राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2573/2016
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, वाराणसी द्वारा परिवाद संख्या 177/2008 में पारित आदेश दिनांक 16.09.2016 के विरूद्ध)
Dr. Rajeev Sharma (Neuro Surgeon), Swastik Neuro Surgical Centre 17, Adarsh Nagar, Mahmoorganj, City Varanasi.
.................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
Amit Poddar, Son of Sri Ravikant Poddar, Resident of House No. 36/3, Kabir Nagar, Durga Kund, City Varanasi.
.................प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री शिशिर प्रधान,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री इन्द्रपाल सिंह,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 05.04.2018
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-177/2008 अमित पोद्दार बनाम डा0 राजीव शर्मा में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, वाराणसी द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 16.09.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
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''प्रस्तुत परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर परिवादी को की गयी चिकित्सकीय लापरवाही के सम्बन्ध में कुल हर्जा मु0-3,50,000/-(तीन लाख पचास हजार रुपये) एवं वाद व्यय मु0-5000/- (पॉच हजार रुपये) तथा उक्त सम्पूर्ण धनराशि मु0-3,55,000/-(तीन लाख पचपन हजार रुपये) पर परिवाद की तिथि से आइन्दा भुगतान की तिथि तक 10% (दस प्रतिशत) वार्षिक दर से ब्याज अदा करें।''
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री शिशिर प्रधान उपस्थित आए हैं। प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री इन्द्रपाल सिंह उपस्थित हुए हैं।
मैंने उभय पक्ष के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसकी कमर में दर्द होने पर उसने डा0 एस0के0 पोद्दार न्यूरोफिजीशियन को दिनांक 12.06.2006 को दिखाया। तब उन्होंने एम0आर0आई0 कराने के लिए कहा। तब वह अरिहन्त डायग्नोस्टिक सेन्टर जगरनाथपुरी कालोनी महमूरगंज वाराणसी दिनांक 15.06.2006 को
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गया और एम0आर0आई0 कराया। उसकी एम0आर0आई0 रिपोर्ट देखने के बाद डा0 एस0के0 पोद्दार ने न्यूरोसर्जन अपीलार्थी/विपक्षी डा0 राजीव शर्मा को रिपोर्ट दिखाकर इलाज कराने हेतु उसे कहा। तब वह अपीलार्थी/विपक्षी डा0 राजीव शर्मा के पास गया और उन्होंने एम0आर0आई0 रिपोर्ट देखकर कहा कि उसकी रीढ़ की हड्डी एल.4/5 बढ़ी हुई है, जिसका एक मात्र इलाज आपरेशन है। इसके साथ ही उन्होंने तुरन्त आपरेशन की सलाह दिया और उन्होंने आपरेशन करने के पहले प्रत्यर्थी/परिवादी का एक्सरे कराया तथा आपरेशन के स्थान को एल.4/5 से चिन्हित किया। उसके बाद दिनांक 28.06.2006 को उन्होंने प्रत्यर्थी/परिवादी की बढ़ी हुई रीढ़ की हड्डी का आपरेशन किया और आश्वासन दिया कि आपरेशन सफल है अब वह ठीक हो जाएगा, परन्तु आपरेशन के बाद भी उसे कोई आराम नहीं हुआ। कमर में बराबर दर्द बना रहा और अपीलार्थी/विपक्षी डा0 राजीव शर्मा उसे ठीक होने का आश्वासन देते रहे। कई महीने बाद तक उसे राहत नहीं मिली और उसकी हालत दिन प्रति दिन खराब होती गयी। तब लाचार होकर वह बाम्बे लीलावती हास्पीटल में इस्पाइनल सर्जन डा0 राम चड्ढा को दिनांक 20.03.2007 को दिखाया। तब डा0 राम चड्ढा ने दिनांक 21.03.2007 को उसका एम0आर0आई0 कराया और रिपोर्ट देखकर कहा कि डा0 राजीव शर्मा द्वारा बढ़ी रीढ़ की हड्डी एल.4/5 का आपरेशन न करके एल.3/4 का आपरेशन कर दिया गया है, जो बिल्कुल गलत है। इसके साथ ही डा0 राम चड्ढा ने
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एम0आर0आई0 की रिपोर्ट व उसका प्लेट दिखाते हुए उसे बताया कि रीढ़ की हड्डी एल.4/5 का आपरेशन डा0 राजीव शर्मा द्वारा ज्यों का त्यों छोड़ दिया गया है और उसके स्थान पर एल.3/4 का आपरेशन गलत तौर पर कर दिया गया है, जिसके कारण उसे असहनीय दर्द हो रहा है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने बाम्बे में अश्वनी बैक इन्स्टीट्यूट हास्पीटल के स्पाइनल के डा0 समीर एस. दालवी तथा डा0 शेखर भोजराज को दिखाया तो सभी ने अपीलार्थी/विपक्षी डाक्टर द्वारा घोर लापरवाहीपूर्वक आपरेशन करने की बात कही। उसके बाद पुन: प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 18.05.2007 को अपना एम0आर0आई0 कराया और उसके बाद उसे सलाह दी गयी कि अब जो आपरेशन होगा वह काफी बड़ा होगा और उसमें प्लेट व नट बोल्ट लगाने होंगे अन्यथा स्पाइनल कार्ड को स्थिर नहीं रखा जा सकता है। पूरी जिन्दगी बेल्ट बांधना पड़ेगा और उसे सीमित गतिविधियों के साथ जीना पड़ेगा। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने पुन: आपरेशन नहीं कराया। तब डा0 राम चड्ढा सर्जन द्वारा उसे कुछ दवायें दी गयी और यह सलाह दी गयी कि वह दवा खाता रहे तो आराम मिलेगा।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी दवा खाकर कष्टमय जिन्दगी जी रहा है, जिसका कारण अपीलार्थी/विपक्षी डा0 राजीव शर्मा द्वारा आपरेशन में बरती गयी लापरवाही है।
अपीलार्थी/विपक्षी डा0 राजीव शर्मा ने जिला फोरम के समक्ष
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अपना लिखित कथन प्रस्तुत किया है और कहा है कि परिवाद बिना किसी उचित आधार के प्रस्तुत किया गया है। परिवादी Lumber Disc Prolapse रोग से ग्रसित था, जो नसों के माध्यम से रीढ़ की हड्डी में चला जाता है, जिसके परिणामस्वरूप रोगी के पैर व पीठ में गम्भीर दर्द होता है और वह सामान्य रूप से चल फिर या बैठ नहीं सकता है। लिखित कथन में उन्होंने कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की एम0आर0आई0 रिपोर्ट में एल.4/5 रीढ़ की हड्डी बढ़ी हुई थी, जिसके कारण नसों में दबाव था और पैर व पीठ की नस में दर्द था। लिखित कथन में उन्होंने कहा है कि एम0आर0आई0 रिपोर्ट एवं अन्य निष्कर्षों के आधार पर उन्होंने एल.4/5 रीढ़ की बढ़ी हुई हड्डी का सफलतापूर्वक आपरेशन किया था और सर्जरी के बाद प्रत्यर्थी/परिवादी अपने घर चलकर गया था, जबकि सर्जरी के लिए उसे स्ट्रेचर पर लाया गया था।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी ने कहा है कि तकनीकी रूप से यह सम्भव नहीं है कि एल.3/4 का आपरेशन ligamentation flavum लिए बिना किया जा सके। इस प्रकार परिवाद में उनके विरूद्ध लगाया गया दोष निराधार है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी ने कहा है कि बाम्बे के डाक्टर एवं सर्जन की रिपोर्ट में कहीं नहीं है कि अपीलार्थी/विपक्षी ने एल.4/5 की जगह एल.3/4 का आपरेशन किया है। इसके विपरीत उनकी रिपोर्ट में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि बढ़े डिस्क की तुलना में एल.4/5 कुछ उभार के रूप में प्रथम एम0आर0आई0
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रिपोर्ट में दिखायी गयी है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की उनके द्वारा की गयी सर्जरी के नौ महीने बाद उसे दूसरे प्रकृति का पीठ दर्द एवं अन्य संक्रामक एलियोलाजी अर्थात् discitis या अन्य किसी प्रकार के संक्रमण हो सकते हैं।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी ने कहा है कि उनके द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। अत: परिवाद निरस्त किए जाने योग्य है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी डा0 राजीव शर्मा के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश त्रुटिपूर्ण है और साक्ष्य एवं विधि के विरूद्ध है। अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी के एल.4/5 का आपरेशन उचित ढंग से किया गया है और पत्रावली पर यह मानने योग्य कोई ऐसा साक्ष्य नहीं है कि अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी की हड्डी एल.3/4 का आपरेशन किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने लिखित तर्क भी प्रस्तुत किया है, जो संलग्न पत्रावली है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम का निर्णय साक्ष्य व विधि के अनुकूल है। इसमें किसी
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हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क पर विचार किया है।
अपीलार्थी के लिखित कथन से यह स्पष्ट है कि यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी/परिवादी Lumber Disc Prolapse रोग से ग्रस्त होकर अपीलार्थी/विपक्षी के यहॉं आया और अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी की एम0आर0आई0 रिपोर्ट देखकर व उसका परीक्षण कर बताया कि उसकी रीढ़ की हड्डी एल.4/5 बढ़ी है, तुरन्त आपरेशन वांछित है। उसके बाद प्रत्यर्थी/परिवादी का x-ray भी करके आपरेशन का स्थान एल.4/5 चिन्हित किया और आपरेशन किया।
प्रत्यर्थी/परिवादी के अनुसार अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा आपरेशन किए जाने के बाद भी आराम नहीं हुआ। उसके कमर में दर्द बना रहा। अपीलार्थी/विपक्षी ने उसे आश्वासन दिया कि आपरेशन सफल है दर्द ठीक हो जाएगा, परन्तु जब दर्द ठीक नहीं हुआ और उसकी हालत दिन प्रति दिन खराब होती गयी तब प्रत्यर्थी/परिवादी बाम्बे गया और लीलावती अस्पताल के डाक्टर राम चड्ढा के निर्देश पर एम0आर0आई0 कराया तब राम चड्ढा ने एम0आर0आई0 रिपोर्ट देखकर बताया कि उसकी रीढ़ की हड्डी एल.4/5 का आपरेशन न कर एल.3/4 का आपरेशन किया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने उसके बाद बाम्बे के अश्वनी बैंक इन्स्टीट्यूट हास्पीटल के डाक्टर समीर एस. दालवी और डाक्टर शेखर भोजराज को दिखाया और पुन:
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एम0आर0आई0 कराया तो उसे बताया गया कि अब उसका बड़ा आपरेशन होगा और स्पाइनल कार्ड को स्थिर रखने हेतु नट बोल्ट लगाना होगा एवं उसे बेल्ट लगाना होगा, जिससे उसे सीमित गतिविधियों के साथ जीना होगा। इस पर प्रत्यर्थी/परिवादी ने दूसरा आपरेशन नहीं कराया और डाक्टर राम चड्ढा से दवा लिया, परन्तु वह ठीक नहीं हुआ और कष्टमय जीवन जी रहा है।
अपीलार्थी/विपक्षी के अनुसार उसने प्रत्यर्थी/परिवादी की रीढ़ की हड्डी एल.4/5 का सफलतापूर्वक आपरेशन किया था और वह ठीक होकर गया था।
उभय पक्ष के कथन के आधार पर देखना यह है कि क्या अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी की रीढ़ की हड्डी एल.4/5 के स्थान पर एल.3/4 का आपरेशन किया है।
लीलावती अस्पताल की दिनांक 21.03.2007 की प्रत्यर्थी/परिवादी की एम0आर0आई0 रिपोर्ट के संगत अंश नीचे अंकित किए जा रहे हैं:-
Observations:
The alignment of lumbar vertebrae is normal. Evidences of laminectomy is noted at L4 with post operative changes in posterior paraspinal soft tissues.
There is erosion of adjacent endplates of L3 & L4 vertebrae with marrow oedema. Abnormal bright signals on T2W images are noted in L3-4
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intervertebral disc with posterocentral disc herniation. There is abnormal enhancenment of Lt-L4 vertebrae & L3-4 intervertebral disc. Minimal abnormal enhancement is also noted in paraspinal soft tissues at L3 & L4 level.
Conclusion:
MRI findings reveal:
Evidences of laminectomy at L4 level
The changes at L3-4 level, most likely represent infective spondylodiscties & needs futther evaluation with other laboratory investigations.
Posterocentral disc herniation at L4-5 with mild compression of thecal sac.
प्रत्यर्थी/परिवादी की एम0आर0आई0 रिपोर्ट देखकर अश्वनी बैंक इन्स्टीट्यूट के डाक्टर ने निम्न रिपोर्ट दी है:-
MRI shows un-intervened L4-5
Clinically instability at L4-5
Discitis at L3-4
जिला फोरम ने इन्स्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज बी0एच0यू0 के विशेषज्ञ डाक्टरों की आख्या प्राप्त की है। विशेषज्ञ डाक्टरों की टीम ने आख्या दिनांक 12.02.2014 को फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है। जिला फोरम ने अपने निर्णय में उल्लेख
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किया है कि रिपोर्ट दिनांक 12.02.2014 में उल्लिखित किया गया है कि परिवादी का आपरेशन वांछित लेबल से एक लेबल ऊपर किया गया है, जो किसी कन्जेनाइटल एनामली की वजह से हो सकता है।
अपीलार्थी/विपक्षी का कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के सगे चाचा डा0 एस0के0 पोद्दार उससे रंजिश मानते हैं, जिससे उन्होंने प्रत्यर्थी/परिवादी की रिपोर्ट दूसरे Medical Board से प्राप्त किया है, जिसमें कहा गया है कि, “Amit Poddar was operated a level higher than the desired level. It could be as a result of congenital anomaly of sacralization of number 5 Vertebra.”
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम ने पहली रिपोर्ट दिनांक 27.02.2013 में माना है कि आपरेशन में लापरवाही प्रतीत नहीं होती है। यह रीढ़ की नसों के आपरेशन में होने वाले सामान्य Complications प्रतीत होते हैं।
मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का आपरेशन किए जाने के बाद प्रत्यर्थी/परिवादी का परीक्षण व इलाज परिवाद पत्र में कथित डाक्टरों से कराया जाना अविवादित है और बाम्बे की एम0आर0आई0 रिपोर्ट व उस पर अंकित डाक्टर की आख्या से
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स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की रीढ़ की हड्डी एल.4/5 का आपरेशन नहीं हुआ है। उसकी रीढ़ की हड्डी एल.3/4 का आपरेशन हुआ है। अत: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ डाक्टरों की द्वितीय रिपोर्ट में अंकित उपरोक्त तथ्य का समर्थन बाम्बे की एम0आर0आई0 रिपोर्ट व अश्वनी बैंक इन्स्टीट्यूट के डाक्टर की रिपोर्ट से होता है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के डाक्टरों की पहली रिपोर्ट दिनांक 27.02.2013 अस्पष्ट व भ्रामक है।
उपरोक्त विवेचना एवं सम्पूर्ण साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह मानने हेतु पर्याप्त आधार है कि अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी की रीढ़ की हड्डी एल.4/5 का आपरेशन न कर एल.3/4 का आपरेशन किया है, जिससे प्रत्यर्थी/परिवादी के रोग का निदान नहीं हुआ है। अत: जिला फोरम ने अपीलार्थी/विपक्षी की जो प्रत्यर्थी/परिवादी के आपरेशन में लापरवाही मानी है, वह साक्ष्य की सही एवं विधिक समीक्षा पर आधारित है और उचित है। उसमें किसी हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने “Delayed Adjacent Level Spondylodiscitis after Initial Surgery with Instrumented Spinal Fusion” शीर्षक की केस रिपोर्ट प्रस्तुत किया है, परन्तु उपरोक्त निष्कर्ष से स्पष्ट है कि अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी की रीढ़ की हड्डी एल.4/5 का आपरेशन न कर एल.3/4 का आपरेशन किया है यह डाक्टर की रिपोर्ट व एम0आर0आई0 रिपोर्ट से प्रमाणित है। प्रत्यक्ष साक्ष्य को मात्र
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अनुमान एवं सम्भावना के आधार पर नकारा नहीं जा सकता है।
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ चिकित्सकों की समिति ने जो आख्या दिनांक 12.02.2014 को प्रस्तुत किया है, उसका संगत अंश नीचे उद्धरित किया जा रहा है:-
“On 12.02.2014 at 03:00 P.M. Mr. Amit Poddar, appeared before the members of the Medical Board, constituted for the purpose. He was examined clinically by the members. He was walking comfortably without support. There is no tenderness at the operation site. There is no motor weakness also. Though Mr. Amit Poddar was operated a level higher than the desired level, it could be as a result of congenital anomaly of Sacralization of lumber 5 (five) vertebra. As per his verdict, he has improved considerably in compare to pre operation status. At present he is not physically disabled.”
विशेषज्ञ समिति की आख्या से यह स्पष्ट होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी बिना सपोर्ट के आराम से चल सकता है और उसे वर्तमान में कोई शारीरिक अक्षमता नहीं है। यद्यपि इस विशेषज्ञ आख्या में यह अंकित है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का आपरेशन वांछित लेबल से एक लेबल ऊपर किया गया है। उपरोक्त विवेचना से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की रीढ़ की हड्डी के रोग के अनुसार
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उसकी रीढ़ की हड्डी के एल.4/5 का आपरेशन होना था, जबकि अपीलार्थी/विपक्षी ने उसकी रीढ़ की हड्डी के एल.3/4 का आपरेशन किया है, जो सेवा में त्रुटि है और अपीलार्थी/विपक्षी की इस त्रुटि के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को बाम्बे अपना इलाज कराने हेतु जाना पड़ा है और उसने बाम्बे जाकर अपना इलाज कराया है। प्रत्यर्थी/परिवादी के बाम्बे के इलाज के मद में जिला फोरम ने 50,000/-रू0 क्षतिपूर्ति अपने निर्णय में दिलाया है। जिला फोरम द्वारा प्रदान की गयी इस क्षतिपूर्ति की धनराशि को प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपील प्रस्तुत करके चुनौती नहीं दिया है और जिला फोरम द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी के बाम्बे इलाज के सम्बन्ध में प्रदान की गयी यह क्षतिपूर्ति की धनराशि अधिक नहीं कही जा सकती है। अत: जिला फोरम द्वारा प्रदान की गयी इस क्षतिपूर्ति की धनराशि में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, परन्तु बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के डाक्टरों की विशेषज्ञ आख्या में प्रत्यर्थी/परिवादी की जो वर्तमान स्थिति बतायी गयी है उसे देखते हुए जिला फोरम ने जो प्रत्यर्थी/परिवादी को शारीरिक व मानसिक कष्ट हेतु 2,50,000/-रू0 क्षतिपूर्ति प्रदान की है वह अधिक प्रतीत होती है। बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ डाक्टरों की आख्या में प्रत्यर्थी/परिवादी की अंकित स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए मेरी राय में शारीरिक व मानसिक कष्ट हेतु जिला फोरम द्वारा प्रदान की गयी क्षतिपूर्ति की धनराशि को कम कर 1,50,000/-रू0 किया जाना उचित है।
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जिला फोरम ने जो 5,000/-रू0 वाद व्यय दिया है, वह उचित है। उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
जिला फोरम ने जो परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिया है वह ब्याज दर अधिक प्रतीत होती है। अत: ब्याज दर कम कर 08 प्रतिशत वार्षिक किया जाना उचित है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है और जिला फोरम का निर्णय तदनुसार संशोधित किए जाने योग्य है।
आदेश
अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश संशोधित करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को बाम्बे में हुए इलाज के व्यय के मद में 50,000/-रू0 और प्रत्यर्थी/परिवादी का गलत आपरेशन किए जाने से उसे हुई शारीरिक व मानसिक कष्ट की क्षतिपूर्ति हेतु 1,50,000/-रू0 कुल 2,00,000/-रू0 परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 08 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ अदा करे। इसके साथ ही अपीलार्थी/विपक्षी प्रत्यर्थी/परिवादी को जिला फोरम द्वारा प्रदान की गयी 5,000/-रू0 वाद व्यय की धनराशि भी अदा करेगा।
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अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि 25,000/-रू0 अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाएगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1