(राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0, लखनऊ)
सुरक्षित
परिवाद संख्या 102/2010
विजय कुमार त्रिपाठी (एचयूएफ) पुत्र श्री हरि विष्णु कुमार त्रिपाठी निवासी 104/406, सीसामऊ, पोस्ट आफिस, बिल्डिंग सीसामऊ, कानपुर- 208012 (उत्तर प्रदेश)
…परिवादी
बनाम
1- इलाहाबाद बैंक, जोनल आफिस, हजरतगंज, लखनऊ- 226001 द्वारा डिप्टी जनरल मैनेजर।
2- अर्थराइज्ड आफिसर, इलाहाबाद बैंक, जोनल आफिस- न्यू बिल्डिंग, प्रथम तल, हजरतगंज, लखनऊ- 226001।
3- इलाहाबाद बैंक, छोटा चौराहा ब्रांच, उन्नाव, द्वारा ब्रांच मैनेजर।
.........विपक्षीगण
समक्ष:
1. मा0 श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य ।
2. मा0 श्री विजय वर्मा, सदस्य।
परिवादी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री राम गोपाल।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 04-01-2017
मा0 श्री विजय वर्मा, सदस्य द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
यह परिवाद परिवादी विजय कुमार त्रिपाठी द्वारा प्रतिवादीगण इलाहाबाद बैंक, जोनल आफिस, हजरतगंज लखनऊ एवं अन्य के विरूद्ध दायर किया गया है।
परिवादी का संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि इलाहाबाद बैंक छोटा चौराहा ब्रांच, उन्नाव दोसार केबिल्स का भवन सं0 128/एच-2/393, ब्लाक- एच 2, स्कीम नं0- 2, किदवई नगर, कानपुर जिसकी स्वामिनी श्रीमती राम कुमारी गुप्ता थी, को गिरवी रखकर ऋण दिया गया। चूंकि दोसार केबिल्स ऋण का भुगतान नहीं कर सके अत: विपक्षी सं0 2 द्वारा सरफेसी एक्ट 2002 के अंतर्गत उपरोक्त भवन का विक्रय हेतु टेण्डर निकाले गये। परिवादी का टेण्डर रू0 11,80,000/- सर्वोच्च बिड होने के कारण उसके द्वारा 25 प्रतिशत की धनराशि रू0 1,03,000/- तथा रू0 2,00,000/- डिमांड ड्राफ्ट के द्वारा जमा
2
किये गये। दिनांक 26/03/2007 को मुख्य प्रबंधक, इलाहाबाद द्वारा परिवादी को यह सूचित किया गया कि उनके द्वारा बिड की धनराशि 3,03,000/- प्राप्त हो गई और वे शेष धनराशि 8,77,000/- रू0 जमा कर दें जिससे परिवादी के पक्ष में विक्रय पत्र निर्गत किया जा सके। परिवादी द्वारा रूपये 8,77,000/- डिमांड ड्राफ्ट द्वारा दिनांक 09/04/2007 को जमा कर दिया गया जिस पर दिनांक 23/04/2007 परिवादी को विक्रय पत्र तो जारी कर दिया गया किन्तु प्रश्नगत भवन का भौतिक कब्जा नहीं दिलाया गया। इस संबंध में विपक्षीगण द्वारा जिला मजिस्ट्रेट कानपुर के समक्ष धारा 14 सरफेसी एक्ट के अंतर्गत याचिका भी दायर की गई जिससे प्रश्नगत भवन का कब्जा लेकर के परिवादी को दिलाया जा सके किन्तु उपरोक्त याचिका जिला मजिस्ट्रेट, कानपुर द्वारा आदेश दिनांक 09/09/2009 को निरस्त कर दिया गया। विपक्षीगण द्वारा उसके बाद कोई अन्य कार्यवाही भौतिक कब्जा दिलाये जाने हेतु नहीं की गई और इसी दौरान सिविल जज, उन्नाव के यहां प्रश्नगत भवन के संबंध में वाद दायर हो गया। परिवादी द्वारा प्रश्नगत भवन का कब्जा न प्राप्त करने पर विपक्षीगण से उसके द्वारा जमा की गई धनराशि को मय ब्याज वापस करने हेतु कहा गया किन्तु विपक्षीगण द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई जिस पर परिवादी द्वारा एक विधिक नोटिस भी दी गई। विपक्षीगण द्वारा संपूर्ण धनराशि का भुगतान किये जाने पर भी प्रश्नगत भवन का कब्जा परिवादी को नहीं दिया गया और न ही उनके द्वारा धनराशि वापस की गई जिस कारण परिवादी द्वारा यह परिवाद धनराशि 21,13,467/- रू0 मय 18 प्रतिशत व्याज के अक्टूबर 2010 से भुगतान की तिथि तक दिलाये जाने हेतु तथा मु0 1,00,000/- रू0 क्षतिपूर्ति व वाद व्यय आदि दिलाये जाने हेतु यह परिवाद दायर किया गया।
विपक्षीगण द्वारा अपना प्रतिवाद पत्र दाखिल किया गया है जिसमें परिवादी द्वारा नीलामी में प्रश्नगत भवन को क्रय करने हेतु रू0 11,80,000/- को जमा किये जाने की तथ्य को स्वीकार किया गया है किन्तु यह कहा गया है कि चूंकि यह प्रकरण सरफेसी एक्ट के अंतर्गत आता है। अत: उपभोक्ता अधिनियम के अंतर्गत इस आयोग में वाद दायर करने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है और सरफेसी एक्ट के अंतर्गत कोई भी परिवाद इस आयोग में नहीं दाखिल किया जा सकता है अत: यह परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
3
परिवादी द्वारा प्रतिवाद पत्र के उत्तर में प्रति उत्तर भी दाखिल किया गया है जिसमें इन तथ्यों को अंकित किया गया है कि परिवादी द्वारा परिवाद दायर करने के उपरान्त विपक्षीगण को नोटिस निर्गत होने पर उनके द्वारा दिनांक 11/03/2011 को जमा की गई मूल धनराशि रू0 11,80,000/- बिना किसी ब्याज के परिवादी को चेक के माध्यम से प्रेषित की गई है जब कि विपक्षी को ब्याज भी उक्त धनराशि पर ब्याज भी दिया जाना था।
परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में नीलामी से संबंधित अभिलेख तथा धनराशि जमा किये जाने से संबंधित अभिलेख एवं विक्रय पत्र आदि की फोटोकांपी दाखिल की गई है, इसके अतिरिक्त अपना शपथ पत्र भी दाखिल किया गया है। विपक्षीगण द्वारा अपने प्रतिवाद पत्र के समर्थन में श्री डी0एस0 भटनागर का शपथ पत्र दाखिल किया गया है।
परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री रामगोपाल उपस्थित हैं। विपक्षीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता की बहस को सुना गया तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।
इस प्रकरण में यह तथ्य निर्विवाद है कि परिवादी द्वारा विपक्षीगण द्वारा एक गिरवी रखे गये भवन की नीलामी में सर्वोच्च बिड लगाने पर विपक्षीगण द्वारा परिवादी को उपरोक्त भवन के क्रय हेतु कुल धनराशि 11,80,000/- जमा करने पर प्रश्नगत भवन का विक्रय पत्र लिखा गया किन्तु भवन का वास्तविक एवं भौतिक कब्जा परिवादी को नहीं दिलाया गया। विवादित बिन्दु मात्र यह है कि क्या विपक्षीगण द्वारा परिवादी से प्रश्नगत भवन की संपूर्ण धनराशि प्राप्त करने के बाद भी भवन का कब्जा नहीं दिलाया जाना या भवन के संबंध में जमा की गई कुल धनराशि 11,80,000/- मय ब्याज के परिवादी को भुगतान न किया जाना विपक्षीगण की सेवा में कमी है या नहीं। विपक्षीगण द्वारा यह भी प्रश्न उठाया गया है कि यह परिवाद सरफेसी एक्ट के अंतर्गत होने के कारण इस आयोग में चलने योग्य नहीं है अत: इस बिन्दु को भी निस्तारित किया जाना है कि क्या यह परिवाद सरफेसी एक्ट से संबंधित होने के कारण इस आयोग में चलने योग्य है या नहीं।
4
सर्वप्रथम इस बिन्दु को कि यह परिवाद सरफेसी एक्ट से संबंधित होने के कारण इस आयोग में चलने योग्य नहीं है, निस्तारित किया जाता है। विपक्षीगण की तरफ से यह कहा गया है कि सरफेसी एक्ट के अंतर्गत होने के कारण आयोग में चलने योग्य नहीं है किन्तु इस तर्क में लेश मात्र भी बल नहीं है क्योंकि प्रश्नगत भवन की नीलामी सरफेसी एक्ट के अंतर्गत ही विपक्षीगण द्वारा की गई थी और इसी आधार पर परिवादी द्वारा 11,80,000/- रू0 का भुगतान करने पर विपक्षीगण द्वारा विक्रय पत्र लिखा गया था किन्तु उनके द्वारा भौतिक कब्जा नहीं दिया गया था। स्पष्टत: परिवादी से संबंधित प्रकरण सरफेसी एक्ट की धारा- 14 के अंतर्गत बाधित नहीं होती है। धारा- 14 सरफेसी एक्ट के अंतर्गत जिस व्यक्ति द्वारा ऋण लिया जाता है उसके विरूद्ध लागू होती है न कि सरफेसी एक्ट के अंतर्गत कार्यवाही करने पर नीलामी किये जाने वाले भवन के खरीददार पर, अत: इस तर्क में बिल्कुल बल नहीं है कि यह प्रकरण सरफेसी एक्ट से संबंधित होने के कारण इस आयोग में परिवादी द्वारा चलाये जाने योग्य नहीं है, तद्नुसार यह बिन्दु परिवादी के पक्ष में निर्णीत करते हुए यह निर्धारित किया जाता है कि यह परिवाद राज्य आयोग में चलने योग्य है।
अब हम इस परिवाद के मूल विचारणीय बिन्दु पर आते हैं कि क्या विपक्षीगण द्वारा परिवादी से प्रश्नगत भवन के विक्रय के संबंध में संपूर्ण धनराशि 11,80,000/- रू0 प्राप्त करके न तो भवन का कब्जा दिया और न ही उपरोक्त धनराशि मय ब्याज के वापस करके सेवा में कमी की गई है या नहीं। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि विपक्षीगण द्वारा अपने प्रतिवाद पत्र में यह कहा गया है कि उनके द्वारा कोई सेवा में कमी नहीं की गई है किन्तु यह स्पष्ट है कि विपक्षीगण का यह दायित्व था कि वह परिवादी से संपूर्ण धनराशि 11,80,000/- रू0 प्राप्त करने के उपरान्त या तो प्रश्नगत भवन का कब्जा परिवादी को दिला देते तथा उसके द्वारा जमा धनराशि को मय ब्याज वापस कर देते किन्तु उनके द्वारा ऐसा नहीं किया गया है जो कि स्पष्टत: सेवा में कमी का घोतक है। यह भी उल्लेखनीय है कि परिवादी ने अपने प्रति उत्तर में यह कथन किया है कि विपक्षीगण द्वारा दिनांक 11/03/2011 को 11,80,000/- रू0 की धनराशि चेक के माध्यम से परिवादी को भेज दिया गया था जिससे स्पष्ट है कि परिवादी को
5
दिनांक 11/03/2011 को 11,80,000/- रू0 का भुगतान विपक्षीगण द्वारा परिवादी को कर दिया गया किन्तु विपक्षीगण द्वारा मात्र परिवादी द्वारा जमा की गई मूल धनराशि मु0 11,80,000/- रू0 ही अदा की गई है उस पर कोई ब्याज नहीं दिया गया है जब कि विपक्षीगण के पास परिवादी की उपरोक्त धनराशि दिनांक 09/04/2007 से 11/03/2011 तक थी। अत: विपक्षीगण को उपरोक्त धनराशि पर ब्याज भी दिया जाना चाहिए था। उपरोक्त धनराशि पर ब्याज न देकर विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी की गई है। परिणामस्वरूप हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि विपक्षीगण परिवादी द्वारा जमा की गई धनराशि 11,80,000/- रू0 पर 09/04/2007 से 11/03/2011 तक की अवधि का ब्याज भी देने का अधिकारी था किन्तु उनके द्वारा ऐसा न करके सेवा में कमी की गई है अत: परिवादी इस अवधि का उपरोक्त धनराशि पर ब्याज पाने का अधिकारी है।
संपूर्ण तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए परिवादी धनराशि 11,80,000/- रू0 पर दिनांक 09/04/2007 से 11/03/2011 तक की अवधि के लिए 09 प्रतिशत साधारण ब्याज की दर से ब्याज पाने का अधिकारी है इसके अतिरिक्त परिवादी को मानसिक एवं शारीरिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय भी प्राप्त करने का अधिकारी है।
आदेश
परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि एकल या संयुक्त रूप से परिवादी द्वारा संपूर्ण धनराशि मु0 11,80,000/- रू0 पर दिनांक 09/04/2007 से 11/03/2011 तक की अवधि के लिए 09 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज की दर से ब्याज की धनराशि अदा करें साथ ही शारीरिक व मानसिक क्षतिपूर्ति हेतु 5,000/- रू0 एवं वाद व्यय के रूप मु0 3,000/- रू0 भी अदा करेंगे। उपरोक्त समस्त धनराशि की अदायगी आज की तिथि से दो माह के अंदर सुनिश्चित करे, अन्यथा समस्त धनराशि 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से भुगतान करना होगा।
(जितेन्द्र नाथ सिन्हा) (विजय वर्मा)
पीठा0 सदस्य सदस्य
सुभाष आशु0 कोर्ट नं0 2