सुरक्षित।
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :3171/2017
(जिला उपभोक्ता फोरम, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्या-184/2015 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 27-09-2017 के विरूद्ध)
- यूनियन आफ इण्डिया,, भारतीय डाक विभाग, मुख्य डाकघर, गोरलघर, गोरखपुर।
- यूनियन आफ इण्डिया, भारतीय डाक विभाग, शाखा कलेक्ट्री कचेहरी परिसर, गोरखपुर।
........अपीलार्थी/विपक्षीगण
बनाम
अमृतनाथ पुत्र श्री दीनानाथ मिश्रा निवासी ग्राम व पोस्ट भौवापार, जिला गोरखपुर।
.....प्रत्यर्थी/परिवादी
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री कृष्ण पाठक।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
समक्ष :-
- मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य।
- मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
दिनांक : 07-12-2018
मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-184/2015 अमृतनाथ बनाम् यूनियन आफ इण्डिया भारतीय डाक विभाग व एक अन्य में जिला उपभोक्ता फोरम, गोरखपुर द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय एवं आदेश दिनांक 27-09-2017 के विरूद्ध यह अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-15 के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
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इस प्रकरण में विवाद के संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी शिक्षित बेरोजगार है और उसने वर्ष 2011 में प्राथमिक शिक्षक भर्ती हेतु दो अलग-अलग स्थानों पर आवेदन भेजे। आवेदन दिनांक 08-01-2012 को विपक्षी संख्या-2 के डाकघर से स्पीड पोस्ट द्वारा प्राचार्य जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान इटावा को तथा दूसरा आवेदन प्राचार्य जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान सहारनपुर को भेजा जो दिनांक 09-01-2012 तक गन्तव्य स्थान तक पहुँचने थे। दिनांक 14-01-2012 जब उक्त भेजे गये स्पीड पोस्ट वापस प्राप्त हुए। विपक्षीगण की लापरवाही व सेवा में कमी के कारण उक्त स्पीड पोस्ट गन्तव्य स्थान पर नहीं पहुँच सका। इससे विपक्षी को काफी आघात लगा। इसलिए परिवाद ने परिवाद संख्या-184/2015 जिला फोरम गोरखपुर के समक्ष योजित किया है और निम्न अनुतोष दिलाये जाने की प्रार्थना की है।
- यह कि परिवादी द्वारा स्पीड पोस्ट से भेजी गयी डाक समय से न वितरण होने के कारण वह रोजगार से वंचित हो गया इसलिए उसे क्षतिपूर्ति दिलाया जाए।
- यह उसे परिवादी को विपक्षी से वाद व्यय भी दिलाया जाए।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया और कहा गया कि परिवादी का परिवाद तथ्यों के विपरीत है तथा परिवाद में पक्षकार के असंयोजन का दोष है जिसके कारण परिवाद निरस्त होने योग्य है। विपक्षी द्वारा यह भी कहा गया कि परिवादी द्वारा दो स्पीड पोस्ट दिनांक 03-01-2012 को विपक्षी संख्या-2 के माध्यम से भेजे गये जो तत्काल आर0एम0एस0 डिवीजन गोरखपुर को प्रेषित किये गये। परिवादी के डाक में विलम्ब का कारण Bulk Mailing था। परिवादी के नोटिस पर जॉंच की गयी और पाया गया Bulk Mailing के कारण आर0एम0एस0 में छटनी का कार्य प्रभावित हुआ जिसके कारण उक्त डाक पहुँचने में विलम्ब हुआ। परिवादी के नोटिस दिनांक 18-01-2012 के आलोक में दोनों स्पीड पोस्ट के देर से वितरण होने के कारण विभागीय नियमानुसार कुल रू0 50/- दिनांक 12-07-2012 को परिवादी के पास भेजा गया जिसे परिवादी द्वारा लेने से इंकार कर दिया गया। अत: परिवादी का परिवाद निरस्त होने योग्य है।
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विद्धान जिला मंच द्वारा उभयपक्षों के विद्धान अधिवक्तागण को सुनकर आक्षेपित निर्णय व आदेश निम्नानुसार पारित किया गया है :-
‘’परिवादी का यह परिवाद, विरूद्ध विपक्षीगण अंशत: स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि निर्णय के 45 दिनों के अंदर, परिवादी, चयन प्रक्रिया से वंचित रहने के कारण मानसिक, सामाजिक व आर्थिक क्षति के रूप में रू0 10,000/- तथा वाद व्यय हेतु रू0 2,000/- परिवादी को उक्त अवधि के अंदर विपक्षीगण भुगतान करें।
इसी आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
अपील सुनवाई हेतु पीठ के समक्ष प्रस्तुत हुई। अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री कृष्ण पाठक उपस्थित हुए। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
पीठ द्वारा अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्कों को सुना गया तथा आक्षेपित निर्णय व आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
इण्डियन पोस्ट आफिस रूल्स (स्पीड पोस्ट रूल्स की धारा-66-बी) के अन्तर्गत डाक के विलम्ब से वितरित होने के कारण क्षतिपूर्ति के रूप में स्पीड पोस्ट में हुए व्यय के लिए दोगुनी धनराशि का भुगतान परिवादी को किया जा सकता है। जिसकी परिवादी, विपक्षी से मांग कर सकता है। अपील के आधार में यह भी अभिकथन किया गया है कि पोस्ट आफिस अधिनियम की धारा-6 के अन्तर्गत डाक के गलत पते पर वितरित होने अथवा उसे विलम्ब से पहुँचाने अथवा डाक के क्षतिग्रस्त हो जाने पर, किसी भी प्रकार का दायित्व सरकार/डाक विभाग पर नहीं होगा। अपील में धारा-6 को निम्न प्रकार से अपने अपील के आधार में उद्धरत किया गया है।
Section-6 Exemption from liability for loss, miss-delivery, delay or damages.
“The Government shall not incur any liability by reason if the loss, miss-delivery or delay of, or damages to, any postal article in course of transmission by post, expect in so far as such liability may in express terms be undertaken by the Central Givernment as herein after provided, and no officer of the post office shall incur any liability by reason of any such loss,
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miss-delivery, delivery or damages, unless she has caused the same fraudulently or his willful act or default.”
अपील में यह आधार भी लिया गया है कि जिला फोरम ने परिवाद, विरूद्ध विपक्षीगण अंशत: स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया है कि निर्णय के 45 दिनों के अंदर, परिवादी, चयन प्रक्रिया से वंचित रहने के कारण मानसिक, सामाजिक व आर्थिक क्षति के रूप में रू0 10,000/- तथा वाद व्यय हेतु रू0 2,000/- परिवादी को उक्त अवधि के अंदर विपक्षीगण करते करें जो कि गलत है। अपीलार्थी/विपक्षी के स्तर पर सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की गयी है और अपील में प्रश्नगत आदेश को खण्डित करने की प्रार्थना की गयी है।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्कों को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
पत्रावली पर उपलब्ध अभिलखों के परिशीलन से यह स्पष्ट है कि डाकघर अधिनियम-1898 की धारा-6 के अन्तर्गत डाकघर/सरकार को किसी भी डाक के गलत पते पर वितरित हो जाने अथवा उसे विलम्ब से पहुँचाने अथवा उसे क्षतिग्रस्त को जाने के कारण उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। अधिक से अधिक स्पीड पोस्ट पर हुए व्यय की धनराशि उसे वापस की जा सकती है। इस प्रकरण में भी डाक विलम्ब से वितरित हुई है। उपरोक्त उल्लिखित डाकघर अधिनियम-1898 की धारा-6 के अन्तर्गत इस प्रकार डाक वितरण में हुए विलम्ब के लिए शासन/डाकघर को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। इण्डियन पोस्ट आफिस रूल्स (स्पीड पोस्ट रूल्स की धारा-66-बी) के अन्तर्गत डाक के विलम्ब से वितरित होने के कारण क्षतिपूर्ति के रूप में स्पीड पोस्ट में हुए व्यय के लिए दोगुनी धनराशि का भुगतान परिवादी को किया जा सकता है। इस प्रकरण में भी अधिक से अधिक स्पीड पोस्ट पर लगाये गये डाक टिकटों की धनराशि की दुगनी धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी को डाक विभाग द्वारा वापस की जा सकती है। विद्धान जिला फोरम ने डाकघर के उपरोक्त प्राविधानों की अनदेखी करके त्रुटि की है और प्रश्नगत आदेश त्रुटिपूर्ण ढंग से पारित किया है जो खण्डित होने योग्य है।
अपीलार्थी की अपील में बल है। उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस मत के है कि प्रत्यर्थी/परिवादी अधिक-से-अधिक डाक टिकटों में व्यय हुई धनराशि
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की दुगनी धनराशि अपीलार्थी/विपक्षी से प्राप्त करने का अधिकारी है। अत: अपीलार्थी की अपील आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। प्रश्गनत आदेश खण्डित करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को उसके द्वारा डाक टिकटों में व्यय की गयी धनराशि की दुगनी धनराशि का भुगतान करें।
उभयपक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वंय वहन करेंगे।
उभयपक्षों को निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
( राज कमल गुप्ता ) ( महेश चन्द )
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट नं0-1, प्रदीप मिश्रा,