित करने के लिए दि0 07.08.1999 को लिखा था तथा दि0 10.08.2000 को पुन: स्मृति पत्र भेजा था, इसलिए अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 बैंक द्वारा कोई शिथिलता/सेवा में कमी नहीं की गई है।
5. सभी पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के उपरांत जिला उपभोक्ता आयोग, श्रावस्ती द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 1 बीमा कम्पनी को समय पर अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 बैंक द्वारा सूचना नहीं दी गई जब कि अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 बैंक द्वारा ही बीमा कराया गया था। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 बैंक द्वारा ही प्रीमियम की धनराशि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी के खाते से काटकर प्रत्यर्थी सं0- 2/बीमा कम्पनी को जमा करायी गई थी। इसलिए अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 बैंक को उत्तरदायित्व ठहराते हुए उपरोक्त वर्णित आदेश पारित किया गया।
6. अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 बैंक द्वारा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि यह निर्णय एवं आदेश अवैध, अनुचित और मनमाना है। स्वयं जिला उपभोक्ता आयोग ने यह निष्कर्ष दिया है कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी अपनी भैंस की मृत्यु साबित करने में असफल रही है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट तथा डॉक्टर का प्रमाण पत्र विश्वसनीय नहीं है। इसके बावजूद अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 बैंक की सेवा में कमी मानते हुए प्रश्नगत आदेश पारित किया गया है।
7. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी अधिवक्ता श्री मनोज कुमार को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।
8. जिला उपभोक्ता आयोग ने यह निष्कर्ष दिया है कि चिकित्सक द्वारा जारी प्रमाण पत्र कागज सं0- 24 है जो संदेहास्पद है। चिकित्सक ने यह भी उल्लेख नहीं किया है कि किस तारीख को शव विच्छेदन किया था प्रमाण पत्र में तिथि अंकित नहीं है और हस्ताक्षर अपठनीय है। जिला उपभोक्ता आयोग ने निष्कर्ष दिया कि इस प्रकार का प्रमाण पत्र साक्ष्य जन्य शून्य पाता हूँ और इस प्रमाण पत्र को अविश्वसनीय मानने के बावजूद बाद में सेवा में कमी के बिन्दु पर विचार किया गया, परन्तु चूँकि भैंस की मृत्यु होना ही साबित नहीं है तब सेवा में कमी के बिन्दु पर विचार करने का कोई अवसर जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष उत्पन्न ही नहीं हुआ। सर्वप्रथम भैंस की मृत्यु होना साबित किया जाना था। उसी बिन्दु पर सेवा में कमी के बिन्दु पर विचार किया जाना था, परन्तु चूँकि भैंस की मृत्यु होना नहीं माना, इसलिए सेवा में कमी मानना विधि सम्मत नहीं है। अत: जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त होने योग्य है।
आदेश
9. अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाता है। परिवाद खारिज किया जाता है।
10. अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 2