राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-९७१/२००६
(जिला मंच, वाराणसी द्वारा परिवाद सं0-६१/२००४ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २३-०१-२००६ के विरूद्ध)
१. वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल यूनीवर्सिटी, जौनपुर द्वारा रजिस्ट्रार, जौनपुर, यू0पी0।
२. वाइस चान्सलर, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल यूनीवर्सिटी, जौनपुर, यू0पी0।
३. दी रजिस्ट्रार, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल यूनीवर्सिटी, जौनपुर, यू0पी0।
..................... अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम्
१. श्री अम्बुज कुमार सिंह पुत्र श्री अलियार सिंह निवासी ग्राम बोदारा खुर्द, पो0-चकिया, जिला वाराणसी। .................... प्रत्यर्थी/परिवादी।
२. प्रिसिंपल, हरिश्चन्द्र पोस्ट ग्रेजुएट कालेज, वाराणसी, यू0पी0।
..................... प्रत्यर्थी/विपक्षी।
अपील सं0-१०९३/२००६
(जिला मंच, वाराणसी द्वारा परिवाद सं0-६१/२००४ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २३-०१-२००६ के विरूद्ध)
दी प्रिसिंपल, हरिश्चन्द्र पोस्ट ग्रेजुएट कालेज, वाराणसी, यू0पी0।
..................... अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
१. अम्बुज कुमार सिंह पुत्र श्री अलियार सिंह निवासी ग्राम बोदारा खुर्द, पो0-चकिया, जिला चंदौली (वाराणसी) यू0पी0। .................... प्रत्यर्थी/परिवादी।
२. वाइस चान्सलर, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल यूनीवर्सिटी, जौनपुर, यू0पी0।
३. वाइस चान्सलर (एक्जामिनेशन), वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल यूनीवर्सिटी, जौनपुर, यू0पी0।
..................... प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष:-
१- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री विनय त्रिपाठी विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित :- श्री आर0के0 गुप्ता विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-२ की ओर से उपस्थित :- श्री एस0के0 शुक्ला विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : १८-०१-२०१८.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपीलें, जिला मंच, वाराणसी द्वारा परिवाद सं0-६१/२००४ में पारित निर्णय एवं आदेश
-२-
दिनांक २३-०१-२००६ के विरूद्ध योजित की गयी हैं।
एक ही निर्णय के विरूद्ध दोनों अपीलें योजित किए जाने के कारण दोनों अपीलें संयुक्त रूप से निर्णीत की जा रही हैं। अपील सं0-९७१/२००६ अग्रणी होगी।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार प्रत्यर्थी/परिवादी वर्ष १९९८-१९९९ में अपीलार्थी विश्वविद्यालय जौनपुर से सम्बद्ध हरिश्चन्द्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय वाराणसी में एल0एल0बी0 प्रथम वर्ष का छात्र था। प्रत्यर्थी/परिवादी ने हरिश्चन्द्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय वाराणसी से एल0एल0बी0 प्रथम वर्ष की परीक्षा वर्ष १९९८-९९ में दी जिसमें उसका रोल नम्बर ६९२८४ था किन्तु तीन पेपर में ३६ प्रतिशत से कम तथा ३० प्रतिशत या उससे अधिक होने के कारण परिवादी को अनुत्तीर्ण कर दिया गया। विश्वविद्यालय की नियमावली के आधार पर परिवादी ने एल0एल0बी0 प्रथम वर्ष का छठा पेपर ‘’ भारत का संविधान ‘’ में बैक परीक्षा दी तथा यह परीक्षा पास की। परिवादी ने बैक परीक्षा के साथ ही एल0एल0बी0 द्वितीय वर्ष की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली। बैक परीक्षा देने के पहले परिवादी के ‘’ भारत का संविधान ‘’ में ३० नम्बर थे तथा बैक परीक्षा देने के बाद ४८ नम्बर हो गये। एल0एल0बी0 प्रथम वर्ष में बैक परीक्षा देने के पहले सम्पूर्ण योग ३९१ नम्बर था जो बैक परीक्षा देने के बाद ४०९ नम्बर हो गया। परिवादी ने बैक परीक्षा के साथ ही एल0एल0बी0 द्वितीय वर्ष की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली और एल0एल0बी0 प्रथम वर्ष का सम्पूर्ण योग ४०९ नम्बर एल0एल0बी0 द्वितीय वर्ष के अंक पत्र पर भी अंकित हो गया। एल0एल0बी0 प्रथम वर्ष एवं एल0एल0बी0 द्वितीय वर्ष दोनों परीक्षाओं में उत्तीर्ण हो जाने पर परिवादी ने एल0एल0बी0 तृतीय वर्ष की परीक्षा में प्रवेश ले लिया। परिवादी को एल0एल0बी0 प्रथम वर्ष की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी एल0एल0बी0 प्रथम वर्ष का अंक पत्र नहीं दिया गया। अंक पत्र प्राप्त करने हेतु परिवादी अपीलार्थीगण से निरन्तर प्रयास करता रहा तथा प्रत्यावेदन भी प्रेषित किए किन्तु परिवादी को एल0एल0बी0 प्रथम वर्ष का अंक पत्र नहीं दिया गया। अन्तत: परिवादी को मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद में रिट याचिका योजित करनी पड़ी। रिट याचिका में पारित आदेशानुसार तथा मा0 उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश का अनुपालन न किए जाने के कारण कण्टेम्प्ट वाद योजित किए जाने के उपरान्त एल0एल0बी0 प्रथम वर्ष का अंक पत्र
-३-
परिवादी को प्राप्त हो सका। अपीलार्थीगण द्वारा परिवादी को एल0एल0बी0 प्रथम वर्ष का अंक पत्र न दिए जाने के कारण परिवादी बार काउन्सिल में रजिस्ट्रेशन समय से नहीं करा सका तथा अनेक प्रदेशों की न्यायिक सेवाओं की परीक्षा में सम्मिलित नहीं हो सका। अत: क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया गया।
अपीलार्थीगण ने परिवाद के अभिकथनों से इन्कार किया।
विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद स्वीकार करते हुए अपीलार्थीगण को ५०,०००/- रू० आर्थिक, मानसिक एवं सुअवसरों से वंचित रहने के फलस्वरूप निर्णय की तिथि से ०३ माह के अन्दर अदा करने हेतु आदेशित किया। इसके अतिरिक्त वाद व्यय के रूप में १,०००/- रू० अदा करने हेतु भी आदेशित किया।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गई।
हमने अपीलार्थी विश्वविद्यालय की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री विनय त्रिपाठी, प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 गुप्ता एवं प्रत्यर्थी महाविद्यालय की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एस0के0शुक्ला के तर्क सुने तथा दोनों पत्रावलियों का अवलोकन किया।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने लिखित तर्क में अपीलार्थीगण द्वारा एल0एल0बी0 प्रथम वर्ष का अंक पत्र परीक्षा उत्तीर्ण किए जाने के बाबजूद न दिए जाने तथा अंक पत्र प्राप्त न हो पाने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को हुई असुविधा एवं क्षति का वर्णन किया है।
अपीलार्थीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता नहीं है और न ही अपीलार्थीगण सेवा प्रदाता हैं। इस सन्दर्भ में अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा बिहार स्कूल एक्जामिनेशन बोर्ड बनाम सुरेश प्रसाद सिन्हा, ए.आई.आर २०१० सुप्रीम कोर्ट ९३ एवं महर्षि दयानन्द यूनीवर्सिटी बनाम सुरजीत कौर, III (2006) CPJ 19 (SC) के मामलों में मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये निर्णयों पर विश्वास व्यक्त किया गया। इन निर्णयों में मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा परीक्षा सम्पादित कराना तथा परीक्षा से सम्बन्धित अन्य कार्य, अंक पत्र एवं डिग्री दिये जाने को संविधीय कार्य होना निर्णीत किया गया है। विद्यार्थी को उपभोक्ता नहीं माना और न ही बोर्ड तथा विश्वविद्यालय को सेवा प्रदाता माना गया है। प्रश्नगत मामले में भी निर्विवाद रूप से
-४-
प्रत्यर्थी/परिवादी परीक्षार्थी था और निर्विवाद रूप से एल0एल0बी0 प्रथम वर्ष का अंक पत्र न दिए जाने का मामला था। मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये उपरोक्त निर्णयों के आलोक में प्रश्नगत विवाद उपभोक्ता विवाद नहीं माना जा सकता। ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से विद्वान जिला मंच द्वारा पारित निर्णय क्षेत्राधिकार के अभाव में पारित किए जाने के कारण अपास्त किए जाने योग्य है। तद्नुसार दोनों अपीलें स्वीकार किए जाने योग्य हैं।
आदेश
प्रस्तुत अपील सं0-९७१/२००६ एवं अपील सं0-१०९३/२००६ स्वीकार की जाती हैं। जिला मंच, वाराणसी द्वारा परिवाद सं0-६१/२००४ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २३-०१-२००६ अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त किया जाता है।
दोनों अपीलों का अपीलीय व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना वहन करेंगे।
यह भी आदेश हुआ कि अग्रणी अपील सं0-९७१/२००६ में इस निर्णय की मूल प्रति रखी जाय तथा अपील सं0-१०९३/२००६ में एक प्रमाणित प्रति रखी जाय।
पक्षकारों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(गोवर्द्धन यादव)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-३.