Uttar Pradesh

StateCommission

A/2011/2168

Vijay Laxmi - Complainant(s)

Versus

Allahabad Bank - Opp.Party(s)

A K Pandey

20 Jul 2016

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2011/2168
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Vijay Laxmi
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Allahabad Bank
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Jitendra Nath Sinha PRESIDING MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 20 Jul 2016
Final Order / Judgement

(राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ)

                सुरक्षित                     

अपील संख्‍या 2168/2011

 

श्रीमती विजय लक्ष्‍मी पत्‍नी स्‍व0 श्री ओम प्रकाश वर्मा निवासिनी मकान नं0- 74/ए/6, जेल के पीछे, सैनी गली मुरादाबाद।

…अपीलार्थी/परिवादिनी

बनाम

1- इलाहाबाद बैंक प्रधान कार्यालय-2 नेताजी सुभाष रोड, कोलकाता (पश्चिमी बंगाल) द्वारा चेयरमैन एण्‍ड मैनेजिंग डायरेक्‍टर।

2- इलाहाबाद बैंक जोनल आफिस, सिविल लाइन्‍स, मुरादाबाद, उत्‍तर प्रदेश। द्वारा डिप्‍टी जनरल मैनेजर।

.........प्रत्‍यर्थीगण/विपक्षीगण

समक्ष:

       1. मा0 श्री जितेन्‍द्र नाथ सिन्‍हा, पीठासीन सदस्‍य ।

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित                    : कोई नहीं।

प्रत्‍यर्थीगण की ओर से उपस्थित                   : विद्वान अधिवक्‍ता श्री अरूण टण्‍डन।

 

दिनांक:-  22/07/2016

मा0 श्री जितेन्‍द्र नाथ सिन्‍हा, पीठा0 सदस्‍य द्वारा उदघोषित ।

निर्णय

       जिला मंच द्वितीय मुरादाबाद द्वारा परिवाद सं0 233/09 श्रीमती विजय लक्ष्‍मी बनाम इलाहाबाद बैंक व अन्‍य में दिनांक 12/08/2011 को निर्णय पारित करते हुए परिवाद खण्डित कर दिया गया, जिससे क्षुब्‍ध होकर परिवादिनी/अपीलार्थी की ओर से वर्तमान अपील योजित है।

      अपीलार्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हैं। प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री अरूण टण्‍डन उपस्थित हैं। प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता को सुना गया, प्रश्‍नगत आदेश, आधार अपील एवं उपलब्‍ध अभिलेखों का गंभीरता से परिशीलन किया गया।

      परिवाद पत्र का अभिवचन संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी के पति इलाहाबाद बैंक शाखा सिविल लाइन्‍स, मुरादाबाद में सहायक प्रबंधक के पद पर कार्यरत थे। उनका देहान्‍त दिनांक 16/06/2006 को सेवाकाल के दौरान हो गया और उन्‍होंने अपने पीछे विधवा विजय लक्ष्‍मी के अलावा 02 पुत्र और 02 पुत्रियों को छोड़ा है। परिवादिनी को बैंक द्वारा अवगत कराया गया था कि उसके पति का बैंक द्वारा इंन्‍श्‍योरेन्‍स करया गया है तथा बैंक कर्मचारी की विधवा को पेंशन भी दी जाती है। यह भी अवगत कराया गया था कि बैंक कर्मचारी की मृत्‍यु उपरान्‍त उसकी आय पर निर्भर व्‍यक्तियों को अनुकम्‍पा राशि दी जाती है अथवा बेरोजगार संतान को अनुकम्पित आधार पर नौकरी दी जाती है। परिवादिनी ने विपक्षीगण को दिनांक 13/07/2006

2

को पत्र लिखकर सूचित किया था कि परिवादिनी के पुत्र को अनुकम्‍पा के आधार पर नौकरी दी जाये, जिस पर विपक्षी सं0 2 की ओर से अवगत कराया गया कि अनुकम्‍पा के आधार पर नौकरी देने का प्रावधान नहीं है, बल्कि अनुकम्‍पा की राशि देने का प्रावधान है तथा शीध्र परिवादिनी को अनुकम्‍पा राशि मिल जायेगी। परिवादिनी द्वारा नोटिस भेजवाया गया परन्‍तु ने विपक्षीगण को प्राप्‍त होने के बावजूद भी कोई कार्यवाही नहीं की गई।

      प्रत्‍यर्थीगण की ओर से जिला मंच के समक्ष परिवाद का विरोध कियागया और मुख्‍य रूप से यह अभिवचन किया गया कि परिवादिनी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आती है एवं परिवाद उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष अपोषणीय है।

      उभय पक्ष के अभिवचनों को सुनने के उपरान्‍त जिला मंच ने विचार करते हुए परिवाद खण्डित कर दिया जिससे क्षुब्‍ध होकर वर्तमान अपील योजित है।

      परिवाद पत्र के अभिवचन से यह स्‍पष्‍ट है कि परिवादिनी के पति विपक्षी बैंक के यहां कर्मचारी के रूप में कार्यरत थे और उनका स्‍वर्गवास हो गया जिसके संबंध में अनुकम्‍पा लाभ प्राप्‍त किये जाने हेतु परिवादिनी द्वारा प्रश्‍नगत परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया और यह भी अनुरोध किया कि अनुकम्‍पा लाभ के रूप में नौकारी भी उपलब्‍ध कराया जाय और क्षतिपूर्ति एवं वाद व्‍यय भी दिलाया जाय। अनुकम्‍पा लाभ दिलाये जाने हेतु जो अनुतोष मांगा गया और अनुकम्‍पा लाभ के रूप में नौकरी दिलाये जाने हेतु मांगा गया एवं अनुतोष के विचारण का अधिकार उपभोक्‍ता फोरम को प्राप्‍त नहीं है। परिवादिनी को उपभोक्‍ता स्‍वीकार किया जाना विधि सम्‍मत नहीं है। इस संदर्भ में जिला मंच द्वारा जो निष्‍कर्ष दिया गया है उसमें किसी प्रकार की त्रुटि होना नहीं पाया जाता है। अपील खण्डित किये जाने योग्‍य है।

आदेश

        अपील खण्डित की जाती है।

                                                                   

   

                                    (जितेन्‍द्र नाथ सिन्‍हा)                               

                                        पीठा0 सदस्‍य                                   

 

 

सुभाष आशु0 कोर्ट नं0 4

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Jitendra Nath Sinha]
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