Uttar Pradesh

StateCommission

A/28/2016

Sudhir Yadav - Complainant(s)

Versus

Allahabad Bank - Opp.Party(s)

B. K. Upadhayay

08 Dec 2020

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/28/2016
( Date of Filing : 06 Jan 2016 )
(Arisen out of Order Dated 17/12/2015 in Case No. C/354/2008 of District Kushinagar)
 
1. Sudhir Yadav
Kushinagar
...........Appellant(s)
Versus
1. Allahabad Bank
Kushinagar
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 HON'BLE MR. Gobardhan Yadav MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 08 Dec 2020
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

(सुरक्षित)                                                                                  

अपील संख्‍या:-28/2016

(जिला आयोग, कुशीनगर द्धारा परिवाद सं0-354/2008 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 17.12.2015 के विरूद्ध)

सुधीर यादव पुत्र रामदास यादव, निवासी कोन्‍हवलिया बाबू, पोस्‍ट महुवा बजराटार, जिला देवरिया।

                                              ........... अपीलार्थी/परिवादी

बनाम

1- इलाहाबाद बैंक, शाखा कसया, जिला कुशीनगर द्वारा शाखा प्रबन्‍धक।

2- सेन्‍ट्रल बैंक आफ इण्डिया, शाखा बैतालपुर, जिला देवरिया द्वारा शाखा प्रबन्‍धक।

       …….. प्रत्‍यर्थीगण/विपक्षीगण

समक्ष :-

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष

मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्‍य      

अपीलार्थी/परिवादी के अधिवक्‍ता :- श्री बी0के0 उपाध्‍याय

प्रत्‍यर्थी सं0-1 के अधिवक्‍ता     :- श्री शरद कुमार शुक्‍ला

प्रत्‍यर्थी सं0-2 के अधिवक्‍ता     :- श्री जफर अजीज

दिनांक :-28/12/2020

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय   

परिवाद संख्‍या-354/2008 सुधीर यादव बनाम शाखा प्रबन्‍धक, इलाहाबाद बैंक व एक अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, कुशीनगर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक

 

-2-

17.12.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की है।

आक्षेपित निर्णय के द्वारा जिला आयोग ने परिवाद निरस्‍त कर दिया है, जिससे क्षुब्‍ध होकर परिवाद के परिवादी ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।

अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री बी0के0 उपाध्‍याय और प्रत्‍यर्थी सं0-1 की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री शरद कुमार शुक्‍ला तथा प्रत्‍यर्थी सं0-2 की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री जफर अजीज उपस्थित आये हैं।

हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष प्रत्‍यर्थी/ विपक्षीगण के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उसे गन्‍ने के मूल्‍य के भुगतान हेतु 14,922.00 रू0 का चेक गन्‍ना समिति से दिनांक 27.5.2008 को प्राप्‍त हुआ। जिसे उसने दिनांक 02.6.2008 को अपने बचत खाता सं0-5669 इलाहाबाद बैंक शाखा कसिया में विपक्षी सं0-1 के यहॉ कलेक्‍शन हेतु जमा किया। चेक जमा करने के बाद तीन महीने का समय बीत चुका, परन्‍तु विपक्षी सं0-1 ने चेक की धनराशि उसके खाते में जमा नहीं किया और जब अपीलार्थी/परिवादी ने उससे सम्‍पर्क किया, तो उसने सही उत्‍तर नहीं दिया और चेक की कोई

-3-

जानकारी नहीं दी। विपक्षी सं0-1 के निर्देश पर जब अपीलार्थी/परिवादी विपक्षी सं0-2 जो अपील में प्रत्‍यर्थी सं0-2 के यहॉ गया तो उसने सूचित किया कि चेक उसके यहॉ प्राप्‍त नहीं हुआ है। इस प्रकार विपक्षी सं0-1 ने अपीलार्थी/परिवादी के चेक की धनराशि के कलेक्‍शन में घोर लापरवाही की है। अत: क्षुब्‍ध होकर अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत किया है और निम्‍न अनुतोष चाहा है:-

1- यह कि वहक परिवादी विपक्षी प्रतिपक्षी सं0-1 इस आशय का आदेश पारित कर दिय जावे कि वह परिवादी को उपरोक्‍त वर्णित चेक की रकम मु0 14922.00 एवं जमा करने की तिथि से अंतिम भुगतान की तिथि तक 14 प्रतिशत ब्‍याज की दर से एवं आर्थिक, मानसिक, शारीरिक क्षतिपूर्ति के मद में मु0 15,000.00 अदा कर अपनीसेवा की कमी को दूर करें।

2- यह कि अलावा या बजाय दादरसी मजकूर वाला के परिवादी जिस किसी दीगर दादरसी का मुश्‍तहक करार बनजर फोरम पाया जावे तो उसकी भी डिक्री वहक परिवादी विरूद्ध प्रतिपक्षीगण सादिर फरमाई जावे।

3- यह कि खर्चा मुकदमा व शुल्‍क अधिवक्‍ता हम परिवादी को प्रतिपक्षीगण से दिलवा दिया जावे।

    जिला आयोग के समक्ष प्रत्‍यर्थी सं0-1 जो परिवाद में विपक्षी सं0-1 है, ने लिखित कथन प्रस्‍तुत कर कहा है कि उसने चेक प्रत्‍यर्थी सं0-2 को मधुर कोरियर की डाक से प्रेषित कर दिया था, जिसका

-4-

बी0सी0नं0-503 है यह चेक प्रत्‍यर्थी सं0-2 के कार्यालय पर दिनांक 06.6.2008 को प्राप्‍त कराया जा चुका है, जिसका पी0ओ0डी0 नं0-28036, दिनांकित 06.6.2008 है।

लिखित कथन में जिला आयोग के समक्ष प्रत्‍यर्थी सं0-1 ने कहा है कि प्रत्‍यर्थी सं0-2 से सम्‍पर्क करने पर उसके द्वारा केवल नान पेमेंट सर्टिफिकेट ही जारी किया गया। संग्रह हेतु भेजे गये चेक की धनराशि नहीं दी गई।

प्रत्‍यर्थी सं0-1 जो परिवाद में विपक्षी सं0-1 है ने लिखित कथन में कहा है कि उसकी सेवा में कोई कमी नहीं है।

जिला आयोग के समक्ष प्रत्‍यर्थी सं0-2 जो परिवाद में विपक्षी सं0-2 है ने भी अपना लिखित कथन प्रस्‍तुत किया है और कहा है कि उसे 14,922.00 रू0 का चेक कलेक्‍शन हेतु प्राप्‍त नहीं कराया गया है। दिसम्‍बर, 2008 के अंतिम सप्‍ताह में प्रत्‍यर्थी सं0-1 के निवेदन पर उसने नाम पेमेंट सर्टिफिकेट सम्‍बन्धित चेक की बावत जारी किया गया है। इसके साथ ही लिखित कथन में उसने कहा है कि प्रत्‍यर्थी सं0-1 द्वारा दूरभाष पर सूचना प्राप्‍त होने पर चेक का भुगतान रोकने हेतु काशन मार्क सम्‍बन्धित खाते में कर दिया गया था। उसकी सेवा में कोई कमी नहीं है।

जिला आयोग ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍यों पर विचार करने के उपरांत यह उल्‍लेख किया है कि विपक्षी सं0-1 द्वारा प्रस्‍तुत सम्‍बन्धित कोरियार के डिलीवरी चार्ट के अवलोकन से यह

-5-

स्‍पष्‍ट है कि विपक्षी सं0-1 द्वारा प्रश्‍नगत चेक को मधुर कोरियर द्वारा विपक्षी सं0-2 को उपलब्‍ध करा दिया गया है। जिला आयोग ने अपने निर्णय में उल्‍लेख किया है कि प्राप्ति के स्‍थान पर विपक्षी सं0-2 का स्‍टैम्‍प भी लगा हुआ है। अत: ऐसी स्थिति में विपक्षी सं0-1 की सेवा में कोई कमी परिलक्षित नहीं होती है।

    उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर ही जिला अयोग ने परिवाद निरस्‍त किया है।

अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला आयोग का निर्णय दोषपूर्ण है। अपीलार्थी ने अपना उपरोक्‍त चेक प्रत्‍यर्थी सं0-1 बैंक के अपने खाते में धनराशि प्राप्‍त करने हेतु जमा किया है। परन्‍तु उसे चेक की धनराशि का भुगतान नहीं मिला है और चेक की धनराशि उसके खाते में नहीं आई है। न ही चेक उसे वापस किया गया है। बैंक की सेवा में कमी है। अत: जिला आयोग ने परिवाद निरस्‍त कर गलती की है।

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता ने अपने तर्क के समर्थन में निम्‍नलिखित नजीरें प्रस्‍तुत की है:-

1-Mohd. Ayub Vs. Central Bank of India & Anr. II (2006) CPJ 185 (NC)

2-State Bank of India Vs. Sita Devi. IV (2013) CPJ 11 (NC)

    प्रत्‍यर्थी सं0-1 के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला अयोग का निर्णय उचित है। प्रत्‍यर्थी सं0-1 की सेवा में कोई कमी नहीं है।

 

-6-

प्रत्‍यर्थी सं0-2 के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि प्रत्‍यर्थी सं0-2 को चेक प्राप्‍त नहीं हुआ है और उसकी सेवा में कोई कमी नहीं है। प्रत्‍यर्थी सं0-2 के विद्वान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि अपीलार्थी/परिवादी प्रत्‍यर्थी सं0-2 का उपभोक्‍ता नहीं है। अत: उसके विरूद्ध उपभोक्‍ता वाद ग्राह्य नहीं है।

हमने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।

यह तथ्‍य निर्विवाद है कि अपीलार्थी/परिवादी ने 14,922.00 रू0 का चेक प्रत्‍यर्थी सं0-1 के बैंक में अपने खाते में जमा किया। इस चेक का भुगतान प्रत्‍यर्थी सं0-2 बैंक से होना था। जिला आयोग ने माना है कि प्रत्‍यर्थी सं0-1 बैंक ने चेक प्रत्‍यर्थी सं0-2 के बैंक को भेजना प्रमाणित किया है। जिला आयोग का निष्‍कर्ष साक्ष्‍यों पर आधारित है। प्रत्‍यर्थी सं0-1 के बैंक द्वारा अपीलार्थी/परिवादी का चेक सम्‍बन्धित बैंक प्रत्‍यर्थी सं0-2 को भुगतान हेतु प्रेषित किये जाने में प्रत्‍यर्थी सं0-1 बैंक की कोई कमी नहीं दिखती है। चेक का भुगतान प्रत्‍यर्थी सं0-2 के बैंक द्वारा न किया जाना अथवा चेक का भुगतान न होने का कारण अंकित करते हुए प्रत्‍यर्थी सं0-1 के बैंक को चेक वापस न किया जाना प्रत्‍यर्थी सं0-2 के बैंक की कमी है। परन्‍तु परिवाद पत्र में अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्‍यर्थी सं0-2 के विरूद्ध कोई अनुतोष नहीं चाहा है उसने मात्र प्रत्‍यर्थी सं0-1 के विरूद्ध ही अनुतोष चाहा है। इसके साथ ही उल्‍लेखनीय है कि प्रत्‍यर्थी सं0-2 बैंक ने अपीलार्थी/परिवादी को प्रश्‍नगत चेक के नॉन पेमेंट का प्रमाण पत्र उपलब्‍ध करा दिया  है।

-7-

ऐसी स्थिति में अपीलार्थी/परिवादी चेक की धनराशि के भुगतान हेतु पुन: दूसरा चेक सम्‍बन्धित गन्‍ना समिति से प्राप्‍त कर सकता था।

    अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा संदर्भित उपरोक्‍त न्‍यायिक निर्णयों का लाभ अपीलार्थी को वर्तमान परिवाद के तथ्‍यों के परिपेक्ष्‍य में उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर नहीं मिल सकता है।

उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर हम इस मत के हैं कि जिला अयोग ने परिवाद निरस्‍त कर कोई गलती नहीं की है। अपील बलरहित है और निरस्‍त किये जाने योग्‍य है। अत: निरस्‍त की जाती है।

अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं बहन करेंगे। 

 

         (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)        (गोवर्धन यादव) 

                  अध्‍यक्ष                     सदस्‍य                

 

हरीश आशु.,

कोर्ट सं0-1

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT
 
 
[HON'BLE MR. Gobardhan Yadav]
MEMBER
 

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