राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या- 630/2017
(जिला उपभोक्ता फोरम, हमीरपुर द्वारा परिवाद संख्या- 69/2016 में पारित निर्णय और आदेश दिनांक 06-03-2017 के विरूद्ध)
वीरेन्द्र कुमार, पुत्र स्व0 राम किशोर प्रजापति, निवासी थोक चॉद, कस्बा भरूआ सुमेरपुर, जिला हमीरपुर, (उ0प्र0)
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
शाखा प्रबन्धक, श्री मुकेश कुमार सोनी, इलाहाबाद बैंक, भरूआ सुमेरपुर, कस्बा व थाना भरूआ व सुमेरपुर जिला हमीरपुर (उ0प्र0)
प्रत्यर्थी/विपक्षी
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
माननीय श्री गोवर्धन यादव, सदस्य
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : व्यक्तिगत रूप से उपस्थित।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई उपस्थित नहीं।
दिनांक – 07.06.2018
मा0 श्री न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या 69/2016 वीरेन्द्र कुमार बनाम शाखा प्रबन्धक श्री मुकेश कुमार सोनी इलाहाबाद बैंक, भरूआ सुमेरपुर में जिला फोरम हमीरपुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 06-03-2017 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर दिया है जिससे क्षुब्ध होकर परिवाद के परिवादी, श्री वीरेन्द्र कुमार ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/परिवादी व्यक्तिगत रूप से उपस्थित आए। प्रत्यर्थी की ओर से नोटिस तामीला पर्याप्त माने जाने के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
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अत: अपीलार्थी के तर्क को सुनकर एवं आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन कर अपील का निस्तारण किया जा रहा है।
हमने अपीलार्थी के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि विपक्षी बैंक की शाखा भरूआ सुमेरपुर जिला हमीरपुर में उसका बचत खाता संख्या 22324271084 है जिसमें 5000/- रू० जमा करने के लिए वह दिनांक 21-11-2015 को बैंक के काउंटर पर गया और 5000/- रू० जमा किया तथा रसीद प्राप्त किया। उसके बाद दिनांक 30-11-2015 को रूपये की आवश्यकता पड़ने पर जब वह ए०टी०एम० से पैसे निकालना चाहा तो पैसा नहीं निकला। तब दिनांक 01-12-2015 को परिवादी बैंक में पासबुक पर इंट्री कराने गया तो पता चला कि दिनांक 21-11-2015 को जमा धनराशि उसके खाते में जमा नहीं हुयी है, तब अपीलार्थी/परिवादी ने बैंक मित्र से इस सम्बन्ध में जानकारी चाही तो उसने जमा पर्ची मांगी । दिनांक 03-12-2015 को अपीलार्थी/परिवादी ने जमा पर्ची के साथ लिखित शिकायत बैंक के शाखा प्रबन्धक से की और उसके बाद दिनांक 22-12-2015 को अपीलार्थी/परिवादी को बैंक के शाखा प्रबन्ध श्री मुकेश कुमार सोनी से स्पष्टीकरण प्राप्त हुआ जिसमें उसके बैंक खाते में धनराशि जमा न होने का कारण टैक्निकल समस्या बताया गया। अत: विवश होकर अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है और 10000/- रू० क्षतिपूर्ति व वाद व्यय की मांग की है।
विपक्षी बैंक ने अपना लिखित कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है जिसमें कहा गया है कि प्रबन्धक मुकेश कुमार सोनी को गलत पक्षकार बनाया गया है। इसके साथ ही लिखित कथन में यह कहा गया है कि परिवादी का यह कहना गलत है कि वह बैंक की शाखा में कांउटर पर गया तो बैंक में जमा निकासी काउंटर
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पर पैसे जमा करने का निर्देश दिया गया। ग्राहक को बैंक मित्र के पास भेजने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है क्योंकि बैंक में ही काउंटर है। लिखित कथन में विपक्षी बैंक की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवादी के खाते में 5000/- रू० दिनांक 01-12-2015 को जमा होना अंकित है और दिनांक 03-12-2015 को परिवादी के प्रार्थना पत्र पर बैंक द्वारा यह धनराशि दिनांक 01-12-2015 को परिवादी के खाते में जमा होने की पुष्टि की गयी है। लिखित कथन में विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि बैंक मित्र के लैपटाप में तकनीकि खराबी होने के कारण यह धनराशि समय से जमा न होने की जानकारी दी गयी है।
लिखित कथन में विपक्षी बैंक की ओर से कहा गया है कि परिवादी ने दिनांक 21-11-2015 से दिनांक 02-12-2015 तक कभी विपक्षी बैंक के प्रबन्धक से नहीं मिला है और न कोई आवेदन किया है। विपक्षी बैंक की ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। अत: परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त आक्षेपित निर्णय में यह उल्लेख किया है कि परिवादी ने दिनांक 03-12-2015 को विपक्षी से लिखित शिकायत किया जिस पर प्रबन्धक द्वारा संबंधित अभिलेखों की जांच की गयी तो पाया गया कि बैंक मित्र के लैपटाप में तकनीकि खराबी के कारण प्रश्नगत धनराशि परिवादी के खाते में सन्दर्भित नहीं हो पायी है। यह तथ्य बैंक मित्र के संज्ञान में आते ही उसने दिनांक 01-12-2015 को परिवादी के खाते मे 5000/- रू० जमा कर दिया है। यह बात परिवादी के शिकायती प्रार्थना पत्र के कागज संख्या 6 में अंकित है। जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह भी उल्लेख किया है कि पत्रावली पर दाखिल कागज संख्या 10 स्टेटमेंट आफ एकाउंट है जिसमें परिवादी के खाते में दिनांक 01-12-2015 को 5000/- रू० का इन्दराज है।
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उपरोक्त उल्लेख के आधार पर ही जिला फोरम ने यह माना है कि अपीलार्थी/परिवादी के शिकायती प्रार्थना पत्र दिनांक 03-12-2015 के आधार पर ही परिवादी की शिकायत का निस्तारण शाखा प्रबन्धक द्वारा कर दिया गया है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर ही जिला फोरम ने यह निष्कर्ष अंकित किया है कि अपीलार्थी/परिवाद द्वारा विपक्षी बैंक के विरूद्ध परिवाद प्रस्तुत करने का काज आफ एक्शन साबित नहीं है। अत: परिवाद जिला फोरम ने निरस्त कर दिया है।
जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय और उभय पक्ष के अभिकथन से यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादी ने दिनांक 21-11-2015 को प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक की प्रश्नगत शाखा भरूआ सुमेरपुर में 5000/- रूपये जमा किया परन्तु उसका यह रूपया उसके एकाउंट में बैंक द्वारा जमा नहीं किया गया है। यह रूपया दिनांक 01-12-2015 को अपीलार्थी/परिवादी के खाते में बैंक द्वारा जमा किया गया है। परिवाद पत्र व अपीलार्थी/परिवादी के शपथपत्र से यह स्पष्ट है कि दिनांक 21-11-2015 को उपरोक्त 5000/- रू० बैंक के काउंटर पर जमा करने के बाद अपीलार्थी/परिवादी ने रसीद प्राप्त किया। उसके बाद दिनांक 30-11-2015 को रूपये की आवश्यकता पड़ने पर जब उसने ए०टी०एम० से रूपया निकालना चाहा तो पैसा नहीं निकला। तब वह प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक में दिनांक 01-12-2015 को पासबुक पर इंट्री कराने गया तो उसे पता चाला कि दिनांक 21-11-2015 को जमा उपरोक्त धनराशि उसके खाते में जमा नहीं हुयी है। उसके बाद यह धनराशि प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक द्वारा उसके खाते में जमा की गयी है। दिनांक 21-11-2015 को उपरोक्त धनराशि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा जमा किये जाने पर यह धनराशि उसके खाते में जमा न किया जाना निश्चित रूप से सेवा में त्रुटि है। प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक का कथन है कि बैंक मित्र के लैपटाप में तकनीकी खराबी होने के कारण यह धनराशि अपीलार्थी/परिवादी के खाते में जमा नहीं हो सकी है। प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक अपने कर्मचारियों की त्रुटि हेतु वायकेरियस लाइबेलिटी के सिद्धान्त के आधार पर उत्तरदायी है। प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक द्वारा सेवा में त्रुटि का बताया गया कारण उचित नहीं है
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क्योंकि अपीलार्थी/परिवादी ने दिनांक 21-11-2015 को अपने खाते में रूपया जमा किया है और दिनांक 30-11-2015 को आवश्यकता पड़ने पर वह रूपया निकालना चाहा तब तक यह रूपया प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक द्वारा उसके खाते में अन्तरित नहीं किया गया है। ऐसी स्थिति में सम्पूर्ण तथ्यों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक की सेवा में कमी रही है जिससे आवश्यकता पड़ने पर अपीलार्थी/परिवादी प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक के ए०टी०एम० से रूपया नहीं पा सका है। ऐसी स्थिति में निश्चित रूप से उसे मानसिक कष्ट हुआ है। अत: उभय पक्ष के अभिकथन एवं सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद जो इस आधार पर निरस्त किया है कि उसकी शिकायत का दिनांक 03-12-2015 को निस्तारण प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक द्वारा कर दिया गया है, वह उचित नहीं है। जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद निरस्त करने का जो दूसरा कारण उल्लिखित किया है कि परिवाद प्रस्तुत करने का काज आफ एक्शन साबित नहीं है वह भी उपरोक्त विवेचना एवं ऊपर निकाले गये निष्कर्ष के आधार पर त्रुटिपूर्ण है।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचाना एवं ऊपर निकाले गये निष्कर्ष के आधार पर हम इस मत के हैं कि अपील स्वीकार कर जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश अपास्त किया जाए तथा अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद स्वीकार करते हुए प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक को आदेशित किया जाए कि वह सेवा में की गयी कमी हेतु 5000/- रू० क्षतिपूर्ति अपीलार्थी/परिवादी को प्रदान करे। हमारी राय में अपीलार्थी/परिवादी को प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक से 3000/- रू० वाद व्यय दिलाया जाना भी उचित है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश अपास्त करते हुए अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार किया जाता है तथा प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक को आदेशित किया जाता है
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कि वह सेवा में की गयी त्रुटि हेतु अपीलार्थी/परिवादी को 5000/- रू० क्षतिपूर्ति प्रदान करें। साथ ही 3000/- रू० वाद व्यय भी प्रदान करें।
उपरोक्त धनराशि प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक इस निर्णय की तिथि से तीन माह के अन्दर अपीलार्थी/परिवादी को अदा करें और यदि इस अवधि में यह धनराशि प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक अपीलार्थी/परिवादी को अदा नहीं करता है तो वह उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी अदा करेगा।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (गोवर्धन यादव)
अध्यक्ष सदस्य
कृष्णा, आशु0
कोर्ट नं01