Uttar Pradesh

StateCommission

A/1997/656

Udai Singh - Complainant(s)

Versus

Allahabad Bank - Opp.Party(s)

R K Gupta

28 Jul 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1997/656
( Date of Filing : 26 Apr 1997 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District Sonbhadra)
 
1. Udai Singh
Sonbhadra
...........Appellant(s)
Versus
1. Allahabad Bank
Sonbhadra
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 28 Jul 2021
Final Order / Judgement

                                                           (सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-656/1997

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, सोनभद्र द्वारा परिवाद संख्‍या-297/1996 में पारित निणय/आदेश दिनांक 17.07.1996 के विरूद्ध)

                                    

उदई सिंह पुत्र राम औतार सिंह, निवासी ग्राम खजुरौल, पोस्‍ट पनौली, तहसील राबर्ट्सगंज, जिला सोनभद्र।

अपीलार्थी/विपक्षी

बनाम

इलाहाबाद बैंक, शाखा भैरो, जिला सोनभद्र, द्वारा शाखा प्रबन्‍धक।

                                     प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-                           

1. माननीय श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य।

2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 गुप्‍ता, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित  :  श्री मनोज कुमार, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक:  19.08.2021  

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य  द्वारा उद्घोषित                                                 

निर्णय

1.         परिवाद संख्‍या-297/1996, इलाहाबाद बैंक बनाम उदई सिंह में विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग, सोनभद्र द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 17.07.1996 के विरूद्ध यह अपील योजित की गई है। इस निर्णय/आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षी को निर्देशित किया है कि वह 15 दिन के अन्‍दर परिवादी को अंकन 10,000/- रूपये ब्‍याज सहित अदा करे।

2.         परिवाद के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी द्वारा सेविंग बैंक एकाउण्‍ट में जमा राशि परिपक्‍व होने पर अंकन 44,103/- रूपये होनी थी। परिपक्‍व होने पर इस राशि को विपक्षी ने अपने सेविंग एकाउण्‍ट में ट्रांसफर करा लिया, किंतु भूलवश लिपिक ने अंकन 89,224/- रूपये के स्‍थान पर अंकन 99,224/- रूपये अंकित कर दिया। परिवादी बैंक द्वारा पैसा मांगा गया, परन्‍तु विपक्षी ने कोई दिलचस्‍पी नहीं दिखाई। विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग ने यह निष्‍कर्ष दिया कि विपक्षी द्वारा अंकन 10,000/- रूपये ब्‍याज सहित अदा किए जाने थे। तदनुसार विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा उपरोक्‍त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया।

3.         इस निर्णय/आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि परिवादी तथा विपक्षी के मध्‍य उपभोक्‍ता एवं सेवाप्रदाता का संबंध नहीं है। परिवादी बैंक किसी भी दृष्टि से उपभोक्‍ता नहीं हो सकता। यह भी उल्‍लेख किया गया कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा अपीलार्थी को अपना पक्ष रखने का कोई अवसर नहीं दिया गया। केवल दीवानी न्‍यायालय को ही प्रकरण की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्‍त है।

4.         अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री आर0के गुप्‍ता तथा प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री मनोज कुमार की बहस सुनी गई तथा प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।

5.         प्रस्‍तुत केस के तथ्‍यों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि लिपिक द्वारा विपक्षी/अपीलार्थी के खाते में अंकन 10,000/- रूपये जमा किए गए। यह राशि बैंक द्वारा वसूल की जानी है। यदि बैंक के किसी कर्मचारी द्वारा विपक्षी/अपीलार्थी के खाते में अंकन 10,000/- रूपये अधिक जमा कर दिए गए तब बैंक के उपभोक्‍ता द्वारा किसी प्रकार की सेवा में कमी नहीं की गई है। बैंक का उपभोक्‍ता स्‍वंय बैंक के प्रति सेवा में कमी के लिए उत्‍तरदायी नहीं हो सकता। बैंक अन्‍य विधिक प्रावधानों के तहत अंकन 10,000/- रूपये की राशि अपीलार्थी/विपक्षी से वसूल करने के लिए अधिकृत है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग के समक्ष इस राशि को वसूल करने के लिए परिवाद संधारणीय नहीं है। तदनुसार विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग ने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर निर्णय/आदेश पारित किया है, जो अपास्‍त होने और अपील स्‍वीकार होने योग्‍य है।

आदेश

 

6.         प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 17.07.1996 अपास्‍त किया जाता है। संधारणीय न होने के कारण परिवाद खारिज किया जाता है।

बैंक को यह अधिकार प्राप्‍त है कि वह सक्षम न्‍यायालय के समक्ष इस राशि की वसूली हेतु कार्यवाही कर सकता है।

पक्षकार अपना-अपना अपीलीय व्‍यय स्‍वंय वहन करेंगे।

           आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

                     

  (राजेन्‍द्र सिंह)                           (सुशील कुमार)

            सदस्‍य                                   सदस्‍य

 

 

 

लक्ष्‍मन, आशु0,

    कोर्ट-3

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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