Uttar Pradesh

StateCommission

A/3168/2017

Pradeep Kumar Sharma - Complainant(s)

Versus

Allahabad Bank - Opp.Party(s)

Sanjay Kumar Verma

14 Jul 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/3168/2017
( Date of Filing : 23 Nov 2017 )
(Arisen out of Order Dated 13/11/2017 in Case No. C/111/2015 of District Bulandshahr)
 
1. Pradeep Kumar Sharma
Bulandshahr
...........Appellant(s)
Versus
1. Allahabad Bank
Bulandshahr
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Gobardhan Yadav PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 14 Jul 2021
Final Order / Judgement

(सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील सं0-  3168/2017

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, बुलन्‍दशहर द्वारा परिवाद सं0- 111/2015 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 13.11.2017 के विरुद्ध)

 

 Pradeep kumar Sharma, S/O Shri Yadram Sharma, R/O 466, Ramwara, Kasba Kurza, Tehsil-Kurza, District-Bulandsahar.

                                                          ………Appellant

Versus

 

  1. Branch Manager, Allahabad Bank, Kurza, District-Bulandsahar.
  2. Sr. Manager/Authorised Officer, Zonal Office, Allahabad Bank, Civil Lines Moradabad.

                                                                                             …….Respondents

समक्ष:-                       

1. माननीय श्री गोवर्धन यादव, सदस्‍य

2. माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

 

अपीलार्थी की ओर से             : श्री संजय कुमार वर्मा

                               विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से               : श्री शरद शुक्‍ला

                               विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक:- 16.08.2021

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उद्घोषित                                             

निर्णय

  1. यह अपील अंतर्गत धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 विद्धान जिला उपभोक्‍ता आयोग, बुलन्‍दशहर द्वारा परिवाद सं0 111/2015 प्रदीप कुमार शर्मा प्रति इलाहाबाद बैंक में पारित निर्णय व आदेश दिनांकित 13.11.2017 के विरूद्ध योजित की गयी है, जिसके माध्‍यम से विद्धान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने परिवादी का उपरोक्‍त परिवाद निरस्‍त कर दिया है।
  2. परिवादी ने विपक्षी इलाहाबाद बैंक के विरूद्ध यह परिवाद अपने खाते की सी0सी0 लिमिट पुन: चालू कराने और भविष्‍य में रिकवरी व बन्‍धक समिति को निलाम न करने और वसूली रोके जाने के साथ-साथ क्षतिपूर्ति हेतु योजित किया है। परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी ने अपने फर्म मै0 प्रसंग इंन्‍डस्‍ट्रीयल कार्पोरेशन, बुलन्‍दशहर के लिए इलाहाबाद बैंक खुर्जा में सी0सी0 लिमिट के लिए आवेदन किया था जो दिनांक 25.12.2008 को रूपये 5,10,000/- की सीमा हेतु स्‍वीकार कर ली गयी है। प्रार्थी का व्‍यापार बढ़ गया और यह लिमिट कम पड़ने लगी। परिवादी के अनुसार विपक्षीगण ने अकारण ही उक्‍त सी0सी0 लिमिट के खाते को दिनांक 02.06.2014 को एन0पी0ए0 कर दिया, जिस कारण प्रार्थी के द्वारा दिये गये कुछ चेक डिसऑनर हो गये। विपक्षीगण ने खाता एन0पी0ए0 करने से पूर्व प्रार्थी को कोई नोटिस भी नहीं दिया गया। विपक्षी ने उक्‍त सी0सी0 लिमिट को चालू करने हेतु कहा किन्‍तु इसका कोई जवाब नहीं दिया गया, जिससे यह परिवाद योजित किया गया। परिवाद में उक्‍त सी0सी0 लिमिट खाते को पुन: चालू करने और प्रार्थी से कोई रिकवरी न किये जाने का अनुतोष मांगा गया है। विद्धान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा परिवादी का परिवाद इन आधारों पर खारिज किया गया है कि परिवादी ने अपने खाते की एन0पी0ए0 होने का परिवाद प्रस्‍तुत किया गया है कि वह डैट रिकवरी ट्रिबनल के द्वारा तय किया जा सकता है। इसके अतिरिक्‍त वित्‍तीय सुविधा न देना, ‘’सेवा में कमी की परिधि में नहीं आता है।‘’ इन आधारों पर यह परिवाद योजित किया गया है, जिससे व्‍यथित होकर यह अपील प्रस्‍तुत की गयी है।
  3. अपील में मुख्‍य रूप से यह आधार लिये गये हैं कि विद्धान जिला   उपभोक्‍ता आयोग ने इस तथ्‍य को अनदेखा किया गया है कि प्रथक का सी0सी0ए0 एकाउण्‍ट बिना किसी नोटिस के एन0पी0ए0 कर दिया गया था। विद्धान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने परिवादी अपीलकर्ता द्वारा प्रस्‍तुत माननीय उच्‍च न्‍यायालय कर्नाटक, माननीय उच्‍च न्‍यायालय आंध्रप्रदेश के नजीरों को अनदेखा करके निर्णय दिया है। धारा 13 सर्फए0सी0 एक्‍ट यह प्रदान करता है कि बैंक तथा वित्‍तीय संस्‍थानों को किसी भी खाते को एन0पी0ए0 करने के पूर्व कारण बताने होंगे। इस तथ्‍य को विद्धान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने अनदेखा किया है। अत: प्रश्‍नगत निर्णय अपास्‍त होने योग्‍य है एवं अपील स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।
  4. विपक्षी बैंक की ओर से अपील के विरूद्ध आपत्तियां प्रस्‍तुत की गयी एवं यह कथन किया गया है कि प्रश्‍नगत निर्णय उचित है एवं यह दृष्टिगत करते हुए दिया गया है कि मामला सर्फए0सी0 एक्‍ट अधिनियम के अन्‍तर्गत उचित न्‍याय नहीं है। अत: उपभोक्‍ता न्‍यायालय में चलने योग्‍य नहीं है। निर्णय में कोई दोष नहीं है। अत: अपील निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।
  5. उभय पक्ष के विद्धान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना गया। पत्रावली पर समस्‍त अभिलेख का अवलोकन किया गया।    
  6. अपीलकर्ता द्वारा अपील में प्रश्‍नगत निर्णय के संबंध में पहली आपत्ति यह ली गयी है कि यह परिवाद परिवादी ने बैंक में अपने कैश क्रेडिट की सीमा को बढ़ाये जाने औ अपने कैश क्रेडिट खाते को पुन: चालू करने के अनुतोष हेतु योजित किया है जो अपीलकर्ता बैंक द्वारा बन्‍द कर दिया गया था। अपीलकर्ता का कथन यह आया है कि यह खाता एन0पी0ए0 हो गया था। जिस कारण बैंक द्वारा सी0सी0 लिमिट बन्‍द कर दी गयी थी यहां पर यह तथ्‍य उल्‍लेखनीय है कि बैंक द्वारा कैश क्रेडिट लिमिट दिया जाना उभय पक्ष की संविदा पर निर्भर करता है एवं यदि खाता एन0पी0ए0 हो जाता है अर्थात खातेदार द्वारा समय समय पर वांछित धनराशि की अदायगी नहीं की जाती है तो संविदा के अनुसार बैंक को यह अधिकार रहता है कि वह अपने संव्‍यवहार एवं संविदा को देखते हुए उक्‍ता खाता बंद कर सके। परिवादी द्वारा यह नहीं दर्शाया गया है कि किस प्रकार संविदा के अनुसार अपीलकर्ता बैंक इस खाते को चालू रखने के लिए बाध्‍य था। अत: बिना उकत तथ्‍य को सिद्ध किये उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपीलार्थी बैंक को खाता चालू रखने हेतु निर्देशित किया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है।
  7. अपीलकर्ता बैंक द्वारा दूसरी आपत्ति यह ली गयी है कि कैश क्रेडिट खाता परिवादी द्वारा अपने व्‍यवसायिक उद्देश्‍य हेतु लिया गया था। अत: कैश क्रेडिट के खाते के लिए परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है और परिवादी के मध्‍य उपभोक्‍ता एवं सेवा प्रदाता की संविदा उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार नहीं मानी जा सकती है।
  8. धारा 2बी (II) के अनुसार वह व्‍यक्ति जो सेवा को व्‍यवसायिक उद्देश्‍य के लिए लेता है वह उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है जब तक कि यह सेवा जीवन यापन के लिए अपनी रोजी-रोटी को कमाने के उद्देश्‍य से स्‍वरोजगार हेतु न लिया जाये। परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत किये गये परिवाद पत्र में कहीं भी यह उल्‍लेख नहीं किया गया है कि परिवादी मेसर्स प्रसंग इंडस्ट्रियल कार्पोरेशन मे स्‍लीविंग तथा इंश्‍योरेटेड वार्निश का निर्माण स्‍वरोजगार के लिए करता है। अत: उक्‍त अभिवचन के यह मानना उचित नहीं है कि परिवादी ने सी0सी0 लिमिट लाने का उक्‍त भार स्‍वरोजगार अपना जीवन यापन हेतु लिया था। इस संबंध में माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय शिखा बिड़ला प्रति डीएलएफ रिटेलर्स डेवलपर्स one 2013 CPJ पृष्‍ठ 665 (NC) का उल्‍लेख करना उचित होगा, जिसमें माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने यह निर्णीत किया है कि यदि कोई संव्‍यवहार व्‍यवसायिक उद्देश्‍य के लिए किया जाता है एवं स्‍पष्‍ट रूप से अभिवचनों में यह नहीं आता है कि यह संव्‍यवहार वादी द्वारा स्‍वरोजगार एवं जीवन यापन के लिए किया जा रहा है तो परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आयेगा।
  9. प्रस्‍तुत मामले में माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय रहबर फाइनेंसियल कन्‍सलटेंट प्राइवेट लिमिटेड प्रति स्‍टेंडर्ड चार्टर्ड बैंक तथा अन्‍य प्रकाशित I (2018) CPJ 75 (NC) यह प्रदान करता है कि यदि व्‍यवसायिक उद्देश्‍य हेतु केश क्रेडिट का करेंट एकाउण्‍ट खोला गया है तो धारा 2 (1D) के अन्‍तर्गत वह व्‍यक्ति उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आयेगा और उपभोक्‍ता न्‍यायालय में उसका वाद पोषणीय नहीं होगा। माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय मेसर्स एडिट ली प्रोडक्‍शन प्रति स्‍टेंडर्ड चार्टर्ड बैंक निर्णीत 14 जुलाई 2016, इस मामले में भी परिवादी ने बैंक से कैश क्रेडिट लिमिट व्‍यवसायिक उद्देश्‍य के लिए प्राप्‍त करे जो परिवादी निर्माण के व्‍यवसाय में था। माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा यह अवधारित किया गया कि उक्‍त कैश क्रेडिट लिमिट के उद्देश्‍य के लिए परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आयेगा और उसका वाद उपभोक्‍ता न्‍यायालय में पोषणीय नहीं है।
  10.  माननीय राष्‍ट्रीय आयोग के उपरोक्‍त निर्णयों पर आधारित तथ्‍य भी इस प्रकार हैं कि प्रस्‍तुत मामले में परिवादी ने कहीं भी यह अभिवचन नहीं किया है कि उसके द्वारा कैश क्रेडिट लिमिट अपने जीवन यापन एवं स्‍वरोजगार के लिए ली गयी थी। अत: निर्माण के व्‍यवसाय में व्‍यवसायिक उद्देश्‍य हेतु लिये गये संव्‍यवहार के लिए परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आयेगा और उक्‍त कारण से परिवादी का परिवाद उपभोक्‍ता न्‍यायालय में पोषणीय नहीं है।
  11.  इस संबंध में माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा एक अन्‍य निर्णय परीक्षित दास प्रति इलाहाबाद बैंक I (2020) CPJ 360 (NC) का उल्‍लेख करना भी उचित होगा। इस मामले में परिवादी द्वारा व्‍यवसायिक उद्देश्‍य के लिए ऋण लिया गया,  यह ऋण खाता एन0पी0ए0 हो गया। परिवादी ने सेवा में कमी मानते हुए परिवाद योजित किया। माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा यह अवधारित किया गया है कि परिवादी ने बैंक की सेवायें व्‍यवसायिक    उद्देश्‍य के लिए ली थी तथा व्‍यवसायिक ऋण ओवर ड्राफ्ट के मध्‍य से लिया गया था तथा ऐसा कोई साक्ष्‍य भी नहीं दिया गया कि परिवादी ने यह ऋण स्‍वरोजगार हेतु जीवन यापन के लिए लिया है। अत: परिवादी बैंक को उपभोक्‍ता नहीं माना जा सकता है और दोनों पक्षों के मध्‍य उपभोक्‍ता व सेवा प्रदाता के संबंध में नहीं होंगे।
  12.  माननीय राष्‍ट्रीय आयोग का उपरोक्‍त निर्णय सैद्धांतिक रूप से इस मामले पर भी लागू होता है। यद्यपि इस मामले में व्‍यवसायिक ऋण न लेकर बैंक से कैश क्रेडिट लिमिट का खाता लिया गया है जो व्‍यवसायिक उद्देश्‍य के लिए है। परिवादी ने न तो ऐसा कोई अभिवचन किया है और न ही ऐसा कोई साक्ष्‍य दिया है कि उसने यह कार्य ‘’स्‍वरोजगार’’ के लिए ‘’जीवन यापन’’ के उद्देश्‍य से किया है। अत: इस मामले में भी माननीय राष्‍ट्रीय आयोग का उपरोक्‍त निर्णय के अनुसार परिवादी को उपभोक्‍ता नहीं माना जा सकता है एवं वाद पोषणीय न होने के कारण परिवाद निरस्‍त होने योग्‍य है। विद्धान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने उचित प्रकार से वाद पोषणीय न होने के आधार पर परिवाद निरस्‍त किया है। अत: निर्णय में कोई त्रुटि प्रतीत नहीं होती है निर्णय पुष्‍ट होने योग्‍य है एवं अपील निरस्‍त किये जाने   योग्‍य है।
  13.  

                          अपील निरस्‍त की जाती है। जिला उपभोक्‍ता आयोग के निर्णय व आदेश की पुष्टि की जाती है।

              अपील में उभय पक्ष अपना अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

                   आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

  (गोवर्धन यादव)                                 (विकास सक्‍सेना)

     सदस्‍य                                         सदस्‍य

 

    संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-2

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Gobardhan Yadav]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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