Uttar Pradesh

StateCommission

A/1075/2015

Amit Kumar - Complainant(s)

Versus

Amrapali Sappire Devpolers Pvt Ltd - Opp.Party(s)

M.N. Mishra

27 Apr 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1075/2015
(Arisen out of Order Dated 09/04/2015 in Case No. C/52/2014 of District Gautam Buddha Nagar)
 
1. Amit Kumar
Gujrat
...........Appellant(s)
Versus
1. Amrapali Sappire Devpolers Pvt Ltd
Noida
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 HON'BLE MRS. Smt Balkumari MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 27 Apr 2017
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

 

अपील सं0- 1075/2015                                     

  (सुरक्षित)

 

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, गौतमबुद्धनगर द्वारा परिवाद सं0- 52/2014 में पारित आदेश दि0 09.04.2015 के विरूद्ध)

  1. Amit kumar S/o Late A.D. Narayan, aged about 42 years, occupation service.
  2. Purnima kumari verma W/o Shri Amit kumar aged about 35 years both Resident of 13/72 G.R. Township, Jawahar nagar, Vadodara-391320, Gujarat.

                                                                                                   ……… Appellants

 

Versus

Chairman M/s Amrapali sapphire Developers private limited C-56/40, Sector-62, Noida-201307, U.P.

                                                                                         ………. Opposite Party  

समक्ष:-

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्‍य।   

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री महेन्‍द्र कुमार मिश्रा, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री विक्रम सोनल सिंह, विद्वान अधिवक्‍ता।  

दिनांक:- 31.05.2017

 

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष  द्वारा उद्घोषित

                                                     

निर्णय

  परिवाद सं0- 52/2014 अमित कुमार एवं एक अन्‍य बनाम चेयरमैन आम्रपाली Sapphire डेवलपर्स प्रा0 लि0 में जिला फोरम, गौतमबुद्धनगर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 09.04.2015 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्‍त परिवाद के परिवादीगण अमित कुमार एवं पूर्णिमा कुमारी की ओर से धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गई है।

  आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादीगण द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद निरस्‍त कर दिया है और इसके साथ ही अपीलार्थी/परिवादीगण को निर्देशित किया है कि वे विपक्षी को अवशेष धनराशि और ब्‍याज प्रश्‍नगत फ्लैट के विक्रय पत्र के निष्‍पादन एवं कब्‍जा हस्‍तांरण के समय अदा करें। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह भी आदेशित किया है कि परिवादीगण द्वारा ऐसा तभी किया जायेगा जब विपक्षी अपने प्रोजेक्‍ट का कम्‍प्‍लीकेशन सार्टीफिकेट प्राप्‍त कर लेते हैं। जिला फोरम ने अपने निर्णय और आदेश में यह भी आदेशित किया है कि अपीलार्थी/परिवादीगण कोई भी ब्‍याज क्षतिपूर्ति अथवा दण्‍ड धनराशि विपक्षी से पाने  के आधिकारी नहीं होंगे।

  अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थीगण की ओर से उनके विद्वान अधिवक्‍ता श्री महेंद्र कुमार मिश्रा उपस्थित आये हैं और प्रत्‍यर्थी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्‍ता श्री विक्रम सोनल सिंह उपस्थित आये हैं।

        हमने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

  अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादीगण ने जिला फोरम, गौतमबुद्धनगर के समक्ष उपरोक्‍त परिवाद इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने एलाटमेंट लेटर नम्‍बर 029/s/404/5880/09 दिनांकित 22.10.2009 के द्वारा अपीलार्थी/परिवादीगण को अपने आम्रपाली Sapphire योजना में सेक्‍टर 45 नोएडा में एक फ्लैट बेसिक 32,20,000/-रू0 मूल्‍य पर आवंटित किया और बायर एग्रीमेंट दि0 22.10.2009 को उभयपक्ष ने निष्‍पादित किया। तदोपरांत अपीलार्थी/परिवादीगण ने प्रत्‍यर्थी/विपक्षी को 29,49,750/-रू0 बायर एग्रीमेंट के अनुसार अदा किया।

  परिवाद पत्र में परिवादीगण ने आगे कहा है कि बायर एग्रीमेंट के प्रस्‍तर 20 (a) के अनुसार प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने प्रश्‍नगत आवंटित फ्लैट का कब्‍जा दि0 31.12.2012 तक देने का वादा किया था और उसके इस वादे पर विश्‍वास करते हुए अपीलार्थी/परिवादीगण ने उससे फ्लैट खरीदा है तथा भुगतान किया है, परन्‍तु उसने तय शुदा समय पर अपीलार्थी/परिवादीगण को फ्लैट का कब्‍जा नहीं दिया है। यहॉं तक कि निर्धारित समय के बाद चार साल का समय बीत गया, फिर भी कब्‍जा आवंटित फ्लैट का नहीं दिया गया है।

  परिवाद पत्र के अनुसार बायर करार के प्रस्‍तर 20 (C) में प्राविधन है कि कब्‍जा हस्‍तांतरण में विलम्‍ब होने पर सुपर एरिया के क्षेत्रफल के अनुसार 10/-रू0 प्रति स्‍कावयर फिट की दर से पेनाल्‍टी देने हेतु प्रत्‍यर्थी/विपक्षी उत्‍तरदायी होगा, परन्‍तु अपीलार्थी/परिवादीगण के अनुरोध पर विपक्षी उन्‍हें कोई प्रतिकर पेनाल्‍टी अदा नहीं किया। अत: दि0 28.11.2013 को प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण ने विपक्षी को नोटिस भेजा और परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया जिसमें उन्‍होंने निम्‍न अनुतोष की याचना की है :-

  1. Payment of monthly compensation of Rs. 25000/- effective 01st January 2013 towards the rental loss that the consumers had to suffer because of the deficiency of service of the OP in not “delivering the possession of flat” as promised. The Hon’ble District Consumer Forum may be pleased to order the payment of compensation to the complainants/consumers named as above.
  2. The Hon’ble District Consumer Forum may also be pleased to order for the payment of an amount of Rs 11.0 Lacs to the complainants (consumers) towards the erosion in value of the flat due to negligence and deficiency of service by O.P.
  3. The Hon’ble District Consumer Forum may also be pleased to order for the payment of suitable compensation for mental harassment and strain the complainants (consumers) had to undergo at the hand of O.P.
  4. Award costs to the Complainant as the Hon’ble District Consumer Forum may deem fit.
  5. Direct the OP to take immediate steps to deliver the possession of the flat to the complainant/consumers without further delay.

  विपक्षी की ओर जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्‍तुत कर परिवाद का विरोध किया गया है और कहा गया कि प्रश्‍नगत फ्लैट के निर्माण में विलम्‍ब किसानों द्वारा मा0 उच्‍च न्‍यायालय, इलाहाबाद के समक्ष प्रस्‍तुत याचिका एवं मा0 नेशनल ग्रीन ट्रिबुनल के द्वारा पारित आदेश के कारण हुआ है जिसके लिए प्रत्‍यर्थी/विपक्षी उत्‍तरदायी नहीं हैं। लिखित कथन में प्रत्‍यर्थी/विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि अपीलार्थी/परिवादीगण ने बायर करार के अनुसार स्‍टालमेंट का भुगतान नहीं किया है। उनके जिम्‍मा 27,810/-रू0 ब्‍याज की धनराशि देय है।

  जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन पर विचार करने के उपरांत यह निष्‍कर्ष निकाला है कि प्रश्‍नगत फ्लैट के निर्माण में विलम्‍ब जिन कारणों से हुआ है वह प्रत्‍यर्थी/परिवादी के कंट्रोल में नहीं है। ऐसी स्थिति में निर्माण में विलम्‍ब के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने सेवा में त्रुटि की है। अत: जिला फोरम ने परिवाद निरस्‍त करते हुए उपरोक्‍त प्रकार से आदेश पारित किया है।

  अपीलार्थी/परिवादीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश तथ्‍य और विधि के विपरीत है। प्रत्‍यर्थी/विपक्षी बायर एग्रीमेंट के अनुसार अपीलार्थी/परिवादीगण को फ्लैट के निर्माण में हुए विलम्‍ब के कारण पेनाल्‍टी देने हेतु उत्‍तरदायी है। अत: जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादीगण का परिवाद खारिज कर गलती की है।

  अपीलार्थी/परिवादीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्‍त कर अपीलार्थी/परिवादीगण द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद स्‍वीकार किया जाना और उन्‍हें याचित उपसम प्रदान किया जाना न्‍याय की दृष्टि से आवश्‍यक है।

  प्रत्‍यर्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि फ्लैट के निर्माण में विलम्‍ब जिन कारणों से हुआ है उन पर प्रत्‍यर्थी/विपक्षी का कोई नियंत्रण या कंट्रोल नहीं है। अत: बायर एग्रीमेंट के अनुसार फ्लैट के निर्माण में हुए विलम्‍ब के लिए अपीलार्थी/परिवादीगण को क्षतिपूर्ति या पेनाल्‍टी देने हेतु विपक्षी उत्‍तरदायी नहीं है।

  प्रत्‍यर्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्‍य और विधि के अनुकूल है और उसमें किसी हस्‍तक्षेप की आवश्‍यकता नहीं है।

  हमने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है। परिवाद पत्र के कथन से ही स्‍पष्‍ट है कि प्रश्‍नगत फ्लैट प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने अपीलार्थी/परिवादीगण को 32,20,000/-रू0 के बेसिक मूल्‍य पर आवंटन किया है और तदनुसार पक्षों के बीच बायर एग्रीमेंट निष्‍पादित किया गया है। प्रश्‍नगत परिवाद जिला फोरम के समक्ष इसी बायर एग्रीमेंट के आधार पर प्रस्‍तुत किया गया है और उपरोक्‍त उपसम चाही गई है। धारा 11 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत जिला फोरम को ऐसे परिवाद को ग्रहण करने की अधिकारिता है, जहॉं माल या सेवा का मूल्‍य और प्रतिकर यदि कोई है 20,00,000/- से अधिक नहीं है? मा0 राष्‍ट्रीय आयोग ने Ambrish kumar shukla & Ors. Versus Ferrous Infrastructrue Pvt. Ltd. 2016(4) CPR 83 (NC)  के वाद में धारा 11, 17 और 21 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधान पर विचार करते हुए निम्‍न मत व्‍यक्‍त किया है :-

  It is evident from a bare perusal of Sections 21, 17 and 11 of the Consumer Protection Act that it’s the value of the goods or services and the compensation, if any, claimed which determines the pecuniary jurisdiction of the Consumer Forum. The Act does not envisage determination of the pecuniary jurisdiction based upon the cost of removing the deficiencies in the goods purchased or the services to be rendered to the consumer. Therefore, the cost of removing the defects or deficiencies in the goods or the services would have no bearing on the determination of the pecuniary jurisdiction. If the aggregate of the value of the goods purchased or the services hired or availed of by a consumer, when added to the compensation, if any, claimed in the complaint by him, exceeds Rs. 1.00 crore, it is this Commission alone which would have the pecuniary jurisdiction to entertain the complaint. For instance if a person purchases a machine for more than Rs. 1.00 crore, a manufacturing defect is found in the machine and the cost of removing the said defect is Rs. 10.00 lacs, it is the aggregate of the sale consideration paid by the consumer for the machine and compensation, if any, claimed in the complaint which would determine the pecuniary jurisdiction of the Consumer Forum. Similary, if for instance, a house is sold for more than Rs. 1.00 crore, certain defects are found in the house, and the cost of removing those defects is Rs. 5.00 lacs, the complaint would have to be filed before this Commission, the value of the services itself being more than Rs. 1.00 crore.

  धारा 11 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधान और मा0 राष्‍ट्रीय आयोग के उपरोक्‍त निर्णय में प्रतिपादित सिद्धांत से यह स्‍पष्‍ट है कि वर्तमान परिवाद का मूल्‍यांकन फ्लैट के बेसिक मूल्‍य 32,20,000/-रू0 और याचित प्रतिकर के आधार पर किया जायेगा। इस प्रकार परिवाद का मूल्‍यांकन 20,00,000/-रू0 से अधिक है। अत: अपीलार्थी/परिवादीगण के द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है।

  अपीलार्थी/परिवादीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम के समक्ष प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने जिला फोरम की अधिकारिता को चुनौती नहीं दी है। ऐसी स्थिति में इस स्‍तर पर जिला फोरम की अधिकारिता के सम्‍बन्‍ध में विवाद नहीं उठाया जा सकता है। अपीलार्थी/परिवादीगण के विद्वान अधिवक्‍ता ने इस संदर्भ में मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा Sharpmind Consultancy Services (P) Ltd. & Ors. Versus Libord Infotech Ltd. III (2016) CPJ 551 (NC) के वाद में पारित निर्णय प्रस्‍तुत किया है जिसमें मा0 राष्‍ट्रीय आयोग ने मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा Civil Appeal No. 5721 of 2006, dated 12.12.2006, Hasham Abbas Sayyad V. Usman Abbas Sayyad & Ors., I (2007) SLt 425, के वाद में दिये गये निर्णय का उल्‍लेख किया है जिसमें मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने निम्‍न मत व्‍यक्‍त किया है:-

  “So far as territorial and pecuniary Jurisdictions are concerned, objection to such jurisdiction has to be taken at the earliest possible opportunity and in any case at or before settlement of issues. The laws is well settled on the point that if such objection is not taken at the earliest, it cannot be allowed to be taken at a subsequent stage”.  

  इस संदर्भ में उल्‍लेखनीय है कि मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा जगमित्‍तर सेन भगत (डा0) बनाम डायरेक्‍टर, हेल्‍थ सर्विसेज, हरियाणा व अन्‍य (2013) 10 एस0सी0सी0 पेज-136 के वाद में दिया गया निर्णय उल्‍लेखनीय है, जिसमें माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने निम्‍न मत व्‍यक्‍त किया है:-

  “Indisputably, it is a settled legal proposition that conferment of jurisdiction is a legislative function and it can neither be conferred with the consent of the parties nor by a superior court, and if the court passes a decree having no jurisdiction over the matter, it would amount to nullity as the matter goes to the root of the cause. Such an issure can be raised at any stage of the proceedings. The finding of a court or tribunal becomes irrelevant and unenforceable/inexecutable once the forum if found to have no jurisdiction. Similarly, if a court/tribunal inherently lacks jurisdiction, acquiescence of party equally should not be permitted to perpetrate and perpetuate defeating of the legislative animation. The court cannot derive jurisdiction apart from the statute. In such eventuality the doctrine of waiver also dose not apply. (Vide United Commercial Bank Ltd. v. Workmen, Nai Bahu v. Lala Ramnarayan, Natraj Studios (P) Ltd. v. Navrang Studios and Kondiba Dagadu Kadam v. Savitribai Sopan Gujar.)”

  धारा 11 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधान से स्‍पष्‍ट है कि अधिनियम के द्वारा जिला फोरम को ऐसे परिवाद को ग्रहण करने की अधिकारिता है जहॉं माल या सेवा का मूल्‍य और प्रतिकर  यदि कोई है 20,00,000/-रू0 से अधिक नहीं है? अत: विपक्षी की ओर से भले ही फोरम की अधिकारिता के सम्‍बन्‍ध में आपत्ति प्रस्‍तुत न की जाए। धारा 11 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधान की अनदेखी कर जिला फोरम परिवाद का संज्ञान नहीं ले सकता है और उसे ग्रहण नहीं कर सकता है। इस संदर्भ में उल्‍लेखनीय है कि वर्तमान परिवाद में ही फ्लैट का बेसिक मूल्‍य 32,20,000/-रू0 अंकित है और तदनुसार बायर करार निष्‍पादित किया गया है जिसके अनुपालन के सम्‍बन्‍ध में परिवाद प्रस्‍तुत किया गया है। अत: परिवाद पत्र के अभिकथन से ही स्‍पष्‍ट है कि परिवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है। अत: जिला फोरम ने परिवाद का जो संज्ञान लिया है वह धारा 11 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम का स्‍पष्‍ट उल्‍लंघन है। अत: धारा 11 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधान और माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के द्वारा जगमित्‍तर सेन भगत (डा0) बनाम डायरेक्‍टर, हेल्‍थ सर्विसेज, हरियाणा व अन्‍य (2013) 10 एस0सी0सी0 पेज-136 के वाद में दिये गये निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए हम इस मत के हैं कि जिला फोरम द्वारा वर्तमान परिवाद का संज्ञान लेकर निर्णय पारित किया जाना अधिकार रहित और विधि विरूद्ध है।

  चूँकि परिवाद जिला फोरम की अधिकारिता से परे है। अत: जिला फोरम द्वारा विवाद के सम्‍बन्‍ध में गुण-दोष के आधार पर अंकित निष्‍कर्ष महत्‍वहीन और अधिकार रहित है। अत: परिवाद में उठाये गये विवाद के सम्‍बन्‍ध में इस अपील में गुण-दोष के आधार पर कोई मत व्‍यक्‍त किया जाना उचित नहीं है।

  उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर हम इस मत के हैं कि अपील स्‍वीकार करते हुए जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्‍त कर परिवाद अपीलार्थी/परिवादीगण को इस छूट के साथ निरस्‍त किया जाना उचित है कि वे विधि के अनुसार राज्‍य आयोग के समक्ष अपना परिवाद प्रस्‍तुत करने हेतु स्‍वतंत्र हैं।

आदेश

 

  अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्‍त करते हुए परिवाद अपीलार्थी/परिवादीगण को इस छूट के साथ निरस्‍त किया जाता है कि वे परिवाद राज्‍य आयोग के समक्ष विधि के अनुसार प्रस्‍तुत करने हेतु स्‍वतंत्र हैं।

 

 

          (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)                (बाल कुमारी)

                   अध्‍यक्ष                             सदस्‍य

 

 

शेर सिंह आशु.,

कोर्ट नं0-1

 

          

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. Smt Balkumari]
MEMBER

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