जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:- 65/2021
उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-18.01.2021
परिवाद के निर्णय की तारीख:-14.03.2024
1. रमेश चन्द्र तिवारी उम्र लगभग 60 वर्ष पुत्र स्व0 देव कुमार तिवारी ग्राम वसन्तपुर तिवारीपुर पोस्ट चन्दौर जिला-सुलतानपुर।
2. श्रीमती शारदा देवी उम्र लगभग 56 वर्ष पत्नी रमेश चन्द्र तिवारी पता-नि0 ग्रा0-वसन्तपुर तिवारीपुर, तहसील सदर जिला-सुलतानपुर।
............परिवादीगण।
बनाम
1. रीजनल मैनेजर इण्डियन बैंक ई इलाहाबाद बैंक निकट हजरतगंज चौराहा लखनऊ।
2. ब्रान्च मैनेजर इण्डिया बैंक ई इलाहाबाद बैंक निकट बस स्टैण्ड सुल्तानपुर।
3. एस0पी0ओ0 हेड आफिस पोस्ट मास्टर प्रधान डाकघर सुल्तानपुर।
............विपक्षीगण।
परिवादी के अधिवक्ता का नाम:-श्री महेश चन्द्र शुक्ला।
विपक्षी सं0 01 व 02 के अधिवक्ता का नाम:- श्री शरद कुमार शुक्ला।
विपक्षी सं0 03 के अधिवक्ता का नाम:-डॉ0 उदय वीर सिंह।
आदेश द्वारा-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
निर्णय
1. परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद विपक्षी संख्या 01 व 02 तथा 03 को अदालत में तलब करते हुए 8,00,000.00 रूपये मय ब्याज सहित दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया गया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि शिकायतकर्ता संख्या 01 व 02 ने विपक्षी संख्या 01 व 02 से सन 2009 व 2010 में विपक्षी संख्या 03 के यहॉं से 6,00,000.00 रूपये का बन्धक किसान विकास पत्र दिनॉंक 05.07.2010 को रख कर विपक्षी संख्या 01 व 02 के बैंक से कर्जा अपने पिता का इलाज कराने हेतु विभिन्न तिथियों में 5,90,000.00 रूपये का 2010 में लिया। शिकायतकर्ता संख्या 01 सेना आर्मी फोर्स से दिनॉंक 31.07.2008 को रिटायर हुआ है। शिकायतकर्ता विपक्षी संख्या 03 के कार्यालय से दिनॉंक 05.07.2010 को 10,000.00 रूपये के 60 किसान विकास पत्र खरीदा जिसकी परिपक्वता 17.01.2019 को पूर्ण होकर परिपक्वता धनराशि 12,00,000.00 रूपये हो जाती है।
3. शिकायतकर्ता के पिता श्री स्व0 देव कुमार विपक्षी को 2009 में कैंसर की बीमारी हो जाने के कारण किसान विकास पत्र मारगेज (बन्धक) कर एकाउन्ट नम्बर-500358554133 से 75,000.00 रूपये कर्जा व एकाउन्ट नम्बर 50035288487 से 3,75,000.00 रूपया व एकाउन्ट नम्बर ...............2454 से 55,000.00 रूपये शिकायतकर्ता 01 व 02 ने विपक्षी संख्या 01 व 02 के यहॉं से सन 2009 व 2010 में इलाज कराने हेतु कर्जा लिया। पिता की मृत्यु 2014 में कैंसर की बीमारी से हो गयी। शिकायतकर्ता आर्थिक तंगी के कारण कुछ रूपया कर्जा का विपक्षीगणों के यहॉं जमा कर सके विभिन्न तिथियों में विपक्षी संख्या 02 के कार्यालय में जमा कर सका है।
4. विपक्षी संख्या 01 व 02 ने शिकायतकर्ता के पते पर 2005 व 2006 में डिमाण्ड नोटिस भेजा। विपक्षी संख्या 01 व 02 बिना परिवादी को सूचित किये हुए गलत ढंग से जबरदस्ती प्रार्थी के किसान पत्र का 12,00,000.00 रूपया तथा एरियर का पैसा 6,48,474.00 रूपया गलत ढंग से काट लिया । परिवादी ने जब बैंक खाते का विवरण निकाला तो 2020 सितम्बर माह में मालूम हुआ कि विपक्षी संख्या 01 व 02 गलत ढंग से मनमाने ढंग से फर्जी तरीके से परिवादीगण का पैसा 18,00,000.00 रूपये में से 11,00,000.00 रूपये कर्जा के काटने के अलावा 8,00,000.00 रूपया गलत ढंग से अधिक काट लिया है।
5. विपक्षी संख्या 01 व 02 द्वारा उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए कथन किया गया तथा यह कहा गया कि प्रस्तुत परिवाद न्यायालय के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है। स्टापेल के सिद्धान्त से बाधित है तथा बैंक के खिलाफ परिवादी द्वारा डी0आर0टी0 लखनऊ और माननीय उच्च न्यायालय में प्रकरण दाखिल किया गया है। इस प्रकार परिवादी द्वारा भिन्न-भिन्न फोरमों का इस्तेमाल किया गया है। परिवादी सुल्तानपुर का रहने वाला है। के0वाई0सी0 सुल्तानपुर से संबंधित है।
6. वर्ष 2019 में के0वाई0सी0 के भुगतान के संबंध में भुगतान किया गया है और समय सीमा से बाधित है। परिवादी द्वारा भिन्न-भिन्न तिथियों में केवल तीन लोन किसान विकास पत्र में प्लेज करके 2009-2010 के बीच में लिये गये हैं। खाता संख्या 5002244454 से 55,000.00 रूपये और खाता संख्या-5003228487 से 3,75,000.00 रूपये और खाता संख्या-5002244454 से 75,000.00 रूपये लिये गये हैं। उक्त लोन को लिये जाने में विपक्षीगण को परिवादी द्वारा स्वतंत्र सहमति से प्लेज की गयी थी। परिवादी द्वारा कोई भी स्टालमेंट पेमेन्ट नहीं किया गया। जो कि खाता संख्या-50032288487 से संबंधित था।
7. परिवादी को कई बार स्टेटमेंट लोन ब्याज का भेजा गया, परन्तु परिवादी द्वारा कोई पैसा नहीं दिया गया। बैंक द्वारा परिवादी से विधि अनुसार लोन के भुगतान उनके किये प्लेज जो कि एक सिक्योरिटी है जिस पर विपक्षीगण का लियन बनता है के द्वारा किया गया। दिनॉंक 09.12.2020 को माननीय न्यायालय द्वारा खारिज किया गया। कोई भी वाद कारण नहीं बनता है।
8. विपक्षी संख्या 03 द्वारा यह कहा गया कि प्लेजी जो होता है अर्थात जिसको प्लेज किया जाता है वह उस डीड का होल्डर माना जाता है और विपक्षी संख्या 01 व 02 ने जो भी कार्य किया गया है विपक्षी संख्या 01 व 02 के अधिकार में ही किया गया है। पोस्ट आफिस का कोई भी दायित्व नहीं होता है।
9. परिवादी द्वारा विपक्षी संख्या 01 व 02 के विरूद्ध किये गये उत्तर पत्र के खण्डन में रिप्लीकेशन भी दाखिल किया गया है और उत्तर पत्र में कहें गये कथनों को ही दोहराया गया है। यह भी कहा गया कि डीआरडी के विरूद्ध भी गये थे। पोषणीय नहीं है। यह गलत कहा गया है और माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद अपने आदेश में संबंधित कोर्ट के समक्ष जाने के विरूद्ध कहा है।
10. परिवादी द्वारा अपने कथानक के समर्थन में मौखिक साक्ष्य के रूप में शपथ पत्र तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में किसान विकास पत्रों की छायाप्रतियॉं तथा एकाउन्ट पेंशन एवं विधिक नोटिस आदि दाखिल किया है। विपक्षीगण की ओर से भी शपथ पत्र, एवं स्टेटमेंट ऑफ एकाउन्ट, एन0एस0सी0 की छायाप्रति आदि दाखिल किया गया है।
11. आयोग द्वारा उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्को को सुना गया तथा पत्रावली का परिशीलन किया गया।
12. परिवादी द्वारा यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत इस आशय से संस्थित किया गया है कि विपक्षी संख्या 01 व 02 को आदेशित किया जाए कि 8,00,000.00 रूपये हर्जा लगाकर दण्डित किया जाए।
13. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत परिवादी को निम्नलिखित दो आवश्यक तथ्यों को साबित किया जाना आवश्यक है-(क) परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता हो। (ख) विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी की गयी हो।
14. परिवाद को साबित करने का दायित्व परिवादी पर है।
15.. सर्वप्रथम कुछ विधिक आपत्ति की गयी है उसका निस्तारण किया जाना न्यायसंगत प्रतीत होता है।
16. विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया कि इस न्यायालय को कोई भी क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवादी सुल्तानपुर का रहने वाला है और सुल्तानपुर में किसान विकास पत्र क्रय किये गये हैं। नये एक्ट के तहत परिवादी जहॉं निवास करता हो अथवा विपक्षी जहॉं निवास करता हो या जहॉं व्यापार करता हो वहॉं पर मुकदमा दाखिल कर सकता है। यह विवाद का विषय नहीं है। परिवादी सुल्तानपुर का रहने वाला है, वहीं से क्रय किया है, लेकिन बैंक और पोस्ट आफिस जो कि सरकार की संस्था है वह अपना व्यापार लखनऊ से भी करते है और विपक्षी बैंक की शाखा लखनऊ में है और पोस्ट आफिस की शाखा लखनऊ में है। चॅूंकि विपक्षीगण अपना व्यापार यहॉं करते हैं तो यहॉं मुकदमा दाखिल किया जा सकता है, इसलिए विपक्षी के कथनों में कोई बल नहीं है।
17. विपक्षीगण द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रस्तुत प्रकरण रेस ज्यूडीक्रेटा एवं स्टापेल के सिद्धान्त से बाधित है। इनका इसी ऋण के संबंध में परिवादी द्वारा भिन्न-भिन्न आयोगों और अदालतो जिसमें माननीय उच्च न्यायालय भी सम्मिलित है में जिसका उपभोग किया है इसलिए वह रेस ज्यूडीक्रेटा के सिद्धान्त धारा-11 सी0पी0सी0 के अन्तर्गत निहित है, जिसमें यह कहा गया कि किसी भी प्रकरण को विपक्षीगण के साथ दोबारा नहीं परेशान किया जा सकता और दूसरा मुकदमा अगर है तो वह नहीं चलेगा।
18. रेस ज्यूडीक्रेडा केवल सूट में लागू होता है, अन्यत्र लागू नहीं होता है। सूट का अभिप्राय यह होता है जहॉं पर प्लीडिंग हो। प्लीडिंग का अभिप्राय जहॉं पर वाद पत्र संस्थित हो और उत्तर पत्र संस्थित हो। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में परिवाद संस्थित किये जाने की व्यवस्था की गयी है यह वाद पत्र की श्रेणी में नहीं आता है। अत: चॅूंकि यह परिवाद पत्र है। अत: रेस ज्यूडीक्रेटा की श्रेणी में नहीं आता है।
19. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि लिमिटेशन से बार नहीं है, क्योंकि 2019 में किसान विकास पत्र का भुगतान हुआ यह प्रकरण 2021 में दाखिल किया गया। उपभोक्ता संरक्षण के अन्तर्गत दो वर्ष की मियाद है। यह वाद दिनॉंक 18.01.2021 को दाखिल किया गया है और भुगतान दिनॉंक 29.08.2019 को एडजेस्टमेंट द्वारा किया गया है। दिनॉंक 29.08.2019 से दो माह जोड़ा जाए तो 29.08.2021 होता है। जबकि यह दिनॉंक 18.01.2019 को दाखिल किया गया, इसलिए लिमिटेशन से बार नहीं है।
(क) परिवादी का कथानक है कि वह विपक्षी संख्या 01 व 02 द्वारा लोन तीन तिथियों में लिया गया था। यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि विपक्षीगण द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि परिवादी को उसने तीन लोन वर्ष 2009-2010 में भिन्न-भिन्न तिथियों में दिया गया इसलिये भी विपक्षी संख्या 01 व 02 का सेवा प्रदाता है। इसलिए परिवादी विपक्षी संख्या 01 व 02 का उपभोक्ता है।
20. विपक्षी संख्या 03 पोस्ट आफिस द्वारा यह कहा गया कि उससे परिवादी से कोई भी व्यापार नहीं हुआ है। इससे पोस्ट आफिस प्रस्तुत प्रकरण में उपभोक्ता नहीं है, क्योंकि जो भी धनराशि प्लेज की जाती है तो प्लेजी वह होल्डर की हैसियत से काम करता है और जब वह होल्डर की हैसियत से काम करता है तो उसको वह अधिकार है कि वह उसे लोन के बकाये के संबंध में वसूली करने के लिये आग्रह कर सकता है और उसी सापेक्ष में उसको भुगतान किया है। इस प्रकार यह किसी भी तरह परिवादी उसका उपभोक्ता नहीं है। मैं विपक्षी के इस कथन से सहमत नहीं हॅूं क्योंकि वह किसान विकास पत्र जो प्लेज किया गया है वह उन्हीं के द्वारा निर्गत किया गया है और पोस्ट आफिस के द्वारा अगर निर्गत किया गया है और प्लेजी अगर होल्डर है तो वह भी सेवा प्रदाता की श्रेणी में आयेगा। इस प्रकार यह विवाद का विषय नहीं है कि परिवादी विपक्षीगण का उपभोक्ता नहीं है।
(ख) क्या विपक्षीगण द्वारा सेवा में कोई त्रुटि की गयी है। यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि परिवादी ने विपक्षी संख्या 01 व 02 से वर्ष 2009-2010 के दौरान कुल तीन लोन लिया। उक्त लोन में से दो लोन को सिक्योर करने के लिये विपक्षी के उत्तर पत्र के अनुसार इसी किसान विकास पत्र को प्लेज किया गया जो लोन संख्या भिन्न है।
21. परिवादी को इस तथ्य को साबित करना है कि विपक्षीगण द्वारा द्वारा सेवा में त्रुटि की गयी है। सेवा में त्रुटि तब समझी जायेगी जब वह ऋण का भुगतान करने गया हो और विपक्षी ने भुगतान लेने से मना कर दिया हो, अथवा वह ऋण की हमेशा अदायगी समय से करता रहा हो। बावजूद वह उनका गलत ढंग से पैसा वसूल किया गया हो।
22. विपक्षीगण का भी यह कथन है कि किसान विकास पत्र प्लेज किया गया और परिवादी द्वारा कोई किस्त अदा नहीं की गी। इस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने अपने साक्ष्य में कहा तथा स्टेटमेंट आफ चार्ट दाखिल किया गया है।
23. स्टेटमेंट ऑफ चार्ट के परिशीलन से यह विदित हो रहा है कि इनके द्वारा पैसा नहीं जमा किया जा रहा है, और बैंक के ऋण का नियम यह होता है कि जब ऋण लिया जाता है उन सब धनराशि का ब्याज के साथ पैसा लिया जाता है। प्लेज रखकर लोन लेना यह निश्चित रूप से यह समझा जायेगा कि लोन प्राप्त करने के लिये व्यक्ति जो लोन ले रहा है वह सहमति से ले रहा हो। भारतीय संविदा अधिनियम के तहत प्लेज व्याख्या की गयी है वह किसी प्रकार के प्रतिभू गारन्टी होती है कि अगर हम जो लोन ले रहे है और उसका हम भुगतान नहीं कर पायेगें तो बैंक का यह अधिकार होगा कि पैसा वापस ले ले।
24. इस आयोग को इस वक्त यह नहीं देखा जाना है कि वह उनकी पेन्शन का पैसा था या किसी और मद का था या कहीं से प्राप्त किया है। मात्र यह देखा जाना है कि सेवा में कमी की गयी है या नहीं। यह भी तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि विपक्षी संख्या 01 व 02 ने प्लेज की गयी सम्पत्ति से लोन का पैसा रिलीज किया क्योंकि परिवादी द्वारा कोई भी पैसा जमा नहीं किया गया। परिवादी द्वारा अदालत के समक्ष कोई भी ऐसा दस्तावेज नहीं दाखिल किया गया जिससे यह परिलक्षित हो कि परिवादी पैसे का भुगतान समय-समय पर करता रहा है।
25. रिजर्व बैंक की गाइड लाइन के तहत विपक्षी संख्या 01 व 02 ने प्लेज की गयी सम्पति से भुगतान कर पैसा रिलीज किया गया।
26. रिजर्व बैंक की गाइड लाइन 21.13 टियर बैंक के तहत अगर 180 दिन के अन्दर पैसा जमा नहीं करता है तो वह पैसों के भुगतान के लिये बैंक कार्यवाही कर सकता है। यहॉं यह कहना समीचीन प्रतीत होता है कि परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र में भी इस तथ्य का उल्लिखित किया गया है कि आर्थिक स्थिति खराब हो जाने के कारण भुगतान नहीं हो पाया है। परिवादी द्वारा कोई रसीद जमा करने की दाखिल नहीं की गयी है।
27. परिवादी ने जब लोन ले लिया तो यह परिवादी का कर्तव्य है कि लोन को चुकाये । लोन लेना एक बहुत आसान प्रक्रिया है। सिक्योरिटी रखकर लोन ले लिया। लोन लेने के साथ लोन लेने वाले का यह दायित्व है कि समय से भुगतान मय ब्याज के साथ किया जाए, क्योंकि विपक्षी के बीच एक संविदा होती है और संविदा के तहत लोन लिया जाता है।
28. परिवादी को साबित करना है कि उनके ऊपर यह बाध्यता थी कि वह आर्थिक स्थिति के कारण लोन नहीं अदा कर पा रहे है तो बैंक से संपर्क करते। समय लेते या कोई अन्य प्रक्रिया अपनाते। उस लोन को चुकता करने के लिये लोन लेकर प्लेज करके उसका भुगतान न करना यह परिवादी की घोर लापरवाही की ओर इंगित करता है। क्योंकि जो पैसा दिया गया वह भी किसी अन्य का है। वह चाहता तो किसी दूसरे से लेकर लोन चुकता कर सकता था। अगर परिवादी के कथनों को मान लिया जाए कि पेन्शन का पैसा था तो उसका भुगतान सुनिश्चित करता।
29. परिवादी द्वारा यह कहा गया कि उन्हें कोई सूचना नहीं दी गयी तो यह गलत बात है। पत्रावली के परिशीलन से विदित है कि बैंक ने नोटिस दिया था कि आप पैसा जमा करें और नोटिस बैंक द्वारा दी गयी है। उनसे आग्रह किया गया कि 15 दिन के अन्दर अदा करें। इनको डीओ भी 2018 में निर्गत किया गया। बैंक के पास कोई चारा अथवा विकल्प नहीं था जो कि ऋण के रूपये उस लागू ब्याज को हटाने के लिए रखी गयी प्लेज की सम्पति पर उसमें इस्तेमाल करते। नोटिस प्राप्त के बाद उनका यह कर्तव्य था कि पैसा इनको जमा करना चाहिए था और बैंक के खाते को दुरूस्त करना चाहिए परन्तु उनके द्वारा कोई भी रूचि नहीं ली गयी।
30. विपक्षीगण द्वारा यह कहा गया कि जो पैसा रिकवर हुआ था वह परिवादी के खाते में गया था और उसके खाते से ही ऋण की अदायगी बैंक द्वारा की गयी। अब ज्यादा काट ली गयी यह कहॉं काटी गयी इसका तस्करा नहीं किया गया और बैंक ने 2019 में अपना भुगतान प्राप्त कर लिया।
31. परिवादी द्वारा यह भी कहा गया कि 6,000.00 रूपये ज्यादा ले लिये मैं इनके तर्कों से सहमत नहीं हॅूं। अत: इनके तर्कों में कोई बल नहीं है। मेरे विचार से उपरोक्त विवेचना के आधार पर कोई भी सेवा में त्रुटि नहीं की गयी है।
अत: मैं परिवादी के कथनों से सहमत नहीं हॅूं, उपरोक्त विश्लेषण से परिवाद पत्र खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रार्थना पत्र निस्तारित किये जाते हैं।
निर्णय/आदेश की प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
दिनॉंक:- 14.03.2024